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नई दिल्ली;

मनुष्य के नव निर्माण एवं विश्व सेवा पटल पर सेवा के मार्ग पर चलने और लोगों को जागृत करने के लिए स्वयं में ज्ञान की किरणों को प्रज्जवलित करना जरूरी है। इसलिए कहा जाता है कि उस ज्ञान को जानो, उस आनंद के स्रोत को जानो जो हमारे अंदर ही है। उक्त विचार माताश्री मंगला जी ने श्री हंसलोक आश्रम छत्तरपुर में श्री हंस जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित विशाल सत्संग समारोह में व्यक्त किए।
इस विशाल सत्संग समारोह में हजारों की संख्या में उपस्थित भक्तों को संबोधित करते हुए माताश्री मंगला जी ने कहा कि आज के समय में सेवा के मार्ग पर चलना बहुत कठिन है, लेकिन कोशिश करने पर हर मार्ग तय किया जा सकता है और जब आप इस मार्ग को तय करते हैं तो आप जरूरतमंदों के लिए बहुत प्रेरक शक्ति होते है। किसी के लिए ज्ञान के रूप में किसी के लिए सेवा के रूप में और किसी के लिए नये मार्ग के निर्माण के रूप में और यह सब तब ही होगा जब हम अपने अंदर के ज्ञान को जानेगें उसके स्रोत को जानेगें।
माताश्री मंगला जी ने इस मौके पर कहा कि आज देश के लगभग हर कौने से इस सत्संग में भक्तगण आए हैं। यह इसलिए कि आप सब जानते हैं कि जो सेवा का मार्ग हमने चुना है। उस मार्ग पर हमारे साथ असंख्य लोगों चल रहे हैं। हमारे लिए इससे ज्यादा खुशी कि बात क्या हो सकती है।

हमारे लिए यह सौभाग्य की बात है कि हम आप सब के साथ चलते हुए आज देश भर में कई जरूरतमंद बच्चों के उत्थान के लिए कई स्कूलों का संचालन कर रहे हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में उत्तराखंड के सतपुली में हंस जरनल अस्पताल, हरिद्वार में हंस आई कैयर अस्पताल के साथ हमारे द्वारा समय-समय पर पहाड़ के दूर-दराज के इलाकों में निरंतर मेडिकल कैंपो का आयोजन किया जा रहा। जिनमें हजारों मरीज स्वास्थ्य लाभ ले रहे है। इसके अलावा भी बहुत सारी सेवाएं है जो गरीब एवं जरूरतमंद लोगों को प्रदान की जारी है।

श्री हंस जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित इस विशाल सत्संग के पहले दिन राजेश्वरी करुणा स्कूल मैखंडा, नवदीप चिल्ड्रन अकादमी पोखरा, बोक्सा जनजाति जूनियर हाई स्कूल कोटद्वार, राजेश्वरी स्कूल मसूरी, राजेश्वरी करुणा स्कूल भाटी माइंस एवं मनु मंदिर जूनियर हाई स्कूल हरिद्वार के स्कूल के बच्चों ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया।
इस मौके पर माताश्री मंगला जी एवं श्रीभोलेजी महाराज जी ने सत्संग में आए संत-महात्माओं, भक्तों एवं उपस्थित स्वजनों का आभार व्यक्त किया।

जगमोहन 'आज़ाद'

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