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 पिता से बिछड़ने के बाद रंजन नेगी ने पटवारी /फॉरेस्ट गार्ड ,ग्राम विकास अधिकारी परीक्षाओं में हुए उत्तीर्ण, पिंडर घाटी में खुशी की लहर

 



*नारयाणबगड, चमोली*--"मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है" ये चरितार्थ पंक्तियां चमोली ग्राम जुनेर निवासी रंजन नेगी/ नवल किशोर नेगी पर सटीक बैठती है। सरकारी परीक्षाओं की तीन परिक्षाएं में उत्तीर्ण हुए, उनकी इस सफलता पर गांववासी व पूरे पिंडर घाटी में खुशी की लहर दौड़ रही।

 विगत माह पूर्व उत्तराखंड लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाओं में हजारों छात्र-छात्राओं ने परीक्षा दी जिसका परिणाम कुछ दिन पहले आयोग द्वारा जारी किया गया। रंजन नेगी ने एक साथ तीन सरकारी परीक्षाएं  में उत्तीर्ण की है। 

पिता से मात्र 15 साल की आयु में बिछड़े के बाद भी रंजन नेगी ने अपनी लगन, मेहनत, दृढ़ परिश्रम से अपने पिता का खोने का एहसास किसी को नहीं होने दिया और अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते गए जिसका परिणाम आज सबके सामने है। रंजन नेगी के दो भाई हैं मुकेश नेगी जो कि देहरादून सचिवालय में सेवा दे रहे, दूसरा भाई तनुज नेगी सरकार नौकरी की तैयारी में जुटे हैं। रंजन की माता बिमला देवी एक कुशल गृहणी है, पिता के गुजर जाने के बाद माता ने बच्चों की  अच्छी परवरिश कर पढा- लिखाकर कर बड़ा किया।

 रंजन नेगी मूल निवासी जिला चमोली गढ़वाल विकासखंड नारायणबगढ़ ब्लॉक के ग्राम जुनेर से है, उन्होंने  लेखपाल/पटवारी परीक्षा के बाद फोरेस्ट गार्ड, विकास अधिकारी /ग्राम पंचायत अधिकारी की परीक्षा में उत्तीर्ण की है। रंजन नेगी की प्रारंभिक शिक्षा अपने पैतृक गांव जूनेर के प्राथमिक विद्यालय से की,  इंटरमीडिएट राजकीय इंटर कॉलेज नारायणबगढ़ विज्ञान वर्ग से किया, उच्च शिक्षा डी०ए०वी कालेज देहरादून से कालेज के साथ -साथ वो सरकारी परीक्षाओं की तैयारीयों में जुटे गए। रंजन नेगी ने बताया वह प्रतिदिन 7- 8 घंटे टाइम टेबल के साथ पढ़ाई करते थे। परीक्षाओं की तैयारी करते समय आपको कठिन विषय परिस्थितियों का  सामना भी करना पड़ता है, आपको दृढ़ संकल्प निडर होकर अपनी कड़ी मेहनत बरकरार रखना है। उन्होंने कहा पढाई का कोई शॉर्टकट नहीं है ,अगर आपका लक्ष्य निर्धारित हें तो आपको सफलता जरूर मिलती है। तैयारी करते समय अपना फोकस इंटेंशन पढाई की ओर करना चाहिए जिससे सफलता मुकाम पाई जा सकती है। रंजन नेगी अपने सफलता का श्रेय सबसे पहले अपनी माता को देते हैं जिन्होंने उनकी परवरिश, पालन पोषण में कोई कमी नही करी हर समय उनके साथ खड़ी रही व गुरुजनों का सहयोग भी मेरे लिए कारगर सिद्ध हुआ।



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