Halloween party ideas 2015

 




दुनिया में तेजी से फैल रहे आतंकवाद के जहर ने सृष्टि के समूचे स्वरूप को नष्ट करना शुरू कर दिया है। प्रकृति के साथ बेरहमी से हो रहे अत्याचार ने पर्यावरणीय असंतुलन को चरम की ओर अग्रसर किया है तो धरातली सम्पदा को हडपने की होड लगी दिख रही है। संतुलन के लिए स्थापित मापदण्ड अपने अस्तित्व की लडाई में लगभग हार से गये हैं। पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने वाले संस्थानों के अधिकारी कानूनी दावपेंचों से व्यक्तिगत उगाही करने में जुडे हैं। संवैधानिक व्यवस्था पर जहां अन्तर्राष्ट्रीय नियम हाशिये के बाहर पहुंचते जा रहे हैं वहीं अधिकांश देशों में अनियमिततायें खुलेआम नृत्य कर रहीं हैं। खनिज की खानें खतरनाक स्थिति तक पहुंच चुकीं हैं तो उत्खनन की दावानल विकराल होता जा रहा है। मशीनों के अंधाधुंद प्रयोग से होने वाले घातक प्रभाव परिलक्षित होने लगे हैं। मनमाने आचरण, स्वयं के लिए संग्रह की प्रवृत्ति और अहंकार का बाहुल्य एक साथ आक्रमण करने में जुटे हैं। ऐसे में निरीह लोगों की विरादरी ही अनुशासन के डंडे का शिकार हो रही है। कानून माफियों की जमात असत्य को सत्य साबित करके आतंकियों को अभयदान देने में जुटी है। आतंक का यह फैलाव केवल साम्प्रदायिक साम्राज्य के विस्तार तक ही सीमित नहीं है बल्कि उसके अन्तर्गत खनिज माफियों, पर्यावरण माफियों, चिकित्सा माफिया, कृषि माफिया, व्यापार माफिया, शिक्षा माफिया, रोजगार माफिया, कार्यालय माफिया, दंगा माफिया जैसे अनगिनत वर्गीकरण आते जा रहे है। हर क्षेत्र में ठेकेदार मौजूद हैं। कुछ में अन्दर के लोगों को ही दलाली में महारत हासिल है तो कुछ में बाहर टहलकर अपने मुवक्किल ढूंढते लोग मिल जायेंगे। वर्तमान में रिश्वत तो काम होने की एक अघोषित गारंटी बन गई है। यह देश-दुनिया में पर्दे के पीछे का एक ऐसा कटुसत्य है जो लाख चाहने के बाद भी समाप्त नहीं हो रहा है। खाने और दिखाने वाले दांतों की तरह सिध्दान्त और व्यवहार का संबंध एक ही सिक्के के दो पहलू बन चुके हैं जिनमें से एक की अनुपस्थिति दूसरे की उपस्थिति का कारक नहीं बन सकती। सामान्य बोलचाल में आतंक को केवल साम्प्रदायिक संख्या बढाने वालों की क्रूर जमात के रूप में ही परिभाषित किया जाता है जिसमें केवल और केवल एक ही वर्ग विशेष की मानसिकता दिखाई पडती है। वास्तविकता तो यह है कि जहां पर भी दबंगी से अन्याय, अत्याचार और अहंकार का सरेआम प्रदर्शन होता है, वहीं आतंक की आग से मानवता पिघलने लगती है। आज वैश्विकस्तर पर इजरायल व्दारा साम्प्रदायिक माफियों के संगठित गिरोहों की जमात को मुंहतोड जबाब दिया जा रहा है। इस प्रतिक्रियात्मक कार्यवाही पर झंडे के नाम पर डंडा चलाने वाले देशों का संगठन बौखला गया है। उनके व्दारा धार्मिक उन्माद फैलाने का काम तेज कर दिया गया है। एक ही विचारधारा के अनुयायी अब ऊपर वाले की न सुनकर नीचे वाले की सुनने लगे हैं। सर्वोच्च सत्ता यानी परमात्मा की मंशा जाने बिना ही हायतोबा मचाई जा रही है। इजरायल की संकल्प शक्ति को तोडने के लिए साम, दाम, दण्ड और भेद के हथकण्डों का प्रहार किया जा रहा है। मीरजाफर जैसे भितरघातियों को चांदी के सिक्कों की चमक से अंधा किया जा रहा है ताकि किले के बंद दरवाजों के अन्दर ही शक्ति को समाप्त किया जा सके। अनगिनत निर्दोषों की निर्मम हत्या पर जश्न मनाने वाले आज हत्यारों के बह रहे खून पर मातम मना रहे हैं। उनके मुंह से खूनी आंसू बहने लगे हैं। मानवता की दुहाई दी जा रही है। अस्पतालों, स्कूलों, यतीमखानों, इबादतगाहों में बने षडयंत्रकारियों के अड्डों पर आक्रमण होते ही चीख पुकार मच रही है। ऐसे में बेंजामिन नेतन्याहू को उसके घर में ही घेरने के लिए फितरा और जकात के पैसों को पानी की तरह बहाना शुरू कर दिया गया है। बंधकों की रिहाई की मांग को हथियार बनाकर हमले करने का षडयंत्र पनपने लगा है। विगत 7 अक्टूबर को 1200 से अधिक लोगों की निर्मम हत्या में यदि 240 और नाम जुड जाते तो क्या इन 240 की वापसी के लिए परमात्मा का घेराव, उसके विरुध्द प्रदर्शन और उससे इस्तीफे की मांग की जाती? अपहरण करके मुराद पूरी करने की फैशन अब आतंक के कवच के रूप में सामने आ चुका है। देश के अन्दर ही देखें तो विगत 8 दिसम्बर1989 को वीपी सिंह की सरकार के दौरान गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद का अपहरण किया गया था जिसके एवज में भारत सरकार ने खतरनाक आंतकी हामिद शेख, शेर खां, जावेद अहमद जरगर, नूर मोहम्मद कलवल और मोहम्मद अल्ताफ बट को रिहा किया था। इसी तरह विगत 24 दिसम्बर 1999 को कंधार विमान अपहरण काण्ड सामने आया। इण्डियन एयर लाइंस के एक विमान को नेपाल से हाईजैक किया गया था जिसमें 190 लोग सवार थे। इस बार मौलाना मसूद अजहर, उमर शेख और अहमद जरगर को छुडाया गया था। जो आने वाले समय में अनगिनत हत्याओं के लिए जिम्मेवार ही नहीं बना बल्कि उसकी षडयंत्रकारी गतिविधियां निरंतर जारी हैं। साम्प्रदायक आतंक की जडों में स्वार्थ का पानी, विलासता की खाद और जन्नत की औषधियां डाली जा रही हैं। इन्हीं पोषक विषयुक्त तत्वों के आधार पर समूची दुनिया में उम्माद, कट्टरता और क्रूरता जैसे फल विकसित किये जा रहे हैं। मजहब खतरे में है, हमें दुनिया पर राज करना है, काफिरों को खत्म करना है, उनके घरों में अपनी औलादों को पैदा करना है, डंडे के बल पर झंडे के नीचे आने की हांक लगाना है, जैसे मनमाने फरमान जारी किये जा रहे हैं। हलाल सार्टीफीकेट की तरह अनेक अव्यवस्थायें पैदा की जा रहीं है जिन्हें सफेदपोशों की एक जमात स्वाधीनता के समय से ही समर्थन देती रही है। अंग्रेजों के व्दारा भारत को धर्म के आधार पर बंटा गया था। कश्मीर को भी वैमनुष्यता की पौधशाला के रूप में स्थापित किया गया था। गोरों के षडयंत्रों से ही इजरायल और फिलिस्तीन के बीच हमास जैसे ठेकेदार पैदा हो रहे हैं। हथियार माफियों की देन है गाजा काण्ड। इबादत, मजहब और सुकून के लिए हथियारों की फसलें बेकार होतीं हैं। ऐसे में अपनी पैदावार को बेचने के लिए बाजार तैयार करना भी तो व्यापार नीति का एक अंग है, जो पूरे संसार में तेजी से फैल रहा है। आतंक का खात्मे, अहंकार की समाप्ति और भाईचारे का साम्राज्य स्थापित होते ही घातक विस्फोटों की उपयोगिता ही समाप्त हो जायेगी। तब विध्वंशक निर्माण इकाइयों में स्वमेव ही ताला लगने की स्थिति बनते देर नहीं लगेगी। ऐसा न चाहने वाले राष्ट्र ही मानवता मुखौटा ओढकर रंगे सियार बने चिल्लाते घूम रहे हैं। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

 

 

Dr. Ravindra Arjariya
Accredited Journalist
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dr.ravindra.arjariya@gmail.com



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