सहज
संवाद/डा. रवीन्द्र अरजरिया
चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर यान उतारे का प्रयास करना भी कम बडी बात नहीं थी। वैज्ञानिकों ने विश्व को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया। कम लागत पर बडी उपलब्धियों के लिए संकल्पित होना और उस दिशा में उल्लेखनीय कार्य करना, दौनों ही रेखांकित करने योग्य कारक हैं। तकनीक सौ प्रतिशत सफल होगी, इसका प्रमाण पत्र प्राप्त करना बेहद कठिन है। बधाई उन वैज्ञानिकों को जिन्होंने दुर्लभ लक्ष्य के लिए प्रयास किये और बधाई उन व्यवस्थाओं को भी जिन्होंने संसाधन उपलब्ध कराये। इस मध्य एक बहस सामने आई कि देश के आम आवाम की मूलभूत सुविधाओं की कीमत पर प्रदर्शनकारी परियोजनाओं को पूरा करना, कहां तक तर्क संगत है। गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों की संख्या में निरंतर बढोत्तरी हो रही है। दूसरी ओर गरीबी हटाओ जैसे अभियानों के लिए बडे बजट का प्राविधान किया जा रहा है। दौनों ओर के प्रयास और परिणामों ने धरातल पर वही ढाक के तीन पात की उपस्थिति दर्ज करायी। अभियानों पर खर्च होने वाली बडी राशि के उपरान्त प्राप्त होने वाला कागजी आंकडों का बडा बंडल स्वयं की पीठ थपथपाने के लिए ही उपयोगी साबित हो रहा है। जमीनी हकीकत तो बद से बदतर होती जा रही है। विचार चल ही रहे थे कि तभी फोन की घंटी ने व्यवधान उत्पन्न कर दिया। दूसरी ओर से वित्त सेवा संवर्ग को अपनी सेवायें देने वाले दिलीप गुप्ता की आवाज सुनाई पडी। वर्षों बाद उन्होंने फोन किया था। कुशलक्षेम पूछने-बताने के बाद हमने उन्हें अपने चल रहे विचारों से अवगत कराया। सरकार की उपलब्धियां गिनवाते हुए उन्होंने कहा कि देश में संसाधन बढे हैं, सुविधायें बढीं हैं, लोगों के जीवनस्तर में सुधार हुआ है। सभी सरकारों ने अपनी-अपनी नीतियों-रीतियों के अनुसार देश को आगे बढाने का काम किया है। बैलगाडी के युग से निकलकर हम मैट्रो तक पहुंच गये, बुलेट ट्रेन तक पहुंचने वाले हैं। हमने उनके इस प्रशंसात्मक व्याख्यान पर रोक लगाते हुए आम आदमी के हितों की कीमत पर विश्व मंडल में ख्याति प्राप्त करने के उपायों पर समीक्षा चाही। राष्ट्र की छवि को संसार के सामने ऊंचा उठाने बात रखते हुए उन्होंने कहा कि आज रिक्सा चलाने वाला भी टच स्क्रीन वाला सेट उपयोग में ले रहा है। चाय भी हम फोन करके ही मंगाते हैं। यह विकास नहीं है तो और क्या है। पहले लैंड लाइन के लिए भी लम्बी-लम्बी लाइनें लगी रहतीं थीं। रेडियो के लिए भी लाइसेंस की जरूरत होती थी। साइकिल का भी पंजीकरण हुआ करता था। आज हम उन्मुक्त जिन्दगी जी रहे है। विश्वस्तरीय सुविधायें हमारी चौखट के अंदर किलकोरियां कर रहीं हैं। हमने उन्हें पुनः विषय के अंदर लाने की नियत से एक बार फिर टोका। आम आवाम के हितों की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि शारीरिक सुख से लेकर भविष्य के संरक्षण तक के संसाधन उपलब्ध हैं, उन्हें खरीदने की क्षमता लोगों में है। यह सब कुछ हुआ है सरकारी प्रयासों से। वास्तविकता को स्वीकारने में कोताही नहीं बरतना चाहिये। अपवाद हर स्थान पर हैं परन्तु यह कहते हुए भी हमें परहेज नहीं है कि बेमानी होगी रोटी की कीमत पर आभूषणों की चाहत। प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति हर हालत में आवश्यक है। बाकी सब बाद में होना चाहिये। स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार का अभाव देश की प्रगति के लिए घातक होता है। चर्चा चल ही रही थी कि काल वेटिंग में हमें आपने कार्यालय के फोन की घंटी सुनाई देने लगी। उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराया और निकट भविष्य में इस विषय़ पर विस्तार से बात करने के आश्वासन के साथ फोन डिस्कनेक्ट कर दिया। इस मध्य हमें अपने मन में चल रहे विचारों को गति देने हेतु पर्याप्त सामग्री प्राप्त हो चुकी थी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। जय हिंद।
Dr. Ravindra Arjariya
Accredited Journalist
for cont. -
dr.ravindra.arjariya@gmail.com
ravindra.arjariya@gmail.com
ravindra.arjariya@yahoo.com
+91 9425146253
चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर यान उतारे का प्रयास करना भी कम बडी बात नहीं थी। वैज्ञानिकों ने विश्व को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया। कम लागत पर बडी उपलब्धियों के लिए संकल्पित होना और उस दिशा में उल्लेखनीय कार्य करना, दौनों ही रेखांकित करने योग्य कारक हैं। तकनीक सौ प्रतिशत सफल होगी, इसका प्रमाण पत्र प्राप्त करना बेहद कठिन है। बधाई उन वैज्ञानिकों को जिन्होंने दुर्लभ लक्ष्य के लिए प्रयास किये और बधाई उन व्यवस्थाओं को भी जिन्होंने संसाधन उपलब्ध कराये। इस मध्य एक बहस सामने आई कि देश के आम आवाम की मूलभूत सुविधाओं की कीमत पर प्रदर्शनकारी परियोजनाओं को पूरा करना, कहां तक तर्क संगत है। गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों की संख्या में निरंतर बढोत्तरी हो रही है। दूसरी ओर गरीबी हटाओ जैसे अभियानों के लिए बडे बजट का प्राविधान किया जा रहा है। दौनों ओर के प्रयास और परिणामों ने धरातल पर वही ढाक के तीन पात की उपस्थिति दर्ज करायी। अभियानों पर खर्च होने वाली बडी राशि के उपरान्त प्राप्त होने वाला कागजी आंकडों का बडा बंडल स्वयं की पीठ थपथपाने के लिए ही उपयोगी साबित हो रहा है। जमीनी हकीकत तो बद से बदतर होती जा रही है। विचार चल ही रहे थे कि तभी फोन की घंटी ने व्यवधान उत्पन्न कर दिया। दूसरी ओर से वित्त सेवा संवर्ग को अपनी सेवायें देने वाले दिलीप गुप्ता की आवाज सुनाई पडी। वर्षों बाद उन्होंने फोन किया था। कुशलक्षेम पूछने-बताने के बाद हमने उन्हें अपने चल रहे विचारों से अवगत कराया। सरकार की उपलब्धियां गिनवाते हुए उन्होंने कहा कि देश में संसाधन बढे हैं, सुविधायें बढीं हैं, लोगों के जीवनस्तर में सुधार हुआ है। सभी सरकारों ने अपनी-अपनी नीतियों-रीतियों के अनुसार देश को आगे बढाने का काम किया है। बैलगाडी के युग से निकलकर हम मैट्रो तक पहुंच गये, बुलेट ट्रेन तक पहुंचने वाले हैं। हमने उनके इस प्रशंसात्मक व्याख्यान पर रोक लगाते हुए आम आदमी के हितों की कीमत पर विश्व मंडल में ख्याति प्राप्त करने के उपायों पर समीक्षा चाही। राष्ट्र की छवि को संसार के सामने ऊंचा उठाने बात रखते हुए उन्होंने कहा कि आज रिक्सा चलाने वाला भी टच स्क्रीन वाला सेट उपयोग में ले रहा है। चाय भी हम फोन करके ही मंगाते हैं। यह विकास नहीं है तो और क्या है। पहले लैंड लाइन के लिए भी लम्बी-लम्बी लाइनें लगी रहतीं थीं। रेडियो के लिए भी लाइसेंस की जरूरत होती थी। साइकिल का भी पंजीकरण हुआ करता था। आज हम उन्मुक्त जिन्दगी जी रहे है। विश्वस्तरीय सुविधायें हमारी चौखट के अंदर किलकोरियां कर रहीं हैं। हमने उन्हें पुनः विषय के अंदर लाने की नियत से एक बार फिर टोका। आम आवाम के हितों की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि शारीरिक सुख से लेकर भविष्य के संरक्षण तक के संसाधन उपलब्ध हैं, उन्हें खरीदने की क्षमता लोगों में है। यह सब कुछ हुआ है सरकारी प्रयासों से। वास्तविकता को स्वीकारने में कोताही नहीं बरतना चाहिये। अपवाद हर स्थान पर हैं परन्तु यह कहते हुए भी हमें परहेज नहीं है कि बेमानी होगी रोटी की कीमत पर आभूषणों की चाहत। प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति हर हालत में आवश्यक है। बाकी सब बाद में होना चाहिये। स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार का अभाव देश की प्रगति के लिए घातक होता है। चर्चा चल ही रही थी कि काल वेटिंग में हमें आपने कार्यालय के फोन की घंटी सुनाई देने लगी। उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराया और निकट भविष्य में इस विषय़ पर विस्तार से बात करने के आश्वासन के साथ फोन डिस्कनेक्ट कर दिया। इस मध्य हमें अपने मन में चल रहे विचारों को गति देने हेतु पर्याप्त सामग्री प्राप्त हो चुकी थी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। जय हिंद।
Dr. Ravindra Arjariya
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