मान्यता है कि जिन पूर्वजो के कारण हम लोगों का अस्तित्व है उन्हें पूर्वजों की याद में हिंदू धर्म में 15 दिवसीय दिवस मनाया जाता है इन दिनों मे पितृ इहलोक छोड़कर जिन तिथियों में परलोक गए हैं पुण्यतिथियों पर उनका आह्वान कर श्राद्ध किया जाता है। जिन पूर्वजों का श्राद्ध भूलवश छूट गया हो,जिनका अकाल मृत्यु हुआ हो अथवा याद नही हो उनका श्राद्ध सर्वपितृ अमावस्या अर्थात आश्विन मास की अमावस्या तिथि को किया जाता है।
श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से किया गया पूजन। यथासंभव पितरों का पूजन दक्षिण दिशा में मुख्य कर पंडित अथवा स्वयं के द्वारा किया जा सकता है।
मान्यता है कि यदि याचक के पास कुछ भी नही हो यो भी किसी जल स्थान में रहकर दक्षिण दिशा की और आचमन मात्र से पित्र प्रसन्न हो जाते है।
बिहार में गया, हरिद्वार में नारायणी शिला, बद्रीनाथ धाम एवम अनेक स्थलों पर श्राद्ध किया जा सकता है। श्रीमद् भागवत गीता का पाठ ब्राह्मणों को दान गायों कुत्तों और कबो को भोजन करना इस दिन श्रेष्ठ कर माना गया है.
एक टिप्पणी भेजें