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 पर्यावरण का मनुष्य जीवन से गहरा रिश्ता है। सुखी जीवन के लिए स्वच्छ (शुद्ध) पर्यावरण आवश्यक है। जिससे हम सभी चारो तरफ से घिरे हुए हैं उसी को पर्यावरण कहते हैं।   

                      


    प्रकृति ने मुफ्त में हमें जो प्रदान किया है; यथा हवा, पानी , अग्नि , रोशनी (सूर्य- चंद्र), जंगल , पहाड़, धरती -आकाश, मनुष्य-जानवर, पशु-पक्षी , मौसम ,नदी-समुद्र , पेड़ -पौधे, सजीव निर्जीव जिसे व्यापक अर्थ में प्राकृतिक जगत अर्थात ब्रह्माण्ड कह सकते हैं।

 आसानी से समक्षने के लिए कहा जा सकता है कि जो हमें मुफ्त में मिला है और जिसे मनुष्य ने नहीं बनाया है ।                                                 विश्व के अनेकों देश सुख साधन सुविधाओं में वृद्धि के लिए जिन प्रयोगों आविष्कारों का सहारा लिया उसमें उसके सदुपयोग-दुरूपयोग, एवं पर्यावरणीय प्रभाव का बिल्कुल ही ध्यान नहीं रखा गया । परिणाम हुआ कि उन्हीं विकसित देशों ने संयुक्त राष्ट्र संघ ने 5 जून से 16 जून तक आमसभा की बैठक में पर्यावरण प्रदुशण की समस्या पर चर्चा करते हुए 5 जून 1973 से प्रथम पर्यावरण दिवस मनाया गया।                                  

  आज विश्व के अनेकों देश जागरूकता अभियान के रूप में पर्यावरण संरक्षण दिवस मना रहे हैं।    

                                           यह कार्य भारतीय ऋषियों मुनियों ने हजारो लाखो वर्ष पूर्व सोंचा समक्षा जाना होगा। तभी प्रकृति प्रदत्त अमूल्य धरोहरों - जल, वायु, अग्नि, आकाश, सूर्य, चंद्र, नदी, वृक्ष की पूजा अर्चना का विधि-विधान के साथ साथ ऋतुओं के आधार पर पर्व त्यौहार देवी-देवताओं की पूजा के साथ साथ धरती को गंगा को माता के रूप में मानते हुए प्रकृति प्रदत्त मुफ्त में मिले अमूल्य उपहारों के प्रति सम्मान व्यक्त करने की प्रक्रिया प्रारंभ की थी। वैज्ञानिक धरातल पर यह स्वयम् सिद्ध होता है कि हमें प्रदुषण से बचने एवं पर्यावरण को सुरक्षित एवं संरक्षित रखने की चिंता पहले से थी।                                  आज विश्व के बहुत सारे वैज्ञानिक यह स्वीकार कर रहे हैं कि भारतीय सोच समझ एवं परम्पराऐं पहले से ही समृद्ध और सशक्त था। प्रोफेसर अखिलेश्वर शुक्ला ने कहा "हम हैं कि मानते नहीं , पश्चिमी देशों की नकल से थकते नहीं। जबकि पर्यावरण संरक्षण का मूल आधार प्रकृति पूजा है।"                                       भारतीय समाज आज भी गूलामी के प्रभाव से उबर नहीं पाया है। हीन भावना से ग्रसित होकर हम नित्य नए पश्चिमी नारों पर मतवाले हो रहे हैं।  मुफ्त में प्राप्त प्राकृतिक उपहारों का आदर नहीं करते और धन सम्पदा अर्जन के अभियान में सुख शांति निंद जैसे अमूल्य को खोते जा रहे हैं।              


  प्रोफेसर (कैप्टन)अखिलेश्वर शुक्ला, पूर्व प्राचार्य /विभागाध्यक्ष -राजनीति विज्ञान, राजा श्री कृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय- जौनपुर, उत्तर प्रदेश 

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