Halloween party ideas 2015

सहज संवाद / डा. रवीन्द्र अरजरिया





जीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं में वायु और जल का महत्वपूर्ण स्थान है। आधुनिक विलासता के संसाधन खोजने से लेकर वर्चस्व की जंग हेतु ,आग्नेय शस्त्रों के अनुसंधान तक में प्रदूषण की सौगात मुफ्त में बांटी जा रही है। वायु और ध्वनि की कौन कहे हिमालय से निकलने वाली जल धाराओं तक के अस्तित्व पर संकट मंडराने  लगा है। हरियाली से आच्छादित रहने वाले पर्वत समाप्त जा रहे हैं। मैदानी भाग में पशुओं के आहार हेतु छोडी गई गौचर की सरकारी भूमि  नक़्शे  से गायब होती जा रही है। 
एयरकंडीशनर से उगलने वाली ऊष्मा का योगदान परमाणु विस्फोटों के प्रतिकूल प्रभावों के साथ मिलकर आनुपातिक विस्तार कर रहा है। विगत दो ,दशकों  में जीवन की सामान्य दिनचर्या बहुत तेजी से विघटित हुई है। विचारों का प्रवाह उगते हुए सूरज की गति से कहीं ज्यादा विस्तार पा रहा था। शीतल पवन के झौंके, हिमालय की छाया, मां गंगा की गोद और ईशावस्यम चेतना केन्द्र की ऊर्जा की संयुक्त अनुभूतियां भी मानसिक सोच को सांसारिक चिन्ता से दूर ले जाने में सफल नही हो पा रहीं थीं। जीवित जीवनियों के भयावह भविष्य की कल्पना मात्र से ही सिहरन उत्पन्न होने लगी थी। गगनचुम्बी हिमशिखर, कल-कल का नाद करती जलधारा और सुगन्धित बयार अपनी वर्तमान स्थिति की स्थिरता पर मूक प्रश्न कर रहे थे। ‘देवार्षि नारद की परम्परा के अनुयायी किस चिन्ता में मगन है’, शब्दों की गूंज से विचारों का प्रवाह अवरुद्ध हुआ।
 ध्वनि की दिशा में दृष्टि डाली। केन्द्र के संचालक स्वामी राघवेन्द्रानन्द सरस्वती जी की तपीय साधना से दमकती काया, आत्मिक मुस्कुराहट के साथ सामने थी। इसके पहले कि हम आसन छोडकर उनके सम्मान में खडे होते, वे हमारे नजदीक के आसन पर विराजमान हो गये। गंगोत्री धाम के इस केन्द्र की स्थापना महामण्डलेश्वर स्वामी वियोगान्नद जी सरस्वती ने अध्यात्मिक शक्ति पीठ के रूप में की थी। मौसम की जटिलताओं को धता बताते हुए महामण्डलेश्वर जी ने इसी स्थान पर अनेक वर्षों तक निरंतर तपस्या की थी। कठिन साधना से उत्पन्न ऊर्जा के भण्डार को जनकल्याणार्थ समर्पित करते हुए उन्होंने यहीं पर ईशावास्यम चेतना केन्द्र को मूर्तरूप दिया। स्वामी राघवेन्द्रानन्द जी उन्हीं की संत परम्परा को पूरे मनोयोग से गति दे रहे हैं। राघवेन्द्रानन्द जी ने हमारे कंघे पर हाथ रखते हुए कहा कि चिन्तन एक सकारात्मक दिशा है किन्तु चिन्ता उसका बिलकुल उल्टा है। इसी कारण चिन्तन से समाधान तक पहुंचना सम्भव होता है परन्तु चिन्ता से बेचैनी, झटपटाहट, तनाव जैसी विकृतियां दस्तक देने लगतीं हैं। हमने हिमालय के हिमरहित शिखरों की ओर इंगित करते हुए कहा कि कुछ वर्ष पहले तक यह सभी पर्वत वर्फ से ढके रहते थे, आज वे न हो हरियाली की चादर ओढे हैं और न ही वर्फ का श्रंगार। हमेशा मुस्कुराहट बिखेरने वाला उनका चेहरा पाषाण की तरह सपाट हो गया। माथे पर सिलवटे उभर आयीं। वाणी में गम्भीरता का समावेश हो गया।
 हिमालय की पीडा को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि निरन्तर क्षरण होने वाली ऊर्जा के कम होते भण्डार को पूर्ण करने हेतु, साधना के माध्यम से जागृत चेतना केन्द्रों की ओर लोगों का आगमन होता था। वर्तमान में इन केन्द्रों को ज्यादातर आगन्तुकों ने पर्यटन, मनोरंजन और शारीरिक सुख के साधन के रूप में स्वीकारना शुरू कर दिया है। सरकारें भी मानवीय अपेक्षाओं के अनुरूप कार्य करने लगीं हैं। अध्यात्मिक पक्ष कहीं खोने लगा है। आज मुट्ठी भर लोग ही हैं जो इन स्थानों के मौलिक स्वरुप को बचाने के प्रयास में लगे हुए हैं। बाकी तो हवा के रूख के साथ उडने लगे हैं यह जानते हुए भी कि आखिर उन्हें भी एक न एक दिन अपने पांव धरती पर टिकाना पडेंगे। उनका वाक्य पूरा होते ही हमने वर्तमान समय की भीषण प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित प्रश्न उछाला दिया। परिस्थितिजन्य कारकों की विवेचना करते हुए उन्होंने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं के लिए उत्तरदायी है अनुशासनविहीन मानवीय कृत्य। दूरगामी दृष्टिकोण को तिलाजंलि देकर वर्तमान सम्पन्न हेतु किये जाने वाले कार्यों का पुनर्मूल्यांकन आवश्यक है। सडकों की क्षमता के अनुपात के कई गुना ज्यादा वाहन, पौधारोपण के अनुपात से कहीं अधिक वृक्षों की कटाई, कार्यकर्ताओं से कहीं अधिक निरीक्षणकर्ताओं की संख्या, विकास के नाम पर अनावश्यक तोडफोड और पुनर्निर्माण जैसे कृत्यों का व्यवहारिक स्वरूप सामने है। भविष्य को हाशिये पर छोडकर, वर्तमान को सजाने के प्रयास ही विनाश का कारण बन रहे हैं। चर्चा चल ही रही थी की तभी केन्द्र में स्थापित मंदिर से घंटों की आवाजें आने लगीं। आरती का शंखनाद होने लगा। सत्य को समर्पित गायन के स्वर तेज होने लगे। संगतकारी वाद्ययंत्रों की मिश्रित ध्वनि ने वातावरण को अध्यात्मिकता के रंग में रंगना शुरू कर दिया। हमें अपनी जिज्ञासा का आंशिक समाधान मिल ही चुका था। सो स्वामी जी के साथ-साथ हमने भी मंदिर परिसर की ओर रुख किया। इस बार बस इतना ही, अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए खुदा हाफिज।
Dr. Ravindra Arjariya
Accredited Journalist
for cont. -
ravindra.arjariya@gmail.com
ravindra.arjariya@yahoo.com
+91 9425146253

एक टिप्पणी भेजें

www.satyawani.com @ All rights reserved

www.satyawani.com @All rights reserved
Blogger द्वारा संचालित.