जनपद में बढ़ती मुस्लिम आबादी भविष्य में वनभूलपुरा को तो नहीं दोहराएगी
काशी विश्वनाथ और मां गंगा के किनारे बसी सुंदर धार्मिक नगरी विभिन्न देवी देवताओं के मंदिर, घंटियों, शंखों, आरती व भजन कीर्तनों के साथ नगर की शोभा बढ़ाते हैं। नगर में आपसी भाई–चारे से सभी लोग रह रहे हैं। लेकिन नगर में अंजान बाहरी व्यवसायियों व्यक्तियों की बढ़ती जनसंख्या नगर के वसिंदों को डरा रही है।
वहीं राजनीतिक वोट बैंक की घिनौनी राजनीति करनें वाले तमाम बड़े नेता, समाज चिंतक, सामाजिक कार्यकर्ता, समाज सेवकों नें आंख बंद कर मात्र 15 से 20 परिवारों के लिए अपनें राजनितिक कुर्सी के लिए मुस्लिम इबादतगाह के रुप में दिलवाई।
पूर्व में राजनीति करनें व अपनी राजनीतिक पैठ बनानें के लिए मुट्ठी भर मुस्लिम परिवारों को इबादत गाह के रुप में दिलाया गया भू–भाग उत्तरकाशी की बढ़ती अलग–अलग मानसिकता वाली मुस्लिम आबादी के लिए इबादतगाह ही नहीं है।
बल्कि वनभूलपूरा जैसी घटना को अंजाम देंनें का प्रशिक्षण केंद्र मात्र न बन रहा हो। इसके लिए क्षेत्रीय जनता, मकान, दुकान, भवन, स्वामियों के साथ शासन–प्रशासन को कड़ी नजर रखनी चाहिए। ताकि भविष्य में बनभूलपुरा की गलती को आपसी भाई–चारे की आड़ में पुनः बड़ी भूल के रूप में उत्तरकाशी में भी न दोहराया जा सके।
शासन प्रशासन के साथ आस–पास के दुकानदार, समाज चिंतकों को आपसी तालमेल बनाकर उत्तरकाशी में विभिन्न व्यवसायों के रूप में बड़े पैमाने में आ रहे। उन रेड़ी, फड़, ठेली, दुकानदारों को नगरपालिका द्वारा मोटी रकम में दिए जा रहे अनुज्ञा की पूरी जानकारी रखी जानी चाहिए। ताकि कल की मुसीबतों को वक्त रहते आज ही रोका जा सके।
गंगोत्री, यमुनोत्री, पुरोला विधानसभा क्षेत्रों की आबादी उन जनप्रतिनिधियों नेताओं द्वारा आखिर क्यों बढ़ाई जा रही है। क्या उल्लिखित विधानसभाओं का वोट प्रतिशत वर्तमान में होते पलायन से कम होता दिखाई दे रहा है। अगर कम हो भी। रहा है। तो क्या पहाड़ के नेता बाहरी लोगों को लंबे समय तक स्थाई व्यवसाय देकर उनके वोटर कार्ड बनवाकर उनकी वोटों से विधानसभा क्षेत्र को बचाए रखना चाहते हैं।
क्योंकि पहाड़ों से बढ़ता पलायन आनें वाले भविष्य में विधानसभाओं के वोट बैंक के अनुपात को कम कर जिले की कुल विधानसभा क्षेत्रों की संख्या पर प्रभाव डालेगा। शायद यही वजह है। कि बाहरी लोगों को उत्तरकाशी ही नहीं बल्कि विभिन्न राज्यों में बड़ी रणनीति से दिग्गज नेताओं द्वारा धड़ल्ले से बसाए जानें का षडयंत्र चलाया जा रहा है।
वर्तमान महंगाई को ध्यान में रखते हुए। सबसे बड़ा प्रश्न पहाड़ी पलायन पर यह उठता है। कि पहाड़ी स्वास्थ, शिक्षा, रोजगार का रोना रोकर बाहर पलायन करता है। वहीं बाहरी व्यक्ति पहाड़ में रोजगार कर स्वस्थ, सुखी जीवन जी रहा है।
जबकि वर्तमान सरकार स्वरोजगार पैदा करनें के साथ–साथ पलायन को भी साधनें का प्रयास कर रही है।
लेकिन अफसोस है। कि सरकारी योजनाओं का लाभ मूल निवासी नहीं बल्कि वोट बैंक के मेहमान ज्यादा ले रहे हैं। आलम यह भी है। कि वनभूलपुरा में कई जोशी परिवार पलायन को मजबूर हो गए।
जनता भ्रष्ट नेताओं, जनप्रतिनिधियों व सरकारों की बाहरी वोट बैंक की राजनीति का जवाब कैसे देती है। यह देखने वाला विषय है। जनता मौन रहकर वोट की ताकत से ऐसे नेताओं का बहिष्कार करनें की बात करती है। जो वोट बैंक के लिए बाहरी लोगों को पहाड़ों की शांत वादियों में शह देने की बात करते हैं।
आज वोट बैंक की राजनीति करनें वाले नेताओं और उनको चुननें वाले उनके समर्थकों को ध्यान रखना चाहिए। कि कुमाऊं मंडल के हल्द्वानी के वनभूलपुरा में नेताओं की राजनीतिक वोट बैंक की एक छोटी सी भूल क्षेत्रीय जनता, क्षेत्रीय व्यवसायी, बुजुर्ग, महिला, बच्चे जवान, और पुलिस प्रशासन को ही ईंट–पत्थरों, लाठी–डंडों, कांच की बोतलें खाकर चुकानी पड़ी।
इतना ही नहीं सरकारी गाड़ियों की तोड़फोड़ के रुप में सरकार और राष्ट्र को आर्थिक नुकसान के रुप में भी झेलनें पड़ रही है। सरकार इस नुकसान की भरपाई किस रूप में करती है। यह सरकार ही तय करेगी। बनभूलपुरा में इतनेें उपद्रवियों को शह देने वाले तमाम नेता, समाजसेवी सब घरों में चैन की सांसें ले रहे थे। लेकिन पुलिस प्रशासन की सांसे वनभूलपुरा की भूल पर अटकी हुई थी।
यशपाल बिष्ट
उत्तरकाशी
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