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सहज संवाद/डा. रवीन्द्र अरजरिया


राष्ट्रीय प्रगति हेतु व्यवस्था से जुडे सभी विभागों को करना होगा अपने दायित्वों का शतप्रतिशत निवहन


सामाजिकता का स्थान अब निजता लेने लगी है। सार्वजनिक संपत्ति को व्यक्तिगत हितों के लिए उपयोग करने की परम्परा चल निकली है। पैसा बटोरने की लालसा ने व्यक्ति की मानवीयता को तिलांजलि दे दी है। पैसा भी केवल भौतिक संसाधनों को जोडने में खर्च किया जा रहा है। दिखावे की चाहत ने सुख के मायने ही बदल दिये हैं। इन सब के कारण वैध-अवैध का अन्तर समाप्त सा हो चला है। जो पकडा गया वही चोर बाकी सब साहूकार, की कहावत सिर चढकर बोलने लगी है। पकडा भी वही जाता है जो वास्तविक मूल्य की जगह ले चुके प्रचलित मूल्यों का अनुपालन नहीं करते। यदि प्रचलित मूल्य मेज के नीचे से भी गुजरते हों, तो भी वही वास्तविक मूल्यों के आवरण में लिपटी प्रमाणिकता हैं। ऐसे में संविधान की पवित्र पुस्तक, गीता की तरह कसम खाने के लिए ही कहीं सुरक्षित रख दी जाती है। इन सभी प्रचलित मूल्यों में कानून लचर होकर रह गया है। उसे लचीला करार वाले भी वही  लोग हैं जिन्होंने कभी उसका उपयोग स्वयं के अवैध हित साधने के लिए किया होता है। ऐसे में अपराधों की लम्बी फेरिस्त सामने आती है जो कहीं न कहीं कम समय में बहुत अधिक लाभ कमाने के दौरान घटित होते हैं। एक चक्कर में ज्यादा बचाने हेतु ओवर लोडिंग, निवास या व्यवसाय के विस्तार के लिए सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण, धंधे को बढाने और खर्चे कम हेतु बिना टैक्स के माल का परिवहन, व्यक्तिगत उपयोग हेतु वन संपदा का अवैध कटान, निर्धारित मापदण्ड का उलंघन करके खनिज संपदा का दोहन, अवैध मादक पदार्थों से लेकर असलहों तक का निर्माण और बिक्री जैसे अनेक कारक हैें जिन्हें अपराध की श्रेणी में रखा जाता है। अपराध तो और भी बहुत सारे हैं जिन्हें सामाजिक अपराध, आर्थिक अपराध, मानसिक अपराध जैसे वर्गीकरण में रखा जा सकता है। कोहरे में ढके वातावरण के मध्य विचारों की अठखेलियां चल ही रहीं थी कि तभी फोन की घंटी बज उठी। फोन रिसीव करने पर दूसरी ओर की आवाज सुनकर सुखद अनुभूति हुई। वह आवाज युवा आईपीएस अधिकारी मणिलाल पाटीदार की थी। नाम के अनुरूप ही गुणों को समाहित करने वाले इस युवा के साथ आमने-सामने की मुलाकात तय हुई। हम भी अपने विचारों को दिशा देने के लिए अपराधों की रोकथाम का संवैधानिक जिम्मा सम्हालने वाले पुलिस अधिकारी से मिलना चाहते थे। सो निर्धारित समय और स्थान पर हम आमने सामने थे। अभिवादन की औपचारिकताओं से बाहर निकलकर हमने उन्हें अपने विचारों से अवगत कराया। हमेशा मुस्कुराते रहने वाले चेहरे पर गंभीरता छा गई। संविधान की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि सभी अपराधों में पुलिस का दखल नहीं होता। नैतिक अपराध से लेकर सामाजिक मूल्यों तक की क्षति के लिए व्यक्ति का अपराध बोध स्वयं बोल उठता है। विभिन्न विभागों में विभक्त व्यवस्था की आन्तरिक विसंगतियों के लिए विभाग प्रमुख ही उत्तरदायी होते हैं, मगर यह तब ही संभव है जब उन्हें अपने दायित्वों का कर्तव्यबोध हो। राजस्व विभाग में लेखपाल की खामियों का परिणाम आपराधिक घटनाओं के रूप मे ंप्राप्त होता है। आवकारी विभाग की लापरवाहियां समाज की आंतरिक  संरचना को तोडने का कारण बनता है। खनिज विभाग की अनदेखी निर्धारित मापदण्डों का उलंघन कर अनियमितता को जन्म देती है। प्रदूषण नियंत्रण विभाग का मौन पर्यावरणीय संतुलन को बिगाडता है। सिंचाई विभाग की आंख पर बंधी पट्टी से किसानों के हितों पर कुठाराघात होता है। इन जैसी अनेक अव्यवस्थाओं के लिए हमेशा ही पुलिस को उत्तरदायी ठहराया जाता रहा है। मादक पदार्थों की बिक्री हो या अवैध परिवहन, बिना लाइसेंस के ड्राइवरी हो या बिना परमिट की बसों का संचालन। जंगल में अवैध कटान हो या ओवर लोडिंग। सभी में पुलिस को रेखांकित करने का फैशन सा चल निकला है। राष्ट्रीय प्रगति हेतु व्यवस्था से जुडे सभी विभागों को करना होगा अपने दायित्वों का शतप्रतिशत निवहन तभी हम फिर से सोने की चिडिया का पदक पा सकेंगे। हमने उनके लम्बे व्याख्यान को बीच में ही रोकते हुए समाधान की दिशा में की जा रही पहल का विश्लेषण करने को कहा, तो उन्होंने कर्तव्यपरायणता का आइना खडा कर दिया। व्यवस्था से जुडे सभी विभाग जब तक स्वयं के दायत्विों की पू्र्ति नहीं करते, तब तक सुव्यवस्था की शतप्रतिशत स्थापना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। ऐसे में पुलिस की भूमिका पर पूछे गये सवाल के जबाब में उन्होंने कहा कि पुलिस हमेशा ही अपराधों में कमी के लिए प्रयास करती है तभी तो अवैध मादक पदार्थों से लेकर असलहों तक की जप्ती करती है। अवैध परिवहन में लगे वाहनो का चालान करती है। इसी तरह के  प्रयासों को हमेशा पुलिस ने राष्ट्रहित में अंगीकार किया है। अन्य विभागों की लापरवाहियों से उपजी समस्याओं को निदान किया है। पुलिस को हमेशा समाज की व्यवस्था का पूरा भान रहा है, है और रहेगा। चर्चा चल ही रही थी कि तभी उनके अर्दली ने चाय और स्वल्पाहार की ट्रे लेकर चैम्बर में प्रवेश किया। बातचीत में व्यवघान उत्पन्न हुआ किन्तु तब तक हमें अपने विचारों को दिशा देने हेतु पर्याप्त सामग्री प्राप्त हो चुकी थी। सो इस विषय पर फिर कभी लम्बे विचार विमर्श के आश्वासन के साथ चाय और स्वल्पाहार को सम्मान देने की पहल शुरू कर दी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। जयहिंद।

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