रुद्रप्रयाग;
भूपेंद्र भंड़ारी
प्रदेश सरकार ग्रामीण कृषि की पैदावार बडाने व उन्नत कृषिकरण को लिए भले
ही नये प्रयोग कर रही है और ग्रामीण भी इसे अपना रहे हैं मगर पहाडों के
गांवों में आज भी पारंपरिक कृषि जारी है। और महिलाओं के कंधों का बोझ कम
नहीं हो रहा है।
रुद्रप्रयाग जनपद
के तल्लानागपुर क्षेत्र में आपको आज भी परंपरिक खेती देखने को मिल जायेगी।
यहां पर धान की खेती में जमे कूडे व खरपतवार को निकालने के लिए एक विशेष
प्रकार के हल का प्रयोग किया जाता है जिसे स्थानीय बोली में मयया कहा जाता
है। इसको चलाने के लिए दो लोग अपने शरीर पर रस्सियां बांधकर खींचते हैं और
एक ब्यक्ति पीछे से इसके जरिये खेतों को जोतते हैं। यह कार्य भले ही काफी
मेहनत व थकान भरा होता है मगर ग्रामीणों का मानना है कि इससे समय की बचत
होती है और खेत की सफाई हो जाती है। आज कृषिकरण के तमाम नये उपकरण प्रयोग
में आ रहे हैं बावजूद इन ग्रामीणों की इतनी मेहनत के बाद भी फसल को कभी
ओलावृटि तबाह कर देती है तो कभी सूखे व कभी जंगली जानवर खेती को तहस नहस कर
देते हैं।
महिलाओं
के उपर काम का बोझ तो अधिक है मगर ग्रामीण क्षेत्रों में कास्तकारों को
उनकी मेहनत का मेहनताना नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि
ग्रामीण कृषि को लेकर अलग से नीतियां बने जिससे पारंपरिक खेती भी जीवित रहे
और ग्रामीणों को फसलों से मुनाफा भी मिल सके।
एक टिप्पणी भेजें