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सहज संवाद / डा. रवीन्द्र अरजरिया

धर्मविहीन होती हैं आतंकवाद की पाठशालायें
देश के राजनैतिक परिदृश्य में चुनावी शंखनाद की अघोषित आवाजें गूंजने लगीं है। दलगत पैतरेबाजी ने सोची-समझी योजनाओं को मूर्त रूप देना शुरू कर दिया है। शब्दों को तीर बनाकर पार्टियों के कंधों से महाराथियों द्वारा चलाया जा रहा है। ऐसे में आम आवाम की व्यक्तिगत सोच को केवल और केवल घायल ही किया जा रहा है। कभी आतंकवाद को ज्वलंत मुद्दा बनाकर सीमा पार से होने वाली घुसपैठ को, चर्चाओं के केन्द्र में लाया गया। तो अब उस आतंकवाद को भी वर्गीकृत करके हिन्दू आतंकवाद की परिभाषा में कैद किया जाने लगे। रंगों, जातियों और सम्प्रदायों में बांटने वाले लोग वर्तमान में विध्वंस को भी मुनाफे का सौदा बनाने में जुट गये हैं। कभी भगवां आतंकवाद, कभी हिंदू आतंकवाद और कभी संघीय आतंकवाद जैसे नये-नये शब्द व्यवहार में आ रहे हैं, तो कभी समूची अल्पसंख्यक विरादरी को ही कटघरे में खडा कर दिया जाता है। विचारों के प्रवाह की गति, कार की रफ्तार से भी तेज थी। तभी एक चौराहे पर लाल बत्ती होने के कारण गाडी रुकी। ठीक बगल में खडी कार पर नजर पडी। चौंकना लाजमी था। उस गाडी की पिछली सीट पर हमें अपने पुराने मित्र आविद सिद्दीकी नजर आये। शीशा नीचे किया। उन्हें इशारा किया। वे भी हमें पहचाने की कोशिश कर रहे थे। हमारा संकेत देखकर उनके चेहरे पर मुस्कुराहट छा गई। हरी बत्ती होते ही हम दौनों ने आगे जाकर सडक के किनारे गाडियां रोकी। उतरते ही उन्होंने हमें गले लगाकर आत्मीयता की स्पन्दन दिया। हमें अतीत याद आ गया। जब न तो वे कांग्रेस के कद्दावर नेता थे और न ही हम पत्रकार। चल-चित्र की तरह गुजरा सजीव हो उठा। तभी उन्होंने कहीं बैठकर चर्चा करने की इच्छा जाहिर की। हम भी यही चाहते थे, परन्तु आफिस का समय भी हो रहा था। सो उन्हें भी आफिस चलने के लिए राजी कर लिया। आफिस में आमद दर्ज करने के बाद हम दौनों विजिटर केबिन में बैठ गया। काफी तथा नाश्ते का आर्डर दे दिया। आपसी कुशलक्षेम जानने-बताने के बाद हमने अपने विचारों के प्रवाह से उन्हें अवगत कराया। कांग्रेस के खास ओहदेदार के दायित्वों का निर्वहन करते हुए उन्होंने बोलना शुरू किया ही थी कि हमने उन्हें रटे-रटाये जुमले, पार्टी लाइन और राजनैतिक टोपीबाजी से बाहर आकर बात करने की हिदायत दी। एक जोरदार ठहाके के साथ उन्होंने औपचारिक शब्दावली त्यागकर व्यक्तिगत सोच पर ही केन्द्रित रहने की आश्वासन दिया। आतंकवाद को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि जाति, सम्प्रदाय, रंग जैसे कारकों के आधार पर आतंकवाद को वर्गीकृत नहीं किया जा सकता। मानवीयता के मुंह पर तमाचा है आतंकवाद। इसे जो भी आश्रय देते है, वह गुनाहगार है। जहां भी यह पनप रहा है, उसे अस्तित्वहीन कर देना चाहिये। यह न तो भगवां हो सकता है और न हरा। यह न तो हिन्दू हो सकता है और न ही मुसलमान। कलुषित मानसिकता का परिणाम है आतंकवाद। धर्मविहीन होतीं है आतंकवाद की पाठशालायें। उनका चेहरा तमतमा उठा। शब्दों में आक्रोश की गर्माहट थी। वर्तमान हालातों पर टिप्पणी करने के आग्रह पर उन्होंने कहा कि कांवडियों के क्रूरतम व्यवहार, गौ तस्करी के नाम पर हत्यायें और व्यक्तिगत जीवन शैली पर अंकुश जैसे अनुभवों को सुखद कदापि नहीं कहा जा सकता। वर्तमान सरकारों का अनियंत्रणकारी स्वरूप सामने आ रहा है, ऐसा पहले कभी नहीं आया। सरकारों की पकड से प्रशासनिक तंत्र निकल चुका है। तभी तो उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में महिलाजनित अपराधों को खुले आम हवा मिल रही है। सामाजिक संस्थाओं के नाम पर नारी उत्पीडन, घोटाले और मनमाने आचरणों का बाजार गर्म है। सत्ताधारियों के खुले संरक्षण के तले अपराध फलफूल रहा है। असामाजिकता की फसल लहलहा रही है। विषय से भटकाने के प्रयास में लगे आविद भाई को हमने बीच में ही टोकते हुए आरोपों-प्रत्यारोपों की जंग से बाहर आकर धरातल पर सकारात्मक विचारों से वर्तमान समस्या का समाधान करने की बात कही। कांग्रेसी विचारधारा के प्रभाव को विषयांतर होने के लिए उत्तरदायी ठहराते हुए उन्होंने कहा कि सोच के हर कोने में गांधीवाद की खुशबू है। नेहरू जी की नीतियां है। इन्दिरा जी का अनुशासन है। राजीव जी की जीवन्तता है और है सोनिया जी का समर्पण। फिर भी हम ध्यान रखेंगे कि आगे की बातचीत में हमारे प्रभावकारी कारक वर्चस्वशाली न बन सकें। हमने वर्तमान परिस्थियों का विश्लेषण और समस्याओं के समाधान हेतु सुझाव देने की गुजारिश की। आरएसएस को आडे हाथों लेते हुए उन्होंने कहा कि कांवडियों के तांडव से लेकर अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों का विधिवत प्रशिक्षण नागपुर में बैठे आकाओं के इशारे पर दिया ही दिया रहा है। गौरक्षा के नाम पर तो हत्या करने की खुली छूट ही मिल गई है। हमने उन्हें याद दिलाया कि कश्मीर की छाती पर बैठे अलगाववादी नेताओं की शह पर जहां हिन्दुओं को प्रदेश-निकाला दे दिया, वहीं सेना पर पथराव से लेकर हमलों तक को खुलकर हवा दी जा रही है। उन्होंने एक क्षण रुकने के बाद कहा कि यह सत्य है कि सीमापार से मिल रही शह देश की अखण्डता के लिए खतरा है। गुमराह किये जा रहे युवाओं को मुख्यधारा में वापिस लाना होगा। विश्वास जगाना होगा। उज्जवल भविष्य के अवसर देना होंगे। चर्चा चल ही रही थी कि वेटर ने केबिन की सेंटर टेबिल पर काफी और नाश्ता सजाना शुरू कर दिया। व्यवधान उत्पन्न हुआ परन्तु तब तक हमें हिन्दू आतंकवाद पर आम कांग्रेसी के व्यक्तिगत विचारों से परिचित होने का पर्याप्त अवसर प्राप्त हो चुका था। उनकी व्यक्तिगत सोच को पार्टीगत विचारधारा से पृथक करने सत्य का साक्षात्कार सकारात्मक दिशा की ओर ही इशारा कर गया। सीमापार से संचालित होने वाले आतंकवाद और चन्द लोगों के अहम की चक्की से निकलने वाले वक्तव्यों से वे कोसों दूर नजर आये।  सो काफी के साथ गर्मागर्म नाश्ते का आनन्द लेने में जुट गये। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी, तब तक के लिए खुदा हाफिज।     
Dr. Ravindra Arjariya
Accredited Journalist
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