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वर्तमान समय में देश बाह्य और आन्तरिक दुश्मनों से एक साथ जूझ रहा है।

 सीमापार से आने वाले आतंकवादियों, घुसपैठियों तथा षडयंत्रकारियों के लिए तो सेना के जवान मुस्तैदी से सेवायें दे रहे हैं.



 परन्तु सीमा के अन्दर नागरिकों के वेश में छुपे मीर जाफरों, उनके आकाओं और सफेदपोश संरक्षकों से निपटना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। समाज के प्रत्येक वर्ग में राष्ट्रदोहियों की संख्या में इजाफा हो रहा है। 


विदेशी षडयंत्र का सक्रिय हिस्सा बनकर अपने ही देश को नस्तनाबूद करने की कसम खाने वाले पैसा, पद और प्रतिष्ठा के लिए किसी भी हद तक गिरने को तैयार बैठे हैं।

 ‘भारत तेरे टुकडे होंगे, इंशा अल्लाह-इंशा अल्लाह’के नारे बुलंद करने वालों को एक राजनैतिक दल ने न केवल खुला समर्थन दिया था बल्कि पार्टी का सक्रिय सदस्य बनाकर चुनावी जंग में भी उतारा था। 

कश्मीर के पत्थरबाजों को मासूम बताने वाली पार्टी के जन्मजात मुखिया ने तो आपरेशन सिंदूर के संदर्भ में भी दुश्मन को लाभ देने वाले प्रश्नों की झडी लगा दी थी। हमारी सेना के नुकसान का विवरण मांगकर दुश्मन को सटीक मूल्यांकन करने का खुला मौका देकर उसके भावी षडयंत्र को घातक बनाने में सहयोग करने की नियत साफ जाहिर हो गई थी। विदेशों में जाकर देश को कोसने, आन्तरिक मामलों में बाह्य दखल का आमंत्रण देने तथा दुश्मनों के साथ गलबहियां करने की अनगिनत घटनायें साइबर रिकार्ड में आज भी देखी जा सकतीं हैं।जब-जब सेना ने सीमापार जाकर दुश्मनों के दांत खट्टे किये, तब-तब चन्द लोगों के पेट में असहनीय पीडा उठी। इन लोगों में अनेक राजनैतिक नेताओं, कथित बुद्धिजीवियों और स्वयंभू प्रतिष्ठितजनों के वही नाम बार-बार सामने आते रहे हैं। ऐसे ही कुछ काले कोटधारियों की जमातें ही लगभग सभी देशद्रोहियों के बचाव में न्यायालयों में चौखट पर हमेशा माथा पटकती नजर आती रहीं। वे न्याय व्यवस्था की सहजता का लाभ उठाकर उसकी मनमानी व्याख्याओं में न्यायाधीशों को उलझाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। इनमें से अनेक तो काले कोट के साथ-साथ खद्दर की पोशाक के लिए भी अधिकृत हैं। पार्टी लाइन पर काम करते हुए राष्ट्र के लिए घातक कृत्यों के कीर्तिमान स्थापित करने वाले इन चन्द लोगों ने कानून के क्षेत्र में भी अपनी कुटिलता का हमेशा ही नारा बुलंद किया है। कलम को कमाई का कारोबार बनाने वाले अनेक लोगों ने तो मनगढन्त कहानियां लिखने, भ्रम फैलाने और समाज को गुमराह करने का सीमापार से ठेका ही ले लिया है। उनकी आय के गुप्त स्रोत तेजी से विकसित हो रहे हैं, विलासता के संसाधनों में बाढ आ रही है और चल निकला है कथित संस्थाओं व्दारा प्रायोजित सम्मान पाने का सिलसिला। विदेशी पैसों पर ऐश करने वाले यह लोग निरंतर नकारात्मकता फैलाने का काम कर रहे हैं ताकि उनका अन्तिम संस्कार नोटों की गड्डियों पर हो सके। साइबर का सहारा लेकर राष्ट्रद्रोह की नई परिभाषायें लिखने में मसरूफ लोगों ने अपनी पहुंच देश के लगभग सभी क्षेत्रों में बना ली है। वे वक्त के मुताबिक चन्द मिनिटों में ही कभी भीड की शक्ल में हमलावर हो जाते हैं तो कभी अपने आका के इशारे पर असामाजिक कृत्यों को अंजाम तक पहुचाने हेतु उतावले हो जाते हैं। उन्हें विश्वास है कि पुलिसिया प्रहार, कानूनी दण्ड और सामाजिक बहिस्कार से बचाने के लिए प्रभावशाली लोग तत्काल उन्हें अपनी सुविधायें मुहैया करा देंगे। मीर जाफरों के सुरक्षा कवच में काम करने वाले इन घातक जेहादियों को न केवल नियमित रूप से धनराशि मिलने के तथ्य उजागर हुए हैं बल्कि उनके रुतबे को बढाने के लिए राजनैतिक दलों व्दारा ओहदों से भी नवाजे जाने की स्थितियां भी सामने आईं है। झंडा, निशान और कुर्सी की दम पर अधिकारियों को झुकाने का अधिकार पाते ही उनके नीचे भी सिपहासालारों का हुजूम बढने लगता है। कभी सम्प्रदाय के नाम पर चिल्ला चोट होने लगती है तो कभी किसानों की आड में असामाजिक तत्वों का जमावडा देखने को मिलता है। कभी व्यापारी हितों का नारा बुलंद करके उपद्रवियों का आक्रोश सामने आता है तो कभी मौलिक अधिकारों की दुहाई पर घातक मंसूबे देखने को मिलते हैं। आपरेशन सिंदूर के बाद कश्मीर में चलाये जाने वाले आपरेशन मीरजाफर को केवल वहां पर मौजूद आतंकियों के सहयोगियों, आश्रयदाताओं और सुविधादाताओं तक ही सीमित नहीं रखा जाना चाहिये बल्कि उसे देश के सभी क्षेत्रों में बहुत सावधानी से चलाया जाना चाहिए। सूत्रों की माने तो सभी कस्बों, नगरों और महानगरों में अतिक्रमण करके पूर्व नियोजित योजना के तहत किले के रूप में बसाई गई तंग गलियों वाली अवैध बस्तियों में सैकडों नहीं, हजारों नहीं बल्कि लाखों, करोडों असलहे, बम तथा अन्य घातक साज-ओ-सामान मौजूद है। इन बस्तियों में अनेक आपराधिक कृत्य खुलेआम हो रहे हैं जिनकी जानकारियां वहां के अनेक स्थानीय अधिकारियों को रहती है किन्तु किन्हीं खास कारणों से वे सब कुछ जानते-बूझते हुए भी अनजान बने रहने का ढोंग रचाते हैं। लालफीताशाही, खाकी और खद्दर के चन्द नामची लोगों के खुले संरक्षण में पनप रही यह जहरीली पौध अब समूचे देश में फैल चुकी है। इन मीर जाफरों की फौज से निजात पाये बिना स्थाई शान्ति असम्भव है। इसके लिए कानून, नियमों और आदेशों की नहीं बल्कि कार्यपालिका की इच्छा शक्ति आवश्यक है अन्यथा कागजी घोडों की रेस में समीक्षा आख्या, प्रगति रिपोर्ट, आदेश अनुपालन पत्रावली जैसे कारकों की ही प्रतिस्पर्धा होती रहेगी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।




Dr. Ravindra Arjariya

Accredited Journalist

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dr.ravindra.arjariya@gmail.com


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