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CULTURAL FESTIVALS SHOUL BE CONSERVED


ऋषिकेश-:

उत्तराखंड की देवभूमि ऋषिकेश में जहां देश के तमाम त्योहारों को सामूहिक रूप से मनाए जाने की परंपरा रही है वहीं लोक संस्कृति के पर्वों को भी लोगों ने लुप्त नहीं होने दिया खासतौर पर ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले पहाड़ मूल के लोग इन पर्वों को संजोए रखने के लिए शिद्दत के साथ जुटे हुए हैं इसकी झलक आज फूलदेई पर्व के दौरान देखने को मिली। 

गुरुवार को उत्तराखंड के सुदूरवर्ती पहाड़ी क्षेत्र के साथ बाल पर्व फूलदेई बड़े उत्साह के साथ मनाया गया। इस खास मौके पर फूलदेई क्षमा देई, द्वार भर भकार जैसे लोकगीत सुनने को मिले। अंतरराष्ट्रीय गढ़वाल महासभा के संस्थापक अध्यक्ष डॉ राजे सिंह नेगी ने उग्रसेन नगर स्थित अपने आवास/ सोसायटी में बच्चों के साथ प्रकृति का आभार प्रकट करने वाला लोकपर्व फूलदेई को बड़े धूमधाम से मनाया।

 ड़ॉ नेगी ने बताया कि उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्रों में चैत्र संक्रांति से फूलदेई का त्यौहार मनाने की परंपरा है। कुमाऊं और गढ़वाल के ज्यादातर इलाकों में आठ से नो दिन तक यह त्यौहार मनाया जाता है वहीं कुछ इलाकों में एक माह तक भी यह पर्व मनाने की परंपरा है बताया कि यह पर्व पूरे पर्वतीय आंचलों में धूमधाम से मनाया जाता है जो हमारे दिनचर्या, ऋतुओं और उसके वैज्ञानिक पक्ष से जुड़ा है किसी भी समाज के विकास के लिए वहां के रीति- रिवाज और लोक पर्वों का विशेष योगदान होता है.

 इस शुभ पर्व पर हम सबको अपने नोनीहालों से घर की देहलीज पर पुष्प वर्षा कराकर उन्हें शगुन तथा उपहार देखकर इस लोकपर्व को जीवंत रखने के प्रयास करने चाहिए। पिछले कुछ दशकों से हावी होती पश्चिमी सभ्यता के कारण उत्तराखंड ही नही अपितु सभी आंचलों में लोक त्यौहार, रीति रिवाज,लोक परम्पराओ पर असर पड़ रहा है। फूलदेई उत्तराखंड ही नही पूरे देश का एकमात्र ऐसा त्यौहार है जिसकी शुरुवात तो नोनिहाल करते है लेकिन इसका समापन बड़े बुजर्ग करते है यह संसार का एकमात्र बाल उत्सव है जो भारतीय संवत्सर की शुरुवात भी करता है और फूलों को भी महत्ता प्रदान करता है ये पहाड़ी जनमानस के भी ग्वाल बाल है जिन्होंने पूरी दुनिया को फूलो की महत्तता समझाते हुवे इन्हें देव चरणों मे अर्पित करने की कला सिखाई है।ऐसे में फूलदेई के प्रति इतना उत्साह संतोष देता है कि हमारी लोक संस्कृति और परम्पराए हमे अपनी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा देती है।

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