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 प्रज्ञा प्रवाह पश्चिमी उत्तरप्रदेश उत्तराखंड द्वारा आयोजित व्याख्यान विषय "पश्चिमी बंगाल की वर्तमान भयावह स्थिति से बना संवैधानिक संकट






आज दिनांक 6 जून 2021 को  पश्चिमी बंगाल के संपन्न हुए चुनावों के बाद हुई व्यापक हिंसा भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का एक काला अध्याय बन गई है। हमारे देश में पहली बार हुआ है, कि अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए इस बड़े पैमाने पर लोगों को निशाना बनाया गया है। यह विचार मंथन प्रज्ञा प्रवाह पश्चिमी उत्तरप्रदेश उत्तराखंड के तीन प्रांतों में हुआ। 


प्रज्ञा प्रवाह पश्चिमी उत्तरप्रदेश उत्तराखंड के तीन प्रांतों भारतीय प्रज्ञान परिषद मेरठ, देवभूमि विचार मंच उत्तराखंड, प्रज्ञा परिषद ब्रज प्रांत के क्षेत्रीय स्तरीय व्याख्यान "पश्चिमी बंगाल की वर्तमान भयावह स्थिति से बना संवैधानिक संकट" कार्यक्रम में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पश्चिमी बंगाल पूर्व क्षेत्र के सह-क्षेत्र प्रचारक माननीय रमापद पाल, अध्यक्ष प्रख्यात स्तम्भकार, लेखक माननीय दिव्य सोती, क्षेत्रीय संयोजक माननीय भगवती प्रसाद राघव, प्रस्तावना डॉ प्रवीण तिवारी रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ अंजलि वर्मा एवं आगुंतकों कार्यकर्ताओं का आभार भारतीय प्रज्ञान परिषद मेरठ प्रांत अध्यक्ष प्रोफेसर बीरपाल सिंह ने किया।


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पश्चिमी बंगाल पूर्व क्षेत्र के प्रचारक रमापद पाल ने प्रज्ञा प्रवाह द्वारा आयोजित क्षेत्रीय कार्यक्रम में अपनी बात रखी। 


पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड के बुद्धिजीवियों ने लोकतंत्र पर हुए इस सुनियोजित हमले पर राष्ट्रीय व्याख्यान के माध्यम से गंभीर चिंता व्यक्त की है। व्याख्यान में पश्चिमी बंगाल राज्य में हुई हिंसा को लेकर जो तथ्य और आंकड़े प्रस्तुत किए गए, वह देश की मीडिया सहित बुद्धिजीवियों, विचार मंथन करने वालो के लिए भी चौंकाने वाले रहे हैं। 

पश्चिमी बंगाल की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस द्वारा विपक्षी भारतीय जनता पार्टी के पदाधिकारियों व समर्थकों पर की गई हिंसा में कुल 1320 ही एफआईआर दर्ज हुई हैं। संभव है, सत्ता के भय से अनेक एफ आई आर दर्ज ही नहीं हुई, इसके अलावा भय से पलायन कर असम के धुबरी जिले में पहुंचे शरणार्थियों द्वारा भी 28 एफआईआर दर्ज कराई गई हैं। दर्ज हुई प्रथमिकियों में हत्या , महिला उत्पीड़न के 29 मामले बताए गए हैं।

 इसके अलावा  चुनाव के बाद भी मारपीट, लूटपाट, तोड़फोड़, आगजनी और धमकी आदि के मामलों में प्राथमिकी दर्ज हुई हैं। जमीनी सूत्रों के अनुसार सत्ताधारी दल के दबाव में अधिकांश मामलों में प्राथमिकी दर्ज ही नहीं हो पायी हैं। लगभग 4400 दुकानें​ और मकान हमलों में क्षतिग्रस्त हुए हैं, साथ ही 200 मकान पूरी तरह से जमींदोज़ कर दिए गये हैं। पूर्व बर्धमान के औसग्राम में तो एक पूरी बस्ती को ही फूंककर नेस्तनाबूत कर दिया गया। आज भी अपने घरों को छोड़कर 6788 लोग असम के 191 शिविरों में जाकर के शरण लिये हुए हैं।


यहां विचारणीय विषय है,कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग के अध्यक्ष विजय साँपला ने भी प्रशासनिक उदासीनता और भेदभाव की पुष्टि की है। आठ दिन तक निर्बाध चली हिंसा में दलित व जनजाति वर्ग बुरी तरह प्रभावित हुआ है। लेकिन कोई भी कार्यवाही नहीं हुई है।


राजनीतिक प्रतिशोध से शुरू हुई पश्चिमी बंगाल की हिंसा जल्द ही मजहबी उन्माद में भी बदल दी गयी। जिस नंदीग्राम से स्वयं ममता बनर्जी ने चुनाव लड़ा और हार गईं थीं, वहां तृणमूल के हिंदू समर्थकों पर भी गंभीर हमले हुए। वहां हिंदुओं को खदेड़ने के उद्देश्य से उनके खलिहानों में आग लगाने व तालाबों में जहर डालने की घटनाएं भी प्रकाश में आई हैं। 


वक्ताओं द्वारा बताया गया,कि अनेक इलाकों में भाजपा पदाधिकारियों पर जजि़या की तर्ज पर अर्थदंड भी लगाए गये हैं। उन्होंने चुनाव के बाद भी 2 और 3 मई को हुई हिंसा पर विस्तृत चर्चा के साथ ही साथ रोहिणी की पश्चिम बंगाल में घुसपैठ और उनके राजनीतिक प्रभाव एवं आंकड़ों के साथ बड़ी संख्या में जनता पर हो रहे अत्याचारों पर प्रकाश डाला। प्रज्ञा प्रवाह ने राज्य की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी के भड़काऊ बयानों और संविधानेंतर आचरण की भी आलोचना की। ध्यान रहे, कि दुर्गा पूजा पर रोक जैसी तुष्टीकरण की नीतियों के द्वारा ममता मजहबी उन्माद को बढ़ावा देती रही हैं। चुनाव के दौरान भी ममता और उनके मंत्री केंद्रीय बलों के लौट जाने के बाद विरोधियों को देख लेने की धमकी देते रहे हैं। 

वर्तमान में हिंदू समुदाय पर आये अस्तित्व के खतरे और तेजी से बदलते जनसंख्या अनुपात की दृष्टि से अति संवेदनशील पश्चिम बंगाल में विषय की गंभीरता को देखते हुए प्रज्ञा प्रवाह ने आशा व्यक्त की है कि सुप्रीम कोर्ट पूरे प्रकरण का स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई करेगा।

मुख्य वक्ता ने आगे कहा,कि बंगाल विकास पर पीछे होकर भ्रष्टाचार और हिंसा में आगे बढ गया है। वहां महिलाओं पर अत्याचार इस कदर बढ़ गये है,कि कोई महिला अपनी बेटी की जघन्य घटना की रिपोर्ट दर्ज कराने जाती है, तब सत्ता के भय से त्रस्त प्रशासन उससे दुसरी बेटी के लिए ऐसी ही घटना का भय दिखाते हैं।

श्री रमापद पाल  ने कहा, कि 1905 से शुरू बंग भंग आंदोलन में जिस तरह से हिंदुओं का संहार का क्रम शुरू हुआ था, जिसमें हजारों हिन्दुओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। बिल्कुल उसी तरह से..आजादी के 30 वर्षों के बाद कॉंग्रेस के शासन काल में भी हिंदुओं का मनमार्दन चलता रहा था। 32 वर्षों के कम्यूनिस्टों के शासन काल में भी यह क्रमशः चलता रहा है। अब ममता बनर्जी के कार्यकाल में बर्बरता की हद ही हो गयी, कि आज 70 प्रतिशत हिंदू बाहुल्य​ होने के बावजूद भी हिंदूओं को बंगाल छोड़ने पर मजबूर होना पड़ रहा है।


उन्होने इस्लामिक जेहाद की कार्यशैली पर बोलते हुए कहा,कि  पहले जेहादियों का नारा भिन्न था, लेकिन अब घुसपैठ के रूप में थोड़ा बदल दिया है, कि "हस के लिया पाकिस्तान और घुस के लेंगे हिंदुस्तान" कर लिया है। भारतीयो पर आधात करने पर कहा,कि जो बंगाल की सीमा 2,200 km की है उसके 10 km अंदर भारत में रह रहे हिंदुओं को उनके द्वारा टारगेट किया जा रहा है। दलित हिन्दुओं को खासकर टारगेट किया जा रहा है। उनके राशन कार्ड तक जला दिए जाते हैं, और उनकी पहचान पत्र को भी जला दिया जाता हैं।


उन्होंने बताया,कि  रोहिंग्याओ और अन्य मुस्लिमों को तुरंत ही भारत की नागरिकता ममता बनर्जी द्वारा दे दी जा रही है। जिससे बंगाल में एक भौगोलिक असंतुलन पैदा हो गया है। जो,कि समूचे भारत के लिए खतरे के संकेत हो गये हैं, बंगाल के कुछ जिले जैन्स 24 परगना, पखूँढा और उत्तरी बंगाल में गंभीर भयावह स्थिति पैदा हो गई है।

जिन 25%लोगों ने टीएमसी को वोट दिया था, उनको भी टारगेट किया जा रहा है।


उन्होंने केंद्र की सरकारी नीतियों को नाम बदलने पर कहा,कि केंद्र सरकार की सभी योजनाओं के नाम परिवर्तित कर ममता बनर्जी के नाम से चलायी जा रही है, और इस योजना का फायदा सिर्फ मुसलमानो को ही दिलवाया जा रहा है, आज पश्चिमी बंगाल में स्थिति​ असंवैधानिक हो चुकी है। पश्चिमी बंगाल में हिंदू अपने ही राज्य में विदेशियों जैंसा विस्थापितों जैसा जीवन यापन करने को मजबूर हो गया हैं।

प्रख्यात स्तम्भकार, विचारक और कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री दिव्य कुमार सोनी जी ने कुछ खास विन्दुओं पर विवेचना की। बंगाल में 2 मेई के बाद 36 हिंदुओं की हत्या कर दी गयी थी। जिसमें से 11 महिलाएं थी और उनके साथ कितने शर्मनाक हरकतें की गयी की बयां करते भी शर्म आती हैं। मगर सवाल ये है, कि एक महिला के शासन काल में ही महिलाओं पर अत्याचार हो रहा है और सम्पूर्ण हिंदू समाज डरा बैठा है,

हिंदूओ के 3000 गाँव प्रभावित हुए है। जिसमें खासकर दलित और पिछडी जाति के हिन्दुओं को टारगेट किया जा रहा है, हाई कोर्ट में याचिका डालने के बाद भी न्यायालय चुप्पी साधे बैठा है और कही ना कही जान बूझकर ममता सरकार के दबाव में हिंदू हितों में फैसला नहीं दे पा रहा है। पश्चिमी बंगाल में राज्यपाल के दौरे को रोका गया है, सीबीआई का विरोध कर उसका घेराव किया गया, राजयपाल को पंगु बनाने का प्रयास बंगाल में चल रहा है। इस हिंसा का प्रभाव बिहार तक देखा जा सकता है, पूर्णिया जिले के एक गाँव में 32 दलित हिन्दुओं के घरों को ध्वस्त कर दिया गया है, और वहां की महिलाओं को निर्वस्त्र कर सड़कों पर दौड़ाया गया है, ये आंकड़े राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने दिए है।


उन्होंने कहा,कि न्यायपालिका आगे आकर सामना नहीं खर रही है। सुझाव दिया,कि 356, 375 अनुसार केंद्र संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करें। रेलवे स्टेशन आदि पर केंद्रीय सुरक्षा बल रखे जाये, जिन पर राज्य सरकार का नियंत्रण नहीं होता है, जिससे असुरक्षित महसूस करने वाले परिवारों को संरक्षण मिल सकेगा। उन्होंने कहा,कि पश्चिमी बंगाल में गंभीर टेरर विस्फोटक मिले हैं, जो डेढ किलोमीटर तक गंभीर नुकसान कर सकते हैं। उन्होंने मीडिया पर प्रश्न किया, कि वहां की मीडिया को हो रहे अत्याचारों को मीडिया में दिखाना चाहिए। न्यायपालिका यदि याकूब मेमन जैसे आतंकियों के लिए रात में खुल सकती है, तब पश्चिमी बंगाल में हो रहे अत्याचारों पर मौन नहीं रहना चाहिए।


इस अवसर पर बुद्धिजीवियों के प्रश्नों का उत्तर मुख्य वक्ता और अध्यक्ष द्वारा दिया गया--

#बंगाल जल रहा है और लोग चुप बैठे हैं । अराजकता अपने चर्म पर है और संवैधानिक तंत्र पूरी तरह से ध्वस्त है। शासन प्रशासन न्यायालय रक्षा करें।

#पं बंगाल मे 70% हिंदू होने के बावजूद भी वर्षो से धार्मिक अत्याचार से प्रभावित है, ऐसा क्यो? 

#ये दुखदः एवं विचारणीय है , मीडिया दूसरे हिंदू विचारधारा के चैनल भी इस पर क्यों खामोश है?

#पश्चिम बंगाल की घटनाओं को सामने लाकर केन्द्र सरकार को तुरंत राष्ट्रपति शासन लगाना चाहिए!

#अगर लोकतांत्रिक परंपरा से चुनी सरकार लोकतंत्र के सिद्धांतों का सम्मान नहीं कर सकती अपने नागरिकों की सुरक्षा नहीं कर सकती तो कोई अधिकार नहीं ऐसी सरकार को लोकतंत्र की शक्ति देने की!

#इन परिचर्चाओं से ज्यादा ऐसी घटनाओं का वैश्विक पटल पर पटाक्षेप कर तुरंत कार्रवाई की जानी चाहिए।

#यदि स्वतंत्र भारत में भी भारत के नागरिक गुलामी के दिनों के अत्याचार झेलें तो क्या स्वतंत्रता है?

इस अवसर पर प्रज्ञा प्रवाह के कार्यकर्ताओ में भारतीय प्रज्ञान परिषद संयोजक अवनीश त्यागी, डॉ वीके सारस्वत, डॉ चैतन्य भंडारी, प्रोफेसर बीरपाल सिंह डॉ प्रवीण तिवारी, अनुराग विजय, डॉ गोविंद राम गुप्ता, डॉ वंदना वर्मा, डॉ सूर्य प्रकाश अग्रवाल, डॉ प्रदीप पवार, डॉ नमन गर्ग, डॉ पृथ्वी काला, डॉ आदर्श, डॉ. हिमांशु, डॉ रजनीश गौतम, डॉ पूनम, डॉ रवि, पंकज, डॉ अलका, डॉ श्यामलेंद्रु, सतीश वार्ष्णेय, डॉ संजीव, डॉ योगेश, डॉ कैलाश अंडोला, अजयकांत, डॉ नितिन, डॉ सविता, डॉ रेनू, डॉ अमित, आदि सहित बड़ी संख्या में कार्यकर्ता और शिक्षाविदों सहित प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से पत्रकार बंधु उपस्थित रहे।



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