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      आतंकवाद का जहर समूचे देश में फैल चुका है। चौराहों से लेकर चौपालों तक चर्चाओं का बाजार गर्म है। पाक प्रायोजित पहलगाम हमले ने राष्ट्र भक्त नागरिकों को आंदोलित कर दिया है। धर्म पूछकर की गई हत्याओं ने इस्लाम के मंसूबे जाहिर कर दिये हैं। देश के अंदर रहने वाले मीर कासिम की तरह गद्दार भी अब घडियाली आंसू बहाकर उत्तेजनात्मक बयानबाजी करके अपने को हिन्दुओं का शुभचिन्तक घोषित करने की होड में लगे हैं। 


हिन्दुस्तान के स्वर्ग के बाद अब देवभूमि को निशाना बनाने का षडयंत्र भी उजागर होने लगा है। 

सूत्रों की माने तो कश्मीर घाटी के बाद अब केदार घाटी में भी नापाक इरादों को कामयाब करने के लिए छदम्मवेशधारियों की जमातों ने आमद दर्ज कर ली है।

 उत्तराखण्ड में प्रारम्भ हो चुकी तीर्थ यात्रा में जहां केदारनाथ और यमुनोत्री में फर्जी दस्तावेजों के आधार अनेक आतंकियों व्दारा घोडेवाले के रूप में पंजीकरण तक करवा लिया है वहीं यात्रा मार्ग में अनेक बाहरी लोगों ने दुकानें खोलकर व्यवसायी का चोला ओढ लिया है। 


उल्लेखनीय है कि विगत कुछ वर्षों में ही उत्तराखण्ड की धरती पर हजारों मजारें बना लीं गई है, सैकडों मस्जिदें तैयार हो गईं हैं, मदरसों ने आकार ले लिया है।

 अचानक आई मुस्लिम आबादी की बाढ से वहां का सामाजिक ढांचा तक तहस-नहस होता दिख रहा है। देवभूमि में इन दिनों अनगिनत मांस की दुकानें, कसाईखाने और अनजाने लोगों की बसाहट देखी जा सकती है। 

एक सर्वे में पता चला है कि वहां पर मुसलमानों में नाम बदलने का एक फैशन चल निकला है। 

अनेक दस्तावेजों में हिन्दू नाम वाले व्यक्ति की बल्दियत मुस्लिम नाम के साथ जुडी है। पंकज पुत्र मोहम्मद सलीम जैसे नामों वाले दस्तावेज बनाये जा रहे हैं जो आगे चलकर सुनील पुत्र पंकज के रूप में स्वत: परिवर्तित हो जायेंगे। 


पहचान छुपाकर बनाये जाने वाले प्रमाण पत्रों का सिलसिला तो दसियों साल से चल रहा है। 

लम्बे समय से तीर्थ यात्रा कराने वाली एक कम्पनी के पुराने नुमाइंदे के अनुसार इस बार की उत्तराखण्ड यात्रा में तीर्थ स्थलों पर दुकानों से लेकर सेवायें देने वालों तक में अनजान चेहरों की भरमार है। 

यह लोग पहले कभी नहीं देखे गये। बहुत कम बोल वाले इन लोगों की भाषा भी क्षेत्रीय नहीं है किन्तु अनेक स्थानीय लोग इनके संरक्षक बने हुए हैं। किसी भी प्रकार के विवाद की स्थिति में वे ही आगे आकर मोर्चा सम्हालते हैं और साम्प्रदायिकता का रंग देकर विरोध दर्ज करने वालों पर हावी हो जाते हैं। अभी तो यात्रा शुरू हुई है।

 आने वाले दिनों में इन अनजान लोगों की कारगुजारियां सामने आने की संभावना है। ऐसे ही स्थिति का खुलासा अनेक स्थानीय व्यवसायियों ने भी किया है।

 सरकारी व्यवस्था के समानान्तर कम दामों में बेहतर सुविधायें देने का वायदा करने करने वाले अनेक संदिग्धों का तीर्थों में जमघट लगा है।

 पहले भी सीमापार से आने वाले आतंकियों ने देश के अनेक महानगरों को बम धमाकों से दहलाया था, निर्दोषों की जानें लीं थीं और फैलाई थी दहशत। इस बार धरती के स्वर्ग कश्मीर के बाद अब देवभूमि उत्तराखण्ड को रक्त रंजित करके गजवा-ए-हिन्द का एक बार फिर ऐलान करने के मंसूबों की जानकारी मिल रही है।

 सूत्रों के अनुसार आतंकियों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर तीर्थयात्रियों के रूप में पंजीकरण भी करवाया है, घोडावान के रूप में भी रजिस्टर्ड हुए हैं और गरीब बनकर छोटी-छोटी दुकानें भी लगा लीं हैं।

 सघन जांच होने, संदिग्धों की पडताल होने और कार्यवाही होने पर साम्प्रदायिक रंग देने की सभी तैयारियां भी पूरी कर लीं गईं है जिनमें अनेक खद्दरधारियों, काले कोटधारियों, कथित बुध्दिजीवियों, बनावटी समाजसेवियों, दबंग प्रभावशालियों की सक्रिय भूमिकायें निर्धारित हो चुकीं हैं। कार्यपालिका के एक बडे वर्ग की लापरवाही और मनमानियों से तैयार होने वाले दस्तावेजों की आड में राष्ट्रदोहियों की जमातें निरंतर तैयार हो रहीं हैं। 

अहमदाबाद हो या पश्चिम बंगाल, मणिपुर हो या मिजोरम, केरल हो या कर्नाटक। चारों ओर घुसपैठियों को नागरिक के रूप में स्थापित करने वाले मीर जाफरों की प्रचुर मात्रा में उपस्थिति है।

 देश के कोने-कोने में फैले इस नेटवर्क की जडों तक पहुंचे बिना आतंकवाद का सफाया असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। 

मजहबी तालीम के नाम पर काफिरों को नस्तनाबूत करने हेतु तैयार की जा रही जमातें अब अपने असली मंसूबों को सफल करने में जुट गईं हैं। इन सबके पीछे विदेशियों की जहरीली सोच, हथियार निर्माताओं का व्यवसायिक हित और विस्तारवादियों की महात्वाकांक्षाओं जैसे कारक लम्बे समय से सक्रिय हैं।

 दूसरों पर प्रहार करने वालों पर जब उन्हीं की बिल्ली म्याऊं करने लगती है तब वे अपनी मनमर्जी से गुण्डागर्दी पर उतर आते हैं।

 दूसरे देशों की सीमाओं में घुसकर अपने दुश्मन की समाप्त कर देते हैं परन्तु जब कोई दूसरा देश ऐसा करता है तो फिर कूटनीतिक पहल, शान्ति का रास्ता, बातचीत की आवश्यकता के उपदेश दिये जाने लगते हैं। 

पाकिस्तान के बयानों से बेनकाब हो चुके अमेरिका और ब्रिटेन की बौखलाहट अब देखने काबिल है। ऐसा ही हाल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का है जो चन्द देशों की इच्छापूर्ति का हथियार बनना बैठा है। 

वीटो के नाम पर चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका किसी भी प्रस्ताव या निर्णय को पारित नहीं होने दे सकते हैं। दुनिया में शान्ति और सुरक्षा के लिए उत्तरदायी संस्था में भी जब केवल पांच देशों की तानाशाही ही चल रही है तो फिर न्याय के नाम पर अन्याय को पोषित करने वाली परम्परा का अंत कैसे होगा, यह एक यक्ष प्रश्न बनकर खडा है। 

चारों ओर आतंक का हाहाकार मचा है। दूसरे विश्वयुध्द के बाद वर्तमान में ही सर्वाधिक युध्दों की स्थिति निर्मित हुई है। रूस-यूक्रेन, इजरायल-फिलिस्तीन, चीन-ताइवान, भारत-चीन, भारत-पाकिस्तान, भारत-बंगलादेश, अजरबैजान-आर्मेनिया जैसे प्रत्यक्ष युध्दों का दावानल ठहाके लगा रहा है तो वैश्विक व्यापार को अवरुध्द करने हेतु लाल सागर, अदन की खाडी, अरब सागर जैसे इलाकों में इस्लामिक आतंकियों की ललकार गूंज रही है। 


मजहब के नाम पर हो रही खुली गुण्डागर्दी को नस्तनाबूत करना बेहद जरूरी है।

 यहूदियों पर प्रहार करने वाले हमास ने हिन्दुओं पर हमला कराने के लिए पाकिस्तान का दौरा किया, जेहाद के नाम पर सुल्तान बनने का ख्वाब देखने वालों ने जहरीली तकरीरें की और सम्पन्न देशों ने दिया उन्हें संरक्षण-सहयोग-सुविधा का त्रिचरणीय तोहफा। ऐसे में स्वर्ग के बाद देवभूमि पर आतंकी कहर की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। 

इस हेतु सरकारों, सुरक्षा बलों और आम आवाम को बेहद सावधान रहने की जरूरत है अन्यथा कभी भी, कोई भी असुखद घटना मूर्त रूप ले सकती है। इस बार बस इतना ही।

 अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।



Dr. Ravindra Arjariya

Accredited Journalist

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