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क्या यह,देवी देवताओं की आस्था, स्थान, नाम और पौराणिक स्वरूप के साथ छेड़खानी नही है?



 डुंडा/उत्तरकाशी:



 जहाँ डुंडा गाँव की देवी माँ भगवती वेणुका की आस्था, पहचान, नाम को छुपानें और देवी वेणुका के स्थान पर गढ़ देवी सिद्धपीठ माँ भगवती रेणुका के नाम से मेला करना दोनों देवियों को अप्रसन्न करनें की शुरुआत है, वहीं गाँव, क्षेत्र और समाज के लिए भी बहुत बड़ा अभिशाप है। 

24फरवरी 2018 को पूर्व प्रमुख कनकपाल सिंह परमार नें तीन दिवसीय विकास एवं सांस्कृतिक मेले की नींव रखी, पहली बार विकास एवं सांस्कृतिक मेले के मुख्य अथिति पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और विशिष्ट अतिथि पूर्व विधायक विजयपाल सिंह सजवान रहे।


बेशक पहली बार गाँव, क्षेत्र के मेलार्थियों नें विकास एवं सांस्कृतिक मेले की नींव में देव डोलियों के नृत्य, पांडव चक्रव्यूह मंचन के साथ चरखी, कृषि, उद्यान, ग्राम्य, समाज कल्याण, स्वास्थ्य, और रोजगार कई विभागों के स्टॉल देखे होंगे। लेकिन आज के परिदृश्य में सामाजिक चिंतक, सामाजिक कार्यकर्ता, साहित्यकार, दूर दृष्टा विजन रखनें वाले तमाम बुद्धिजीवी इस तरह के मंचन को विकास एवं संस्कृति की झूठी पटकथा पर लिखा जानें वाला राजनीतिक चक्रव्यूह मंचन बताते नहीं थक रहे हैं। 


डुंडा मेला समिति देवी भगवती वेणुका के रूप स्वरूप, पहचान के साथ छेड़खानी ही नहीं बल्कि सिद्धपीठ गढ़ देवी रेणुका के पौराणिक मेले और माँ के स्वरूप, स्थान, पहचान को राजनीतिक स्वार्थ के चलते जहाँ नाम बदलवाकर भुलानें की भूल करते देखी सुनी जा रही है। समाज के बीच यह मेला चर्चा का विषय बना है, कुछ लोगों का कहना है कि किसी व्यक्ति व देव स्थान, नाम, आस्था, स्वरूप और इतिहास के साथ छेड़खानी भविष्य में गाँव, क्षेत्र, समाज की उन्नति, प्रगति, हरियाली, खुशहाली के लिए अच्छा संकेत नहीं होती है। इस तरह की संस्कृति को जो माँ वेणुका देवी के स्थान पर माँ रेणुका के नाम से विकास एवं सांस्कृतिक मेला करना और उसके बाद उस मेले को जनपद स्थापना दिवस के नाम से प्रचलित करना मेला संस्कृति, समाज, सौहार्द को मैला करनें जैसा है।


तीन दिवसीय विकास एवं सांस्कृतिक मेला 2018 के शुरू होते ही तुरंत कोरोना जैसी महामारी के चलते दो सालों तक सादगी से संपन्न होता आया, इसी बीच विकास एवं सांस्कृतिक मेले को जनपद स्थापना दिवस का नाम देकर 5दिवसीय भी किया गया, लेकिन अबकी बार मेला समिति 2025 में मेले को भव्य दिव्य बनानें के लिए सात दिवसीय करनें जा रही है। मेला समिति द्वारा समाज, शासन, प्रशासन के बीच इस तरह के अपभ्रंश फैलाकर जहाँ देवी के नाम, स्थान, आस्था, विकास और पौराणिक स्वरूप के परिवर्तन को दर्शानें की कोशिश की जा रही है। 


पौराणिक देव नामों के साथ छेड़खानी और विकास संस्कृति से जनपद स्थापना की झूठी पटकथा बनाकर समाज को धोखे में रखना जन-प्रतिनिधियों के साथ शासन-प्रशासन को इस तरह के आयोजनों पर त्वरित विचार कर संज्ञान लेना चाहिए। राजनीतिक लाभ के लिए इस तरह के भ्रम, समाज को जोड़ने का नहीं तोड़नें का काम करते हैं, देवी-देवताओं की आस्था, नाम, पहचान, स्वरूप और सिद्धपीठों के साथ राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए छेड़खानी वर्तमान की चाकाचौंद में भावी पीढ़ियों के लिए अच्छे संकेत नहीं समझे जायेंगे।

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