उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र;
उत्तर प्रदेश के विधानसभा के अध्यक्ष तथा विधान परिषद के सभापति जी से अनुरोध है कि वे विधानसभा विधान परिषद एवं संसदीय कार्य में तीनों रिटायर अधिकारी है , नियुक्तियों के संबंध में उनके कार्यों के संबंध में पहले भी आलोचना हो चुकी हैं।
अतः माननीय उच्च न्यायालय लखनऊ के अधिवक्ता मुरलीधर शास्त्री ने मुख्यमंत्री योगी से अनुरोध किया गया है कि उनके द्वारा नियुक्त की गई नियुक्तियों की जांच माननीय सुप्रीम कोर्ट और सीबीआई के बीच संज्ञान में आई इसलिए इन अधिकारियों के स्थान पर
माननीय उच्च न्यायालय से जिला सत्र एवं न्यायाधीश स्तर के अधिकारियों के फाइनल (pannel )मंगा कर उनको नियुक्त किया जाए ।
क्योंकि विधानसभा विधान परिषद एवं संसदीय कार्य तीनों तीनों पदों पर कानून जाने वाले अधिकारियों की तैनाती होनी चाहिए जो न्यायिक सेवा से आते हो इससे अनुशासन बनेगा और जो आरोप प्रत्यारोप लगते हैं बंद हो जाएंगे तथा इन तीनों अधिकारियों के कार्य क्षेत्र में की गई कार्यों की एक स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराई जाए ।
साथ ही श्री प्रदीप कुमार दुबे, प्रमुख सचिव विधानसभा की प्रमुख सचिव के पद पर अवैध एवं अनियमित नियुक्ति तथा उनके द्वारा किए गए अत्याचार, भ्रष्टाचार की जांच कराकर आवश्यक विधि कार्रवाई किये जाने संबंधी पत्र लिखकर अवगत कराया है कि प्रमुख सचिव विधानसभा के पद पर श्री प्रदीप कुमार दुबे की विभिन्न नियुक्तियां प्रारंभ से ही अनियमित व भ्रष्टाचार से पूर्ण प्रतीत होती है जिन पर क्रमवार विवरण निम्नवत हैं।
1-जुलाई 2008 में अपरिहार्य परिस्थितियों में श्री राजेंद्र प्रसाद पांडे प्रमुख सचिव विधानसभा द्वारा दिनांक 26 जुलाई 2008 को प्रमुख सचिव के पद से त्यागपत्र दे देने के कारण तत्कालीन सचिव संसदीय कार्य उत्तर प्रदेश शासन, श्री प्रदीप कुमार दुबे को प्रमुख सचिव विधानसभा का अतिरिक्त कार्यभार काम चलाऊ व्यवस्था के आधार पर दिया गया।
प्रमुख सचिव विधानसभा के पद पर नियमित नियुक्ति लोक सेवा आयोग के माध्यम से की जानी अपेक्षित थी।
श्री प्रदीप दुबे उक्त पद हेतु निर्धारित अधिकतम आयु सीमा पार करने की तरफ अग्रसर थे। अतः काम चलाऊ प्रमुख सचिव विधानसभा तथा नियमित सचिव संसदीय कार्य उत्तर प्रदेश शासन के रूप में कार्यभार होने के कारण इन्होंने अपनी नियुक्ति प्रमुख सचिव विधानसभा के पद पर नियमित रूप से प्राप्त करने का कुचक्र रचा तथा एक के बाद एक अनियमित व अवैध कार्यवाहियां करते हुए अनियमित रूप से कई बार प्रमुख सचिव के पद पर नियुक्ति आदेश प्राप्त किया जो निम्नवत है।
2-बड़े ही आश्चर्य की बात है दिनांक 13 जनवरी 2009 को श्री प्रदीप कुमार दुबे द्वारा स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति प्राप्त कर लेने के बाद उसी दिन 13 जनवरी 2009 को ही श्री प्रदीप कुमार दुबे को उसी संसदीय कार्य विभाग उत्तर प्रदेश सचिवालय में प्रमुख सचिव के पद पर नियुक्ति दे दी गयी। यह अभी तक समझ से परे है कि किसी अधिकारी द्वारा शासकीय सेवा से श्वैक्षिक सेवा निवृति लेने के बाद उसकी उसी विभाग में उच्च पद पर नियुक्ति का आधार क्या है?
3- दिनांक 1 जनवरी 2009 को संसदीय कार्य विभाग का प्रमुख सचिव नियुक्त होने के बाद कार्यालय आदेश संख्या 68/दो/4-09-26/2(3)/82, दिनांक 13 जनवरी 2009 द्वारा श्री प्रदीप कुमार दुबे को विधानसभा सचिवालय के प्रमुख सचिव के पद का काम चलाऊ कार्यभार 13 जनवरी से ही दे दिया गया।
4-सेवानियमावली 1974 के प्रावधानों के अंतर्गत प्रमुख सचिव के पद पर नियुक्ति हेतु आवेदन करने की अधिकतम आयु सीमा 52 वर्ष है जो कि श्री दुबे अप्रैल 2009 में ही पूर्ण करने वाले थे।
अतः श्री दुबे प्रमुख सचिव विधानसभा का पद हथियाने की साजिश में लग गए।
5-उनकी साजिश का खुलासा तब हो पाया जब उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय की पांचवी संशोधन नियमावली प्रकाशित होकर 2011 में प्राप्त हुई किंतु इसके पूर्व ही इनका खेल पूर्ण हो चुका था।
6-सेवा नियमावली में पांचवा संशोधन किए जाने की कार्यवाही 2010 और 2011 में इस प्रकार की गई थी इसकी जानकारी सचिवालय में किसी को भी नहीं हो पाई।
7- उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय की सेवानियमावली को बनाने या उसमें संशोधन करने का दायित्व शासन के संसदीय कार्य विभाग द्वारा ही किया जाता है ।
अतः वहां के मुखिया के नाते यह कार्रवाई उनके द्वारा ही गुपचुप तरीके से की गई जो कि अनियमित है, इसे नियमानुसार सदन के पटल पर नहीं रखा गया जिसकी वैधता से संबंधित याचिका संख्या- 1375 /2011 मा0 उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है। सेवा नियमावली में संशोधन का कोई प्रावधान भी नहीं है।
8-सेवा नियमावली में संशोधन करते हुए नियुक्ति का अधिकार लोक सेवा आयोग से हटाकर माननीय अध्यक्ष विधानसभा द्वारा निर्धारित प्रक्रिया कर दिया गया ताकि मनमानी की जा सके ।
नियमावली में इस प्रकार का संशोधन कर लेने के बाद भी अड़चन यह थी कि प्रमुख सचिव संसदीय कार्य के पद पर रहते हुए प्रमुख सचिव विधानसभा के पद पर माननीय अध्यक्ष द्वारा नियुक्ति किस प्रकार प्राप्त हो सकती है। अतः इसके लिए विभागीय सेवा का लाभ तभी मिल सकता है जब वह विधानसभा सचिवालय की सेवा हो।
इसके दृष्टिगत 27.6. 2011 को आदेश द्वारा श्री प्रदीप कुमार दुबे को प्रमुख सचिव विधानसभा के पद पर सेवा स्थानांतरण के आधार पर प्रमुख सचिव संसदीय कार्य से प्रमुख सचिव विधानसभा के पद पर नियुक्ति किया गया।
10-सेवा स्थानांतरण के आधार पर नियुक्ति का प्रावधान न होने के कारण यह नियुक्ति भी फंस चुकी। जब तक कुछ पता हो तब तक विधानसभा सामान्य निर्वाचन 2012 की आचार संहिता लागू हो गई। चुनाव आचार संहिता लागू होने पर नियुक्तियों पर रोक रहती है किंतु चुनाव के उपरांत माननीय अध्यक्ष पद पर परिवर्तन हो जाने की दशा में नियुक्ति मिल पाएगा या नहीं इस पर भी संशय दिखने लगा।
अतः आचार संहिता में ही प्रमुख सचिव पद पर नियुक्त की प्रकिया संचालित करा कर 26 जनवरी 2012 से 6 मार्च 2012 के मध्य प्रदीप दुबे ने तत्कालीन माननीय अध्यक्ष से ही दिनांक 6.3.2012 को नियुक्त आदेश करा लिया जबकि श्री सुखदेव राजभर तत्कालीन मा0 अध्यक्ष चुनाव हार चुके थे। इस प्रकार श्री दुबे फर्जी सेवा नियमावली पांचवा संशोधन के अंतर्गत अवैध व अनियमित नियुक्ति प्राप्त करने वाले पहले लाभार्थी बने।
इस फर्जी सेवा नियमावली के आधार पर उनके द्वारा जिस प्रकार भ्रष्टाचार किया गया है। उसका विवरण पत्र द्वारा प्रस्तुत किया जाएगा।
11- यदि अवलोकन करें तो अब तक की श्री दुबे को दी गई थी चार नियुक्तियों में 26 जुलाई 2008 की पहली काम चलाओ नियुक्ति के बाद शेष तीनों नियुक्तियां अवैध व अनियमित रही है।
12-श्री दुबे का खेल यहीं समाप्त नहीं होता है। इसके बाद के प्रकरण तो और अधिक चौंकाने वाले है। श्री प्रदीप कुमार दुबे जिनकी प्रमुख सचिव विधानसभा के पद पर नियुक्ति हो ही नहीं सकती थी, ने 30 अप्रैल 2017 को अपनी अधिवर्षता आयु पूरी कर ली। इसके बाद विगत लगभग 8 वर्षों से वे किस प्रकार प्रमुख सचिव के पद पर कार्यरत है। यह भी जांच का विषय है।
एक आरटीआई से यह जानकारी प्राप्त हुई कि 30 अप्रैल 2017 सेवा सेवानिवृत होने वाले किसी भी अधिकारी को सेवा विस्तार नहीं दिया गया, ऐसी स्थिति में यह गंभीर विषय है।
13-इतना ही नहीं 2 वर्ष की कथित सेवाविस्तार की अवधि पूर्ण करने के उपरांत 30 अप्रैल 2019 को श्री प्रदीप कुमार दुबे का सेवानिवृत आदेश विशेष सचिव पूनम संक्सेना द्वारा निर्गत किया गया। परंतु यह प्रकरण बड़ा ही गंभीर होने के साथ-साथ हास्यपद भी है कि श्री दुबे इसके बाद भी प्रमुख सचिव विधानसभा के पद पर आसीन हैं ।
यह और भी गंभीर विषय है कि 30 अप्रैल 2019 को सेवानिवृत हो जाने के बाद 1को9 अक्तूबर 2019 को माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष कंटेंम्ट केस में काउंटर शपथ पत्र में श्री दुबे ने अपनी उम्र 57 वर्ष दिखाई है जिससे यह दृष्टिगोचर होता है कि उनके द्वारा अपनी आयु में भी गुपचुप तरीके से परिवर्तन किया गया है जो धोखाधड़ी में आता है। संभवत इसी आधार पर इन्होंने वर्ष 2027 तक प्रमुख सचिव के पद पर बने रहने का अपना रास्ता साफ कर लिया। क्योंकि उन्होंने सेवा नियमावली में एक और संशोधन कराकर प्रमुख सचिव विधानसभा के पद पर सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष की गई जो अक्टूबर 2019 में माननीय उच्च न्यायालय में दिए गए झूठा शपथ पत्र के आधार पर 30 अप्रैल 2027 को पूर्ण होती है। संभवतः इसी फर्जी आधार पर श्री दुबे 67 वर्ष होने के बाद भी वर्तमान में प्रमुख सचिव विधान सभा के पद पर बने हुए हैं। यह बहुत ही गंभीर प्रकरण है तथा साफ तौर पर धोखाधड़ी का स्पष्ट प्रमाण है जिसकी जांच कराकर श्री प्रदीप दुबे के साथ-साथ अन्य समस्त दोषी पाए जाने वालों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई किया जाना अपेक्षित है ।
14-तमाम शिकायतों के बाद भी आज तक न तो कोई जांच हुई और न ही कोई कार्यवाही बल्कि सीधे सादे कर्मियों पर श्री प्रदीप कुमार दुबे के कुनबे द्वारा त्वरित कार्यवाई की जाती है। वह चाहे श्री लाल रत्नाकर सिंह रहे हो या प्रेमपाल (जो इनके प्रताड़ना से आजिज आकर आत्म हत्या कर चुके है।) या फिर अनुसेवक चन्द्र प्रकाश, जिसे फर्जी कारण दिखाकर बर्खास्त कर दिया गया। वहीं लाल रत्नाकर विधान सभा कर्मचारी संध के अध्यक्ष रहे और श्री प्रदीप कुमार दुबे के हर अनैतिक कार्य का विरोध करते रहे जिस कारण उनकी सेवानिवृति के उपरान्त अपने काले कारनामे को छिपाने एवं दबाने के आशय से लाल रत्नाकर को ही फर्जी आरोप में जेल भिजवा दिया। जबकि इस मामले को लेकर पुलिस की कार्यवाई पर ही सवाल खड़ा हो गया और सी0बी0आई0 कोर्ट ने भी इसका संज्ञान लिया और सी0डी0 तलब की।
(नव भारत टाइम्स अंक की कापी संलग्न है)
15. प्रेम पाल के सुसाइड नोट की हस्तलिखित कापी एवं टाइप कापी जो जहरीला पदार्थ खाकर आत्महत्या के दौरान बरामद हुआ और वाइरल हुआ की कापी तथा समाचार पत्रों में प्रकाशित की क्लिपस् संलग्न है। वहीं प्रेमपाल के भाई राजकुमार पाल ने भाई ने 19 लाख रुपए विधानसभा मंडल सचिवालय सहकारी समिति से लोन लेकर अंशल गोल्फ सिटी में एक मकान लिया जो दुबे जी की नजर में खटक गया। राजकुमार पाल को धमकाकर एवं जांच बैठा कर उसके द्वारा क्रय किये मकान को 2017 में बेच लिया और मकान का कागज राजकुमार पाल के नाम 2020 तक आता रहा और वह अभी भी विधान मंडल की सोसाइटी से लिया गया लोन भर रहा है।(जिसके साक्ष्य संलग्न है)
बर्खास्त अनुसेवक चन्द्र प्रकाश भी कुछ इस तरह शिकार हुआ।
15- राम चन्द्र मिश्र सेवानिवृत्त निजी सचिव श्रेणी 4 एवं सुधीर यादव सहायक समीक्षा अधिकारी के रूप में भी विधान सभा में भ्रष्टाचार के धुरी है जिनके खिलाफ भी हजरतगंज के थाने में मुकदमा दर्ज किया गया और सी0ओ0 दिनेश यादव के द्वारा इनके मामले में बयान दिया गया। उस समय मामले की गम्भीरता को देखते हुए इस भ्रष्टाचार में लिप्त आर सी मिश्र एवं सुधीर यादव जो संविदा अनुसेवक के पद पर कार्यरत था एवं अन्य को बर्खास्त एवं सस्पेंड किया गया। परन्तु कुछ दिनों उपरान्त ही श्री प्रदीप कुमार दुबे की कृपा पर राम चन्द्र मिश्र उर्फ आर0 सी0 मिश्र एवं सुधीर यादव फिर वापस विधान सभा के अध्यक्ष के कार्यलय में तैनात कर दिये गये और सुधीर यादव को बाकायदे सहायक समीक्षाधिकारी विधान सभा सचिवालय के पद पर कार्यरत का कार्ड विधान सभा सचिवालय से जारी किया गया (कार्ड सं0- MAY52/500370) जिसकी बैधता MAY-2052 तक है जो प्रदीप कुमार दुबे के लिए आज भी ग्राहक लाने का काम करता है। तत्कालीन सरकार में सुधीर यादव पुत्र चन्द्र कुमार के नाम से डी0एम0 लखनऊ के यहां से बाकायदा पिस्टल का लाइसेंस भी जारी कराया गया। दोनों की काले कारनामों की पोटली संलग्न है ।