Halloween party ideas 2015

 देहरादून

उत्तम सिंह  मन्द्रवाल     :

सत्यवाणी ब्यूरो चीफ ऋषिकेश




 गढ़वाल हो या कुमाऊँ, उत्तराखंड के पहाड़ों में शादी अब सामाजिक परंपरा नहीं, बल्कि कठिन प्रतियोगी परीक्षा बनती जा रही है। पहले सरकारी नौकरी, फिर देहरादून में अपना मकान और अब सोशल मीडिया के दौर में प्रतीकात्मक रूप से एक नई शर्त जुड़ गई है धनुर्धारी पति। नतीजा यह है कि पहाड़ों में अविवाहित युवाओं का बंडल लगातार भारी होता जा रहा है और यह मुद्दा अब केवल चिंता का नहीं, बल्कि तंज और व्यंग्य का विषय भी बन चुका है।

लोक गायिका एवं शिक्षिका डॉ. पम्मी नवल द्वारा गाए गए पारंपरिक जागर की कुछ पंक्तियां इन दिनों सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हैं। द्रौपदी के स्वयंवर पर आधारित यह जागर मूल रूप से सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, लेकिन रील्स और शॉर्ट वीडियो की दुनिया ने इसे आज के वैवाहिक यथार्थ से जोड़कर पेश कर दिया है। युवतियां इस ऑडियो पर रील्स बनाकर “धनुर्धारी पति” की कल्पना कर रही हैं, जबकि पहाड़ के हजारों युवा इस वायरल तंज को अपनी हकीकत से जोड़कर देखने को मजबूर हैं।

विडंबना यह है कि जिन लोक परंपराओं और जागरों को कभी सामाजिक चेतना और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक माना जाता था, वही आज सोशल मीडिया के मंच पर पहाड़ी युवाओं की विफल वैवाहिक स्थिति पर कटाक्ष का माध्यम बनते जा रहे हैं। पांडव नृत्य जैसे आयोजनों में डीजे पर बजते जागर अब संस्कृति से ज्यादा कंटेंट बन चुके हैं।

असल तस्वीर इससे कहीं गंभीर है। रोजगार की कमी, पलायन, सीमित संसाधन और बढ़ती आर्थिक अपेक्षाओं ने पहाड़ी युवाओं को पहले ही हाशिये पर खड़ा कर दिया है। ऐसे में विवाह को लेकर लगातार बढ़ती शर्तें—नौकरी, मकान और सामाजिक हैसियत—युवाओं के मनोबल को तोड़ रही हैं। हजारों युवा शादी योग्य उम्र पार कर चुके हैं और पहाड़ों का सामाजिक संतुलन धीरे-धीरे बिगड़ता जा रहा है।

डॉ. पम्मी नवल का कहना है कि उन्होंने यह जागर दो वर्ष पहले सांस्कृतिक संरक्षण के उद्देश्य से गाया था, न कि किसी वर्ग पर तंज कसने के लिए। वह पहाड़ों में बढ़ती अविवाहित युवाओं की संख्या को चिंताजनक मानती हैं और युवाओं से अपनी संस्कृति व पहाड़ से जुड़े रहने की अपील करती हैं। उनका कहना है कि हमारी लोक परंपराएं हमारी विरासत हैं, जिन्हें मज़ाक नहीं, समझ और संवेदनशीलता की ज़रूरत है।

कुल मिलाकर, सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रही ‘धनुर्धारी पति’ की मांग केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि पहाड़ के युवाओं की उस चुप पीड़ा की तस्वीर है, जिसे समाज अक्सर हंसी में उड़ा देता है। यदि यही सोच बनी रही, तो पहाड़ों में अविवाहित युवाओं की यह बढ़ती संख्या आने वाले समय में एक गंभीर सामाजिक संकट बन सकती है—जिसकी जिम्मेदारी केवल युवाओं की नहीं, बल्कि पूरे समाज की होगी।

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