जिंदगी के सबसे अच्छे पल है बचपन,
बीत गया जो पल उस का सुकून है बचपन।
ना किसी से बैर ना किसी से द्वेष,
तभी तो घर आया मेहमान भी देता था इन कैश।
यह बचपन का भी क्या जमाना था,
जिस में खुशियों का बहुत बड़ा खजाना था।
खबर ना थी सुबह की,
और ना रात का ठिकाना था।
चाहत तो बस चांद को पाने की थी,
पर दिल क्रिकेट का दीवाना था।
थका हारा आता स्कूल से,
पर खेलने भी जाना था।
न खाने की चिंता थी,
ना पैसे की टेंशन।
बस पूरा गांव घूम कर आना,
और खर्चे के लिए दादी की पेंशन।
देखते देखते हम इतने बड़े हो गए,
मानव शरीर लेकर हम खड़े हो गए।
अब तो जिंदगी में भी जीने का वजूद ना रहा,
इसलिए तो अब हम टमाटर जैसे सड़े हो गए।
बस अब एक चाहत लेकर बैठे हैं,
बचपन की याद में आज भी खड़े हैं।
दुबारा आ जाए मेरा वह बचपन,
बीत गया जो पल सुकून का मेरा बचपन।
जगमोहन राणा (बिट्टू)
ग्राम हिमरोल पोस्ट कफनोल
तहसील बड़कोट जिला उत्तरकाशी
उत्तराखंड
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