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 डॉ मुरलीधर सिंह शास्त्री अधिवक्ता माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद एवं लखनऊ 

की कलम से 

17 जून 2025


श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास अयोध्या बिरला धर्मशाला के सामने पत्रकारों एवं अधिवक्ताओं के


लिए दर्शन हेतु  लिए एक अलग काउंटर खोले

पत्रकार लोकतंत्र के चौथे स्तंभ है तथा न्यायपालिका एवं अधिवक्ता तीसरे स्तंभ है 

इनका सम्मान होना चाहिए 

दोनों का जीवन के जवानी कlल संघर्षों में गुजर जाता है 

इसकी सरकार एवं समाज द्वारा विशेष ध्यान देना चाहिए 

जब हम प्रचार के लिए पत्रकार की ओर ध्यान देते हैं जब किसी प्रकरण में उलझते हैं तो वकील की तरफ ध्यान देता है,इसका सम्मान भी करना चाहिए।

 उल्लेखनीय है की श्री राम जन्मभूमि क्षेत्र न्यास का गठन भारतीय संसद द्वारा 5 फरवरी 2020 को किया गया था इसके बाद इसका विस्तार हुआ इसका पंजीकृत कार्यालय देश के जाने-माने वकील पद्म विभूषण श्री के प्र परlसरण जी  आवास ग्रेटर कैलाश  पंजीकृत कार्यालय नई दिल्ली में ही है तथा स्थानीय कार्यालय अयोध्या जी रामकोट क्षेत्र में बन गया है।

 श्री राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन की लंबी लड़ाई है विशेष रूप से 1989 से देखा जाए तो इसमें वकील एवं पत्रकारों की आम जनमानस साधु महात्माओं राजनेताओं के साथ विशेष भूमिका  रही है।

इसमें अयोध्या के वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रेस क्लब अयोध्या अध्यक्ष श्री महेंद्र त्रिपाठीजो आजकल बीमार हैं राम जन्मभूमि मुकदमे में सरकारी गवाह बने थे उनके द्वारा भी अलग काउंटर की मांग की गई है।

सरकारी गवाह बनने से अनेक लोगों को राहत मिली तथा सुप्रीम कोर्ट से जजमेंट आने के बाद सब लोग बरी हो गए ।

बहुत से वकील इस केस मुकदमे में लड़े जो वयोवृद्ध हो गए तथा अपने परिवार के सदस्यों को विभिन्न सरकारों में सरकारी वकील नामित करने में सफल रहे ।

जिसमें अनेक केंद्रीय मंत्री भी हैं विभिन्न राज सरकारों के मंत्री भी हैं पर इस केस के लड़ने वाले मुख्य वरिष्ठ अधिवक्ता एवं भारत के पूर्व अटार्नी जनरल तथा तमिलनाडु के त्रि तिर्चनापल्ली के निवासी श्री के परालसारण ने कोई भी सुविधा नहीं लिया और अनेक अधिकारी पूर्व अधिकारी भी ट्रस्ट में अपनी भूमिका निभा रहे हैं तथा वर्तमान अधिकारी एवं उनके परिवार के सदस्य तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य वरिष्ठ पदों पर सेवा दे रहे हैं।

 श्री राम जन्मभूमि का के मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी 2024 को हो चुका है तथा द्वितीय चरण के राम दरबार का उद्घाटन भी 5 जून 2025 को हो चुका है तथा जो भी अवशेष मंदिर बच्चे हैं वह पूर्ण रूप  दिसंबर 2025 तक पूर्ण हो जाएंगे

 अनेक लोगों के दर्शन आदि के लिए ऑनलाइन एवं विशेष सुविधा व्यवस्था है लेकिन मैं पत्रकारों के साथ एवं अधिवक्ताओं के साथ विगत 40 वर्षों से सक्रिय हूं मैं देखने में आता है कि पत्रकार एवं अधिवक्ता दोनों की जवानी संघर्षों में गुजर जाती और इनको सरकार या समाज से कोई विशेष लाभ नहीं होता।

 20% ऐसे पत्रकार हैं जो पत्रकारिता नहीं करते केवल दलाली करते हैं वह लाभ ले लेते हैं और सरकार से भी मान्यता ले लेते हैं विज्ञापन ले लेते हैं आवास ले लेते हैं लेकिन जो पत्रकार 80% है और सुविधाओं से वंचित रहते हैं उनके लिये मेरा आज अधिवक्ता के रूप में  संघर्ष जारी है। जिसमें उनको 58 साल के बाद पेंशन दिलाना तथा उन पर एक उनके आश्रितों को किसी भी संस्थान में रोजी-रोटी के लिए नौकरी दिलाने का भी प्रयास जारी है।

 क्योंकि यह सरकार जनता की सरकार है और इस सरकार को भी विशेष ध्यान देना चाहिए यदि पत्रकारों और वकीलों पर ध्यान नहीं दिया गया आज गया तो लोकतंत्र समाप्त हो जाएगा एक लोकतंत्र का तीसरा स्तंभ है।GगGG देख लोकतंत्र का चौथा स्तंभ इसलिए इसको सरकार को विशेष सुविधा देना चाहिए तथा ट्रस्ट के लोग भी प्रचार के लिए पत्रकारों पर निर्भर होते हैं तथा ट्रस्ट में भी कुछ फर्जी पत्रकार घूमते रहते हैं ।

उसकी भी सरकारी एजेंसियों से जांच करानी चाहिए तथा सही पत्रकारों को महत्व देना चाहिए तथा ट्रस्ट में आने वाले सभी दान को अपने वेबसाइट पर समय-समय पर प्रत्येक सप्ताह लोड करते रहना चाहिए ।


 


 पर्यावरण का मनुष्य जीवन से गहरा रिश्ता है। सुखी जीवन के लिए स्वच्छ (शुद्ध) पर्यावरण आवश्यक है। जिससे हम सभी चारो तरफ से घिरे हुए हैं उसी को पर्यावरण कहते हैं।   

                      


    प्रकृति ने मुफ्त में हमें जो प्रदान किया है; यथा हवा, पानी , अग्नि , रोशनी (सूर्य- चंद्र), जंगल , पहाड़, धरती -आकाश, मनुष्य-जानवर, पशु-पक्षी , मौसम ,नदी-समुद्र , पेड़ -पौधे, सजीव निर्जीव जिसे व्यापक अर्थ में प्राकृतिक जगत अर्थात ब्रह्माण्ड कह सकते हैं।

 आसानी से समक्षने के लिए कहा जा सकता है कि जो हमें मुफ्त में मिला है और जिसे मनुष्य ने नहीं बनाया है ।                                                 विश्व के अनेकों देश सुख साधन सुविधाओं में वृद्धि के लिए जिन प्रयोगों आविष्कारों का सहारा लिया उसमें उसके सदुपयोग-दुरूपयोग, एवं पर्यावरणीय प्रभाव का बिल्कुल ही ध्यान नहीं रखा गया । परिणाम हुआ कि उन्हीं विकसित देशों ने संयुक्त राष्ट्र संघ ने 5 जून से 16 जून तक आमसभा की बैठक में पर्यावरण प्रदुशण की समस्या पर चर्चा करते हुए 5 जून 1973 से प्रथम पर्यावरण दिवस मनाया गया।                                  

  आज विश्व के अनेकों देश जागरूकता अभियान के रूप में पर्यावरण संरक्षण दिवस मना रहे हैं।    

                                           यह कार्य भारतीय ऋषियों मुनियों ने हजारो लाखो वर्ष पूर्व सोंचा समक्षा जाना होगा। तभी प्रकृति प्रदत्त अमूल्य धरोहरों - जल, वायु, अग्नि, आकाश, सूर्य, चंद्र, नदी, वृक्ष की पूजा अर्चना का विधि-विधान के साथ साथ ऋतुओं के आधार पर पर्व त्यौहार देवी-देवताओं की पूजा के साथ साथ धरती को गंगा को माता के रूप में मानते हुए प्रकृति प्रदत्त मुफ्त में मिले अमूल्य उपहारों के प्रति सम्मान व्यक्त करने की प्रक्रिया प्रारंभ की थी। वैज्ञानिक धरातल पर यह स्वयम् सिद्ध होता है कि हमें प्रदुषण से बचने एवं पर्यावरण को सुरक्षित एवं संरक्षित रखने की चिंता पहले से थी।                                  आज विश्व के बहुत सारे वैज्ञानिक यह स्वीकार कर रहे हैं कि भारतीय सोच समझ एवं परम्पराऐं पहले से ही समृद्ध और सशक्त था। प्रोफेसर अखिलेश्वर शुक्ला ने कहा "हम हैं कि मानते नहीं , पश्चिमी देशों की नकल से थकते नहीं। जबकि पर्यावरण संरक्षण का मूल आधार प्रकृति पूजा है।"                                       भारतीय समाज आज भी गूलामी के प्रभाव से उबर नहीं पाया है। हीन भावना से ग्रसित होकर हम नित्य नए पश्चिमी नारों पर मतवाले हो रहे हैं।  मुफ्त में प्राप्त प्राकृतिक उपहारों का आदर नहीं करते और धन सम्पदा अर्जन के अभियान में सुख शांति निंद जैसे अमूल्य को खोते जा रहे हैं।              


  प्रोफेसर (कैप्टन)अखिलेश्वर शुक्ला, पूर्व प्राचार्य /विभागाध्यक्ष -राजनीति विज्ञान, राजा श्री कृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय- जौनपुर, उत्तर प्रदेश 

  

‘आपरेशन सिंदूर’ के बाद ‘आपरेशन बंगाल’ की चुनौती



देश की राजनीति निम्नता की चरम सीमा पर पहुंचती जा रही है। समाज सेवा के सर्वोच्च मापदण्डों पर स्थापित सत्ता के गलियारों में अब सिंहासन तक पहुंचने के लिए व्यक्तिगत, जातिगत, क्षेत्रगत, भाषागत, सम्प्रदायगत जैसे मुद्दों को प्रचारित किया जा रहा है ताकि वर्ग-विभाजन करके वोट बैंक में इजाफा किया जा सके। 

राष्ट्रीय सुरक्षा की कीमत पर भी लोकप्रियता की ऊंचाइयां पाने की मंशा में पागल हो चुके चन्द राजनेताओं ने अपनी भाषा, हावभाव और आचरण से देश की अस्मिता को तार-तार करना शुरू कर दिया है। ‘आपरेशन सिंदूर’ तक पर विपक्षी दलों ने मनमाने आरोप लगाना शुरू कर दिये हैं। प्रमाणिकता की परिधि से कहीं दूर जाकर सोशल मीडिया पर उत्तेजनात्मक संवाद, दृश्य और दृष्टान्त डलवाये जा रहे हैं ताकि सामाजिक एकरसता को विभाजित करके चौधरी बना जा सके। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की निजी जिन्दगी तक को निशाने पर लिया और सेना के पराक्रम पर केन्द्रित ‘आपरेशन सिंदूर’ की तर्ज पर ‘आपरेशन बंगाल’ करने की चुनौती तक दे डाली। 


चुनावी समर में रोहिंग्या, बंगलादेशी सहित अन्य विदेशी घुसपैठियों की दम पर जीत का दावा करते हुए तत्काल चुनाव कराने, मुक्त संवाद करने तथा सीधा मोर्चा खोलने की बात कहने वाली तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ने अपनी तानाशाही का परचम एक बार फिर फहराने की कोशिश ही की है। 


अतीत गवाह है कि ममता बनर्जी पर हमेशा से ही राष्ट्रद्रोहियों, घुसपैठियों तथा असामाजिक तत्वों को आश्रय देने के आरोप लगते रहे है।

 अतिगम्भीर आरोपियों का पक्ष लेकर राज्य सरकार ने संदेशखाली में महिलाओं का यौन शोषण, जबरन वसूली, जमीन हडपने जैसे आपराधिक कृत्यों के आरोपियों को कथित रूप से बचाने हेतु उच्चतम न्यायालय तक के दरवाजे पर दस्तक तक दी थी। 

राज्य सरकार की ओर से प्रस्तुत की गई याचिका पर सवालिया निशान लगाते हुए जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की बेंच ने पश्चिम बंगाल सरकार के वकील अभिषेक सिंहवी से पूछा था कि एफआईआर चार साल पहले दर्ज की गई थी। आरोपी कौन है? गिरफ्तारियां कब की गईं? किसी को बचाने में राज्य सरकार की दिलचस्पी क्यों होना चाहिए? उल्लेखनीय है कि संदेशखाली काण्ड में तृणमूल कांग्रेस नेता शाहजहां शेख, शिबू हाजरा, उत्तम सरदार, रंजू, संजू सहित अन्य लोगों के नाम उभर कर सामने आये थे। 

केन्द्रीय एजेन्सियों के कामों में दखल देने से लेकर राज्यपाल की गरिमा तक को प्रभावित करने वाली पार्टी की तानाशाही के सामने देश का संविधान जार-जार आंसू रोता रहा है। 

मुर्शिदाबाद में 70 प्रतिशत से अधिक पहुंच चुकी मुस्लिम आबादी ने अब वहां जेहादी परचम फहराना शुरू कर दिया है। 


कश्मीरी हिन्दुओं की तर्ज पर गैर मुस्लिम समुदाय को क्षेत्र छोडने की धमकी दी जा रही है। पश्चिम बंगाल उच्च न्यायालय द्वारा गठित जांच समिति ने मुर्शीदाबाद काण्ड के लिए ममता सरकार को पूरी तरह कटघरे में खड़ा कर दिया हैं। 


जांच आख्या में तृणमूल कांग्रेस के नेताओं व्दारा दंगा भडकाने तथा नेतृत्व करने, स्थानीय प्रशासन व्दारा निष्क्रियता बरतने, केवल हिन्दुओं को निशाना बनाने, पुलिस व्दारा जानबूझकर उपेक्षा करने जैसे अनेक खुलासे किये गये हैं। वहां के राज्यपाल सी. वी. आनन्द बोस ने गृह मंत्रालय को भेजी अपनी रिपोर्ट में तो कट्टरपंथ और उग्रवाद को प्रदेश के लिए बडा खतरा बताते हुए बंगलादेश की सीमा पर स्थित मुर्शीदाबाद, दिनाजपुर और मालदा जिलों में अल्पसंख्यक हो चुके हिन्दुओं की सुरक्षा पर भी प्रश्नचिन्ह अंकित किये हैं।

 मुर्शीदाबाद का पूरा घटनाक्रम पहले से निर्धारित षडयंत्र की व्यवहारिक परिणति थी। मालूम हो कि इसी क्षेत्र में 14 दिसम्बर 2019 में सीएए के विरोध में रेलवे स्टेशन, बसों, सार्वजनिक प्रतिष्ठानों, हिन्दुओं की दुकानों-मकानों-वाहनों तक में तोडफोड-लूटपाट की गई थी।

 लालगोला और कृष्णापुर स्टेशन पर 5 ट्रेनों में आग लगा दी गई थी। सूती में पटरियां तोड दी गईं थी। उस दौरान वहां मौजूद पुलिसकर्मियों पर मूकदर्शक बने रहने के आरोप लगाये गये थे। 

सन् 2024 में रामनवमी उत्सव के दौरान मुर्शीदाबाद के शक्तिपुर क्षेत्र में हिंसा भडकी थी। जुलूस पर छतों से पत्थरों के प्रहार किये गये थे। बंगाल का नार्थ 24 परगना, कोलकता, हावडा, साउथ 24 परगना, मालदा, मुर्शीदाबाद जैसे अनेक जिले मुस्लिम बाहुल्य हो गये हैं। गैर मुसलमानों को निरंतर प्रताडित किया जा रहा हैं।

 ‘फैक्ट फाइंडिंग टीम’ की रिपार्ट के अनुसार पश्चिमी बंगाल में बंगलादेशी, रोहिग्या सहित अनेक विदेशी घुसपैठिये भारी संख्या में मौजूद हैं जिन्हें फर्जी दस्तावेजों के सहारे भारतीय नागरिक घोषित कराया गया है। आये दिन होने वाली हिंसक घटनाओं से भय और असुरक्षा का वातावरण निर्मित करके क्षेत्र से गैर मुसलमानों को भगाने का सुनियोजित षडयंत्र अब तेज होता जा रहा है।

 वहां पर एनजीओ, समाज सेवी संस्थाओं, धार्मिक संस्थाओं, समितियों, ट्रस्ट आदि की आड लेकर कट्टरपंथियों की जमातें राजनैतिक दलों के संरक्षण में अपने मंसूबे पूरे करने में जुटीं हैं। कहा जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में असोमोयेर अलोर बाटी तथा गोल्डन स्टार ग्रुप जैसे संगठन बनाकर राजेश शेख, बशीर शेख, महबूब आलम, कौसर  तथा मुस्तकिन जैसे असामाजिक तत्व तृणमूल कांग्रेस के नेता बनकर सरकारी संरक्षण में सिमी, पीएफआई आदि प्रतिबंधित संगठनों के लिए निरंतर काम कर रहे हैं। 

ब्लड डोनेशन कैम्प, कल्याणकारी योजना, लाचारों की सहायता, जरूरतमंदों को सामग्री की आपूर्ति जैसे दिखावटी आयोजनों से कट्टपंथी विचारधारा वालों को चयनित करके उन्हें देशद्रोही अभियान में झौंका जा रहा है। वर्तमान परिदृश्य के आधार पर आने वाले कल की तस्वीर बेहद डरावनी प्रतीत हो रही है। 

अभी तो केवल बानगी के चन्द दाने ही सामने आये हैं। समूचे देश में सीमापार से चलाये जा रहे खतरनाक षडयंत्रों को यदि समय रहते नस्तनाबूद नहीं किया गया तो आन्तरिक कलह की संभावना बढते समय के साथ बलवती होती चली जायेगी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।



Dr. Ravindra Arjariya

Accredited Journalist

for cont. - 

dr.ravindra.arjariya@gmail.com


 अस्तित्व आधारित संदेश यह है कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।

operation sindoor continued....

ये विचार 

सुश्री लक्ष्मी पुरी, संयुक्त राष्ट्र की पूर्व सहायक महासचिव और संयुक्त राष्ट्र महिला की उप कार्यकारी निदेशक तथा भारत की पूर्व राजदूत के है , इसे पढ़कर आपको ओपेराशन सिंदूर की महत्ता का पता चल पाएगा---

सिंदूर सिद्धांत इसे आगे बढ़ाता है, आत्मविश्वास से भरे भारत ने इसका समर्थन किया है। 


देश अपने मूल हितों तथा अपने नागरिकों की संरक्षा और सुरक्षा के लिए स्वतंत्र व मजबूती से काम करने के लिए दृढ़ संकल्पित है। 


भू-राजनीतिक रूप से, इस ऑपरेशन ने क्षेत्रीय उम्मीदों को फिर से स्थापित किया है। 

  

 ऑपरेशन सिंदूर: राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रीय सम्मान का संगम

former ambassoder lakshmi puri witह operation sindoor


• सुश्री लक्ष्मी पुरी, संयुक्त राष्ट्र की पूर्व सहायक महासचिव और संयुक्त राष्ट्र महिला की उप कार्यकारी निदेशक तथा भारत की पूर्व राजदूत ने  कहा कि

ऑपरेशन सिंदूर ने स्पष्ट किया है कि भारत वैधता नहीं चाहता है। देश न्याय चाहता है। भारतीय संयम को कभी भी कमजोरी नहीं समझा जाना चाहिए।        

पहलगाम में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवादी कृत्य के प्रति भारत की जवाबी प्रतिक्रिया - ऑपरेशन सिंदूर, जो अभी भी जारी है – आतंकवाद-रोधी और सैन्य सिद्धांत तथा रुख में एक बड़े बदलाव का संकेत देता है। अपने जोशीले भाषण में, जिसकी गूंज पूरे भारत और दुनिया के विभिन्न देशों की राजधानियों में सुनायी दी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा करते हुए कहा कि सीमा-पार आतंकवाद के किसी भी कृत्य के खिलाफ निर्णायक सैन्य कार्रवाई की एक नई सामान्य स्थिति स्थापित की गई है।

कोई भी देश, जो आतंकवादी अवसंरचना को पनाह देता है, उसे वित्तीय मदद देता है और उसका पोषण करता है, उसे अपने सैन्य बलों के साथ जोड़ता है और निर्दोष नागरिकों के खिलाफ क्रूर हमलों के लिए भारत को निशाना बनाता है, उसे त्वरित, दंडात्मक और प्रतिशोधी परिणामों का सामना करना पड़ेगा। सोची-समझी सैन्य कार्रवाई से न केवल पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में बल्कि अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के बीच में भी आतंकवादी नेटवर्क ध्वस्त हो जाएंगे, भले ही राज्य प्रायोजित आतंकवादी ठिकाने आधिकारिक सुरक्षा संरचनाओं के साथ कितने भी जुड़े हुए हों।

सिंदूर सिद्धांत, भारत की संप्रभुता और सभ्यतागत लोकाचार को बनाए रखने में निहित है। इसका उद्देश्य इसकी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करना, आंतरिक एकता, सद्भाव और शांति सुनिश्चित करना और 2047 तक विकसित भारत बनाने के लिए देश को त्वरित आर्थिक विकास के पथ पर आगे बढ़ाना है। यह सीमा-पार आतंकवाद के प्रति शून्य-सहिष्णुता के रुख की पुष्टि करता है और भारत को अपने सुरक्षा हितों की रक्षा में निर्णायक रूप से कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध करता है, जिसे पुनर्परिभाषित और विस्तृत किया गया है।

प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा है: भारत के खिलाफ़ किसी भी तरह की आतंकी कार्रवाई युद्ध मानी जायेगी - अब कोई संदेह की स्थिति नहीं है, किसी दूसरे तरीके से युद्ध को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, आतंकवाद से होने वाले नुकसान के आगे हार नहीं मानी जाएगी। ऑपरेशन के बाद राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष प्रधानमंत्री का संबोधन सफलता की पुष्टि से कहीं अधिक था। बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर दिए गए इस संबोधन ने एक नई रणनीतिक व्यवस्था का अनावरण किया- दृढ़, गरिमापूर्ण और भारत के सभ्यतागत मूल्यों पर आधारित।

इसने एक सरल लेकिन दृढ़ संदेश दिया: भारत शांति में विश्वास करता है, लेकिन शांति को शक्ति का समर्थन होना चाहिए। अपने मूल में, प्रधानमंत्री मोदी का सिंदूर सिद्धांत तीन अलग सिद्धांतों पर जोर देता है, जिन पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। पहला, भारत उन देशों के साथ कोई बातचीत नहीं करेगा, जो आतंक को बढ़ावा देते हैं; जब बातचीत फिर से शुरू होगी, तो यह द्विपक्षीय होगी तथा इसमें केवल आतंकवाद और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर चर्चा होगी। दूसरा, भारत आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों के साथ आर्थिक संबंधों को स्पष्ट रूप से अस्वीकार करता है तथा व्यापार और राष्ट्रीय सम्मान के बीच एक सुदृढ़ रेखा खींचता है। अंत में, भारत अब परमाणु धमकी को बर्दाश्त नहीं करेगा- ऑपरेशन सिंदूर ने निर्णायक रूप से उन सभी भ्रमों को तोड़ दिया है कि परमाणु खतरे, आतंकी कृत्यों के ढाल बन सकते हैं।

"सिंदूर" नाम का चयन गहन सांस्कृतिक प्रतीकात्मकता को रेखांकित करता है। विवाहित हिंदू महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला लाल सिंदूर - पीड़ित होने के रूपक के रूप में नहीं, बल्कि पवित्र कर्तव्य और राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया गया। आतंकवादियों ने इस सम्मान को अपवित्र करने की कोशिश की; भारत ने पूरी ताकत के साथ जवाब दिया। व्यक्तिगत राजनीतिक हो गया, सांस्कृतिक रणनीतिक हो गया। चूंकि आतंकी हमला कश्मीर में हुआ था, जो भारत माता का भौगोलिक और प्रतीकात्मक सिर है, इसलिए ऑपरेशन सिंदूर भारत माता की रक्षा करने और उसे सलाम करने के लिए है। भारत की प्रतिक्रिया एक सैद्धांतिक विरासत का अनुसरण करती है।

कौटिल्य के अर्थशास्त्र से लेकर 1980 के दशक के इंदिरा सिद्धांत तक तथा 1998 में पोखरण-II परीक्षणों के जरिए वाजपेयीजी के साहसिक परमाणु दावे से लेकर —जिसने वैश्विक दबावों और प्रतिबंधों के बावजूद भारत के आत्मरक्षा के संप्रभु अधिकार की पुष्टि की और विश्वसनीय न्यूनतम अवरोध की नीति स्थापित की—से लेकर उरी और बालाकोट में प्रदर्शित मोदी सिद्धांत तक, भारतीय शासन नीति ने लंबे समय से संकट के समय और राष्ट्रीय सुरक्षा के महत्वपूर्ण मामलों में संप्रभु निर्णय लेने की आवश्यकता पर जोर दिया है।


आतंकवाद के लिए ढाल के रूप में परमाणु शक्ति का इस्तेमाल करने के आदी पाकिस्तान का सीधे सामना किया गया है। दंड से मुक्ति का भ्रम टूट गया है।

चीन, हालांकि औपचारिक रूप से तटस्थ है, उसे अपने सहयोगी की कमज़ोरी को समझना होगा। 

संयुक्त राज्य अमेरिका से लेकर रूस तक, वैश्विक शक्तियाँ भारत को बाहरी संकेत या समर्थन की प्रतीक्षा किए बिना कार्रवाई करते हुए देख रही हैं। अन्य पड़ोसियों को अब अपनी दुर्भावना और भारत विरोधी कार्रवाइयों के परिणामों का आकलन करना चाहिए।

पिछले 11 वर्षों में, भारत ने कई भौगोलिक क्षेत्रों में और प्रमुख शक्तियों के साथ द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी का एक सघन और मजबूत नेटवर्क सफलतापूर्वक निर्मित किया है। इसने बहुपक्षीय और लघुपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतर-क्षेत्रीय सहयोग व्यवस्थाओं में भाग लिया है और मुक्त व्यापार समझौतों पर बातचीत कर रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, प्रमुख शक्तियों और इन साझेदारियों से जुड़े भारत के कई रणनीतिक और रक्षा संबंध अग्नि परीक्षा से गुजरे।

पहलगाम के बाद, संतोषजनक बात यह थी कि हमारे भागीदारों द्वारा आतंकवादी हमलों की सार्वभौमिक निंदा की गयी। हालाँकि, ऑपरेशन सिंदूर के जवाब में पाकिस्तान की तीव्र कार्रवाई के बाद, परमाणु-संपन्न पड़ोसियों के बीच तनाव बढ़ने के बारे में चिंताएँ व्यक्त की गईं। प्रतिक्रियाएँ इस बात से भी प्रभावित थीं कि इस सैन्य संघर्ष में उनके हथियार प्रणालियों ने कैसा प्रदर्शन किया या कि क्या प्रदर्शन करने में विफल रहे। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे हैं, हमें न केवल अपने रणनीतिक साझेदारों को सावधानी से चुनना चाहिए, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि ये साझेदारियाँ सिंदूर सिद्धांत को शामिल करती हों।

 

इसका मतलब यह है कि उन्हें पाकिस्तान पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके उसके आतंकी ठिकानों को खत्म करना चाहिए और राज्य-नीति के रूप में आतंकवाद का परित्याग करना चाहिए। यदि हमें पाकिस्तानी आतंकवादी-सैन्य ढांचे के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए सैन्य बल का इस्तेमाल करना पड़ता है, तो उन्हें हमारे साथ एकजुटता दिखानी चाहिए। दुष्टों के लिए कोई शरणस्थली नहीं, कोई बचाव नहीं। महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत जिस आतंकी ढांचे को निशाना बना रहा है, वह न सिर्फ भारत और लोकतंत्र के लिए, बल्कि वैश्विक आर्थिक वृद्धि और विकास के इंजन के रूप में देश की भूमिका के लिए भी खतरा है।

पाकिस्तान से आतंकवाद को वैश्विक स्तर पर निर्यात किया जाता है - यूरोप, यूके, संयुक्त राज्य अमेरिका और उससे आगे। फिर भी, अंतरराष्ट्रीय समुदाय का अधिकांश हिस्सा आंखें मूंद कर बैठा है, जबकि संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकवादी समूह पाकिस्तान में खुलेआम काम करते हैं। पाकिस्तान पहले भी आतंकवादी समूहों की शरणस्थली था और अब भी है। ऑपरेशन सिंदूर 1.0 के दौरान, पाकिस्तान के रक्षा और विदेश मंत्रियों ने सार्वजनिक रूप से इतना स्वीकार किया। भारत ने आतंक के इस असंख्य सिर वाले राक्षस के खिलाफ कार्रवाई करके वैश्विक सेवा की है।

यह अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अग्रिम पंक्ति के योद्धा के रूप में खड़ा है। दुनिया को कार्रवाई करने के लिए जागरूक होना चाहिए और आतंक के अपराधियों और इसके खिलाफ काम करने वालों के बीच नैतिक समानता स्थापित करना बंद करना चाहिए - चाहे उनके संकीर्ण, अल्पकालिक, दिखावटी विचार कुछ भी हों। सिंदूर सिद्धांत का आर्थिक आयाम भी महत्वपूर्ण है। "आतंकवाद के साथ कोई व्यापार नहीं" की स्पष्ट घोषणा करके, भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आर्थिक उपायों को क्रियान्वित किया है।

व्यापार और सिंधु जल संधि जैसी संधियों को निलंबित करने जैसे कदम आर्थिक संबंधों को राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों के साथ मजबूती से संरेखित करने के भारत के संकल्प को रेखांकित करते हैं। 

ये उपाय एक स्पष्ट संदेश देते हैं:


 आतंक के खात्मे के बाद आर्थिक संबंध बनने चाहिए, न कि पहले।

अस्तित्व आधारित संदेश यह है कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।

 नारी-शक्ति से जुड़ा एक शक्तिशाली आख्यान ऑपरेशन के संदेश को पुष्ट करता है और इसे सुर्खियों में लाता है: भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था में महिलाओं की भूमिका। 

ऑपरेशन के बाद दो महिला अधिकारियों ने प्रमुखता से सैन्य प्रेस वक्तव्यों का नेतृत्व किया, जो भारत के रक्षा परिदृश्य में महिलाओं के बढ़ते महत्व का प्रतीक है। 

"नारी शक्ति" (महिला सशक्तिकरण) के इस क्षण ने महिलाओं के प्रति भारत के सभ्यतागत सम्मान को मजबूत किया, रानी लक्ष्मीबाई से लेकर समकालीन महिला सैन्य अधिकारियों तक के ऐतिहासिक उदाहरणों की प्रतिध्वनि की, जिससे राष्ट्रीय गौरव को लैंगिक समावेश के साथ जोड़ा गया।

भारत की सैन्य ताकत घरेलू नवाचार की मदद से तेजी से बढ़ रही है। हालांकि, कुछ विदेशी प्रणालियों का इस्तेमाल किया गया था, स्वदेशी मिसाइलों, ड्रोन और निगरानी उपकरणों की सफल तैनाती, रक्षा में आत्मनिर्भरता की परिचालन परिपक्वता को उजागर करती है। 

यह हमारे निर्यात जोर और मांग को बढ़ाता है। हमने भारत में आयातित और सह-निर्मित हथियार प्रणालियों के साथ-साथ पाकिस्तान द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली हथियार प्रणालियों का भी परीक्षण किया और इनसे हमारे द्वारा लिए गए सही निर्णयों की पुष्टि हुई। ऑपरेशन सिंदूर से यह स्पष्ट हो गया कि भारत वैधता नहीं चाहता - वह न्याय चाहता है।

भारतीय संयम को कभी भी कमजोरी नहीं समझा जाना चाहिए। सिंदूर सिद्धांत केवल प्रतिक्रियात्मक नहीं है; यह सैद्धांतिक स्पष्टता का एक सक्रिय दावा है। 

भारत के नागरिकों के, विशेषकर महिलाओं के जीवन, गरिमा, भलाई और सम्मान के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा। इसी बिंदु पर राष्ट्रीय सुरक्षा का राष्ट्रीय सम्मान के साथ संगम होता है। यहीं पर प्राचीन मूल्य, आधुनिक ताकत के साथ मिलते हैं। और यहीं पर भारत खड़ा है- निडर, अडिग और एकजुट।  

 भविष्य की आहट :‘दोस्त’ ने की ‘सिन्दूर’ में गद्दारी





‘आपरेशन सिंदूर’ से पाकिस्तान को सबक सिखाने के बाद अब उसके सहयोगियों को देश ने सबक सिखाना शुरू कर दिया है। इस श्रंखला की पहली कडी है तुर्किये। 

उल्लेखनीय है कि विगत 6 फरवरी 2023 को तुर्किये में 7.8 तीव्रता वाला सदी का सबसे शक्तिशाली भूकम्प आया था। इस आपदा में 60 हजार से अधिक लोगों के हताहत होने, लगभग 1.50 लाख भवनों के धूलधूसित होने तथा 15 लाख से ज्यादा लोगों के बेघर होने की स्थिति निर्मित हुई थी। तब मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए भारत ने ‘आपरेशन दोस्त’ चलाया था। सबसे पहले भारत ने ही सहायता पहुंचाई थी जिसमें राहत सामग्री भरकर सी-17 श्रेणी के 6 विमान तथा चिकित्सीय उपकरणों तथा दवाइयों से सुसज्जित सुपर हरक्यूलिस श्रेणी का विमान भेजे गये थे। इसके अलावा भारतीय सेना के 250 जवानों सहित एनडीआरएफ के 50 दक्ष सेवाकर्मियों के दलों को भी सहायतार्थ पहुंचाया गया था। चिकित्सा जगत के 99 भारतीय चिकित्सा विशेषज्ञों ने तुर्किये में 30 बिस्तरों का फील्ड अस्पताल बनाकर वहां के 4 हजार से अधिक मरीजों की सर्जरी, क्रिटिकल केयर, आपरेशन के साथ साथ अन्य जटिल आपातकालीन इलाज किया था। 

कपडे, टैंट, बचाव उपकरण, जनरेटर्स, एक्सरे मशीन, वैन्टिलेटर्स, ईसीजी मशीनें, कम्बल, दैनिक उपयोग की सामग्री, राशन, फल, मेवा, पौषिक आहार, शक्तिवर्धक औषधियों सहित अन्य आवश्यक सामग्री भी भारत ने भेजी थी।

 उसी देश ने अहसान फरामोशी का कीर्तिमान स्थापित करते हुए विगत 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए धर्मगत आतंकी हमले के गुनहगार पाकिस्तान पर किये गये ‘आपरेशन सिंदूर’ के दौरान उसे खुलकर समर्थन ही नहीं दिया बल्कि हथियारों का जखीरा, सैन्य उपकरण, उपकरणों के आपरेटर्स, कूटनैतिक तथा आर्थिक सहयोग तक मुहैया कराया था।

 सूत्रों के अनुसार तुर्किये ने पाकिस्तान को 350 से अधिक ड्रोन सहित बेतहाशा गोलाबरूद आदि दिये थे ताकि वह आपरेशन सिंदूर का मुंहतोड जवाब दे सके। इसी क्रम में विगत 4 मई 2025 को तुर्किये नौसेना युद्धपोत टीसीजी बुयुकडा एफ-512 भी कराची पोर्ट पर सहायतार्थ पहुंच गया था ताकि भारतीय नौसेवा के साथ खुली जंग हो सके।

 अतीत में भी अनेक अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर तुर्किये द्वारा पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाया जाता रहा है। 

अब भारत ने तुर्किये के खिलाफ आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक नाकेबंदी हेतु कूटनैतिक प्रयास तेज कर दिये हैं।

 जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, जामिया विश्वविद्यालय सहित देश के अनेक विश्वविद्यालयों तथा शिक्षण संस्थानों ने तुर्किये के साथ हुए अपने अनेक अनुबंध निलम्बित कर दिये हैं जिससे वहां विकसित हो रही शिक्षा संभावनायें एक झटके के साथ रुक गई।

 दूसरी ओर दिल्ली, किशनगढ, उदयपुर, चित्तौडगढ तथा सिलवासा के मार्बल व्यवसायियों ने पाक सहयोगी से मार्बल के आयात को पूरी तरह से बंद करने की घोषणा कर दी है। 

मालूम हो कि भारत में प्रतिवर्ष लगभग 14.5 लाख मीट्रिक टन मार्बल का आयात करता है जिसमें से 10 लाख मीट्रिक टन मार्बल केवल तुर्किये से आता था।

 इस तरह लगभग 2500 करोड रुपये का कारोबार शून्य पर पहुंच गया। 

देश के मार्बल व्यापार संगठनों की माने तो वे अब तुर्किये के स्थान पर इटली, वियतनाम, स्पेन, क्रोशिया, नामीबिया तथा ग्रीस जैसे देशों से माल मंगाकर उच्चतमस्तर के विलासतापूर्ण जीवन जीने वाले उपभोक्ताओं की जरूरतों को पूरा करेंगे। 

इसी तरह देश के फल व्यापारियों ने भी तुर्किये के सेव के आर्डर कैंसिल करना शुरू कर दिये हैं। 

भारतीय पर्यटकों ने भी इस देश की पूर्व निर्धारित यात्रायें स्थगित करना शुरू कर दीं हैं। आंकडे बताते हैं कि भारतीय पर्यटकों ने गत वर्ष तुर्किये को लगभग 4 हजार करोड का मुनाफा दिया था।

 तुर्किये के ब्रैंड्स को आनलाइन घायल करने के लिये रिलायंस तथा फ्लिपकार्ट ने भी प्रहार शुरू कर दिये हैं। 

रिलायंस के आजियो तथा फ्लिपकार्ट के मिंत्रा पर तुर्कीश बैंड्स का सामान आउट आफ स्टाक दिखने लगा है। 

ज्ञातव्य है कि तुर्किये के ई-कामर्स प्लेटफार्म ट्रेंडयाल के मार्केटिंग राइट्स भारत में खरीदे गये थे। टीओई टेक की रिपोर्ट के अनुसार मिंत्रा ने ट्रेंडयाल पर लिस्टिड सभी तुर्कीश ब्रैंड्स की सेल अस्थाई तौर पर सस्पेंड कर दी है।

 रिलायंस ने तो तुर्की में स्थापित अपने सारे आफिस बंद कर दिये हैं। भारत सरकार ने तो बडा झटका देते हुए तुर्की की ग्राउण्ड हैंडलिंग सर्विस देने वाली कम्पनी सेलेबी एविएशन की सिक्योरिटी क्लीयरेंस को राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए रद्द कर दिया है। 

बौखलायी तुर्किये की कम्पनी ने भारत में मौजूद मीर जाफरों की फौज के सहयोग से भारत सरकार के इस फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी है ताकि देश के लचीले संविधान की आड में सरकार के राष्ट्रवादी कदमों को रोक जा सके।

 चुनौती में उसने मानवीय भावनाओं की आड लेते हुए कहा कि सिक्यूरिटी क्लीयरेंस पर लिया गया फैसला बिना किसी तर्क के अस्पष्ट राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर लिया गया है, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा के कारकों का स्पष्टीकरण नहीं है और न ही इस संबंध में पूर्व में कोई चेतावनी ही दी गई थी। 

इस फैसले से न केवल 3791 नौकरियों पर असर पडेगा बल्कि विदेशी निवेशकों का विश्वास भी डमगाएगा। 

इस चुनौती को आधार बनाकर एक बार फिर विपक्ष मुखरित हो उठा है।

 आधिकारिक आंकडे बताते हैं कि कच्चा पेट्रोलियम, सोना, विमान, ग्रेनाइट, संगमरमर, सेब आदि का आयात तथा एल्युमीनियम प्रोडक्ट्स, आटो कंपोनेंट, विमान,  टेलीकाम इक्विपमेंट्स आदि का निर्यात तुर्किये के साथ किया जाता है।

 अप्रैल 2024 से फरवरी 2025 के मध्य तुर्किये को भारत का कुल निर्यात 14.8 प्रतिशत घटकर 5.12 बिलियन डालर रहा जबकि आयात 17. 25 प्रतिशत बढकर 2.8 बिलियन डालर पहुंच गया था। गत शुक्रवार को सीएआईटी व्दारा आयोजित बिजनेस लीडर्स का एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें देश भर के 125 से अधिक प्रमुख दिग्गजों ने भाग लिया था। 

उस सम्मेलन में तुर्किये और अजरबैजान के साथ यात्रा, पर्यटन, व्यापार, वाणिज्य, तकनीक आदि सभी क्षेत्रों के जडाव का बहिष्कार करने का संकल्प लिया गया।

 सरकारी संस्थाओं से लेकर निजी संगठनों तक ने ‘आपरेशन सिंदूर’ के दौरान आतंकी देश पाकिस्तान के सहयोगी राष्ट्र तुर्किये पर प्रहार पर प्रहार करने शुरू कर दिये हैं। 

ऐसे में पाकिस्तान के आतंकी चेहरे को बेनकाब करने हेतु निकलने वाले मल्टी पार्टी डेलिगेशन के शशि धरूर (कांग्रेस), रविशंकर प्रसाद (भाजपा), संजय झा (जदयू), बैजयंत पंडा (भाजपा), कनिमोझी करुणानिधि (डीएमके), सुप्रिया सुले(एनसीपी) तथा श्रीकान्त शिन्दे (एनसीपी) का विश्वव्यापी दौरा निश्चय ही आने वाले समय में पाकिस्तान को आतंकिस्तान के रूप में स्थापित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। इस बार बस इतना ही। 

अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।


Dr. Ravindra Arjariya

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विचार--



             भारत के पड़ोसी मुल्क स्वयं की समस्याओं से दिमाग भटकाने एवं भारत में गृहयुद्ध की स्थिति पैदा करके भारतीय विकास को अवरूद्ध करने के लिए "पहलगाम" की जघन्य कृत्य को अंजाम दिया गया, उसका परिणाम है कि आज हम सब युद्ध के मुहाने तक आ पहुंचे हैं।                      भारतीय जनाक्रोश ने समक्षदारी का परिचय दिया और गृह युद्ध के बजाय आतंक के आका , आतंकवादियों का प्रशिक्षण स्थल एवं आतंक प्रायोजित करने वाले पाकिस्तान को हीं निशाने पर लिया गया।    

                              आक्रोश को शांत करने के लिए युद्ध का सहारा न लेकर,कुछ विलम्ब करके -केवल आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया  जाना  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी क्रिया कलापों के खात्मा एवं विश्व शांति की दिशा में शुरूआती कदम था। लेकिन आतंक के आका(पाकिस्तान) को यह हजम नहीं हुआ और सर्जिकल स्टाईक (6/7 मई 2025) के बाद मारे गए आतंकियों के जनाजे में शामिल होना और भारतीय सीमा क्षेत्रों में ताबड़तोड़ ड्रोन हमला उसी अंदाज में करना जैसे आतंकी संगठन "हमास ने इजरायल में करता रहता है-किया। भारत जिसे आतंकवादियों तक सीमित  (operation Sindoor) रखना चाहता था । उसे युद्ध में बदलने की लगातार कार्रवाई कर रहा है।             जबकि भारत ने अपने मारक क्षमता का परिचय देते हुए यह समक्षाने का पुरजोर प्रयास किया है कि "भारतीय जान- माल को हानि पहुंचाने वाले कार्यवाही बंद करो अन्यथा पुरा पाकिस्तान हमारे रेंज में है। हमें युद्ध के लिए विवश किया गया तो हम बख्शेंगे नहीं।                                             जहां तक पाकिस्तान के तरफ़ से सहयोग की अपील की जा रही है। उसमें अमेरिका ने साफ इंकार कर दिया है। कारण कि  ""जब भी अमेरिका ने सहयोग किया है - उसे बेईज्जती का सामना करना पड़ा था""। जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण अमेरिकी पैटर्न टैंक जिसे वीर अब्दुल हमीद ने RCL Gun से उड़ा दिया। एक जबरदस्त पनडुब्बी जहाज गाजी को पुराना जर्जर I.N.S.Rajput  ने डुबा दिया था। यही नहीं 1970 माडल के MiG-21 जहाज से अत्याधुनिक अमेरिकी जहाज F-16 को भी भारतीय जवान ने हवा में टक्कर मार कर गिरा दिया था। यही कारण है कि- अमेरिका को यह समक्ष में आ गया कि -"" दोस्ती हो या दुश्मनी हमेशा बराबरी में ही करानी चाहिए।"" बेजोड़ हथियारों का संचालन भी बेजोड़ ही कर सकते हैं।                               ""इस आपरेशन सिंदूर ने प्रतिरोधक क्षमता के लिए भारत को दुनिया का नम्बर वन सिद्ध कर दिया है ""। हवाई हमलों को रोकने में इजरायल (98 %) प्रथम, तो रूष 80% के साथ द्वितीय रहा है। भारत ने अभी तक 100% हवाई हमलों (Air Attack) को रोकने में कामयाब रहा है। यही कारण है कि किसी भी देश की उन्नत किस्म के युद्धक साजो सामान हो भारतीय फौजी उसे अपने लगन, उत्साह एवं साहस के बल पर सर्वोच्च सिद्ध कर ही देते हैं। यह है भारतीय जवानों का जज्बा और पराक्रम का अनुठा मिशाल।                                             प्रोफेसर (कैप्टन) अखिलेश्वर शुक्ला का मानना है कि- "भारतीय फौज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यह सिद्ध करने में कामयाब होगी कि हम युद्ध नहीं चाहते, हम जान- माल की क्षति नहीं चाहते भले ही वह पाकिस्तानी अवाम हीं क्यों ना हो।" ‌‌                  राजनीति वैज्ञानिक प्रोफेसर अखिलेश्वर शुक्ला ने कहा कि" यदि भारतीय फौज को मजबुर होकर युद्ध लड़ना पड़ा तो - आतंक का पर्याय बन चुका पाकिस्तान विश्व के लिए भविष्य में आतंकवादियों का प्रशिक्षण स्थल नहीं रहेगा। साथ ही बलोच, पख्तून तथा सिन्धी समस्या से मुक्त हो जायेगा।"                                        वसुधैव कुटुम्बकम् एवं विश्व शांति की बात करने वाले भारत की जय हो                               प्रोफेसर (कैप्टन) अखिलेश्वर शुक्ला, पूर्व प्राचार्य /विभागाध्यक्ष- राजनीति विज्ञान, राजा श्री कृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय -जौनपुर (उप्र) भारत

  

           


      आतंकवाद का जहर समूचे देश में फैल चुका है। चौराहों से लेकर चौपालों तक चर्चाओं का बाजार गर्म है। पाक प्रायोजित पहलगाम हमले ने राष्ट्र भक्त नागरिकों को आंदोलित कर दिया है। धर्म पूछकर की गई हत्याओं ने इस्लाम के मंसूबे जाहिर कर दिये हैं। देश के अंदर रहने वाले मीर कासिम की तरह गद्दार भी अब घडियाली आंसू बहाकर उत्तेजनात्मक बयानबाजी करके अपने को हिन्दुओं का शुभचिन्तक घोषित करने की होड में लगे हैं। 


हिन्दुस्तान के स्वर्ग के बाद अब देवभूमि को निशाना बनाने का षडयंत्र भी उजागर होने लगा है। 

सूत्रों की माने तो कश्मीर घाटी के बाद अब केदार घाटी में भी नापाक इरादों को कामयाब करने के लिए छदम्मवेशधारियों की जमातों ने आमद दर्ज कर ली है।

 उत्तराखण्ड में प्रारम्भ हो चुकी तीर्थ यात्रा में जहां केदारनाथ और यमुनोत्री में फर्जी दस्तावेजों के आधार अनेक आतंकियों व्दारा घोडेवाले के रूप में पंजीकरण तक करवा लिया है वहीं यात्रा मार्ग में अनेक बाहरी लोगों ने दुकानें खोलकर व्यवसायी का चोला ओढ लिया है। 


उल्लेखनीय है कि विगत कुछ वर्षों में ही उत्तराखण्ड की धरती पर हजारों मजारें बना लीं गई है, सैकडों मस्जिदें तैयार हो गईं हैं, मदरसों ने आकार ले लिया है।

 अचानक आई मुस्लिम आबादी की बाढ से वहां का सामाजिक ढांचा तक तहस-नहस होता दिख रहा है। देवभूमि में इन दिनों अनगिनत मांस की दुकानें, कसाईखाने और अनजाने लोगों की बसाहट देखी जा सकती है। 

एक सर्वे में पता चला है कि वहां पर मुसलमानों में नाम बदलने का एक फैशन चल निकला है। 

अनेक दस्तावेजों में हिन्दू नाम वाले व्यक्ति की बल्दियत मुस्लिम नाम के साथ जुडी है। पंकज पुत्र मोहम्मद सलीम जैसे नामों वाले दस्तावेज बनाये जा रहे हैं जो आगे चलकर सुनील पुत्र पंकज के रूप में स्वत: परिवर्तित हो जायेंगे। 


पहचान छुपाकर बनाये जाने वाले प्रमाण पत्रों का सिलसिला तो दसियों साल से चल रहा है। 

लम्बे समय से तीर्थ यात्रा कराने वाली एक कम्पनी के पुराने नुमाइंदे के अनुसार इस बार की उत्तराखण्ड यात्रा में तीर्थ स्थलों पर दुकानों से लेकर सेवायें देने वालों तक में अनजान चेहरों की भरमार है। 

यह लोग पहले कभी नहीं देखे गये। बहुत कम बोल वाले इन लोगों की भाषा भी क्षेत्रीय नहीं है किन्तु अनेक स्थानीय लोग इनके संरक्षक बने हुए हैं। किसी भी प्रकार के विवाद की स्थिति में वे ही आगे आकर मोर्चा सम्हालते हैं और साम्प्रदायिकता का रंग देकर विरोध दर्ज करने वालों पर हावी हो जाते हैं। अभी तो यात्रा शुरू हुई है।

 आने वाले दिनों में इन अनजान लोगों की कारगुजारियां सामने आने की संभावना है। ऐसे ही स्थिति का खुलासा अनेक स्थानीय व्यवसायियों ने भी किया है।

 सरकारी व्यवस्था के समानान्तर कम दामों में बेहतर सुविधायें देने का वायदा करने करने वाले अनेक संदिग्धों का तीर्थों में जमघट लगा है।

 पहले भी सीमापार से आने वाले आतंकियों ने देश के अनेक महानगरों को बम धमाकों से दहलाया था, निर्दोषों की जानें लीं थीं और फैलाई थी दहशत। इस बार धरती के स्वर्ग कश्मीर के बाद अब देवभूमि उत्तराखण्ड को रक्त रंजित करके गजवा-ए-हिन्द का एक बार फिर ऐलान करने के मंसूबों की जानकारी मिल रही है।

 सूत्रों के अनुसार आतंकियों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर तीर्थयात्रियों के रूप में पंजीकरण भी करवाया है, घोडावान के रूप में भी रजिस्टर्ड हुए हैं और गरीब बनकर छोटी-छोटी दुकानें भी लगा लीं हैं।

 सघन जांच होने, संदिग्धों की पडताल होने और कार्यवाही होने पर साम्प्रदायिक रंग देने की सभी तैयारियां भी पूरी कर लीं गईं है जिनमें अनेक खद्दरधारियों, काले कोटधारियों, कथित बुध्दिजीवियों, बनावटी समाजसेवियों, दबंग प्रभावशालियों की सक्रिय भूमिकायें निर्धारित हो चुकीं हैं। कार्यपालिका के एक बडे वर्ग की लापरवाही और मनमानियों से तैयार होने वाले दस्तावेजों की आड में राष्ट्रदोहियों की जमातें निरंतर तैयार हो रहीं हैं। 

अहमदाबाद हो या पश्चिम बंगाल, मणिपुर हो या मिजोरम, केरल हो या कर्नाटक। चारों ओर घुसपैठियों को नागरिक के रूप में स्थापित करने वाले मीर जाफरों की प्रचुर मात्रा में उपस्थिति है।

 देश के कोने-कोने में फैले इस नेटवर्क की जडों तक पहुंचे बिना आतंकवाद का सफाया असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। 

मजहबी तालीम के नाम पर काफिरों को नस्तनाबूत करने हेतु तैयार की जा रही जमातें अब अपने असली मंसूबों को सफल करने में जुट गईं हैं। इन सबके पीछे विदेशियों की जहरीली सोच, हथियार निर्माताओं का व्यवसायिक हित और विस्तारवादियों की महात्वाकांक्षाओं जैसे कारक लम्बे समय से सक्रिय हैं।

 दूसरों पर प्रहार करने वालों पर जब उन्हीं की बिल्ली म्याऊं करने लगती है तब वे अपनी मनमर्जी से गुण्डागर्दी पर उतर आते हैं।

 दूसरे देशों की सीमाओं में घुसकर अपने दुश्मन की समाप्त कर देते हैं परन्तु जब कोई दूसरा देश ऐसा करता है तो फिर कूटनीतिक पहल, शान्ति का रास्ता, बातचीत की आवश्यकता के उपदेश दिये जाने लगते हैं। 

पाकिस्तान के बयानों से बेनकाब हो चुके अमेरिका और ब्रिटेन की बौखलाहट अब देखने काबिल है। ऐसा ही हाल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का है जो चन्द देशों की इच्छापूर्ति का हथियार बनना बैठा है। 

वीटो के नाम पर चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका किसी भी प्रस्ताव या निर्णय को पारित नहीं होने दे सकते हैं। दुनिया में शान्ति और सुरक्षा के लिए उत्तरदायी संस्था में भी जब केवल पांच देशों की तानाशाही ही चल रही है तो फिर न्याय के नाम पर अन्याय को पोषित करने वाली परम्परा का अंत कैसे होगा, यह एक यक्ष प्रश्न बनकर खडा है। 

चारों ओर आतंक का हाहाकार मचा है। दूसरे विश्वयुध्द के बाद वर्तमान में ही सर्वाधिक युध्दों की स्थिति निर्मित हुई है। रूस-यूक्रेन, इजरायल-फिलिस्तीन, चीन-ताइवान, भारत-चीन, भारत-पाकिस्तान, भारत-बंगलादेश, अजरबैजान-आर्मेनिया जैसे प्रत्यक्ष युध्दों का दावानल ठहाके लगा रहा है तो वैश्विक व्यापार को अवरुध्द करने हेतु लाल सागर, अदन की खाडी, अरब सागर जैसे इलाकों में इस्लामिक आतंकियों की ललकार गूंज रही है। 


मजहब के नाम पर हो रही खुली गुण्डागर्दी को नस्तनाबूत करना बेहद जरूरी है।

 यहूदियों पर प्रहार करने वाले हमास ने हिन्दुओं पर हमला कराने के लिए पाकिस्तान का दौरा किया, जेहाद के नाम पर सुल्तान बनने का ख्वाब देखने वालों ने जहरीली तकरीरें की और सम्पन्न देशों ने दिया उन्हें संरक्षण-सहयोग-सुविधा का त्रिचरणीय तोहफा। ऐसे में स्वर्ग के बाद देवभूमि पर आतंकी कहर की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। 

इस हेतु सरकारों, सुरक्षा बलों और आम आवाम को बेहद सावधान रहने की जरूरत है अन्यथा कभी भी, कोई भी असुखद घटना मूर्त रूप ले सकती है। इस बार बस इतना ही।

 अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।



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देश के आन्तरिक हालात चिन्ताजनक होते जा रहे हैं। न्यायपालिक और विधायिका के टकराव की स्थिति मे कार्यपालिका पूरा आनन्द ले रही है। पांच साल के लिए आने वाली सरकारों को ज्ञान की कक्षायें देने वाली कार्यपालिका के कुछ बेहद चतुर अधिकारी सलाहकार बनकर उलझाव की स्थितियां निर्मित करने में महात्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।




 उच्चतम न्यायालय व्दारा राष्ट्रपति तक को निर्देश देने की घटना ने एक बार फिर संविधान की समीक्षा की आवश्यकता पैदा कर दी  है। सत्ताधारी दल के साथ वैचारिक मतभेद वाले विपक्ष ने अब राष्ट्रहित, नागरिक हित और व्यवस्था हित की कीमत पर वाक्यतीर चलाने शुरू कर दिये हैं। आरोपों-प्रत्यारोपों के मध्य कठिन परिस्थितयां नित नये सोपान तय कर रहीं हैं। झारखण्ड के गोड्डा संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित सांसद निशिकान्त दुबे से लेकर उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ तक ने न्यायपालिका को आडे हाथों लिया है। ऐसे में एक देश-एक कानून, एक देश-एक चुनाव और एक देश-एक व्यवस्था लागू हुए बिना आये दिन के टकराव रोक पाना असम्भव नहीं तो अत्याधिक कठिन अवश्य है। कभी केन्द्र के व्दारा पारित होने वाले कानूनों को राज्य व्दारा मानने से इंकार किया जाता रहा है तो कभी व्यायपालिका व्दारा कानून का मनमाना संशोधन होता रहा है। उदाहरण के तौर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व्दारा वफ्फ कानून को मानने से इंकार करने से लेकर उच्चतम न्यायालय व्दारा आर्टिकल 377 के माध्यम से होमोसेक्सुअलिटी को अपराध मानने की व्यवस्था को अबालिश करने तक के अनेक प्रकरण देखे जा सकते हैं। समय-समय पर संविधान की पुनर्समीक्षा की मांग उठती रही है परन्तु सत्ता पक्ष और विपक्ष के मध्य वोट बैंक बढाने की लालची प्रवृत्ति ने हमेशा ही शून्य परिणाम ही दिये हैं। गहराई से विवेचना करने पर पूरा प्रकरण ही कार्यपालिका के चुनिन्दा अधिकारियों की देने प्रतीत होता है। कार्यपालिका के अनेक अधिकारियों के मनमाने फरमानों के विरुध्द जब उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने तबज्जोह नहीं दी तो मजबूरी में पीडित को न्यायपालिका के दरवाजे पर दस्तक देने के लिए बाध्य होना पडा। यही वह समय था जब न्यायपालिका ने कार्यपालिका पर शिकंजा कसना शुरू किया। पीडितों को न्याय देने के लिए उसने आदेश पारित करना शुरू कर दिये। प्रारम्भिक काल में पीडित को अदालतों से राहत तो मिली मगर मनमाना फरमान जारी करने वालों को पर्याप्त दण्ड का अभाव दिखाई पडा। समय के साथ परिस्थितियां बदलती चलीं गईं। राजस्व के अनगिनत प्रकरणों ने विकराल रूप लेकर आपराधिक वारदातों में इजाफा करना शुरू कर दिया। न्यायपालिका के अनेक आदेशों पर कार्यपालिका का उपेक्षात्मक रूप भी सामने आया जिस पर कडा रुख अपनाते ही कार्यपालिका का दण्डवत होना शुरू हो गया। वर्तमान हालात यह है कि कार्यपालिका हमेशा ही न्यायपालिका के समक्ष हाथ जोडे खडी रहती है जबकि विधायिका के कई सदस्यों की अनेक संस्तुतियां अधिकारियों के प्रतीक्षा सूची वाले पैड में धूल खाते-खाते लुप्त हो जातीं हैं। कार्यपालिका की चतुराई के सामने अनेक जनप्रतिनिधियों का राजनैतिक ज्ञान बौना पड जाता है। संवैधानिक शिक्षा का अभाव, विभागीय पैचीदगी से अनभिग्यता तथा स्वयं के अधिकारों के उपयोग की गैर जानकारी के कारण मंत्रियों पर सचिव, विधायकों-सांसदों पर सरकारी निजी सहायक और अन्य जनप्रतिनिधियों पर विभाग प्रमुख हावी रहते हैं। कानून के लचीलेपन का फायदा उठाने में माहिर लालफीताशाही ने अपनी निरंकुशता को बचाये रखने के लिए न्यायपालिका को सम्मान देने का तरीका निकाल लिया है। ज्ञातव्य है कि स्वाधीनता के बाद कलेक्टर को राजस्व वसूली तथा राजस्व प्रकरणों तक ही सीमित अधिकार दिये गये थे जिसे समय की आवश्यकता बताते हुए निरंतर विस्तार दिया जाता रहा और आज हालात यह है कि कलेक्टर जिले का एक मात्र मुखिया माना जाता है। सभी विभागाध्यक्ष उनसे सामने नतमस्तक रहते हैं। उनका आदेश ही अध्यादेश बनकर व्यवहार में परिलक्षित होता है। दूसरी ओर पांच साल के लिए पदस्थ होने वाले जनप्रतिनिधियों के चुनावी दंगल में राजनैतिक पार्टियां जीत के लिए जातिगत समीकरणों, आर्थिक सम्पन्नता और जनबल की ठेकेदारी जैसे मापदण्डों को प्रमुखता देकर अपने उम्मीदवारों का चयन करतीं है ताकि जीत के आंकडों में ऊपर पहुंचा जा सके। योग्यता, अनुभव और अधिकारों के वास्तविक स्वरूप से अनभिग्य जनप्रतिनिधियों को भीवी चुनावों में जीत हासिल करने वाली रणनीति के तहत सत्ता में बडे दायित्व दिये जाते हैं तब कार्यपालिका में बैठे उनके अधीनस्त सरकारी मुलाजिमों की पांचों अंगुलियां घी में और सिर कढाई में हो जाती है। योग्यता और कथित योग्यता के शीर्ष पर स्थापित चतुर कार्यपालिका जब संविधान की बारीकियों को जानने वाली न्यायपालिका के अहम् को संतुष्ट करने में सफल रही है फिर विधायिका में प्रवेश पाने वालों को इच्छित दिशा में मोडना तो उनके लिए बांये हाथ काम है। कहा जाता है कि कार्यपालिका के व्दारा ही न्यायपालिका को विधायिका के कार्यों में दखल देने हेतु अवसर प्रदान किये जाते हैं। चुनावी संग्राम में विवादास्पद स्थितियों का निर्माण, घोषणाओं पर शंकाओं का प्रादुर्भाव और व्यवस्था पर अपारदर्शिता के प्रत्यक्षीकरण जैसे कारक कार्यपालिका की ही देन होते हैं जिन पर न्यायपालिका की दखलंदाजी आवश्यक प्रतीत होने लगती है। पराजित प्रत्याशी की पीडा को न्याय मिलना बेहद जरूरी होता है। सो निर्वाचन से लेकर परिणामों  की घोषणाओं तक की विवादास्पद स्थितियों में सत्य पाने हेतु कई बार तो असत्य भी भागदौड करने लगता है। ऐसे में  न्यायालयों की भूमिका का विस्तार आम आवाम से हटकर विधायिका के क्षेत्र तक पहुंच जाता है। वर्तमान में तो हालात यहां  तक पहुंच गये हैं कि न्यायपालिका ने अनुच्छेद 142 के आधार पर देश के सर्वोच्च पद पर आसीत राष्ट्रपति तक को निर्देश जारी कर दिये है। इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले समय में राष्ट्रपति को भी कटघरे में खडे होने का आदेश जारी होगा। दूसरी ओर दिल्ली के जस्टिस यशवन्त वर्मा पर लगे आरोपों पर अभी तक प्राथमिकी तक दर्ज नहीं हुई है। वर्तमान हालातों की तह तक पहुंचने के लिए इस बात की समीक्षा आवश्यक है कि कहीं कार्यपालिका की शह पर तो विधायिका-न्यायपालिका के अधिकारों की जंग शुरू नहीं हुई है? इस हेतु देश के आम नागरिकों को बेहद संवेदनशील होकर सक्रिय होना पडेगा तभी संविधान के तीनों अंगों में चल रही कथित वर्चस्व की जंग समाप्त हो सकेगी अन्यथा सत्ता और विपक्ष का यह सांप-सीढी वाला खेल आन्तरिक अशान्ति का कारण बने बिना नहीं रहेगी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।


 


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         हम सभी जानते हैं कि एक लम्बी गुलामी, कठोर संघर्ष एवं ऐतिहासिक बलिदान के बाद भारत को केवल आजादी ही नहीं बल्कि स्वतंत्र भारत का स्वतंत्र संविधान प्राप्त हुआ था।       

   वास्तव में संविधान निर्माण की प्रक्रिया आजादी के पूर्व ही 1946 में प्रारंभ हो गई थी। संविधान निर्माञी सभा के लिए 292 सदस्यों का चुनाव प्रांतों से वयस्क मताधिकार द्वारा तथा 93 सदस्य रियासतों से थे। भारत विभाजन की स्थिति में यह संख्या 229 सदस्य चुनाव से तथा 70 सदस्य मनोनीत अर्थात 299 सदस्यों की संविधान निर्माञी सभा ने संविधान को 1949 में पूर्ण किया।      

   


                    


   संविधान निर्माण के लिए जिन 22 समितियों को भिन्न-भिन्न भागों में बांट कर जिम्मेवारी दी गई थी। उसमें 8 समितियां विशेष जिसमें एक "प्रारूप समिति"  महत्वपूर्ण भूमिका में थीं। जिसके अध्यक्ष जाने माने सुविज्ञ, उच्च शिक्षा प्राप्त बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर थे।       

    जिन्होंने 25 नवम्बर 1949 को संविधान की अंतिम रूप रेखा संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेन्द्र प्रसाद को सौंपा। 26 नवम्बर 1949 को सभी सदस्यों ने हस्ताक्षर किया -26-जनवरी 1950 से स्वतंत्र भारत का संविधान लागू हुआ ।                

     अभी संविधान लागू हुए महज तीन वर्ष ही हुए थे कि संसद के प्रथम सदन/उच्च सदन (राज्यसभा) में जोरदार बहस के दौरान ( 2 सितंबर 1953 में) डॉ अम्बेडकर ने आवेश में आकर कहा कि - मेरे मित्र मुझसे कहते हैं कि संविधान मैंने बनाया है। मैं बताना चाहता हूं कि इसको जलाने वाला पहला इंसान भी मैं हीं होऊंगा। यह किसी के लिए भी ठीक नहीं है।   कई लोग इसे लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं........।              

                                दो वर्ष बाद -19 मार्च 1955 को चौथे संसोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान पंजाब के एक सांसद डॉ अनूप सिंह ने सवाल पुछा था कि - पिछली बार आखिर क्यों यह बयान दिया था?  तब डॉ अम्बेडकर ने बेवाकी से कहा कि पिछली बार जल्दबाजी में पुरा जबाब नहीं नहीं दे पाए थे-उन्होने कहा  - मैंने यह एकदम सोंच समक्षकर कहा था कि संविधान को जला देना चाहता हूं।   

               आगे बाबा साहब ने कहा  कि- -हमलोग मंदिर इसलिए बनाते हैं, जिससे भगवान आकर उसमें रहें, अगर भगवान से पहले ही दानव आकर रहने लगे तो मंदिर को नष्ट करने के सिवा और कोई रास्ता ही क्या बचेगा। कोई यह सोचकर तो मंदिर बनाता नहीं है कि उसमें असुर रहने लगें। सब चाहते हैं कि मंदिर में देवों का निवास हो। यही कारण है कि- संविधान जलाने की बात कही थी।    

      वास्तव में बाबा साहब का मानना था कि कोई भी संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो,जब तक इसे ढंग से लागू नहीं किया जाएगा तो उपयोगी साबित नहीं होगा।                                             

 प्रो. अखिलेश्वर शुक्ला ने कहा कि डॉ भीमराव अंबेडकर जिस सामाजिक आर्थिक विषमता को लेकर चिंतित थे,- वह खाई घटने के बजाय बढ़ती जा रही है। हम एक दूसरे के करीब आने के बजाय दूर होते जा रहे हैं। जिसे राष्ट्रीय हित में दुर किया जाना ही बाबा साहब को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जिस ब्यवस्था में सामाजिक आर्थिक विषमता को दूर करने के बजाय उसे और भी पुष्ट किया जाएगा वहां भुखमरी, कंगाली विपन्नता राष्ट्रीय प्रगति में बाधक होगा ही होगा। जहां भारतीय ब्यवस्था के बजाय पाश्चात्य संस्कृति सभ्यता का अंधानुकरण करने की होड़ लगी हो वहां आत्म सम्मान स्वाभिमान का लोप होना स्वाभाविक है।           ऐसे में हमें अपने उपर सकारात्मक ऊर्जा को प्रभावी करने का सुअवसर प्राप्त करने हेतु,सुगम सरल मार्ग चुनना ही होगा -- यही बाबा साहब के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।            

    

प्रोफेसर (कैप्टन)अखिलेश्वर शुक्ला, पूर्व प्राचार्य/विभागाध्यक्ष -राजनीति विज्ञान, राजा श्री कृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय जौनपुर - 222001. 


शक्ति-पर्व पर कल्याण कलश की स्थापना का अवसर

      




   ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से पिण्डीय सामर्थ को विकसित करने हेतु ज्योतिष शास्त्र और नक्षत्रीय विज्ञान में नवरात्रि महापर्व पर की जाने वाली साधनाओं का उल्लेख किया गया है। सनातन धर्म में चैत्र माह के नवरात्रिकाल को शक्ति पर्व के रूप में मनाने की परम्परा रही है। इस हेतु काया में स्थापित पिण्ड को ब्रह्माण्ड की अनन्त शक्तियों से जोडने का विधान है जिसमें स्व: की आन्तरिक क्रियायें तीव्र करना पडती हैं। संगदोष से रहित होकर विचार शून्यता की स्थिति में पहुंचा जाता हैतभी एकाग्रता के केन्द्रीयकरण से चिन्तन की सामर्थ व्दारा परा-शक्तियों के साथ जुडाव होता है। इसी जुडाव को योग भी कहा जाता है। अतीत की अनुभूतियों और भविष्य की कल्पनाओं के चिन्तन में हमेशा लगे रहने वाले मन के शान्त होते ही अन्त:करण में एक रिक्तिता का भान होने लगता है। इस खालीपन को भरने के लिए अनन्त की शक्तियों का प्रवाह तरंगों के माध्यम से प्रारम्भ हो जाता है। अध्यात्म के गूढ रहस्योंपरा-विज्ञान के जटिल सूत्रों और शाश्वत के ज्ञान की दिशा में बढने के लिए सद्गुरु की महती आवश्यता होती है। सद्गुरु न केवल अध्यात्मपरा-विज्ञान और शाश्वत की त्रिवेणी में स्नान कर चुका होता है बल्कि दूसरों को स्नान करने के सामर्थ पर भी अधिकार रखता है। ऐसे सामर्थवान लोग बाह्य दिखावेतुच्छ चमत्कार और बाजीगरी से कोसों दूर रहते हैं। उनकी साधनात्मक सुगन्ध स्वमेव ही वातावरण में फैलती है। उनके चुम्बकीय ऊर्जा चक्र से आगन्तुक अपने आप रोमांचित हो उठता हैवैचारिक झंझावतों का शमन होने लगता है और होने लगाता है एक अनजानी सी शान्ति का बोध। वर्तमान में कथित चमत्कारों से आकर्षित करने वाले बाबाओं की भीड निरंतर बढती जा रही है। सामाजिकआर्थिकपारिवारिकशारीरिक समस्याओं से ग्रस्त लोगों की भीड जादुई करिश्मे की आशा में ढौंगी बाबाओं के दरबारों में माथा टेकने लगते हैं। टोने-टोटकों की दम पर अतीत की घटनाओं को बताने वाले धनलोलुप लोग अपनी कुटिल चालोंसोशल मीडिया और चन्द सिपाहसालारों की दम पर अन्धविश्वास परोसने में लगे हैं। यह अध्यात्म नहीं हैयह धर्म भी नहीं है और न ही होता है इसका कोई स्थाई परिणाम। जैसे दर्द नाशक दवा खाने से रसायन के असर रहने तक मस्तिष्क में पीडा के संदेश रुक जाते हैं परन्तु असर समाप्त होते ही कष्ट का विकराल स्वरूप सामने आने लगता है। ठीक ऐसा ही टोटकेबाजों के तिलिस्म का प्रभाव होता है। यहां पर बाह्य रसायन नहीं दिया जाता बल्कि मानसिक खुराक की आपूर्ति होती है। टोटकेबाजों के पास पहुंचते ही वहां के वातावरण में व्याप्त कही-सुनी घटनाओं की चर्चाओं का बाहुल्यएक अनोखी सुगन्ध का अहसासजयकारों की गूंजदिखावटी क्रियाओं का प्रत्यक्षीकरणसिंहासन की गरिमादरबार में बैठी अनुयायियों की भीड जैसे मानसिक प्रभाव डालने वाले कारक पहले से ही मौजूद रहते हैं। इन सब का प्रभाव आगन्तुक की मन:स्थिति पर पडने लगता है और वह वहां के सम्मोहित करने वाले तत्वों का शिकार हो जाता है। बस यहीं से शुरू हो जाती है आगन्तुक के शोषण की प्रक्रिया। सामाजिकआर्थिक और पारिवारिक सामर्थ के अनुरूप टोटकेबाजी का दिग्दर्शन कराया जाता हैसम्मान दिया जाता है और फिर सेवा के नाम पर होने लगती है वसूली। बार-बार आनेविश्वास करने और प्रदान किये गये कर्मकाण्ड की नित्यावृति के निर्देशों के तले याचक दबता चला जाता है। समस्या की विकरालताअनिष्ट का भय और कृपा से निदान की गारन्टी दी जाती है। ऐसे जाल में फंसने वाले लम्बे समय तक टोटकेबाजों के शोषण का शिकार होते रहते हैं। तिलिस्म टूटने की स्थिति तक पहुंचने-पहुंचते वे बरबाद हो चुके होते हैं। वहीं दूसरी ओर सत्य के मार्ग पर चलने वालों पर सहजतासरलता और सौम्यता का आवरण पडा रहता है। प्रकृति के साथ सामंजस्य करने वाली अनुशासनात्मक जीवन शैली का अनुशरण करने वाले साधकों को पहचानना बेहद कठिन होता है। सांसारिक वैभव से दूर रहने वाले ऐसे साधकों के लिए परमानन्द से बडा कोई सुख नहीं है। इष्ट के निरंतर चिन्तन से बढकर कोई कार्य नहीं है। बिना दिखावे के परमार्थ करने के कारण अहंकार भी नहीं है। ऐसे लोगों के सानिध्य में आते ही परिवर्तन की बयार चलने लगती है। सुखानुभूति होने लगती है। नश्वर भौतिक जगत की वास्तविकता का बोध होने लगता है। देश-दुनिया में न्यूनतम आवश्यकताओं पर सांसों की कदमताल करने वाली साधनात्मक कायाओं का अकाल नहीं है परन्तु उन्हें पहचानने हेतु अन्तर्दृष्टि की आवश्यकता होती है। समाज के प्रतिजीवों के प्रति और स्व: के प्रति संवेदनशील लोगों के लिए सद्गुरु के दर्शनउनकी कृपा और मार्गदर्शन का सुयोग स्वत: ही बनने लगता है। संकेतों की भाषा में सत्य की परिभाषायें सामने आने लगतीं है। दया के भाव से उदित होने वाले कल्याणकारी कार्य अपने आप संपादित होने लगते हैं। शक्ति-पर्व पर कल्याण कलश की स्थापना का अवसर सामने है। इस काल में अनन्त की ऊर्जा का प्रवाह तीव्रतम होता है जिसे साधनात्मक प्रक्रिया से ग्रहण किया जा सकता है। यही ऊर्जा आने वाले समय में जीवधारियों से लेकर प्रकृति तक के मध्य प्रेमअपनत्व और सहकारिता की भावना विकसित करती है। धर्म के वास्तविक स्वरूप में जीवन जीने की विशेष पध्दतिसमाज विशेष की विभेदकारी व्यवस्था या थोपी गई क्रियात्मक दक्षता का नितांत अभाव होता है। धर्म तो शाश्वत सत्य को विश्वासश्रध्दा और प्रेम के सिध्दान्तानुसार ही समझा जा सकता है। देशकाल और परिस्थितियों से उपजी भाषाक्षेत्रमान्यता आदि की विभाजनकारी संस्कृतियों का इससे कोई संबंध नहीं होता। ईद और शक्ति-पर्व का समुच्चय धनात्मक दिशा में सुगन्ध का वातावरण निर्मित करने हेतु अवतरित हुआ है। इसमें वैमनुष्यताकटुता और हिंसा का कोई स्थान नहीं है परन्तु फिर भी धर्म के कथित ठेकेदार अपनी भौतिक स्वार्थ-सिध्दि हेतु षडयंत्रों को अमली जामा पहनाने की फिराक में हैं। साधनात्मक काल को विकृत होने से बचाने का दायित्व केवल सरकारों का ही नहीं बल्कि प्रत्येक नागरिक का भी है। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।


Dr Ravinder Arjariya, 

Accredited  journalist

dr.ravindra.arjariya@gmail.com




उत्तरकाशी:


*नवनियुक्त जिला अध्यक्ष की राजनीति व जिला भाजपा को अस्थिर करनें का षड्यंत्र तो नहीं, उपजा पोस्टर विवाद*


*पोस्टर में गंगोत्री विधायक की फोटो ढूँढनें का बहाना, कहीं पद से उतर पोस्टरों में रह जाना*


*जिला संगठन की राय लेकर बैनर पोस्टरों में क्यों लगेंगी फोटो क्या है पोस्टर विवाद*


जिद्दी कलम यशपाल बिष्ट



उत्तरकाशी। भाजपा संगठन चुनाव पर्व के बाद जहाँ नवनियुक्त भाजपा जिला अध्यक्ष नागेंद्र सिंह चौहान का स्वागत अभिनंदन कार्यक्रम जिले भर के मंडलों, नगर क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं के जोश से चल  रहा है, उन्हीं भाजपा संगठन के कार्यकर्ता द्वारा भाजपा जिलाध्यक्ष नागेंद्र सिंह चौहान के बधाई वाले पोस्टर  में गंगोत्री विधायक की तस्वीर नहीं मिलनें से जिले के ही जिम्मेदार कार्यकर्ताओं नें इस भूल को भुनाकर गाइडलाइन बनानें की बात कर डाली, वहीं से सोशल मीडिया में भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच पोस्टर विवाद तूल पकड़ता नजर आ रहा है।


कार्यकार्ताओं का कहना है कि संगठनात्मक दृष्टि से प्रत्येक कार्यकर्ता को यह स्वतंत्रता होती है, कि वह अपने पोस्टर में किन नेताओं, व राजनीतिक मार्गदर्शकों की तस्वीर लगाना चाहता है। भूल कार्यकर्ता द्वारा ही नहीं मिस प्रिंट भी हो सकता है, जो कि जल्दीबाजी में दिखता नहीं है। इस तरह की गलती को मुद्दा बनाना न केवल अनुचित है, बल्कि संगठन की एकजुटता को कमजोर करने का प्रयास भी है।

 जहाँ पोस्टर विवाद को भाजपा में गुटबाजी की ओर इशारा करते देखा जा रहा है, वहीं पद मुक्त होंनें वाले नेताओं को पोस्टरों में बने रहनें की सोची समझी चाल भी बताया जा रहा है। 


कार्यकर्ताओं नें पूर्व भाजपा जिला अध्यक्ष रमेश चौहान की ओर इशारा करते हुए कहा कि आश्चर्य हो रहा है, कि वही लोग आज मर्यादा और परंपरा की दुहाई दे रहे हैं, जो 2021 में गंभीर बीमार चल रहे, स्व0 पूर्व विधायक गोपाल रावत की फोटो लगाना भूल गए थे। पूर्व जिला अध्यक्ष चौहान की राजनीति पर सवाल उठाते हुए, कार्यकर्ता कहते हैं कि जब पूर्व विधायक स्व0 गोपाल रावत गंभीर बीमारी से झूझ रहे थे, तब अपनें पोस्टर से पूर्व विधायक गोपाल रावत की तस्वीर हटानें में बिल्कुल भी संकोच नहीं किया। 


सोशल मीडिया के अंदर विधायक चौहान की फोटो पोस्टर में न लगना सच में गलती का आभास कराना मकसद है, या पोस्टर विवाद को पार्टी संगठन में गुटबाजी की धार देंना, भाजपा नवनियुक्त जिला अध्यक्ष इसे विवाद समझ सुलझाते हैं, या कार्यकर्ताओं की भूल समझ भूल जाते हैं। यह शोशल मीडिया में तैरती दूसरी पोस्ट व फोटो से समझा जायेगा। 


बेशक जहाँ पार्टी, दल, संगठनों में छोटे, सहज, सरल कार्यकर्ताओं से भूल होते देखी जाती रहती हैं, लेकिन उनकी भूल में पार्टी, दल, संगठन को कमजोर करनें की भावना नजर नहीं आती, वहीं अपनों को कुर्सी तक पहुंचानें, पहुँचनें के लिए नेताओं का इस तरह का षड्यंत्र पार्टी, दल, संगठन को कमजोर जरूर करता है।

  भविष्य की आहट:घातक होती जा रही है आतंक से वोट बटोरने की प्रथा

       


  देश की आन्तरिक सुरक्षा व्यवस्था को नित नई चुनौतियां मिल रहीं हैं। बिहार में अररिया के बाद मुंगेर में भी पुलिस अधिकारी की हत्या का मामला सामने आया है। अतीत गवाह है कि देश में अपराधियों के हौसले निरंतर बुलंद होते जा रहे हैं। कहीं असामाजिक तत्वों की हरकतें भीड की शक्ल में सामने आतीं हैं तो कहीं खूनी घटनाओं को जानबूझकर साम्प्रदायिक रंगों में रंगने की कोशिशें होती हैं। धर्म का अपमान, नेता पर ज्यादतीजातिगत मान्यताओं पर कुठाराघातइबादतगारों की बेअदबी जैसे शब्दों को लेकर अपराधों की इबारतें लिखी जा रहीं हैं। लोगों के मन से खाकी का खौफ खत्म होता जा रहा है। इसके पीछे अनेक कारण हैं। एक ओर खाकी पर मनमानी के आरोपों की लम्बी फेरिश्त है जिसे बढाने में खद्दरधारियों से लेकर काले कोटधारियों तक की सक्रिय भागीदारी दर्ज होती रही है तो दूसरी ओर पुलिस पर विधायिका का दबाव भी ऐसी घटनाओं को बढावा देता रहा है। सत्ताधारी दलों और विपक्षी जमातों के मध्य देश की आपराधिक घटनाओं पर सदन में होने वाली बहसोंअमर्यादित व्यवहारों और हो-हल्ला के प्रकाशनों-प्रसारणों ने असामाजिक तत्वों के मनोबल बढा दिये हैं। अवैध कारोबारों से कमाये गये धनबल से बाहुबल खरीदने वाले अब जनबल का कवच बनाकर मनमानियां करने में जुटे हैं। गैरकानूनी घटनाओं पर सियासी जंग शुरू करके उसे विवादास्पद बनाने के लिए खद्दरधारी हमेशा ही तैयार रहते हैं। वोट बैंक की राजनीति के लिए कभी रुपये के राजकीय चिन्ह को बजट से हटा दिया जाता है तो कभी अल्पसंख्यकों के नाम पर कथित बहुसंख्यकों के हितों पर प्रहार होने लगते हैं। सत्ता तक पहुंचने के लालच में लिपटे दलों का दबाव भी पुलिस पर अक्सर दिखाई पडता है। संविधान में आम नागरिक को समान रूप से प्राथमिकी दर्ज का अधिकार दिया गया है परन्तु छुटपुट घटनाओं को छोडकर विशेष घटनाओंसरकारी अधिकारी-कर्मचारी के विरुध्द मामलोंराजनेता के खिलाफ प्रकरणधनबली के आतंक की शिकायतपहुंचबली की तानाशाही वाले मामलों आदि पर शायद की कभी पुलिस थानों में पीडित की तत्काल प्रथम सूचना आख्या दर्ज हुई हो। अधिकांश मामलों में वरिष्ठ अधिकारियोंराजनैतिक नेताओं या फिर जनप्रतिनिधि के दखल के बिना प्राथमिकी दर्ज होती ही नहीं है। सूचना के पंजीकरण की कौैन कहे पीडित को आवेदन की पावती तक नहीं दी जाती है। इस दिशा में कभी भी खद्दरधारियोंकाले कोटधारियों या फिर कथित समाजसेवियों ने सार्थक पहल नहीं की है। ऐसे अनेक मामलों में तो न्यायपालिका को सीधा दखल करना पडातब कही जाकर पीडित की प्राथमिकी दर्ज हुई परन्तु प्राथमिकी दर्ज न करने वाले उत्तरदायी अधिकारी को फिर भी इस धृष्टता के लिए दण्ड नहीं मिला। ज्यादा हाय-तोबा होने पर चेतावनी देकरजांच बैठाकरलाइन अटैच करके मामले को ठंडे बस्ते में पहुंचाने का ही प्रयास किया जाता रहा है। वर्तमान हालात तो यहां तक बिगड गये हैं कि असामाजिक तत्वोंअपराधियों और आरोपियों ने राजनैतिक दलों के मुखौटे ओढकर अपने गैर कानूनी धन से प्रतिष्ठिता के कीर्तिमान स्थापित करने शुरू कर दिये हैं। पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने तो एक अरोपी के बचाव में उच्चतम न्यायालय तक आवाज बुलंद की थी। घातक होती जा रही है आतंक से वोट बटोरने की प्रथा। मणिपुर जैसे राज्यों में खुलेआम कानून की धज्जियां उड रहीं हैं। आतंकियों के खेमे विस्तार लेते जा रहे हैं। नक्सलियों के पक्ष में वामपंथियों की जमातें सुरक्षा घेरा बनाये दिखती है। हथियार बेचने वाले देश तो अपने कारोबार का विस्तार करने हेतु आतंकियोंनक्सलियों और अपराधियों को खुल्लम खुल्ला अपने ब्रान्डेड हथियारों की खेपें पहुंचा रहे हैं। अपराधियों को दण्डित करानेे हेतु पुलिस की डायरी में अपराध से जुडा विवरण तो होता है परन्तु शायद ही कभी अपराधियों के पास से मिलने वाले हथियारों की आपूर्ति करने वाली श्रंृखला पर पुलिस ने विवरण प्रस्तुत किया हो। चीनअमेरिकापाकिस्तानकनाडा जैसे देशों से निरंतर अपराधियों तक हथियारों की खेपें पहुंच रहीं हैं। राजनैतिक दलों का दबावदबंगों का रुतवाधनबल की चमकजनबल की दहशतप्रभावबल का भौंकाल तो रेडलाइट चौराहों से लेकर गांव की चौपालों तक देखने को मिलता है। राजनैतिक संरक्षण मिलते ही अपराधी के चेहरे पर भइयासाहबनेताजीमसीहा जैसे मुखौटे चिपक जाते हैं। डर के मारे लोग उन्हें सम्मान देने की मजबूरी वाले गलियारे से गुजरने लगते हैं। आंतक का संदेश अब कानून बनकर स्थापित होने लगा है। कानून की धाराओं से खेलने में महारत हासिल करने वाले खद्दरधारियों की फौज जब सार्वजनिक रूप से अपराध करने वालों के पक्ष में खडी होकर वास्तविकता को प्रभावित करने लगी हो तब न्याय की देवी से वरदान की आशा करना गरीब की किस्मत में कैसे हो सकता है। सत्य की हत्या के प्रयासों में लगी स्वार्थवादियों की सेना ने देश की आन्तरिक व्यवस्था को सरेआम बंधक बना लिया है। गोरों के पदचिन्हों पर चलने वाले तत्कालीन आयातित नेताओं ने देश के संविधान में भी अंग्रेजी के बिना उच्च और उच्चतम न्यायालय के दरवाजे पर दस्तक देने तक की मनाही दर्ज करा दी थी। परिणाम सामने है कि अंग्रेजी न जानने वाले व्यक्ति को स्वयं पर लगाये गये आरोपों पर स्पष्टीकरण तक देने का अधिकार नहीं है। उसके मामले में कौन क्या बोल रहा हैक्या सबूत पेश हो रहे हैंबहस में किन बातों को उठाया जा रहा हैघटना को किस रूप में प्रस्तुत किया जा रहा हैआदि जाने बिना ही आरोपी कब अपराधी बना दिया जाये और कब अपराधी निर्दोष साबित हो जायेकहा नहीं जा सकता। देश की कानून व्यवस्था पर जब तक प्रभावशाली लोगोंराजनेताओंदबंगोंधन-जन-बल और स्वार्थपरिता का प्रभाव हावी रहेगा तब तक पुलिस-प्रशासन का पारदर्शी होना असम्भव नहीं हो कठिन अवश्य है। इस हेतु आम आवाम की संगठित पहल ही परिणामात्मक सुधार ला सकती है अन्यथा कार्यपालिका-विधायिका के साथ माफियों की तिकडी केवल और केवल स्वार्थपूर्ति के लक्ष्य का ही भेदन करती रहेगी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।


Dr. Ravindra Arjariya

Accredited Journalist

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 डा. रवीन्द्र अरजरिया


महाकुम्भ के बाद सनातन का सत्य-संकल्प



         महाकुम्भ का समापन नजदीक आते ही श्रध्दालुओं की संख्या में आशातीत बढोत्तर हो रही है। देश के कोने-कोने से लोगों के पहुंचने का कीर्तिमानी सिलसिला निरंतर जारी है। लम्बी दूरी तक की पदयात्रा का कठिन सोपान भी सहजता से पार हो रहा है। संगम तट पर अभी तक 60 करोड से अधिक आस्थावानों व्दारा पावन स्नान किया जा चुका है। इन सभी स्नानार्थियों को समर्पित सनातनी कहना उचित नहीं है। जीवन के भौतिक झंझावातों का चमत्कारिक समाधान चाहने वाले भी स्नानार्थियों की संख्या में शामिल हैं और दिखावे के लिये धार्मिक बनने का प्रदर्शन करने वाले भी। भीड में पर्यटन की लालसा वालों ने भी भागीदारी दर्ज की हैं और वास्तविक साधकों ने भी। दूसरी ओर वैदिक ग्रन्थों में अध्यात्म का लौकिक अर्थ वसुधैव कुटुम्बकम् के रूप में परिभाषित किया गया है जबकि उसकी पारलौकिक विवेचना आत्मने मोक्षार्थे के रूप की गई है। प्रयागराज में डुबकी लगाने वालों को यदि सनातन के सत्य का संकल्प करा दिया जाये तो निश्चय ही देश की विभाजनकारी समस्याओं की इति होते देर नहीं लगेगी। सर्वे भवन्तु सुखिन: के सिध्दान्त पर आधारित सनातन का सामाजिक स्वरूप मानवतावादी दृष्टिकोण का पोषक है जो समरसता, समानता और सामंजस्य की त्रिवेणी स्थापित करता है। आश्चर्य होता है कि जहां वैदिक साहित्य में वर्णित महाकुम्भ की मान्यताओं को अंगीकार करके प्रयागराज में स्नान करने वाले भी सडक से लेकर सदन इस पुण्यकाल और उसमें घटी षडयंत्रकारी घटनाओं को मुद्दा बनाकर लाभ का अवसर तलाश रहे हैं वहीं स्वभावगत आलोचकों व्दारा महाकुम्भ को मृत्युकम्भ, फालतू कुम्भ, विषैला जल, अव्यवस्थाओं का आयोजन जैसे मनमाने शब्दों से संबोधित किया जा रहा हैं। इन खद्दरधारियों के परिजन स्वयं महाकुम्भ की पुरातन परम्परा का अंग बनकर आत्म कल्याण की कामना कर चुके हैं। वैदिक कर्मकाण्ड से जीवन के नवीन कार्यो का शुभारम्भ करने वाले अनेक लोग अपनी स्वार्थपूर्ति हेतु ग्रन्थों के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह अंकित कर रहे हैं। धनार्जन, मतार्जन और सत्तार्जन के लिये कुछ भी कर गुजरने वाले कथित हिन्दुओं को अपने वंशसूत्र की परम्परा का गहराई से अध्ययन करना चाहिये। निर्वाचन काल में जनेऊ, चंदन, माला, धोती पहनकर मंदिरों में माथा टेकने का ढोंग करने वालों को 21 सदी के भारतवासी पहचानते जा रहा हैं। जातिगत जनगणना से विभाजनकारी षडयंत्र भी उजागर होते जा रहे है। अनेक धार्मिक संस्थानों की व्यवसायिकता भी सामने आती जा रही है। धन-संचय की नियत से नित नये संकल्प लेने वाले अनेक भगवांधारियों की जमातें में भी इजाफा होता जा रहा है। स्व: का त्याग कर परमार्थ-पथ बढने वालों के व्दारा सांसारिक प्रलाप किया जाना कदापि उचित नहीं है। स्वयं का पिण्डदान करके काया के कवच को त्यागने से लेकर काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार तक को तिलांजलि देने वाले अनेक हस्ताक्षर समाजहित, जनहित और राष्ट्रहित की दुहाई पर लोकप्रियता के सिंहासन और वैभवपूर्ण जीवन पाने की आकांक्षा पाले हैं। सत्ता, शासन और समाज को चरणों में झुकाने की लालसा ही पतन का दरवाजा खोलती है। सनातन के सिध्दान्तों को आम आवाम तक पहुंचाने के लिए ही महाकुम्भ जैसे पावन पर्वों की श्रंखला स्थापित की गई थी जिसका सकारात्मक उपयोग करके सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय को धरती पर पुन: उतारा जा सकता है। देश की लगभग आधी जनसंख्या की आस्था को संगम तट पर सनातन की वास्तविक परिभाषा अपनाने का संकल्प दिलाने मात्र से ही कुटतापूर्ण व्यवहार का सौहार्दपूर्ण परिवर्तन सम्भव था। महाकुम्भ के बाद भी इस तरह के प्रयास किये जा सकते हैं। इस हेतु धार्मिक संस्थाओं, सामाजिक समितियों, स्वयंसेवी संगठनों सहित राजनैतिक दलों को आपसी प्रतिस्पर्धा भुलाकर सनातन के वास्तविक सिध्दान्त को जन-जन तक पहुंचाकर उसे अंगीकार कराने हेतु संयुक्त प्रयास करना होंगे। कुम्भ स्नानार्थियों, उनके परिजनों, स्वजनों आदि तक पहुंचकर संकल्प दिलाने का अभियान चलाना चाहिए। इसी दौरान गैर सनातनियों के साथ भी सम्पर्क साधकर उन्हें भी इस अभियान का अंग बनाया जा सकता है। अल्लाह का मुसलमान और सनातन का हिन्दू वास्तव में एक ही पथ पर चलते हैं जिसे परमशक्तिमान, ज्योतिस्वरूप, शाश्वत कहा गया है। वह निराकार है, अखण्ड है और है सर्वव्यापी। पराविज्ञान की अनेक पहेलियों के मध्य स्थापित इस अनूठे कीर्तिमानी महाकुम्भ से अनेक स्व:प्रसारित संदेश निकले। दुनिया भर के नामची लोगों ने आत्मप्रेरणा से भागीदारी दर्ज की। आस्था के नये व्दार खुले। समर्पण की विशेष परिभाषायें गढी गईं। सेवा के नवीन गलियारे देखने को मिले। संतों को सुविधायें प्रदान करने में गैर हिन्दुओं की भागीदारी रही। आपूर्ति का तो अधिकांश भाग उनके ही हिस्से में था। पाश्चात्य की सुख-सुविधा से दूर साधनात्मक कठिनाइयों के मध्य गुजरने वाले गोरों ने एक बार फिर सनातन की शान्तिमयी जीवन पध्दति को प्रणाम किया। तपस्या के विभिन्न सोपानों का खुलकर प्रत्यक्षीकरण हुआ। आगन्तुकों ने अपनी सामर्थानुसार दान किया। श्रध्दालुओं की शालीनता ने परचम फहराया। ऐसे में सीमापार बैठे आकाओं के इशारे पर मीरजाफरों के गिरोहों ने षडयंत्रकारियों की मंशा पूरी करने की गरज से हादसों को अंजाम देने में कथित भूमिका का निर्वहन किया। सरकारों के व्दारा की गई व्यापक व्यवस्था में भी अनेक अधिकारियों की मनमानियां खुलकर सामने आती रहीं। यह सब धनलोलुपता, स्वार्थपरिता और वैभवसंचय की मगृमारीचिका के पीछे भागने वालों के व्दारा किये जाने वाले कृत्य थे। इन कृत्यों ने भी कीर्तिमान गढे। कुल मिलाकर यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि महाकुम्भ-काल के बाद भी यदि समाज के विभिन्न कारकों से जुडे संगठन एक जुट होकर सनातन के वास्तविक सिध्दान्तों को लेकर घर-घर, जन-जन तक पहुंचाने में जुट जायें तो उनके व्दारा दिलाये जाने वाले संकल्प से राष्ट्र को पुन: विश्वगुरु की उपाधि प्राप्त होते देर नहीं लगेगी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।


Dr. Ravindra Arjariya

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 18 फरवरी से हो रहे विधानसभा सत्र पर विशेष टिप्पणी

 डॉ मुरलीधर सिंह शास्त्री अधिवक्ता मा उच्च न्यायालय एवं भारतीय जनता पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता 

लखनऊ;





उत्तर प्रदेश विधानसभा का 18 फरवरी से बजट सत्र प्रारंभ हो रहा है या बजट सत्र वर्ष का पहला सत्र है इस सत्र में सरकार द्वारा बजट पेश किया जाएगा तथा अपने 11 दिवस के कार्यों में पारित किया जाएगा जो चर्चित बिंदु है वह विकास के अलावा विधानसभा चुनाव और कुंभ के विषय पर विशेष चर्चा होगी 

सरकार द्वारा विगत विधानसभा सत्र में प्रेषित नजूल संबंधी विधेयक  विधान परिषद की प्रब प्रवर समिति मैं लंबित है

 विधानसभा को अधिकार है कि दोबारा पास करके उसको अधिनियम बनl सकती है 

इससे सरकार को बड़े-बड़े शहर जैसे अयोध्या वाराणसी प्रयागराज आगरा कानपुर बरेली झांसी सहारनपुर आज क्षेत्र में सरकारी काम के लिए प्रत्येक जनपद में 100 से 150 एकड़ की जमीन प्राप्त होगी

 जिस पर सरकारी भवन या कार्यालय या अन्य प्रकल्प बनाया जा सकते हैं

 उत्तराखंड की सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड 26 जनवरी से लागू कर दिया है

 उत्तराखंड सरकार उत्तर प्रदेश का एक युवा  लड़का है लड़का जब एक काम कर लिया है 

तो माता-पिता उत्तर प्रदेश की सरकार को जो हमारे लोकप्रिय मुख्यमंत्री हिंदुत्व के प्रखर राष्ट्रवादी योगी आदित्यनाथ जी हैं जो हमारे गुरुदेव भी हैं

 उनको तत्काल यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट लागू कर 

एक हिंदुस्तान में संदेश देना चाहिए और

 मैं उत्तराखंड के यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट को देखा है उसे कोड को भी थोड़ा सा मोडिफाइड का लागू कर दिया जाता है

तो कोई संवैधानिक दृष्टि से भी उचित होगा 

साथ ही या धार्मिक राज्य है यहां आबकारी की दुकानों को गुजरात एवं बिहार के तर्ज पर बंद करने के लिए काम करना चाहिए 

क्योंकि योगी जी एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो एक सिद्ध पीठ के महंत भी हैं और गेरुआ वस्त्र धारी भी है

 ऐसे में यह काम  होना एक कलश संदेश जाएगा 

और कुंभ मेला के संबंध में जहां तक कहना है जब भीड़ होती है तो छोटी-मोटी घटनाएं होती रहती हैं 

इस सरकार को आम जन् मश को विचलित नहीं होना चाहिए

 प्रभु के हाथ में जीवन मरण यस अप्यास निहित है 

आगे सरकार को  गति से कार्य करना चाहिए तथा

 मुख्य निकायों जैसे विधानसभा विधान परिषद संसदीय कार्य के प्रमुख पदों पर वर्षों से रिटायर अधिकारी रखे गए हैं

 उनको भी 28 फरवरी25 के बाद  कार्यकाल नहीं बढ़ना चाहिए 

नए लोगों को न्यायिक अधिकारियों को मौका देना चाहिए 

और जो अग्रिम आदेश तक की पत्रावलियां लंबित हैं 

उसे पर भी निर्णय लिया जाना चाहिए

 

 डॉक्टर मुरलीधर सिंह शास्त्री अधिवक्ता मान्य उच्च न्यायालय एवं भारतीय जनता पार्टी का एक सक्रिय कार्यकर्ता 

  

     महाकुम्भ में स्नानार्थियों की संख्या का आंकडा देश की आधी जनसंख्या के करीब पहुंचता जा रहा है। 

.अभी तक 50 करोड से अधिक श्रध्दालुओं ने प्रयागराज के संगम तट पर डुबकी लगाकर सनातन के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की है। 



मेला के प्रशासनिक तंत्र ने व्यवस्था के नाम पर आगन्तुकों को आम, खास और अतिखास के वर्गीकरण में रखा है। इस विभाजनकारी व्यवस्था में तपस्या, साधना और धार्मिक मापदण्ड नहीं बल्कि प्रभाव, दबाव और दबदबे का प्रतिशत आंका जा रहा है।


 राजतंत्र से जुडी कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के अलावा प्रभावपालिका का भी वर्चस्व स्पष्ट रूप से ठहाके लगा रहा है।

 सरकारी वाहनों के साथ-साथ पदनाम लिखी निजी गाडियों का उपयोग स्वजनों तथा परिजनों को कुम्भ स्नान स्थल तक पहुंचाने हेतु खुलकर हो रहा है। 


सरकारी अधिकारी, भाई-भाई का नारा बिना शोर के ही लग रहा है। जहां आम श्रध्दालु मीलों पैदल चलकर संगम तट पर पहुंच रहे हैं वहीं अनाधिकृत लोगों को ढोने में लगे वाहनों पर अवैध ढंग से पदनाम की प्लेट लगाकर वीआईपी घाट तक सायरन बजाती गाडियां आस्था पर भी सांसारिक की चोट करने में जुटी हैं। इन अनियमितताओं की शिकायतों के मायने समाप्त हो चुके हैं। 


अनेक उत्तरदायी अधिकारी स्वयं अपने स्वजनों की व्यवस्था करने में पद का विधि विरुध्द उपयोग कर रहे हैं। यही हाल ट्रेनों में भी है जहां आरक्षण करवाने के बाद भी यात्रियों को अपनी सीट प्राप्त करना असम्भव हो रहा है। शयनयान के साथ-साथ वातानुकूलित डिब्बों में भी भीड का कब्जा देखने को मिल रहा है। रेल विभाग व्दारा केवल प्रथम श्रेणी के वातानुकूलित डिब्बे को ही सुरक्षा प्रदान की जा रही है। महाकुम्भ क्षेत्र को नो-व्हीकल जोन की घोषणा निर्मूल साबित हो रही है। सरकारी वाहनों में बैठे अनाधिकृत लोगों को सुरक्षाकर्मी स्वयं घाट तक पहुंचा रहे है। कथित वीआईपी बनकर पुण्य लूटने की मंशा लेकर आने वालों की संख्या में निरंतर बढोत्तरी दर्ज हो रही है। ऐसा ही नजारा सरकारी अधिकारियों के लिए नि:शुल्क रूप से उपलब्ध कराये गये अतिआधुनिक सुविधायुक्त कार्टे•ा परिसर में भी देखने को मिल रहा है। साधना से मोक्ष की कामना के सिध्दान्त तंत्र ने बदलकर अब प्रभाव से पुण्य लूटने की होड की व्यवहारिक मान्यता स्थापित कर दी है। यूं तो स्वाधीनता के बाद ही सनातन को विकृत करने हेतु अनेक प्राविधानों को संविधान में रख दिया गया था। मंदिरों, तीर्थों, साधना स्थलियों, जागृत शक्ति क्षेत्रों आदि में दान की राशि के आधार पर विशेष दर्शन, विशेष, पूजा प्रसाद आदि की सुविधाओं को कानून बनाकर लागू कर दिया था। हिन्दुओं के धार्मिक स्थलों पर स्वेच्छा दान, सुविधा दान, विशेष दान और अब साइबर दान से प्राप्त होने वाली धनराशि का उपयोग स्थान के विकास के अलावा भी सरकारी तंत्र व्दारा किया जा रहा है। अनेक सनातनी शक्ति स्थलों पर बनाये गये न्यासों पर गैर सनातनी लोगों की तैनाती भी की जाती रही है। मर्यादाओं को तार-तार करने वाले अनेक कृत्य समय-समय पर सामने आते रहे हैं, जिन्हें लालफीताशाही के दबंग अधिकारियों व्दारा बेशर्मी से दबाया जाता रहा है।  ऐसे ही कारकों का बाहुल्य अब महाकुम्भ में भी देखने को मिल रहा हैं। मौनी अमावस्या के हादसे के बाद भी वीआईपी और वीवीआईपी कल्चर पर किसी प्रकार की रोक नहीं लग रही है। वीआईपी घाट की छोटी-बडी नावों पर अधिकारियों, नेताओं, दबंगों, पहुंचवालों तथा पैसेवालों की पकड बनी हुई है। वहां के निर्धारित नियम तो कब के हवा हो चुके हैं। आम आगन्तुकों हेतु मेला प्राधिकरण ने प्रति व्यक्ति नाव का किराया 150 रुपये निर्धारित किया है जबकि उससे कई गुना ज्यादा की वसूली खुलेआम हो रही है। अरैल घाट पर तो वहां मौजूद अधिकारियों के सामने ही नाविकों व्दारा की जा रही मनमाने दाम वसूले जा रहे हैं। श्रध्दालुओं के समर्पण पर मनमानियों का कुठाराघात रोके बिना सनातन का श्रंगार सम्भव नहीं है। सर्वे भवन्तु सुखिन: का वेद वाक्य अपनी किस्तों में हो रही मौत से व्यथित है। स्व: से लेकर स्वजनों तक सीमित होती ज्यादातर अधिकारियों की मानसिकता नेे व्यवस्था को विकृत कर दिया है। लोगों का मानना है कि इस नागफनी बन चुकी विकृति को उखाडने के लिए कट्टरता, सामूहिकता और आक्रामकता जैसे हथियारों की महती आवश्यकता होती जा रही है। अहिंसा परमोधर्म: का उपदेश केवल सनातन को स्वीकार करने वालों पर ही लागू किया गया है जबकि गैर सनातनियों ने अपने धर्म की आड में दिये गये उपदेशों की विस्तारवादी व्याख्यायें करके विपरीत सिध्दान्त गढ लिये हैं। वहां पर संविधान की न्यायिक व्यवस्थायें मौन हो जातीं है। आश्चर्य तो तब होता है जब सनातनी चिन्हों को शरीर पर धारण करने वाले अनेक खद्दरधारी ही सनातनी व्यवस्था के वैदिक स्वरूप पर ही प्रश्नचिन्ह अंकित करने लगते हैं। राजनेताओं का एक बडा गिरोह स्वाधीनता के बाद से ही चंदल लगाकर संदल की चिता पर सनातन को बैठाने हेतु बेचैन है। यह केवल धार्मिक जगत के संदर्भ में ही नहीं बल्कि राष्ट्रीयता के परिपेक्ष में भी देखने को मिलता रहा है। अतीत गवाह है कि अनेक अवसरों पर राष्ट्रदोहियों को कवच देने के लिए राजनीति जगत के अनेक माफिया खुलकर सामने ही नहीं आये बल्कि आन्दोलन के नाम पर अपने खास सिपाहसालारों से रक्तरंजित कृत्य भी करवाये। ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि सनातन को मुद्दा बनाकर उसके पक्ष-विपक्ष में चिल्लाने वाले केवल और केवल स्वयं का प्रचार करके निजी लाभ कमाने में जुटे हैं। जब तक वास्तविकता के नजदीक पहुंचकर सत्य के दिग्दर्शन के प्रयास नहीं होंगे तब तक चन्द चालबाजों की चालों से आम आवाम की सुकोमल भावनायें आहत होतीं रहेंगी, शोषण को सफलता मिलती रहेगी और होता रहेगा धर्म के नाम पर अधर्म का तांडव। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।



Dr. Ravindra Arjariya

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 कुंभ नगर प्रयागराज :



केंद्रीय बजट के पेश किए हुए आज तीसरे दिन है .

पूरा केंद्रीय बजट 50.65 लाख करोड़ का है.

बजट देश के विकास को नया आयाम देगा.

 इसमें पत्रकारों वकीलों के मानदेय  देने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है तथा मंदिर के पुजारी के मिनिमम वेतन या मानदेय देने के लिए भी व्यवस्था नहीं है.

 डॉक्टर मुरलीधर सिंह शास्त्री अधिवक्ता एवं विधि अधिकारी माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद एवं लखनऊ 

युवाओं के लघु उद्योग के प्रशिक्षण के लिए भी व्यापक फंड की व्यवस्था होनी चाहिए 

 बजट के लिए धन प्राप्ति का स्रोत पैसा मुख्य रूप से 22 परसेंट इनकम टैक्स से 


17 परसेंट कॉरपोरेशन टैक्स है और उधर लेने से 24 परसेंट 

और  जीएसटी से 18 परसेंट आता है 

या पैसा मुख्य रूप से केंद्रीय योजना में 16 परसेंट 

राज्यों को 22% और और ब्याज पर 20% पर होता है 

अधिकांश हमारी बजट व्यवस्था उधlर एवं टैक्स पर आधारित बजट में केंद्रीय सरकार के लगभग 60 लाख कर्मचारियों में से 40 लाख कर्मचारियों को इनकम टैक्स की  अधिकतम छूट12 लाख होने से लाभ होगा तथा

 उत्तर प्रदेश सरकार के लगभग 16 लाख कर्मचारियों में से 4 से 5 लाख कर्मचारियों को फायदा होगा 

 केंद्र सरकार के 78 लाख पेंशनरों और राज्य सरकार के 18 लाख पेंशनरों का भी लाभ होगा जो इनकम टैक्स के 12 लाख  में आते हैं 

हमारी केंद्र सरकार ने बजट के रक्षक क्षेत्र में पुलिस क्षेत्र के आधुनिकीकरण में ग्रामीण विकास में हेल्थ में कृषि में और सोशल सेक्टर में विशेष प्राथमिकता दी है 

पर एजुकेशन के क्षेत्र में और युवकों को प्रोत्साहित करने के क्षेत्र में कम धनराशि रखी गई है क्योंकि युवाओं में आईटी सेक्टर का तो अपने दम से नौकरी पा लेते हैं

 पर हमारे सामान्य स्नातक या परास्नातक एवं विधि व्यवसाय से जुड़े हुए स्नातक एवं पत्रकारिता से जुड़े हुए स्नातक को नौकरी के लिए संघर्ष करना पड़ेगा 

केंद्र सरकार द्वारा विशेष रूप से वकीलों के लिए पत्रकारों के लिए पैकेज देना चाहिए था

 जो नहीं दिया गया क्योंकि आजादी की लड़ाई में 

और आज के लोकतंत्र की लड़ाई में दोनों वर्गों की विशेष भूमिका सरकार जो हिंदूवादी एवं धर्मनिरपेक्ष है 

इसमें मंदिरों के लिए मंदिरों के पुजारी के लिए और मंदिरों के ट्रस्ट के दान के लिए विशेष पैकेज देना चाहिए था 

ऐसा संविधान में व्यवस्था है जो दक्षिण भारत के त्रवंकोर मंदिर और तिरुपति बालाजी को मंदिर को भी अनुदान दिया जाता है ऐसे अन्य मंदिर श्री राम मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर और भगवान श्री कृष्ण के मंदिर पद्मनाभ मंदिर एवं द्वादश ज्योतिर्लिंग के लिए विशेष आर्थिक पैकेज की आवश्यकता  है 

उसको भी सरकार को पूरा करना चाहिए किसी मंदिर को संचालन करने के लिए

 केंद्रीय ट्रस्ट या राज्य ट्रस्ट बनाने के पूर्व उसको एक बफर फंड की व्यवस्था करनी चाहिए 

जिस को मंदिर के पुजारी और आंतरिक व्यवस्था को संचालित कर सके 

हमारी सरकार से मांग है और हम इसको आगे बढ़ाएंगे बजट कुल मिलाकर नौकरी के पैसा लोगों के लिए विशेष लाभकारी है

 इसमें दिल्ली के चुनाव में जो 5 तारीख को होने वाला है सत्ताधारी पार्टी को लाभ हो सकता है पर अयोध्या मिल्कीपुर के चुनाव में स्थानीय मुद्दे  रहेंगे महाकुंभ के मुद्दे और समाज के कमजोर वर्गों के मुद्दे हावी रहेंगे.

 उसका दीर्घकालिक का स्थानीय स्तर पर स्थानीय राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

 

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