सूबे के मुखिया और उस पर जनता दरबार , में दुखियारी महिला की अनदेखी, माननीय मुख्यमंत्री जी को भारी पड़ रही है। तमाम सोशल मीडिया में हाथों हाथ प्रसारण हो गया तो चैनलों में आज।
जहां जनता दरबार में और मोबाईल एप्प के जरिये आज तक मुख्यमंत्री ने तुरंत समस्याओं का निराकरण किया , वहीं एक दुखी अध्यापिका के अंतर्मन की व्यथा समझने में भूल कर बैठे।
अपने सहज स्वभाव के कारण जाने जाते है, मुख्यमंत्री जी फिर भी ऐसा क्या हो गया , जो महिला इतनी उग्र हो गयी।
महिला उत्तरा पन्त प्राइमरी स्कूल , उत्तरकाशी में है। महिला अपना स्थानांतरण उत्तरकाशी से देहरादून कराना चाहती थी। उनके पति की मृत्यु हो गयी है। बच्चे देहरादून में पढ़ते है। और 25 वर्षों से एक ही स्थान और दुर्गम क्षेत्र में है। जान लें ,
स्थानांतरण की अटकी है, कई फ़ाइल, पिछली सरकार के समय से ही प्रयासरत है, कर्मचारी।परंतु, अंततः सबका ठीकरा त्रिवेंद्र सिंह रावत के सिर पर फूट गया।
आपा खो देने का परिणाम हुआ कि महिला अध्यापिका के साथ वार्तालाप गले की फांस बन गया है।
महिला भी अपनी परिस्थितियों वश भावुक होकर और आपे से बाहर हो गयी, तीस पर माननीय मुख्यमंत्री जी को उस महिला को ससपेंड करने और गिरफ्तार करने का आर्डर देना , जनता को गलत प्रतीत होता है।
सारा मसला ही सुगम- दुर्गम नियमावली को लेकर है। सुगम और दुर्गम क्षेत्रों के पुराने चिन्हीकरण के कारण अनेक कर्मचारी स्थानांतरण नीति के दोषों का फल भुगत रहे है ,अनेक कर्मचारी. नेता प्रतिपक्ष भी मुख्यमंत्री के अपमान को सही नहीं कह रहे है परन्तु. "क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात " भी कहने से गुरेज नहीं है। महिला का बायो- डाटा निकाला गया। कब छुट्टी पर रही, कहाँ कहाँ गयी, किस नेता के साथ कैसा बर्ताव किया. ? और अंततः उसे मिली बर्खास्तगी.... क्यों न हो, जिसकी सरकार उसके हाथ? एक असहाय विधवा महिला पर गाज गिर गयी. जबकि जाने कितने रिश्ते नातों वाले, लोग सरकारी पैसे पर ऐश कर रहे है।
ये कैसा सन्देश दे बैठे ,प्रदेश के मुखिया अपने अधीनस्थों को ........ देवभूमि उत्तराखंड में नारियों का सम्मान सर्वोपरि है, मातृशक्ति की आंदोलन में अहम भूमिका रही है वहां मुख्यमंत्री के हाथों जाने- अनजाने कहीं ये पाप न माना जाये ।
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