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 पूणा में दादा जे पी वासवानी जी के 100 जन्मदिवस के अवसर पर आयोजित दिव्य कार्यक्रम में परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज और माननीय लाल कृष्ण अडवानी जी उपस्थित थे।

 2 अगस्त 2018 को सौ वर्षो का जीवन काल पूर्ण करने से पहले आध्यात्मिक गुरू दादा वासवानी जी पंचतत्व में विलीन हो गये परन्तु संत तो हमेशा ही पूर्ण होते है इसी क्रम में दादा जे पी वासवानी जी की पावन स्मृति में परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने दादा स्मृति वाटिका में 100 फलदार, छायादार और रूद्राक्ष के पौधोें का रोपण के संकल्प के साथ दादा वासवानी जी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

 दादा वासवानी जी का जीवन चन्दन की तरह सुगंधित रहा, उनके जीवन की सुगंन्ध से देश और दुनिया के लाखों लोगों को मार्गदर्शन प्राप्त हुआ और उनके उपदेशों से लाखों लोग अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन कर पाये। स्वामी जी महाराज ने कहा कि दादा थे, दादा है और वे हमेशा अपने विचारों के माध्यम से लोगों के मस्तिष्क में जिंदा रहेगे। दादा के विचार ही हमारे लिये ’लाइट और लाइफ’ है और कहा कि यह सम्पत्ति का मामला नहीं बल्कि संस्कृति की बात है। दादा वासवानी ने क्या खड़ा किया केवल यह महत्वपूर्ण नहीं है परन्तु किस-किस को खड़ा किया, किस-किस के दिल को छुआ यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। दादा तो सत्य, प्रेम और करूणा के अवतार थे, वे हिमालय सी ऊचाँई, सागर सी गहराई और गंगा सी पवित्रता लिये हुये पूरे विश्व में भ्रमण करते हुये प्रेम और भारतीय संस्कृति  का संदेश प्रसारित करते रहे। दादा विनम्रता की  प्रतिमूर्ति थे उनके अन्दर कोई अकड़ नहीं कोई पकड़ नहीं। उन्होने शिक्षा, चिकित्सा के संस्थान खड़े किये ये संस्थायें उसी गरिमा के साथ चलती रहे यही उनको हमारी ओर से श्रद्धांजलि होगी।
स्वामी जी महाराज ने दादा के साथ बितायी हुयी स्मृतियों को याद करते हुये कहा कि दादा को गंगा तट और ऋषिकेश अत्यंत प्रिय था इसलिय गंगा के तट पर दादा स्मृति वाटिका में 100 पौधों का रोपण किया जायेगा। वे जिस प्रकार पूरी दुनिया को प्रेम की छत्र-छाया देेते रहे वैसे ही यह दादा स्मृति वाटिका के वृ़क्ष भी सभी को अपनी छाया देते रहेगे।
स्वामी जी महाराज ने कहा कि दादा वासवानी जी का पूरा जीवन ही लोक कल्याण के लिये समर्पित था ’’इद्म राष्ट्राय स्वाहः इद्म नमम्’’ ’’योगः कर्मसु कौशलं’’।  लोग तो कल्याण के लिये हवन करते है; यज्ञ करते है परन्तु उनका तो जीवन ही यज्ञ था, एक ऐसा यज्ञ जिसमें उन्होने अपने पूरे जीवन को आहूति के रूप में भारतीय संस्कृति; वैश्विक संस्कृति और विश्व एक परिवार है के लिये लगा दिया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती.ने दादा वासवानी . को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये वहा दस हजार से अधिक संख्या में उपस्थित भक्तों को पर्यावरण एवं जल संरक्षण तथा वृक्षारोपण का संकल्प कराया। स्वामी जी ने वहां पर भारी संख्या में उपस्थित सिंधी समाज के लोगों को को प्रभावपूर्ण शब्दों में उद्बोधन देते हुये कहा कि वे जनकल्याण के कार्यो हेतु आगे आये और स्वच्छ जल, शौचालय निर्माण तथा अपनी जड़ों और संस्कारों से जुडने का संदेश दिया। उन्होने कहा कि दादा सार्वभौमिक, गैर साम्प्रदायिक, विलक्षण प्रतीभा सम्पन्न प्रेम और अहिंसा के मसीहा थे।
स्वामी जी ने कहा कि जीव दया और प्रेम की भावना को आत्मसात कर जीवन जीना ही हमारी ओर से दादा जे पी वासवानी जी के लिये सच्ची श्रद्धांजलि होगी। दादा वासवानी सार्वभौमिक, गैर साम्प्रदायिक, विलक्षण प्रतीभा सम्पन्न प्रेम और अहिंसा के मसीहा थे हमें उनके इन आदर्शो पर चलना चाहिये। स्वामी जी ने कहा कि दादा वासावानी ’’सेंट आॅफ द सेन्चुरी’’ है और इस शताब्दि के अन्यतम् संतों में उनकी गणना होगी, विश्व उनसे मार्गदर्शन लेता रहेगा।

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