आज , पूर्णिमा के दिन होली का त्योहार फाल्गुन मास में मनाया जाता है. भक्त प्रह्लाद की भक्ति को दर्शाता और असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक यह त्यौहार अनंत काल से मनाया जा रहा है. जीवन में हर्ष और उल्लास का रंग भरने वाले इस त्यौहार पर दुश्मन और दोस्त भी गले लग जाते है
भगवान् नरसिंह की पूजा का विशेष महत्त्व है . इस दिन स्त्रियां इस कामना से दिन भर व्रत रखती है कि बुराई रुपी होलिका जल जाये और भक्त प्रह्लाद बच जाएँ।
कथा और कारण-
हिरण्कश्यप
के पुत्र प्रह्लाद को उसके पिता द्वारा सदैव हरि भक्ति के कारण प्रताड़ित
किया गया. उन्ही प्रताड़ना में से एक प्रतड़ना के अंतर्गत प्रह्लाद की बुआ
जिसे अग्नि में ना जलने का वरदान प्राप्त था, वह प्रह्लाद को गोदी में
लेकर अग्नि में बैठ गयी. परन्तु भक्त की पुकार से नारायण ने अपने भक्त
को बचा लिया और होलिका का दहन हो गया. उसी का प्रतिरूप प्रतिवर्ष भारत में
होलिका दहन के रूप में मनाया जाता है. इससे अगले दिन फाग के दिन रंगों से
एक दूसरे के साथ खेलते हुए लोग अपनी ख़ुशी जाहिर करते है.
इस
वर्ष होलिका दहन का समय 6:24 से रात 08 बजकर 51 मिनट तक शुभ संयोग होगा। ऐसे
में इस दौरान होलिका दहन करना शास्त्र सम्मत उचित माना जा रहा है।
होलिका
पूजन की तैयारियां होलाष्टक लगते ही शुरू हो जाती है , जब गाय के गोबर से
बड़क्ले और अनेक प्रकार की आकृतियां बनाकर सुखाई जाती है. उन्हें आज
के दिन मिष्ठान , हल्दी, सूत , गेंहू की बाली , मिष्ठान , रंग , फल, दीप ,
धूप , आदि के साथ होलिका पर अर्पित किया जाता है. और होलिका की 3 या 7 बार
परिक्रमा की जाती है.
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