उत्तराखंड(अंकित तिवारी):-
भारतीय लोकतंत्र में चुनाव एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो देश के नागरिकों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार प्रदान करती है। हालांकि, चुनावी प्रक्रिया के कुछ पहलू ऐसे हैं जिनमें सुधार की आवश्यकता है। उनमें से एक है, उम्मीदवारों द्वारा एक से अधिक सीटों से चुनाव लड़ने की प्रथा। यह प्रथा न केवल संसाधनों की बर्बादी है बल्कि इससे जनतंत्र की भावना भी आहत होती है।
प्रथम दृष्टि में, एक ही व्यक्ति द्वारा दो सीटों पर चुनाव लड़ने का कोई ठोस औचित्य नहीं है। यदि वह व्यक्ति दोनों सीटों पर विजयी होता है, तो उसे एक सीट छोड़नी पड़ती है, जिससे एक सीट खाली हो जाती है और वहां पुनः चुनाव कराने की आवश्यकता होती है। यह न केवल समय की बर्बादी है बल्कि करदाताओं के धन की भी अनावश्यक खर्च है।
इस संदर्भ में, चुनाव आयोग को नियमों में संशोधन कर दो सीटों से चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि उम्मीदवार एक ही सीट पर अपना ध्यान केंद्रित करें और जनता के हितों की सही तरीके से सेवा कर सकें। इसके अतिरिक्त, यह भी आवश्यक है कि यदि कोई उम्मीदवार दो सीटों पर विजयी हो जाता है और एक सीट छोड़ता है, तो उस खाली हुई सीट पर पुनः चुनाव कराने के बजाय उपविजेता को विजयी घोषित कर दिया जाए। यह न केवल संसाधनों की बचत करेगा बल्कि जनता का समय भी बचेगा और चुनावी प्रक्रिया में सुगमता आएगी।
इस प्रकार के सुधार से न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी बल्कि चुनाव प्रक्रिया में भी सुधार होगा। देश के विकास और लोकतंत्र की मजबूती के लिए यह आवश्यक है कि चुनाव आयोग इन सुझावों पर गंभीरता से विचार करे और आवश्यक संशोधन करे। यह समय की मांग है कि हम चुनावी प्रक्रिया को अधिक प्रभावी, किफायती और लोकतांत्रिक बनाएं।
यह कहना उचित होगा कि चुनाव आयोग को इस दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए और दो सीटों से चुनाव लड़ने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। इससे जनता के समय और धन की बर्बादी रुकेगी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाने में मदद मिलेगी।
*(लेखक अंकित तिवारी शोधार्थी, अधिवक्ता एवं पूर्व विश्वविद्यालय प्रतिनिधि हैं। )*
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