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 संभावित परिणामों पर चापलूस अधिकारी बिछाने लगे हैं लाल गलीचा



                देश के पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आगामी 10 मार्च को घोषित किये जायेंगे परन्तु उसके पहले ही सरगर्मियां तेज हो गई है। राजनैतिक गलियारों से लेकर प्रशासनिक दफ्तरों तक में संभावनाओं के आधार पर जोडतोड की गतिविधियां देखी जा रहीं हैं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में जहां खद्दरधारियों की गाडियों की भीड कुछ खास नेताओं के बंगलों पर निरंतर बढ रही है वहीं प्रशासन और पुलिस के आला अफसर भी अपना कद लम्बा करने की फिराक में लगे हुए हैं। उत्तर प्रदेश में तो कार्यपालिका ने अपना भगवा रंग उतारने की शुरूआत भी कर दी है। अयोध्या के जिलाधिकारी आवास के बोर्ड का भगवां रंग भी अब हरा कर दिया गया है। समाजवादी पार्टी के मुखिया को पूर्व में आवंटित लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग पर स्थित बंगला क्रमांक 4 और 5 को विशेष रूप से सजाया जा रहा है। इसी बंगले से निकला टोंटी चोर का जुमला लम्बे समय तक व्यंगबाण के रूप में चलाया जाता रहा है। समाजवादी पार्टी के रेखांकित स्थलों में श्री जनेश्वर मिश्र पार्क, लोहिया पार्क, रिवर फ्रंट आदि की साफ-सफाई सहित मरम्मत का काम चल निकला है। प्रदेश में 403 विधानसभा सीट हैं जिन पर भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, आल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन सहित अनेक क्षेत्रीय दल जोर आजमाइश कर रहे हंै। अनेक दलों के बागी उम्मीदवारों ने भी अपनी व्यक्तिगत पहचान के दम पर तालठोक कर चुनौती प्रस्तुत की है। प्रदेश में ज्यादातर लोग भाजपा के तो पक्ष में थे परन्तु उन्हें योगी का जातिवाद में जकडा नेतृत्व रास नहीं आ रहा था। ऐसे असंतुष्ट लोगों के ऊहापोह ने उन्हें मतदान से दूर ही रखा और मतदान का प्रतिशत नीचे की ओर लुडकता चला गया। अभी आखिरी चरण का मतदान कल यानी 7 मार्च को होना है जिसमें प्रदेश के 9 जिलों की 54 सीटों पर चुनाव लडने वाले 613 प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला होगा। इसमें सभी राजनैतिक दल और प्रत्याशी अपनी पूरी ताकत झौंकने में लगे हैं। कोई मतदान का प्रतिशत बढाने हेतु अपनी विचारधारा से जुडे मतदाताओं को मतदान केन्द्रों तक पहुंचाने की फिराक में है तो कोई ध्रुवीकरण का प्रचार करके माहौल को गर्मा रहा है। उल्लेखनीय है कि चुनावों की घोषणा के ठीक पहले उत्तर प्रदेश के अनेक जिलों के जिलाधिकारियों सहित विभिन्न आला अफसरों को भाजपा के कद्दावर नेताओं की पहल पर स्थानान्तरित किया गया था, जिसमें मध्य प्रदेश की सीमा से सटा उत्तर प्रदेश का महोबा जिला खास तौर पर चर्चित रहा। वहीं उत्तराखण्ड ने विगत 20 वर्षो में प्रदेश को 11 मुख्यमंत्री दिये हैं। यहां की 70 विधानसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी सहित अनेक बागी प्रत्याशियों ने भी अपनी किस्मत आजमाई है। यहां भाजपा के अनेक पक्षधर यहां के मुख्यमंत्री धामी की नीतियों से असंतुष्ट दिखे। प्रदेश की लालफीताशाही अपने रसूक को बढाने के लिए अटकलों के आधार पर संभावित सरकार के दिग्गजों को साधने में लग गई है। यूं तो पंजाब में विधानसभा की 117 सीट हैं जिन पर भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, अकाली दल सहित अमरिन्दर सिंह जैसे दिग्गजों ने अपने बूते पर दंगल हांकने की हुंकार भरी है परन्तु कांग्रेस के सिध्दू फैक्टर ने पार्टी को ही विभाजन की कगार पर पहुंचा दिया है। 40 विधानसभा सीटों वाले गोवा में भारतीय जनता पार्टी, आम आदमी पार्टी, कांग्रेस तथा तृणमूल कांग्रेस सहित अनेक लोकप्रिय नेताओं ने जनप्रतिनिधि के रूप में चयनित होने हेतु उम्मीदवारी दर्ज की है। यहां पर भाजपा के मुख्यमंत्री सावंत के साथ अनेक भगवाधारी खडे होने से कतराते रहे। वहीं ममता का ममत्व भी अनेक कद्दावरों को प्रभावित नहीं कर सका। मणिपुर में विधानसभा की 60 सीट हैं जिन पर भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस सहित अनेक निर्दलीय प्रत्याशी अपनी तकदीर का लिखा बांचने की फिराक में हैं। यहां के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह आम आवाम की अपेक्षाओं पर पूरी तरह खरे नहीं उतरे हैं। इस घमासान के बाद देश के 9 राज्यों में विधानसभा के चुनावों की दुंदुभी बजने वाली है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ, कर्नाटक, तेलंगाना, मणिपुर, मेघालय, नागालैण्ड और मिजोरम के चुनावी समीकरण अभी से आकार लेने लगे हैं। उसके बाद सन 2024 में लोकसभा चुनावों का महासंग्राम सामने होगा। सभी राजनैतिक दल अपने कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने के उपाय अभी से खोजने में लगे हैं। ऐसे में वर्तमान चुनावों के परिणाम, परिणामों के बाद की स्थिति और पार्टियों का कथनी-करनी का मूल्यांकन ही आगे का रास्ता प्रशस्त्र करेगा। सत्ताधारी पार्टी के आदर्शों, सिध्दान्तों और नीतियों की त्रिवेणी के साथ कदमताल करने में माहिर चन्द प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी अभी से हवा का रुख भांपकर गिरगिट की तरह रंग बदलने लगे हैं। संभावनाओं के आधार पर सम्पर्क साधने का क्रम चल निकला है। लाभ के पदों पर पहुंचने की गणित बैठाने में महिर चापलूसों की फौज दल-बल के साथ सक्रिय हो चुकी है। डंडों पर झंडे बदलने लगे हैं। दफ्तरों के रंगों को परिवर्तित करके निष्ठा की परिभाषायें प्रस्तुत की जाने लगीं है। पार्टी के मुखिया की पसन्द-नापसन्द के हिडोले पर पैंगें बढने लगीं है। मोबाइल नामक यंत्र संपर्कों को पुनर्जीवित करने में महात्वपूर्ण भूमिका का निवर्हन कर रहे हैं। विधानसभाओं के गलियारों में बडे साहब से लेकर छोटे मुलाजिमों तक की जुबान पर संभावनाओं की चर्चाओं ने कब्जा कर लिया है। प्रदेश के संभावित मुखिया, उनके सिपाहसालारों तथा दल के कद्दावर नेताओं तक के संबंधियों का हुक्के भरने के लिए अभी से सरकारी गाडियां पहुंचने लगीं हैं। पसन्दीदा पदस्थापना हेतु अनुनय करने वालों को आश्वासनों का आशीर्वाद दिया जाने लगा है। वर्तमान स्थितियों का गहराई से अध्ययन करने तथा चर्चाओं की तह तक जाने पर यह स्पष्ट होने लगा है कि संभावित परिणामों पर चापलूस अधिकारी बिछाने लगे हैं लाल गलीचा ताकि आने वाले समय में वे अंगुलियों पर गिने जाने वालों में शामिल हो सकें। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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