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रुद्रप्रयाग:
स्थानीय सब्जियों से सजे रहने वाले बाजार इन दिनों खाली चल रहे हैं। जिसके चलते स्थानीय लोगों को बाहरी प्रान्तों से आने वाली सडी-गली सब्जियों को ही खरीदना पड रहा है। वहीं स्थानीय उत्पादों को बडावा देने की प्रशासनिक कोशिशें  भी कहीं नजर नहीं आ रही हैं ना तो स्थानीय उत्पादों की विक्री के लिए अलग से बाजार तय किया गया है और ना ही दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में पैदा होने वाली सब्जियों को मुख्य शहरों तक पहुंचाने की ब्यवस्था।
 जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में इन दिनों स्थानीय सब्जियों के तौर पर लौंकी, आलू, लिंगडा, तोरी, कद्दू, चिचेण्डा, सब्जी वाली मूली, बैंगन, फ्रासबीन व टमाटर सहित कई उत्पाद होते हैं जिनसे बाजार भरे रहते हैं। मगर इस बार ये सभी उत्पाद बाजारों से गायब हैं और बाहरी प्रदेशों की सब्जियां ही बाजारों में मिल रही हैं। वहीं कास्तकार  राकेश बिष्ट का आरोप है कि उचित बाजार न मिलने व उत्पाद को बाजारों तक पहुंचाने की सुविधा न होना तो बडा कारण है ही साथ ही सरकार द्वारा कास्तकारों को सहयोग न किये जाने से कास्तकारों का इस और ज्यादा घ्यान नहीं है। 

वहीं जिले के मुख्य विकास अधिकारी  एनएस रावत भी मानते हैं कि स्थानीय उत्पादों के लिए अभीतक अलग से बाजार  नियत नहीं हो पाया है जिससे कास्तकारों को अपने उत्पादों के लिए अलग बाजार नहीं मिल पा रहा है और बिचैलिए इसका फायदा उठा रहे हैं। कहा कि सीघ्र ही स्थानीय उत्पादों के विक्रय के लिए मुख्यालय पर अलग से स्थान का चयन किया जायेगा।

भले ही जिले में सब्जी उत्पादन के लिए सैकडों की तादाद में राजसहायतित समूह व स्वयं सेवी संगठन कार्य कर रहे हैं मगर विभागीय लापरवाहियों का परिणाम है कि उत्पाद बाजारों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं और कास्तकारों को उनकी मेहनत का फायदा नहीं मिल पा रहा है। यही कारण है कि भारी मात्रा में सब्जी उत्पादन होने के बावजूद भी बाजारों में उत्पाद नहीं पहुंच पा रहे हैं।   

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