देश के दो राज्यों में चुनावों का बिगुल फूंका जा चुका है। जम्मू-कश्मीर राज्य में निर्वाचन की घोषणा के साथ ही अतीत की यादें ताजा हो जातीं है जब सेना के जवान मतपेटियों के साथ अपने गन्तव्य की ओर प्रस्थान करते थे तब सीमापार के षड़यंत्र को अमली जामा पहनाने वाले मीरजाफरों की फौज ने अपने खास सिपाहसालारों की दम पर न केवल पथराव कराया था बल्कि बेखौफ झूमाझटकी भी करने का दुस्साहस भी किया था।
सेना के अधिकारी द्वारा स्वयं की सुरक्षा तथा राष्ट्रीय सम्पत्ति के संरक्षण हेतु जब एक आतंकी को जीप में बांधकर सुनियोजित भीड से निकलने का प्रयास किया तब उसे सरकारी डंडे द्वारा लहूलुहान करने की कोशिशें की गईं।
वह मंजर आज भी जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन हालातों की दु:खद यादों को ताजा कर देता है।
वहां दस वर्षो बाद हुए चुनावी ऐलान में पूरी तस्वीर बदली हुई है। अब विशेष राज्य का दर्जा देने वाला आर्टिकल 370 हट चुका है।
लद्दाख को अलग करके जम्मू-कश्मीर को केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया है। नवीन परिसीमन के बाद 7 सीटें बढ चुकीं हैं।
आंकडों के आइने पर नजर डालें तो सन् 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में कुल 111 सीटें थी जिनमें से 24 सीटें पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर के लिए आरक्षित रहीं थी, जहां चुनाव नहीं हुए, शेष 87 पर चुनाव हुआ था। इन 87 सीटों में लद्दाख की 4 सीटें भी शामिल थीं।
तब पीडीपी को 28 सीटें मिलीं थी जिसने बहुमत हेतु भाजपा की 25 सीटों के साथ गठबंधन किया और सरकार बनाई। यह सरकार लगभग 18 माह ही चल सकी। दौनों राजनैतिक दलों की नीतिगत साझेदारी टूटते ही जून 2018 में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। अगले वर्ष 5 अगस्त 2019 को आर्टिकल 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग हिस्सों में विभक्त करके उन्हें केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया। जम्मू-कश्मीर मेें विधानसभा बनी लेकिन लद्दाख में नहीं बनी। इसी क्रम में परिसीमन आयोग ने 5 मई 2022 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें जम्मू-कश्मीर की 107 सीटों को बढाकर 114 कर दिया गया। नये परिसीमन में जम्मू के खाते में 43 सीटें तथा कश्मीर के खाते में 47 सीटें आईं हैं। इस बार यहां पर भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, पीडीपी तथा नेशनल कांफ्रेंस के साथ-साथ जम्मू रिपब्लिक पार्टी, जम्मू कश्मीर पिपुल मूमेन्ट, सीपीआई, सीपीआई(एम) सहित एक दर्जन राजनैतिक दल अपने प्रत्याशी मैदान में उतार सकते हैं। वर्तमान में हिन्दू बाहुल्य जम्मू में भाजपा और कांग्रेस अपने वर्चस्व को बढाने में लगी है जबकि मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर में पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस में रस्साकशी चल रही है। ज्ञातव्य है कि तब मार्च 2024 को लोकसभा चुनावों की घोषणा के दौरान मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने स्पष्ट किया था कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने सुरक्षात्मक कारकों को रेखांकित करते हुए दौनों चुनावों को एक साथ कराने से मनाकर दिया है। इसी श्रंखला में यह भी उल्लेख करना आवश्यक है कि देश के उच्चतम न्यायालय की 5 न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने दिसम्बर 2023 में आर्टिकल 370 पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 1 और 370 से स्पष्ट है कि जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। भारतीय संविधान के सभी प्राविधान वहां लागू हो सकते हैं। इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय की उक्त पीठ ने 30 सितम्बर 2024 तक विधानसभा चुनाव कराने के आदेश भी दिये थे जिसके तहत विगत शुक्रवार को मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने अपने सहयोगी ज्ञानेश कुमार तथा डा. सुखवीर सिंह संधू की मौजूदगी में जम्मू-कश्मीर सहित हरियाणा विधानसभा के चुनावों की भी घोषणा कर दी। जम्मू-कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों पर तीन चरणों में तथा हरियाणा की भी 90 सीटों पर एक चरण में मतदान होगा जबकि दौनों राज्यों के परिणामों की घोषणा 4 अक्टूबर को एक साथ की जायेगी। जम्मू-कश्मीर में 18 सितम्बर को 24 सीटों पर, 25 अक्टूबर को 26 सीटों पर तथा 1 अक्टूबर को 40 सीटों पर मतदान होगा जबकि हरियाणा की सभी 90 सीटों पर 1 अक्टूबर को ही मतदान होगा। हरियाणा के राजनैतिक परिदृश्य में रेखांकित करने योग्य आधारभूत बदलाव नहीं आये हैं। यहां पर भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, जननायक जनता पार्टी, इंडियन नेशनल लोकदल, जजपा, आम आदमी पार्टी सहित अन्य दल भी अपनी किस्मत आजमाने हेतु प्रत्याशियों को मैदान में उतारने की तैयारी में हैं। लोकसभा चुनावों के जनादेश को देखते हुए आईएनडीआईए गठबंधन बेहद उत्साहित है जबकि एनडीए अपने खोयी हुई लोकप्रियता को वापिस लाने के लिए जी-तोड कोशिश कर रहा है। हरियाणा के चुनावों को प्रभावित करने के लिए पंजाब की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी पूरी तरह जुट गई है। खालिस्तान समर्थकों की एक बडी जमात सक्रिय हो चुकी है जो किसानों के वेष में नये पैतरे आजमाने हेतु अपने सीमापार के आकाओं के संकेत की प्रतीक्षा में है। पंजाब से ऐसा ही प्रयास हिमाचल के चुनावों में किया गया था जब दो राज्यों के मध्य अधिकारों की जंग छिड गई थी। दौनों राज्यों के चुनावी काल में पाकिस्तान के रास्ते चीनी और अमेरिकी साजिशें देश के भितरघातियों के माध्यम से अपने करतब दिखाने की पूरी कोशिश करेंगी। जम्मूृ-कश्मीर में पाकिस्तानी कमांडोज़ का आतंकियों के लबादे में हमले करना, बंगाल के रास्ते रोहिंग्याओं सहित घुसपैठियों की आपराधिक हरकतें करना, लोकसभा-राज्यसभा में विपक्ष व्दारा अशोभनीय कृत्य करना, खालिस्तान समर्थकों का क्षेत्र में आतंक फैलाना आदि कुछ ऐसे कारक हैं जिनके आधार पर यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि चुनाव काल में आयोग को रहना होगा बेहद सतर्क अन्यथा अप्रिय घटनाओं के लिए कमर कसकर बैठे भितरघातिये अपने आकाओं व्दारा निर्धारित किये गये हिंसक षडयंत्र को मूर्तरूप देने से नहीं चूकेंगे। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।
Dr. Ravindra Arjariya
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