क्या ,फिर से एक गोरा जन्मेगी।
क्या ,फिर से एक चिपको होगा
क्या, यूँ ही कट जायेगें जंगल।
या फिर रह जाएंगे सवाल.....
सीने पर चलाए हजारों नश्तर उसका जर्रा जर्रा भी रोया होगा,
जिस दर्द को उत्तराखंड की इस धरती ने सहा होगा वह दर्द पिथौरागढ़ की धरती से शासन प्रशासन के कानों तक नहीं पहुंच पाया। पर्यावरण प्रेमियों को जागने और जगाने का समय आ चुका है ,जब-
इतनी अधिक शिकायतें करने के बाद भी शासन-प्रशासन मूक बना रहा और पिथौरागढ़ की सीमांत गांव की धरती से माफियाओं के हौसले इतने बुलंद हुए सैकड़ों पेड़ों को काट डाला गया । ठूँठकी भी अपनी पीड़ा होती है। निश्चय ही इस विनाश का दंश हमें नहीं हमारी पीढ़ियों को भुगतना होगा। हम जीवित नहीं रहेंगे ,पर हमारे कर्मों का लेखा जोखा उन्हीं देना होगा।
अभी इसी सफ्ताह पर्यावरण दिवस मनाया गया ,अभी सोशल दुनिया मे पर्यावरण बचाने सम्बन्धी अनेकों मेसेज तेर रहें है जहां अभी अनेक पर्यावरण प्रेमियों के आर्टिकल लोगों के जेहन में हलचल मचाये हुए है वहीं पर्यावरण नियमों की धज्जियाँ उड़ाया एक वाकया सामने आया है जहाँ पिथौरागढ़ स्थित सीमांत गाँव गूंजी में एक ठेकेदार ने बहुमूल्य और स्थानीय पर्वतों के श्रंगार देवदार बृक्ष काट डालें हैं।
गाँव वासी जहाँ ठेकेदार के खिलाफ आवाज उठाते रह गए किंतु आवाज की ऊर्जा शायद शासन- प्रशासन तक नहीपहुँच पा रही है यही वजह है कि अनेक नियमो को ध्वस्त करते सैकड़ों पेड़ जंगल की गोद से हटकर ठेकेदार की गिरफ्त में जा रहे है
भारत-तिब्बत सीमा पर पिथौरागढ़ जिले के अंतिम गांव गुंजी के प्रधान सूरज गुंज्याल दो वीडियो भेजे हैं, जहाँ एक में वह शासन प्रशासन से इस सीमांत और उच्च हिमालयी क्षेत्र में देवदार के सैकड़ों पेड़ों को अवैध तरीके से काटने वाले ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई करने और भविष्य में अवैध पातन रोकने की गुहार कर रहे हैं। वहीं अन्य वीडियो में वे इस उच्च हिमालयी क्षेत्र में देवदार के कटे सैकड़ों ठूठ दिखाए हैं। ग्राम प्रधान ने सीधे तौर पर ठेकेदारों पर नियम विरुद्ध बृक्ष पातन एवं कटान के आरोप लगाए हैं। ग्रामीणों को सबसे ज्यादा क्षुब्ध ओर आक्रोशित करने वाली बात यह रही कि जब सेकड़ो देवदार के पेड़ काटे गए तो वन विभाग कार्यवाही के स्थान पर सोशल दुनिया मे अपनी पर्यावरण प्रेमी होने की गौरव गाथाएँ गा रहा था*
सवाल यह भी उठता है कि अनेक छोटी छोटी समस्याओं और तथ्यों को लेकर इंकलाब करते एवंम समाज मे सुर्खियां बनाते NGO ओर अन्य संगठन भी सीमांत गाँव की घटना को हासिये में डाल रहा है, कहीं को सुगबुगाहट नहीं कहीं कोई कानूनी प्रक्रिया नही। सवाल यह भी है कि क्या गाँव के जंगल यूँ ही कटते रहेंगे, क्या जंगल माफियाओं को नियमों का कोई डर नही रहा, ओर सवाल यह भी है कि क्या वन विभाग यूँ ही सोता रहेगा।
प्रधान सूरज गुंज्याल ने बताया कि यह उच्च हिमालयी यह संपूर्ण क्षेत्र जाड़ों में बर्फ से ढका रहता है। जिसका लाभ उठा कर माफियाओं द्वारा पेड़ों का कटान किया गया है। इसकी शिकायत उन्होंने वन विभाग को भी की है, वन विभाग की टीम उस क्षेत्र का दौरा भी कर आई है, लेकिन अभी तक कोई कार्यवाही नहीं दिखाई दी है। सरसरी तौर पर देखें तो डेढ़ हजार के करीब पेड़ काटे गए हैं।
अवश्य ही हिमालयी प्रदेश में यदि इस प्रकार के गंभीर अपराध नही रोके गए , तो भविष्य में इस प्रकार की अनेक घटनाएं देखने को मिलेगी, माफियाओं के हौसले बुलंद रहेंगे और धरती का श्रंगार उजड़ता रहेगा। यह कहना गलत नहीं होगा कि बिना भी सरकारी विभाग की मिलीभगत के इस तरीके से कार्य पूरे किए जा सकते हैं।
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