डा. रवीन्द्र अरजरिय
निजी राकेट विक्रम एस ने श्रीहरिकोटा से उडान भरकर देश में एक नया इतिहास रच दिया है। यह राकेट आवाज की गति से पांच गुना ज्यादा तेज गति से अंतरिक्ष में गया तथा 91.5 किलोमीटर की ऊंजाई पर तीन पेलोड सफलतापूर्वक इंजेक्ट किये। राकेट ने 89.5 किलोमीटर की अधिकतम ऊंचाई भी प्राप्त की लक्ष्य भेदन के उपरान्त समुद्र में स्प्लैश डाउन हो गया। इसे स्टार्टअप स्काईरूट एयरोस्पेस नामक मात्र 4 साल पुरानी कम्पनी ने इसरो की मदद से बनाया है। इस कम्पनी में इसरो तथा डीआरडीओ के 35 पूर्व वैज्ञानिक भी कार्यरत हैं जो अपने पुराने अनुभवों से नयी तकनीक को ज्यादा कारगर बना रहे हैं। भारत में स्पेस प्रोग्रामिंग के जनक विक्रम साराभाई के सम्मान में कम्पनी ने राकेट का नाम विक्रम एस रखा। देश मेें इस तरह की सभी निजी कम्पनियों तथा सरकारी कम्पनियों के बीच सहयोग हेतु इण्डिन स्पेस एसोसिएशन का सरकार ने गठन किया गया है ताकि आने वाली तकनीकी समस्याओं का समाधान, सरकारी प्रतिष्ठानों के हितों की रक्षा एवं अनुशासन कायम रह सके। इसके पहले स्पेश मिशन पर राकेट बनाने से लेकर अन्य सभी कार्यों को इण्डियन स्पेस रिसर्च आर्गनाइजेशन यानी इसरो को अपनी दम पर ही करना पडता था। सन् 2020 में इस क्षेत्र को निजी कम्पनियों के लिए पहली बार खोला गया जिससे दुनिया के 32 हजार करोड रुपये के स्पेसटेक मार्केट में भारत की जगह सुनिश्चित हो गई। इस उपलब्धि के साथ-साथ देश के प्रधानमंत्री मोदी को तीन वैश्विक संगठनों की अध्यक्षता प्राप्त हो रही है। संसार में शान्ति और सुरक्षा कायम करने वाली उत्तरदायी संस्था संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 5 स्थाई सदस्यों में अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस तथा ब्रिटेन हैं जबकि 10 अस्थाई सदस्यों में भारत, अल्बानिया, ब्राजील, गैबान, घाना, आयरलैण्ड, केन्या, मेक्सिको, नार्वे तथा संयुक्त अरब अमीरात हैं। इस संस्था का अध्यक्षता आगामी 1 दिसम्बर 2022 को भारत को को मिल जायेगी। इसी तरह भारत, चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, पाकिस्तान तथा ईरान, अफगानस्तानस, बेलारूस, मंगोलिया चार पर्यवेक्षक देशों वाले शंघाई सहयोग संगठन की अध्यक्षता भी भारत के खाते में पहुंच रही है। वर्तमान समय में इसे संसार का सबसे बडा क्षेत्रीय संगठन होने का गौरव प्राप्त है। इस संगठन की अध्यक्षता 2023 देश के प्रधानमंत्री मोदी ही करेंगे। जी-20 की अध्यक्षता भी इंडोनेशिया अधिवेशन के बाद भारत के प्रधानमंत्री को सौंप दी गई है। इस संगठन में भारत, अर्जेंटीना, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, इटली, दक्षिण कोरिया, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमरिका तथा यूरोपीय संघ शामिल हैं जबकि स्पेन आमंत्रित अतिथि के रूप में है। इस तरह दिसम्बर 2022 से भारत के प्रधानमंत्री मोदी को तीन वैश्विक संगठनों के मुखिया होंगे। भारत को इस तरह की गरिमामयी भूमिका में स्वाधीनता के बाद पहली बार देखा जा रहा है। पूरी दुनिया की नजरें भारत की ओर हैं जबकि देश के अंदर के हालातों को बद् से बद्दतर बनाने में लगे राष्ट्र विरोधी लोगों के कुनवों ने आपसी भाईचारे, सौहार्द और शान्ति को चिन्गारी लगाने में कोई कसर नहीं उठा रखी है।
नागरिकों को देश भक्ति के मापदण्डों पर नहीं बल्कि धर्म के आधार पर, जाति के आधार पर, क्षेत्र के आधार पर, भाषा के आधार पर तथा जीवन जीने के ढंग के आधार पर तौला जा रहा है। इन विभाजनकारी ताकतों को उनका धनबल ही मजबूती दे रहा है अन्यथा वे कब के धाराशाही हो गये होते। इन्हें मुद्रा की आपूर्ति करने वाले सीमापार के षडयंत्रकारियों की जमात देश के अंदर बैठे धनपिपासुओं की चांदी के जूतों से जमकर कुटाई कर रहे हैं। वे नहीं चाहते कि विश्वस्तर पर भारत की धाक जमे, वे बौने साबित हों और उनका सुख-सम्मान-सिंहासन जाता रहे। वैश्विक मंदी के दौर में देश को तीव्र गति देना सहज नहीं होता। कोरोना काल से तबाह हो चुकी विश्व की अर्थ व्यवस्था में भी भारत का छलांग लगाकर ब्रिटेन से ऊपर पहुंचकर पांचवां स्थान पाना एक बडी उपलब्धि है। ऐसे में राज्यों के चुनावी माहौल को गर्माने के लिए अनेक दल अपनी कुटिल चालों को भावनात्मक हथियारों से कामयाब करना चाहते हैं। दिल्ली की जंग और पंजाब का पंगा किसी से छुपा नहीं है ऐसे में नौकर से नौकरशाह बन चुके देश के अधिकांश अधिकारियों का अप्रत्यक्ष सहयोग पाने वाले लोग, अब अन्य राज्यों में भी अपने लिये सत्ता-सुख और नागरिकों के लिए आंतक की नई इबारतें लिखने का मंसूबा लेकर कूद पडे हैं। कहीं राष्ट्र भक्त को राष्ट्र द्रोही साबित किया जा रहा है तो कहीं झूठे इतिहास की बानगी दिखाकर लोगों को लुभाया जा रहा है। अतीत गवाह है कि आंतरिक हालातों को जटिल बनाने में जुटे लोगों ने वैश्विक महारथी के आगमन पर दिल्ली को दहलाने की कोशिश की थी तो कभी कथित किसानों के मसीहा बनकर उतरने वालों ने आम नागरिकों का जीना हराम कर दिया था। कभी देश के टुकडे-टुकडे करने का मसूबा पालने वालों की पीठ थपथपाने के लिए अनेक दलों के कद्दावर नेताओं ने उनके साथ खडे होकर अपना असली चेहरा दिखाया तो कभी सैनिकों ं को आदेशों की बेडियों से जकडकर आतंकवाद की पाठशाला में मरने के लिए भेज दिया था। ऐसे लोगों ने हमेशा ही दुनिया के आगे कटोरा फैलाया, साष्टांग दण्डवत किया और उनके मनमाने आदेशों का अक्षरश: पालन किया। ऐसे लोगों के लिए स्वयं के लाभ, परिवार के हित और सत्ता का लालित्य ही सर्वोपरि था।
आवश्यकता है तो केवल उपलब्धियों के यशगान के मध्य गर्दभ राग अलापने के प्रयास करने वालों को सबक सिखाने की ताकि देश को एक बार फिर विश्वगुरु के सिंहासन पर आसीन हो सके। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।
एक टिप्पणी भेजें