सहज संवाद
राष्ट्रहित की कीमत पर अस्वीकार होना चाहिये अल्पसंख्यक संरक्षण
डा. रवीन्द्र अरजरिया
विकृतियों का बाहुल्य होते ही बीमारियां पैदा होने लगतीं हैं। समय रहते इनका उपचार करना नितांत आवश्यक होता है अन्यथा यही साधारण सी बीमारी समय के साथ असाध्य रूप लेने लगती है। इन विकृतियों का प्रादुर्भाव आखिर होता कहां से है, क्यों होता है और कहां तक पहुंचता है। इस तरह के प्रश्न बहुत दिनों से मस्तिष्क में उठ रहे थे। आज इनके उत्तर तलाशने का मन बनाया।
आवास से निकला ही था कि चिकित्सा जगत से जुडे जाने माने अस्थिरोग विशेषज्ञ डा. सतीश चौबे से सामना हो गया। वे बहुत दिनों से सहज संवाद की भाषा को सरल बनाये की जिद कर रहे थे। मुलाकात होते ही उन्होंने वही बात पुनः दोहराई। हमने तत्काल उनसे विशेष वार्तालाप हेतु समय निर्धारित कर लिया। निर्धारित समय पर हम उनके क्लीनिक पर पहुंच गये। रिसेप्शन पर बैठे व्यक्ति ने हमें उनके आलीशान चैम्बर तक पहुंचाया। आत्मीयता भरे अभिवादन के साथ उन्होंने कुशलक्षेम पूछी और बताई। मस्तिष्क में उठ रहे प्रश्नों का उत्तर तलाशने की नियत से हमने चर्चा के विषय को अपनी जिग्यासा की ओर मोड दिया। शरीर विज्ञान के सिद्धान्तों की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि हड्डियों के ढांचे की तरह ही हमारे देश के संवैधानिक की संरचना है। शरीर में जब संतुलन की स्थिति से अधिक आवश्यक तत्वों का क्षरण होने लगता है तब टाक्सिन की मात्र बढने लगती है। हड्डियां टेढी होने लगतीं है, कमजोर होने लगतीं है, जोडों में दर्द होने लगता है, जैसी अनेक व्याधियों के प्रारम्भ होने के संकेत मिलने लगते हैं। ऐसी स्थिति में किसी विशेषज्ञ से तत्काल इलाज करवाना चाहिये अन्यथा समय के साथ रोग बढता हुआ लाइलाज हो जाता है। ऐसा ही हमारे देश के संवैधानिक ढांचे के साथ भी हो रहा है। संवैधिनिक स्वरूप का निर्माण तात्कालिक परिस्थितियों में किया गया था। समय के साथ मान्यतायें, सिद्धान्त और आदर्श परिवर्तित होते चले गये। नियम, कानून और अनुशासन की परिभाषायें आज भी रूढियों की तरह व्यवस्था को जकडे हुए है। स्वाधीनता के समय की परिस्थितियों को आज भी वोट बैंक के आइने में यथावत देखा जा रहा है। बात हम इक्कीसवीं सदी की करते हैं परन्तु मैकाले की शिक्षा पद्धति का अनुशरण करने करते हुए। समस्याओं को रेखांकित करने वाले उनके वक्तव्य को समाधान की ओर मोडते हुए हमने उनके विचार जानने चाहे। चिकित्सा विज्ञान की दुहाई देते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान में लाइलाज होने की दिशा में बढती इस बीमारी के लिए एक बडे आपरेशन की जरूरत है। इस कष्टसाध्य आपरेशन में निश्चित ही कुछ मौकापरस्त स्वार्थी लोगों की चीखों गूंजेगी।
वातावरण को करुणामय बनने का प्रयास किया जायेगा। अमानवीय कृत्य करने वाले लोग मानवता की दुहाई पर विश्वमंच तक जाने की कोशिश करेंगे। विदेशों में बैठे उनके आकाओं का चेहरा भी इस बौखलाहच में बेनकाब होगा। इस आपरेशन के लिए दृढ इच्छा शक्ति से सरकारी पहल, राष्ट्रवादी लोगों का खुला समर्थन और तुष्टीकरण से वोट बैंक की चालें चलने वालों के षडयंत्र का पर्दाफाश करने की महती आवश्यकता होगी। तभी एक देश, एक कानून, की औषधि से टाक्सिन को समाप्त किया जा सकेगा। वर्तमान समय में तेजी से बढती जनसंख्या के मध्य जातिवादी, भाषावादी, क्षेत्रवादी भावनाओं को नकारात्मक दिशा में हवा देकर चन्द लोग व्यक्तिगत स्वार्थपूर्ति में जुटे हुये हैं। अल्पसंख्यक से बहुसंख्यक होने की स्थिति में पहुंचने वाले खास वर्ग को आकर्षित करने के प्रयास बंद करने ही होंगे। राष्ट्रहित की कीमत पर अस्वीकार होना चाहिये अल्पसंख्यक संरक्षण।
उनके स्वर में आक्रोश का अनुपात बढता ही जा रहा था। देश की संवैधानिक संरचना, संरचना की प्रक्रिया और प्रक्रिया के दौरान विशेषाधिकार के प्रयोग को उन्होंने बिन्दुवार विश्लेषित किया। हमेशा मुस्कुराते रहने वाले चेहरे पर क्रोध मिश्रित पीडा के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे। चर्चा चल ही रही थी कि उनके चैम्बर में सफेद एप्रेनधारी चिकित्सक ने प्रवेश करते हुए एक गम्भीर मरीज के आने की सूचना दी। उन्होंने हमारी ओर देखा तो हमने इस विषय पर मंथन हेतु निकट भविष्य में बैठने का आश्वासन देकर अनुमति मांगी, ताकि गम्भीर मरीज को वरिष्ठ चिकित्सक की सेवायें उपलब्ध हो सकें। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। जयहिंद।
Dr. Ravindra Arjariya
Accredited Journalist
for cont. -
dr.ravindra.arjariya@gmail.com
ravindra.arjariya@gmail.com
ravindra.arjariya@yahoo.com
+91 9425146253
राष्ट्रहित की कीमत पर अस्वीकार होना चाहिये अल्पसंख्यक संरक्षण
डा. रवीन्द्र अरजरिया
विकृतियों का बाहुल्य होते ही बीमारियां पैदा होने लगतीं हैं। समय रहते इनका उपचार करना नितांत आवश्यक होता है अन्यथा यही साधारण सी बीमारी समय के साथ असाध्य रूप लेने लगती है। इन विकृतियों का प्रादुर्भाव आखिर होता कहां से है, क्यों होता है और कहां तक पहुंचता है। इस तरह के प्रश्न बहुत दिनों से मस्तिष्क में उठ रहे थे। आज इनके उत्तर तलाशने का मन बनाया।
आवास से निकला ही था कि चिकित्सा जगत से जुडे जाने माने अस्थिरोग विशेषज्ञ डा. सतीश चौबे से सामना हो गया। वे बहुत दिनों से सहज संवाद की भाषा को सरल बनाये की जिद कर रहे थे। मुलाकात होते ही उन्होंने वही बात पुनः दोहराई। हमने तत्काल उनसे विशेष वार्तालाप हेतु समय निर्धारित कर लिया। निर्धारित समय पर हम उनके क्लीनिक पर पहुंच गये। रिसेप्शन पर बैठे व्यक्ति ने हमें उनके आलीशान चैम्बर तक पहुंचाया। आत्मीयता भरे अभिवादन के साथ उन्होंने कुशलक्षेम पूछी और बताई। मस्तिष्क में उठ रहे प्रश्नों का उत्तर तलाशने की नियत से हमने चर्चा के विषय को अपनी जिग्यासा की ओर मोड दिया। शरीर विज्ञान के सिद्धान्तों की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि हड्डियों के ढांचे की तरह ही हमारे देश के संवैधानिक की संरचना है। शरीर में जब संतुलन की स्थिति से अधिक आवश्यक तत्वों का क्षरण होने लगता है तब टाक्सिन की मात्र बढने लगती है। हड्डियां टेढी होने लगतीं है, कमजोर होने लगतीं है, जोडों में दर्द होने लगता है, जैसी अनेक व्याधियों के प्रारम्भ होने के संकेत मिलने लगते हैं। ऐसी स्थिति में किसी विशेषज्ञ से तत्काल इलाज करवाना चाहिये अन्यथा समय के साथ रोग बढता हुआ लाइलाज हो जाता है। ऐसा ही हमारे देश के संवैधानिक ढांचे के साथ भी हो रहा है। संवैधिनिक स्वरूप का निर्माण तात्कालिक परिस्थितियों में किया गया था। समय के साथ मान्यतायें, सिद्धान्त और आदर्श परिवर्तित होते चले गये। नियम, कानून और अनुशासन की परिभाषायें आज भी रूढियों की तरह व्यवस्था को जकडे हुए है। स्वाधीनता के समय की परिस्थितियों को आज भी वोट बैंक के आइने में यथावत देखा जा रहा है। बात हम इक्कीसवीं सदी की करते हैं परन्तु मैकाले की शिक्षा पद्धति का अनुशरण करने करते हुए। समस्याओं को रेखांकित करने वाले उनके वक्तव्य को समाधान की ओर मोडते हुए हमने उनके विचार जानने चाहे। चिकित्सा विज्ञान की दुहाई देते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान में लाइलाज होने की दिशा में बढती इस बीमारी के लिए एक बडे आपरेशन की जरूरत है। इस कष्टसाध्य आपरेशन में निश्चित ही कुछ मौकापरस्त स्वार्थी लोगों की चीखों गूंजेगी।
वातावरण को करुणामय बनने का प्रयास किया जायेगा। अमानवीय कृत्य करने वाले लोग मानवता की दुहाई पर विश्वमंच तक जाने की कोशिश करेंगे। विदेशों में बैठे उनके आकाओं का चेहरा भी इस बौखलाहच में बेनकाब होगा। इस आपरेशन के लिए दृढ इच्छा शक्ति से सरकारी पहल, राष्ट्रवादी लोगों का खुला समर्थन और तुष्टीकरण से वोट बैंक की चालें चलने वालों के षडयंत्र का पर्दाफाश करने की महती आवश्यकता होगी। तभी एक देश, एक कानून, की औषधि से टाक्सिन को समाप्त किया जा सकेगा। वर्तमान समय में तेजी से बढती जनसंख्या के मध्य जातिवादी, भाषावादी, क्षेत्रवादी भावनाओं को नकारात्मक दिशा में हवा देकर चन्द लोग व्यक्तिगत स्वार्थपूर्ति में जुटे हुये हैं। अल्पसंख्यक से बहुसंख्यक होने की स्थिति में पहुंचने वाले खास वर्ग को आकर्षित करने के प्रयास बंद करने ही होंगे। राष्ट्रहित की कीमत पर अस्वीकार होना चाहिये अल्पसंख्यक संरक्षण।
उनके स्वर में आक्रोश का अनुपात बढता ही जा रहा था। देश की संवैधानिक संरचना, संरचना की प्रक्रिया और प्रक्रिया के दौरान विशेषाधिकार के प्रयोग को उन्होंने बिन्दुवार विश्लेषित किया। हमेशा मुस्कुराते रहने वाले चेहरे पर क्रोध मिश्रित पीडा के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे। चर्चा चल ही रही थी कि उनके चैम्बर में सफेद एप्रेनधारी चिकित्सक ने प्रवेश करते हुए एक गम्भीर मरीज के आने की सूचना दी। उन्होंने हमारी ओर देखा तो हमने इस विषय पर मंथन हेतु निकट भविष्य में बैठने का आश्वासन देकर अनुमति मांगी, ताकि गम्भीर मरीज को वरिष्ठ चिकित्सक की सेवायें उपलब्ध हो सकें। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। जयहिंद।
Dr. Ravindra Arjariya
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