भीतर विष लेकिन बाहर से हाथ मिलाकर हँसते लोग।
आँखो मे लेकर मिलते हैं नफरत के मूलदस्ते लोग।।
औरो के गुण दोष हमेषा छलनी में से छान रहे।
पर अपने गुण दोष कसौटी पर जा कभी न कसते लोग ।।
शीतल जल से भरी घटा तू कब बरसेगी धरती पर ।
जेठ दुपहरी से झुलसाए, जल को आज तरसते लोग ।।
कहने को तो लाखो में भी बिकने को तैयार न हो ।
अवसर मिलने पर बिक जाते कौड़ी से भी सस्ते लोग ।।
सूरज चढता है तो मुख पर और मुखौटे होते हैं ।
सूरज छिपता है तो मुख पर और मुखौटे कसते लोग ।।
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