रूद्रप्रयाग:
द्वितीय केदार भगवान मद्दमहेश्वर के कपाट आज पूरे विधि-विधान और मंत्रोचांरण के साथ खोल दिए गए हैं। ग्रीष्मकाल के छः माह यही पर द्वितीय केदार भगवान मद्दमहेश्वर की पूजा अर्चना की जायेगी।
19 मई को अपने शीतकाली गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर से भगवान की चल विग्रह उत्सव डोल निकल कर आज अपने अंतिम पडाव गौडार गांव से धाम पहुंची है ,जहां लग्नुसार 11 बजकर 10 मिनट पर भगवान मद्दमहेश्वर मंदिर के कपाट खोले गए।
पंच केदारों में भगवान मद्दमहेश्वर धाम की अपनी अलग ही महिमा है। इस धाम से जुड़ी विभिन्न परौराणिक मान्यताएं और वर्जनाएं का निर्वहन आज भी पूरे मनोयोग से किया जाता है।
इस धाम की एक विशेष मान्यता यह है कि यहां भगवान की उत्सव डोली सीधे मंदिर में प्रवेश नहीं करती है।
शंख की ध्वनि बनने के बाद ही उत्सव डोली धाम में प्रवेश करती हैं जबकि इस प्रक्रिया के दौरान धाम के एक किमी के दायरे में भण्डारी के अलावा और कोई भी मौजूद नहीं रहता है। रीति रिवाजों और मान्यताओं के अनुसार भगवान के यात्रा पड़ाव गौडार गाँव के बाद ढोल और दमाऊ बजाना भी यहां पूर्णतः वर्जित है।
द्वितीय केदार भगवान मद्दमहेश्वर के कपाट आज पूरे विधि-विधान और मंत्रोचांरण के साथ खोल दिए गए हैं। ग्रीष्मकाल के छः माह यही पर द्वितीय केदार भगवान मद्दमहेश्वर की पूजा अर्चना की जायेगी।
19 मई को अपने शीतकाली गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर से भगवान की चल विग्रह उत्सव डोल निकल कर आज अपने अंतिम पडाव गौडार गांव से धाम पहुंची है ,जहां लग्नुसार 11 बजकर 10 मिनट पर भगवान मद्दमहेश्वर मंदिर के कपाट खोले गए।
पंच केदारों में भगवान मद्दमहेश्वर धाम की अपनी अलग ही महिमा है। इस धाम से जुड़ी विभिन्न परौराणिक मान्यताएं और वर्जनाएं का निर्वहन आज भी पूरे मनोयोग से किया जाता है।
इस धाम की एक विशेष मान्यता यह है कि यहां भगवान की उत्सव डोली सीधे मंदिर में प्रवेश नहीं करती है।
शंख की ध्वनि बनने के बाद ही उत्सव डोली धाम में प्रवेश करती हैं जबकि इस प्रक्रिया के दौरान धाम के एक किमी के दायरे में भण्डारी के अलावा और कोई भी मौजूद नहीं रहता है। रीति रिवाजों और मान्यताओं के अनुसार भगवान के यात्रा पड़ाव गौडार गाँव के बाद ढोल और दमाऊ बजाना भी यहां पूर्णतः वर्जित है।
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