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..हिन्दी ,  हिन्दू और  हिन्दुस्तान ..

जिस देश में हिन्दी भाषी जनता अधिक हो, जिस देश में हिन्दू  धर्म के लोग अधिक रहते हों, जिस देश का नाम ही हिन्दुस्तान हो, उस देश को हिन्दी   दिवस  मनाने की आवश्‍यकता  हो रही है, क्या यह  सही  है?  यदि सही है तो चिंता का विषय है, यदि सही में चिंता का विषय है  तो कहीं चिता  का न बन जाय। हिन्दी  के प्रति यदि ऐसा  ही उपेक्षित भाव रहा मेरे हिन्दुस्तान के लोगों के मन में तो हिन्दी  की चिता जलने  में  कोई  देर  नहीं,  इसके  खात्‍मा  में  कोई  देर  नहीं, क्‍योंकि चिता जलाने वाले  अपने  ही  होते हैं,  कोई और  नहीं। 
कहने का अर्थ यह  है  कि  आज 14 सितम्बर को जो  हम  हिन्दी  दिवस  मनाते हैं, इस दिवस की आवश्यकता क्यों पड़ी? जब हम हर  दिवस  पर हिन्दीं  को इज्जत दें,  हिन्दी  से  प्यार  करें,  हिन्दी  को हिन्दुस्तान से जोड़ कर देखें तो क्यों आवश्यकता पड़ेगी इस पर साल भर में एक बार  चिंतन करने की? क्यों आवश्यकता पड़  रही है इस पर साल भर में एक बार  गोष्ठियां व परिचर्चा करने की? इसके  लिए कौन जिम्मेदार हैं? इसके  लिए  जिम्‍मेदार हमारे  ही  लोग हैं, इस  चिंता  को  बढ़ाने  के लिए भी  हम  ही  लोग जिम्मेदार हैं,  जो हिन्दी  बोलने पर  अपनी पतिष्ठा  को कम  और अंग्रेजी  बोलने पर  अपनी  प्रतिष्ठा  को  ज्यादा दर्शाने का  प्रयास करते  हैं। उदाहरण के लिए यदि हम देखें, कई बार तो ऐसा होता  है  कि यदि  हम अपने किसी पहाड़ी  भाई से भी पहाड़ी भाषा में  सवांद करें  तो  वे  तब  भी  अंग्रेजी में  जवाब देते हैं,  और  अंग्रेजी में सवांद स्थापित करने  की  कोशिश करते हैं,  भले  ही  उनकी  वह  कोशिश  भी  सवांद  के  रूप में अपूर्ण  होती  है,  क्योंकि उनकी वह भाषा  भी  परिपूर्ण नहीं होती, लेकिन प्रतिष्ठा  दर्शाने में उनका प्रयास  पूर्ण  होता  है। 
मै  मानता  हूं  कि वर्तमान युग आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक और रोजगार को लेकर वैश्विक युग है।  इसलिए वैश्विक स्तर  पर  अपने आप को  बनाये रखना आवश्यक  है, और  इसके  लिए  वैश्विक स्तर  पर  सवांद होना भी आवश्यक है, वैश्विक स्‍तर  पर  सवांद स्थापित करने के  लिए  वैश्विक स्‍तर  की  भाषा का प्रयोग  करना  आवश्‍यक  है। लेकिन अपनी  पहिचान के  लिए  अपना  अस्तित्व बनाये रखना, अपनी जड़े मजबूत  रखना  भी आवश्यक  है। हिन्दी   हिन्दुस्तान  की जड़  है,  यदि  हिन्दी   कमजोर  होगी  तो  हिन्दुस्तान  की  जड़  कमजोर   होगी।
हमे  यदि  इस दिवस  के महत्व को  समझना  है  तो  हिन्दी   और  हिन्दुस्तान के  महत्व   को  समझना  होगा, और  यदि  हम  हिन्दी  - हिन्दुस्तान  के  महत्व को  समझ  गये  तो  इस दिवस  की  आवश्यकता  ही  नहीं  होगी,  क्योंकि फिर  तो  हमारा  हर  दिवस  हिन्दी  दिवस  होगा।
मेरे अपने सभी  हिन्दी   भाषी मित्रों  से  निवेदन  है कि  हम  हिन्दी   को  समझें,  हिन्दुस्तान के लिए इसके महत्व पर  मनन करें,  प्रत्येक दिन  कोशिश  करें  कि  हम  अपने काम-काजों  को हिन्दी    में  करें, सवांद  भी  हिन्दी  में  करें,  कुछ  नया साहित्य   भी  सृजन करें  तो  हिन्दी  में  ही  करने का  प्रयास  करें। तभी हिन्दी   दिवस का  सार्थक  महत्व  सामने  आयेगा  अन्यथा नहीं।

डॉ0 राकेश रयाल

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