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पितृ विसर्जन के लिए हरिद्वार को मोक्षस्थल कहा गया है। बिहार में गया और हरिद्वार में श्री नारायण भगवन का स्थल, नारायणी शिला है, जहाँ पितृपक्ष में तर्पण कर देने से पूर्वजों को आत्मिक शांति प्राप्त होती है। रेलवे स्टेशन के निकट 10 मिनट की दूरी पर नारायणी शिला स्थित है।



ब्रह्म कुण्ड स्नान का महात्म्य


युगों-युगों से सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण सोमवती अमावस्या, बैशाखी, मकर संक्रांति, अर्द्धकुम्भ तथा कुम्भ पर्व हर की पैड़ी पर गंगा पर्व के सन्दर्भ में कहा जाता है । कि दैत्यों व असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए मंदराचल पर्वत को मंथनी व वासुकि नाम को रस्सी के रुप में समुद्र मंथन कर अमृत निकाला ।


अमृत के लोभवश दैत्यों व देवताओं में झगड़ा होने लगा और तभी इन्द्र के पुत्र जयंत अमृत कुंभ ले दौड़ पड़े । दौड़ते -दौड़ते चार स्थानों पर अमृत कुंभ रखे जाने से अमृत की बूंदे छलक गई । इन्हीं चार स्थानों हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन , एवं नासिक को पवित्र स्थान के रुप में मान्यता मिली और बारह वर्षों प्श्चात प्रत्येक स्थान पर कुंभ पर्व मनाया जाने लगा । श्रद्धा भक्ति से ओत-प्रोत इस पर्व के आरम्भ का समय अज्ञात है परन्तु प्राचीन काल से ही साधु, वैरागी तथा भक्तजनों का समूह गंगा के तट पर एकत्र होता है ।
कुंभ वर्ष की याद ताजा रखने के उद्देश्य से छह वर्ष पश्चात अर्द्धकुभ आयोजित किया जाता है । जो प्राणी सौ योजन दूर से ‘श्री गंगा’ का नाम लेता है वह सब पापों से मुक्त हो जाता है । ऐसी पौराणिक मान्यता है । कुंभ के अवसर पर दो महीने तक चारों तरफ हरिद्वार में आनंद, उल्लास तथा धर्मिक भावना का माहौल रहता है। अखाड़ों की साधु जमातें भव्य रुप से सड़क पर जुलूस के रुप में निकलती है ।
हरिद्वार में अनेकानेक यक्ष, भजन कीर्तन सूर्यास्त के प्श्चात गंगा जी की आरती देखते ही बनती है । तीर्थ यात्रियों की सेवा सहायता हेतु हर की पौड़ी पर पंड़ों की छतरियां हैं । पंड़ों का मुख्य कार्य पुराने यजमानों की नई पीढ़ी के धार्मिक अनुष्ठान तथा कर्मकाण्ड कराना है । ये पन्डागिरी का कार्य कई शताब्दी पुराना है यदि किसी तीर्थयात्री के प्राचीन पूर्व हरिद्वार आये हों तो उनके नाम-पते पंडों की बड़ी-बड़ी लाल बही खातों में मिल जाते हैं । अपने यजमानों के रहने का प्रवन्ध ये निःशुल्क करते हैं । तथा बदले में यजमानो द्वारा दी गई दक्षिणा ग्रहण करते हैं ।
ब्रह्कुण्ड के बराबर में अस्थि प्रवाह घाट भी है ।जहां विधि सहित पूजन-अर्चन कर अस्थि प्रवाह किया जाता है ।यहां अस्थि प्रवाह करने से मनुष्य को मोक्षप्राप्ति होती हे । राजा मानसिंह का अस्थि प्रवाह किया गया था ।


 

 

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