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  डा. रवीन्द्र अरजरिया

आतंक के सहारे राष्ट्र सत्ता हथियाने के षडयंत्र


इतिहास हमेशा अपने को दोहराता है, यह बात वर्तमान में अक्षरश: सत्य सिध्द हो रही है। ऐतिहासिक ग्रन्थों में जिन संदर्भों का उल्लेख मिलता है, फिलहाल वही घटनाक्रम देखने को मिल रहा है। 


क्रूर प्रवृत्तियों का बाहुल्य होता जा रहा है। आतंक की दम पर कुछ भी कर गुजरने वालों की संख्या में निरन्तर इजाफा होने लगा है। तालिबान के आतंकी स्वरूप के साथ अमेरिका की रणनीति ने विश्व की शांति को विस्फोट के मुहाने पर खडा कर दिया है। क्रूरता की हदें पार करते हुए जिस गिरोह ने अफगानस्तान की सत्ता हथियाई वही तालिबान आज आतंकियों का खुला प्रेरणास्रोत बनकर अपने कृतित्वों की पुनरावृत्ति का मौन आमंत्रण दे रहा है। पाकिस्तान के खैबर-पख्तू-नख्बा प्रान्त वाले कवायली इलाके में तहरीर-ए-तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी ने खासा आतंक मचा रखा है। पाकिस्तानी सैनिकों के सैकडों बच्चों को मौत के घाट उतार चुका यह गिरोह, पूर्वी और दक्षिण पूर्वी इलाकों के लडाकों की दम पर जुल्म की नई इबारत लिख रहा है। वह अपने प्रभाव वाले कवायली इलाके में शरिया कानून के तहत चलने वाला अलग राष्ट्र चाहता है। इन आतंकियों के सामने पाकिस्तान ने लगभग घुटने टेक ही दिये हैं। शहबाज सरकार व्दारा मौलानाओं का 13 सदस्यीय दल इन आतंकियों को मनाने के लिए काबुल भेजा जा रहा है। अफगानस्तान की तालिबानी सरकार के गृह मंत्री सिराजउद्दीन हक्कानी पाकिस्तानी दल के साथ आतंकियों की मुलाकात में मध्यस्थता करेंगे। एक वक्त था हक्कानी की गिनती क्रूर आतंकियों में की जाती थी, आज वह अपनी ज्यादतियों की दम पर अफगानस्तान में सत्ता का मजबूत स्तम्भ बनकर अन्य आतंकियों के साथ लोकतांत्रिक सरकारों के मध्य सेतु का काम कर रहा है। यह ठीक वैसा ही है जैसा मुहम्मद गजनवी, मुहम्मद गौरी सरीखे क्रूर लुटेरों की जमात के साथ मिलकर कुछ स्थानीय गिरोहों ने कभी हिन्दुस्तान में किया था। आतंक की दम पर सत्ता हथियाने तक के सफर को पूरा करने में तब भी रियासतों में बटे हिन्दुस्तान के राजाओं की आपसी फूट ने सहयोग किया था और आज देशों की आपसी खींचतान अप्रत्यक्ष में वैसा ही काम कर रही है। अफगानस्तान में तालिबानी शासन कायम होने के बाद यदि पाकिस्तान के खैबर-रख्तू-नख्वा प्रान्त में तहरीर-ए-तालिबान पाकिस्तान की सत्ता स्थापित होती है तो सत्य मानिये कि दुनिया में क्रूरता के परचम तले मानवीयता के सूत्रों को कुचलते दे नहीं लगेगी। कट्टरवादियों की बढती जनसंख्या वाले देशों भी ऐसे ही प्रयोग किये जायेंगे। दीन, दुनिया और ईमान की दुहाई देने वाले आज खुदा की तालीम को मनमानी व्याख्याओं के जरिये जुल्म की किताबें लिखने में लग गये हैं। फितरा, जकात जैसे पैसों से हथियारों का जखीरा पैदा किया जाने लगा है। धर्म के नाम पर जिस्म के बाद के रूहानी सुखों वाले सब्जबाग दिखाये जाने लगे हैं। जायज और नाजायज के बीच की दूरी समाप्त कर दी गई है। जहरीले भाषणों से आग लगाने का काम किया जा रहा है। स्वयं के खानदान की हिफाजत करने वाले ठेकेदार दूसरों के बच्चों को पत्थर पकडा रहे हैं। चन्द पैसों में बिकने वाले फिरका पसन्द लोगों की संख्या में बढोत्तरी होती जा रही है। क्रूरता की दम पर वर्चस्व का परचम फहराने वालों को आज अनेक कट्टरपंथी देशों से खुला सहयोग मिल रहा है। तिस पर गोरों की फूट डालो, राज करो की नीतियां कोढ में खाज का काम कर रहीं हैं। अमेरिका ने जिस तरह से अफगानस्तान को मौत के मुंह में धकेलकर अपने सैन्य संसाधनों को तालिबान के लिए छोडा था, वह आतंक को समर्थन देने की नई किताब का पहला पन्ना था। ब्रिटेन, चीन भी इसी राह पर निरंतर चल रहे है। तालिबान के बाद यदि तहरीर-ए-तालिबान पाकिस्तान भी शरिया कानून वाला खैबर-पख्तू-नख्बा राष्ट्र बना लेता है तो वह दिन दूर नहीं जब कश्मीर में भी बाह्य आक्रान्ता आतंक की दम पर कत्लेआम करके स्वयं घोषित इस्लामिक राष्ट्र की सत्ता चलाने लगेंगे। काबुल की धरती पर ही आतंकियों को छुडाने के लिए विमान अपहरण की सौदेबाजी हुई थी, वहीं से आतंक की कट्टरता ने पांव पसारे थे, अनेक अन्तर्राष्ट्रीय गिरोहों का विस्तार भी वहीं से हुआ था और अब उसी काबुल में तालिबानी सरकार के गृह मंत्री की सरपरस्ती में पाकिस्तानी मौलानाओं का दल आतंकियों को सलाम पेश करेगा और मांगेगा अपने मुल्क के आम आवाम की जान की भीख। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गठित संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्थाओं की सारगर्भित प्रासांगिकता पर एक नहीं अनेक प्रश्नचिंह अंकित होने लगते हैं। चीन का वीटो हमेशा आतंकियों को संरक्षण देने के काम आता रहा है। अमेरिका, फ्रांस और चीन जैसे देश हथियारों की बिक्री के अवसर खोजते रहते हैं। आज चीन की चौधराहट के तले अनेक कर्जदार देश तडफ रहे हैं। श्रीलंका की प्रत्यक्ष बरबादी के बाद अनेक राष्ट्र लाल सलाम की दहशत में हैं। उधार लेकर घी पीने की आदत में चमडी उधेडकर कर्ज चुकाने की नौबद आ चुकी है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की विकराल होती समस्याओं के साथ-साथ देश के अन्दर के हालात भी विस्फोटक होते जा रहे हैं। नूपुर को केवल एक बहाना थी, हमें तो ताकत दिखाना थी। यह वाक्य यूं ही नहीं कागज पर उतरा, इसके पीछे जनसंख्या का असंतुलित फैलाव है। जनबल और कट्टरता बढने के बाद उसका अहसास कराना भी तो जरूरी होता है तभी तो मासिक परीक्षाओं के परिणामों के आधार पर त्रिमासिक, अर्धवार्षिक और वार्षिक परीक्षाओं के अंकों का आंकलन किया जा सकेगा। धर्मान्तरण, लव जेहाद, हिजाब हक, खुले में नमाज जैसे अनेक मुद्दों को होम वर्क के रूप में लिया जाता रहा। ज्यों ही अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर देश की छवि चमकने लगी, त्यों ही आन्तरिक कलह की आग को विस्फोटक स्थिति में पहुंचाने के लिए दुनिया भर के कट्टरपंथी देशों ने अपनी संयुक्त ताकत झौंक दी। कट्टरपंथियों के अलावा देश में लाल सलाम करने वालों ने स्वाधीनता के बाद से निर्मल संस्कृति की पावन नदियों के पानी में योजनाबध्द ढंग से मीठा जहर घोलने का काम किया है। रंगकर्मी संगठन, मजदूर संगठन, किसान संगठन, छात्र संगठन, साहित्यकार संगठन, कलाकार संगठन, समाजसेवी संगठन जैसी इकाइयां बनाकर लाल रंग का झंडा ऊंचा करके स्वयं-भू बुध्दिजीवी बन बैठे। इन संगठनों में सीधे, सरल और मानवतावादी बहुसंख्यकों को बहला फुसलाकर बरगला कर जोडा जाता रहा। नागरिकों के मानवाधिकारों को कुचलने में अग्रणीय रहने वाला चीन, इस लाल झंडे को विश्व में फहराते देखना चाहता है। उसकी विस्तारवादी नीति जग जाहिर है। चीन ने अनेक राष्ट्रों को सब्ज बाग दिखाकर मृगमारीचिका के पीछे दौडाते हुए कर्ज के दलदल में डुबो दिया। मुसलमानों का शोषण करने में अग्रणीय रहने वाला यह राष्ट्र, मानवता के पुजारी का स्वांग रचाकर नये शिकार की तलाश में हमेशा ही रहता है। यही लाल सलाम करने वालों ने नूपुर मुद्दा ठंडा होते ही अग्नि-पथ योजना को मुद्दा बना कर युवाओं को भडकाया, हिंसा फैलाई, कानून व्यवस्था को तार-तार करने की कोशिश की। इसके पहले जेएनयू में टुकडे-टुकडे गैंग, कट्टरता पोषित शाहीन बाग आंदोलन समाप्त होते ही किसान आंदोलन के नाम पर कथित किसानों का लम्बा आंदोलन चलाने जैसे राष्ट्र विरोधी कृत्य सामने आते रहते हैं। कट्टरता के बाद लाल सलाम और लाल सलाम के बाद कट्टरता, यह क्रम क्रूर आतंकियों तथा लाल सलाम वालों ने निर्धारित कर रखा है। इस तरह की आंतरिक समस्याओं का समाधान केवल और केवल एक देश, एक कानून है और रही बात विश्वमंच पर आतंक के सहारे राष्ट्र सत्ता हथियाने के षडयंत्र की, तो उसके लिए समूची दुनिया को विस्त्रित मंथन करना होगा और उठाना होंगे कठोर कदम। अन्यथा क्रूर आतंक की मनमानियां, एक बार फिर मानवता के पुजारियों को गुलामों की जमात में शामिल करने के मंसूबों को तेज कर देंगी, जो किसी भी हालत में सुखद नहीं कहा जा सकता। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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