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डोईवाला :



 डोईवाला विधानसभा के दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्र स्थित शेरा गोदी–बड़ेरना मार्ग की हालत बीते कई महीनों से बदहाल बनी हुई है। यह मार्ग थानों होमगार्ड प्रशिक्षण केंद्र से लगभग चार किलोमीटर आगे पड़ता है। स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि सिंचाई विभाग द्वारा किए गए कार्य के दौरान सड़क को क्षतिग्रस्त कर दिया गया, जिसे आज तक ठीक नहीं किया गया।

जानकारी के अनुसार कुछ माह पूर्व इस मार्ग पर सिंचाई विभाग द्वारा पाइपलाइन बिछाने का कार्य किया गया था। इस दौरान विभाग ने लगभग 8 इंच तक सड़क को तोड़ दिया, साथ ही पुरानी पाइपलाइन उखाड़ दी गई। कार्य के बाद सड़क और खुदाई किए गए गड्ढों को वैसे ही छोड़ दिया गया। बरसात के दौरान विभाग की लापरवाही के चलते मार्ग का एक हिस्सा बह गया, वहीं सुरक्षा दीवार भी क्षतिग्रस्त हो गई, जिसे अब तक पुनः निर्मित नहीं किया गया है।

स्थानीय निवासी आदर्श राठौर ने बताया कि उन्होंने इस समस्या को लेकर कई बार सिंचाई विभाग को अवगत कराया, लेकिन हर बार केवल आश्वासन देकर मामले को टाल दिया गया। उन्होंने कहा कि विभागीय लापरवाही के कारण ग्रामीणों को आवागमन में भारी परेशानी झेलनी पड़ी, खासकर बरसात के मौसम में स्थिति और भी भयावह हो गई।

इस संबंध में ग्राम पंचायत हल्द्वाडी की प्रधान शीला कठैत एवं उनके प्रतिनिधि अनिल कठैत ने भी बताया कि उन्होंने कई बार सिंचाई विभाग के अधिकारियों से संपर्क कर मार्ग की मरम्मत और सुरक्षा दीवार निर्माण की मांग की, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। ग्राम प्रधान ने बताया कि उन्होंने इस मामले को लेकर सिंचाई विभाग के एई सुरेश चंद्र तिवारी को भी कई बार अवगत कराया, परंतु समस्या जस की तस बनी हुई है।

वहीं ज्येष्ठ उप प्रमुख रायपुर संजय सिंधवाल ने कहा कि सिंचाई विभाग का कार्य समाप्त हुए 5 से 6 महीने बीत चुके हैं, लेकिन न तो सड़क की मरम्मत की गई है और न ही क्षतिग्रस्त सुरक्षा दीवार का पुनर्निर्माण किया गया है, जो विभागीय उदासीनता को दर्शाता है।

आदर्श राठौर ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि शीघ्र ही सिंचाई विभाग द्वारा अपने बजट से क्षतिग्रस्त मार्ग और सुरक्षा दीवार का निर्माण कार्य शुरू नहीं किया गया, तो समस्त ग्रामीण सिंचाई विभाग के मुख्यालय पर आंदोलन करने को मजबूर होंगे।

ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि जल्द से जल्द इस मामले का संज्ञान लेकर क्षेत्रवासियों को राहत दिलाई जाए, ताकि भविष्य में किसी बड़े हादसे से बचा जा सके।



आज दिनांक 22 दिसम्बर 2025 को मध्य रात्रि डिस्ट्रिक्ट कंट्रोल रूम (DCR) पौड़ी गढ़वाल से सूचना प्राप्त हुई कि मिरचोड़ नामक स्थान पर एक वाहन गहरी खाई में गिर गया है। 

vehicle fall down in deep ditch


उक्त सूचना पर SDRF टीम पोस्ट सतपुली से हेड कांस्टेबल महावीर रावत के हमराह तत्काल घटनास्थल के लिए रवाना हुई। 


उक्त घटना में वाहन संख्या UK12 CB 0607 लगभग 300 मीटर गहरी खाई में गिरा हुआ है, जिसमें एक व्यक्ति सवार था। SDRF टीम द्वारा त्वरित एवं सुसंगठित रेस्क्यू कार्रवाई करते हुए खाई में उतरकर उक्त व्यक्ति के शव को बरामद किया गया तथा मुख्य मार्ग तक लाया गया। इसके पश्चात शव को आवश्यक विधिक कार्रवाई हेतु जिला पुलिस के सुपुर्द किया गया।


*मृतक का विवरण निम्नवत है—*

नाम : सरदार सिंह

पिता का नाम : वीर सिंह

उम्र : 55 वर्ष

निवासी : ग्राम मरगांव, जिला पौड़ी गढ़वाल।

 

राष्ट्रपति ने विकसित भारत - रोज़गार और आजीविका के लिए गारंटी मिशन (ग्रामीण) : वीबी–जी राम जी (विकसित भारत- जी राम जी) विधेयक, 2025 को अपनी स्वीकृति प्रदान की

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अधिनियम से रोज़गार की वैधानिक गारंटी 125 दिनों तक बढ़ी

भविष्य की अगुवाई पंचायतें करेंगी - योजना बनाने की शक्ति ग्राम सभा और पंचायतों के पास


विकसित भारत–जी राम जी विधेयक, विकसित भारत@2047 के विज़न के अनुरूप

प्रविष्टि तिथि: 21 DEC 2025 4:30PM by PIB Delhi

राष्ट्रपति ने विकसित भारत-रोज़गार और आजीविका के लिए गारंटी मिशन (ग्रामीण) : वीबी–जी राम जी (विकसित भारत-जी राम जी) विधेयक, 2025 को आज अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है, जो ग्रामीण रोज़गार नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव है। यह अधिनियम ग्रामीण परिवारों के लिए प्रति वित्तीय वर्ष मज़दूरी रोज़गार की वैधानिक गारंटी को 125 दिनों तक बढ़ाता है और सशक्तिकरण, समावेशी विकास, योजनाओं के अभिसरण (कन्वर्जेस) तथा परिपूर्ण (सेचूरेशन) तरीके से सेवा–प्रदाय को आगे बढ़ाने का प्रयास करता है, जिससे समृद्ध, सक्षम और आत्मनिर्भर ग्रामीण भारत की नींव मजबूत होती है।


इससे पूर्व, संसद ने विकसित भारत-रोज़गार और आजीविका के लिए गारंटी मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025 पारित किया था, जिसने भारत के ग्रामीण रोज़गार और विकास ढांचे में एक निर्णायक सुधार का मार्ग प्रशस्त किया है। 


यह अधिनियम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (महात्मा गांधी नरेगा) को प्रतिस्थापित करते हुए आजीविका सुरक्षा को सुदृढ़ करने वाला एक आधुनिक वैधानिक ढांचा प्रदान करता है, जो विकसित भारत@2047 के राष्ट्रीय विज़न के अनुरूप है।


सशक्तिकरण, विकास, कन्वर्जेंस और परिपूर्णता (सेचूरेशन) के सिद्धांतों पर आधारित यह अधिनियम ग्रामीण रोज़गार को केवल एक कल्याणकारी योजना से आगे बढ़ाकर विकास का एक एकीकृत माध्यम बनाता है। यह ग्रामीण परिवारों की आय सुरक्षा को सुदृढ़ करता है, शासन और जवाबदेही को आधुनिक बनाता है तथा मज़दूरी रोज़गार को टिकाऊ और उत्पादक ग्रामीण परिसंपत्तियों के सृजन से जोड़ता है, जिससे समृद्ध एवं सक्षम ग्रामीण भारत की नींव और अधिक मजबूत होती है।


अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं


रोज़गार की वैधानिक गारंटी में वृद्धि


यह अधिनियम प्रत्येक वित्तीय वर्ष में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को कम से कम 125 दिनों के मज़दूरी रोज़गार की वैधानिक गारंटी प्रदान करता है, बशर्ते परिवार के वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक हों। (धारा 5(1))

पूर्व में उपलब्ध 100 दिनों के रोजगार के अधिकार की तुलना में यह वृद्धि ग्रामीण परिवारों की आजीविका को सुरक्षा प्रदान करती है, काम को पहले से अनुमानित करती है और उनकी आय को अधिक स्थिर बनाती है। इसके साथ ही उन्हें राष्ट्रीय विकास में अधिक प्रभावी और सार्थक योगदान देने में सक्षम बनाती है।

कृषि और ग्रामीण श्रम के बीच संतुलित प्रावधान


बुवाई और कटाई के चरम सीजन के दौरान कृषि से संबंधित गतिविधियों हेतु कृषि श्रम की उपलब्धता आसान करने के लिए, यह अधिनियम राज्यों को एक वित्तीय वर्ष में कुल 60 दिनों की समेकित विराम अवधि अधिसूचित करने का अधिकार प्रदान करता है। (धारा 6)

श्रमिकों को मिलने वाले कुल 125 दिनों के रोज़गार के अधिकार यथावत बनी रहेगी, जिसे शेष अवधि में प्रदान किया जाएगा, जिससे कृषि उत्पादकता और श्रमिकों के हितों की सुरक्षा के मध्य संतुलित समायोजन सुनिश्चित होता है।

समय पर मज़दूरी भुगतान


यह अधिनियम मज़दूरी का भुगतान साप्ताहिक आधार पर अथवा किसी भी स्थिति में कार्य की समाप्ति के पंद्रह दिनों के भीतर किए जाने को अनिवार्य करता है (धारा 5(3))। निर्धारित अवधि से अधिक विलंब होने की स्थिति में, अनुसूची–II में उल्लिखित प्रावधानों के अनुसार विलंब मुआवज़ा देय होगा, जिससे मज़दूरी सुरक्षा को सुदृढ़ किया जाता है और श्रमिकों को विलंब से संरक्षण प्रदान किया जाता है।

टिकाऊ और उपयोगी ग्रामीण अवसंरचना से जुड़ा रोजगार


इस अधिनियम के अंतर्गत मज़दूरी रोज़गार को चार प्राथमिक विषयगत क्षेत्रों में टिकाऊ सार्वजनिक परिसम्पत्तियों के सृजन के साथ स्पष्ट रूप से जोड़ा गया है (धारा 4(2), अनुसूची–I के साथ पठित):


जल सुरक्षा एवं जल से संबंधित कार्य

मुख्य ग्रामीण अवसंरचना

आजीविका से संबंधित अवसंरचना

प्रतिकूल मौसमीय घटनाओं के प्रभाव को कम करने वाले कार्य

सभी कार्य बॉटम-अप एप्रोच यानि गाँव स्तर से प्रस्तावित किए जाते हैं, तथा सृजित सभी परिसंपत्तियों को विकसित भारत राष्ट्रीय ग्रामीण अवसंरचना स्टैक में समेकित किया जाता है, ताकि सार्वजनिक संसाधनों का कंवर्जेंस, विखंडन से बचाव और स्थानीय ज़रूरत के अनुसार आवश्यक ग्रामीण अवसंरचना के निर्माण सेचूरेशन लक्ष्य के आधार पर परिणाम-आधारित योजना सुनिश्चित हो सके।  


राष्ट्रीय स्तर पर अभिसरण के साथ विकेन्द्रीकृत योजना निर्माण


सभी कार्य ‘विकसित ग्राम पंचायत योजनाओं’ से प्रारंभ होते हैं, जिन्हें ग्राम पंचायत स्तर पर सहभागितापूर्ण प्रकियाओं के माध्यम से तैयार किया जाता है तथा ग्राम सभा द्वारा अनुमोदित किया जाता है। (धाराएँ 4(1) से 4(3))

इन योजनाओं को पीएम गति शक्ति सहित राष्ट्रीय प्लेटफार्मों के साथ डिजिटल एवं स्थानिक रूप (spatially integrated) से एकीकृत किया जाता है, जिससे संपूर्ण-सरकार दृष्टिकोण के अंतर्गत कन्वर्जेंस संभव होता है, जबकि स्थानीय स्तर पर विकेन्द्रीकृत निर्णय निर्माण को यथावत बनाए रखा जाता है।

यह एकीकृत योजना निर्माण का फ्रेमवर्क, मंत्रालयों और विभागों को कार्यों की अधिक प्रभावी योजना बनाने और क्रियान्वयन करने में सक्षम बनाएगा, दोहराव से बचाव और सार्वजनिक संसाधनों की अपव्यय रोकने में सहायक होगा, तथा सेचूरेशन-आधारित परिणामों के माध्यम से विकास की गति को तेज़ करेगा।

 


सुधारित वित्तीय संरचना


यह अधिनियम एक केन्द्रीय प्रायोजित योजना के रूप में लागू किया जाएगा, जिसे राज्यों द्वारा अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार अधिसूचित और क्रियान्वित किया जाएगा।

व्यय-साझेदारी का पैटर्न केंद्र और राज्यों के बीच 60:40, पूर्वोत्तर एवं हिमालयी राज्यों के लिए 90:10, तथा विधानसभारहित केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 100 प्रतिशत केंद्रीय वित्तपोषण का है।

निधि राज्यवार मानकीकृत आवंटनों के माध्यम से प्रदान की जाएगी, जो नियमों में निर्दिष्ट वस्तुनिष्ठ मानकों पर आधारित होगी (धाराएँ 4(5) एवं 22(4)), जिससे पूर्वानुमेयता, वित्तीय अनुशासन और सुदृढ़ योजना निर्माण सुनिश्चित होगा, साथ ही रोज़गार तथा बेरोज़गारी भत्ते से संबंधित वैधानिक अधिकारों का पूर्ण संरक्षण बना रहता है।

प्रशासनिक क्षमता की सुदृढ़ता


प्रशासनिक व्यय की अधिकतम सीमा को 6 प्रतिशत से बढ़ाकर 9 प्रतिशत कर दिया गया है, जिससे बेहतर मानव संसाधन उपलब्धता, प्रशिक्षण, तकनीकी क्षमता तथा मैदानी स्तर पर सहायता सुदृढ़ होती है और संस्थानों की परिणामों को प्रभावी रूप से प्रदान करने की क्षमता मज़बूत होती है।

विकसित भारत - रोज़गार और आजीविका के लिए गारंटी मिशन (ग्रामीण) अधिनियम, 2025, विकसित भारत@2047 के विजन के अनुरुप भारत की ग्रामीण रोज़गार व्यवस्था को नया और मज़बूत रूप प्रदान करने की दिशा में एक निर्णायक कदम का प्रतिनिधित्व करता है। प्रति वित्तीय वर्ष मज़दूरी रोज़गार की वैधानिक गारंटी को 125 दिनों तक बढ़ाकर, यह अधिनियम काम मांगने के अधिकार को और मजबूत करता है, साथ ही विकेन्द्रीकृत और सहभागितापूर्ण शासन को बढ़ावा देता है। यह पारदर्शी, नियम-आधारित वित्तपोषण, जवाबदेही तंत्र, प्रौद्योगिकी (टेक्नालजी)-सक्षम समावेशन तथा कंवर्जेंस आधारित विकास को एकीकृत करता है, ताकि ग्रामीण रोज़गार न केवल आय सुरक्षा प्रदान करे, बल्कि टिकाऊ आजीविकाओं, सुदृढ़ परिसंपत्तियों और दीर्घकालिक ग्रामीण समृद्धि में भी योगदान दे।


रोज़गार की गारंटी और रोज़गार की मांग का अधिकार


यह अधिनियम रोज़गार की मांग के अधिकार को कमज़ोर नहीं करता है। इसके विपरीत, धारा 5(1) सरकार पर पात्र ग्रामीण परिवारों को कम से कम 125 दिनों के गारंटीकृत मज़दूरी रोज़गार प्रदान करने का स्पष्ट वैधानिक दायित्व निर्धारित करती है। गारंटीकृत दिनों में की गई यह वृद्धि, सुदृढ़ की गई जवाबदेही और शिकायत निवारण तंत्र के साथ मिलकर, इस अधिकार की प्रवर्तनीयता को और मज़बूत करती है।


मानक आधारित वित्तपोषण और रोज़गार प्रावधान


मानक आधारित (नॉर्मेटिव) आवंटनों की ओर किया गया परिवर्तन बजट निर्धारण और निधि प्रवाह की व्यवस्थाओं से संबंधित है और इससे रोज़गार के कानूनी अधिकार पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। धाराएँ 4(5) और 22(4) नियम-आधारित और पूर्वानुमेय आवंटन सुनिश्चित करती हैं, जबकि रोज़गार अथवा बेरोज़गारी भत्ता प्रदान करने का वैधानिक दायित्व यथावत बना रहता है।


विकेन्द्रीकरण और पंचायतों की भूमिका


यह अधिनियम योजना बनाने या क्रियान्वयन का केंद्रीकरण नहीं करता है। धाराएँ 16 से 19 तक, पंचायतों, कार्यक्रम अधिकारियों और जिला प्राधिकारियों में, उपयुक्त स्तरों पर योजना, क्रियान्वयन और निगरानी की शक्तियाँ निहित करती हैं। राष्ट्रीय स्तर पर केवल दृश्यता, कन्वर्जेंस और समन्वय किया जाएगा, न कि स्थानीय निर्णय लेने के अधिकार लिए जाएंगे।


रोज़गार और परिसंपत्ति सृजन


यह अधिनियम 125 दिनों की बढ़ी हुई आजीविका की वैधानिक गारंटी को स्थापित तो करता ही है, साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि रोज़गार उत्पादक, टिकाऊ और जलवायु-अनुकूल परिसंपत्तियों के निर्माण में योगदान दे। रोज़गार सृजन और परिसंपत्ति निर्माण को परस्पर पूरक उद्देश्यों के रूप में परिकल्पित किया गया है, जो दीर्घकालिक ग्रामीण विकास और अनुकूलन को समर्थन प्रदान करते हैं (धारा 4(2) एवं अनुसूची–I)।


प्रौद्योगिकी और समावेशन


अधिनियम के अंतर्गत प्रौद्योगिकी को एक बाधा नहीं, बल्कि एक सक्षम माध्यम के रूप में परिकल्पित किया गया है। धाराएँ 23 और 24, बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण, जियो-टैगिंग और रियल-टाइम डैशबोर्ड के माध्यम से प्रौद्योगिकी (टेक्नालजी)-सक्षम पारदर्शिता का प्रावधान करती हैं, जबकि धारा 20 ग्राम सभाओं द्वारा सोशल ऑडिट को सुदृढ़ करती है, जिससे सामुदायिक निगरानी, पारदर्शिता और समावेशन सुनिश्चित होता है।


बेरोज़गारी भत्ता


यह अधिनियम, बेरोजगारी भत्ते के संबंध में पहले के अयोग्य ठहराए (निरर्हता) जाने वाले प्रावधानों को हटाता है और इसे एक अर्थपूर्ण वैधानिक सुरक्षा उपाय के रूप में पुनर्स्थापित करता है। जहां निर्धारित अवधि के भीतर रोज़गार उपलब्ध नहीं कराया जाता है, वहां पंद्रह दिनों के पश्चात बेरोज़गारी भत्ता देय हो जाता है।


निष्कर्ष


विकसित भारत - रोज़गार और आजीविका के लिए गारंटी मिशन (ग्रामीण) अधिनियम, 2025 का पारित होना भारत की ग्रामीण रोज़गार गारंटी व्यवस्था के एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है। वैधानिक रोज़गार को 125 दिनों तक विस्तारित कर, विकेन्द्रीकृत एवं सहभागितापूर्ण योजना को अंतर्निहित कर, जवाबदेही को सुदृढ़ कर तथा कन्वर्जेंस एवं परिपूर्णता (सेचूरेशन) आधारित विकास को संस्थागत रूप देकर, यह अधिनियम ग्रामीण रोज़गार को सशक्तिकरण, समावेशी विकास और समृद्ध एवं सक्षम ग्रामीण भारत के निर्माण के लिए एक रणनीतिक साधन के रूप में पुनः स्थापित करता है, जो विकसित भारत@2047 के विज़न के पूर्णतः अनुरूप है।

साभार पीआइबी

 


उत्तरकाशी:


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 जनपद के भटवाड़ी विकासखंड में भालुओं के बढ़ते विचरण तथा बीते दिनों ग्रामीणों पर हुए हमलों को गंभीरता से लेते हुए गंगोत्री विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक विजयपाल सजवाण ने वन विभाग से तत्काल प्रभावी कार्रवाई की मांग की थी। पूर्व विधायक द्वारा स्थानीय वन अधिकारियों को पिंजरे लगाए जाने तथा निरंतर गश्त बढ़ाने के स्पष्ट निर्देश दिए गए थे।


वन विभाग ने पूर्व विधायक की मांग को संजीदगी से लेते हुए भटवाड़ी प्रखंड के मल्ला डांग गांव में भालुओं को पकड़ने हेतु पिंजरे स्थापित किए हैं। उल्लेखनीय है कि हाल ही में इसी गांव में भालुओं का झुंड सीसीटीवी कैमरे में कैद हुआ था, जिससे ग्रामीणों में भय का माहौल बना हुआ था।


पूर्व विधायक विजयपाल सजवाण के निर्देशानुसार स्थानीय वन कर्मियों द्वारा क्षेत्र में लगातार गश्त बढ़ाई जा रही है तथा जंगली जानवरों के भय से आशंकित ग्रामीणों को हर संभव सहयोग एवं सुरक्षा का भरोसा दिया जा रहा है। वन विभाग द्वारा भालुओं को सुरक्षित पकड़ने के लिए सतत प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि क्षेत्र में जन-सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

 

30 दिसंबर को धरना, 16 जनवरी 2026 को सचिवालय घेराव का ऐलान


देहरादून :  



रविवार को राज्य आंदोलनकारी मंच की एक महत्वपूर्ण बैठक कचहरी स्थित शहीद स्मारक में संपन्न हुई। बैठक में राज्य स्थापना दिवस के रजत वर्ष के अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा राज्य आंदोलनकारियों के हित में की गई घोषणाओं पर अब तक शासनादेश जारी न होने को लेकर सरकार और सचिवालय के प्रति कड़ा आक्रोश व्यक्त किया गया। बैठक सुबह 11 बजे शुरू होकर दोपहर डेढ़ बजे तक चली। अध्यक्षता सत्या पोखरियाल ने की, जबकि संचालन पूर्ण सिंह लिंगवाल ने किया।

बैठक को संबोधित करते हुए उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच के प्रदेश अध्यक्ष  जगमोहन सिंह नेगी ने कहा कि रजत वर्ष के अवसर पर मुख्यमंत्री ने पेंशन वृद्धि, विकलांग आंदोलनकारियों की पेंशन में बढ़ोतरी, अटेंडेंट की व्यवस्था तथा चिन्हीकरण की तिथि छह माह बढ़ाने सहित कई अहम घोषणाएं की थीं, लेकिन डेढ़ माह बीतने के बावजूद उनका कोई शासनादेश जारी नहीं हुआ। यह सचिवालय के अधिकारियों द्वारा मुख्यमंत्री के आदेशों की अवहेलना है।

अध्यक्षता कर रहीं सत्या पोखरियाल ने कहा कि राज्य आंदोलन में शामिल रहे सभी लोगों का चिन्हीकरण होना चाहिए। उन्होंने याद दिलाया कि वर्ष 2010 में जिला स्तर पर गठित चिन्हीकरण समितियों द्वारा चयनित लोगों को आंदोलनकारी मानने का निर्णय लिया गया था, लेकिन अब भी कई पात्र लोग इससे वंचित हैं।

प्रदेश महासचिव रामलाल खंडूरी ने कहा कि विधानसभा से सर्वसम्मति से पारित कानून के तहत सभी चिन्हित आंदोलनकारियों के आश्रितों को 10 प्रतिशत आरक्षण का लाभ दिए जाने का प्रावधान है, लेकिन सचिवालय के अधिकारियों ने नौकरीपेशा आंदोलनकारियों के आश्रितों को इससे वंचित करने का आदेश जारी कर मूल अधिनियम का उल्लंघन किया है। उन्होंने मुख्यमंत्री से हस्तक्षेप कर शीघ्र सुधारात्मक आदेश जारी करने की मांग की।

प्रवक्ता प्रदीप कुकरेती ने प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार और पर्वतीय क्षेत्रों में जंगली जानवरों के बढ़ते आतंक से मुक्ति की मांग उठाई। पुष्पलता सिलमाना और द्वारिका बिष्ट ने आयु सीमा में पांच वर्ष की छूट देने, आंदोलनकारी चिन्हीकरण में पांचवें मानक को शामिल करने तथा आगामी धरना-प्रदर्शनों में मातृशक्ति की अधिकतम भागीदारी का आह्वान किया।

बैठक के अंत में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि सचिवालय द्वारा शासनादेश जारी करने में बरती जा रही लापरवाही के विरोध में 30 दिसंबर को प्रथम चरण में दीन दयाल पार्क में धरना दिया जाएगा। यदि इसके बाद भी सुधार नहीं हुआ तो 16 जनवरी 2026 को सचिवालय का घेराव किया जाएगा।

बैठक में प्रदेश अध्यक्ष जगमोहन नेगी, प्रदेश महासचिव रामलाल खंडूरी, प्रवक्ता प्रदीप कुकरेती, केशव उनियाल, पुष्पलता सिलमाना, द्वारिका बिष्ट, अरुणा थपलियाल, राधा तिवारी, संचालक पूर्ण सिंह लिंगवाल सहित अनेक पदाधिकारी व बड़ी संख्या में राज्य आंदोलनकारी मौजूद रहे।

 

उपनगरीय और मासिक सीज़न टिकट के किराए में कोई बढ़ोतरी नहीं

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सामान्य श्रेणी में 215 किमी. तक कोई बढ़ोतरी नहीं


सामान्य श्रेणी में 215 किमी. से अधिक 1 पैसा प्रति किमी. की बढ़ोतरी


• मेल/एक्सप्रेस में नॉन एसी - 2 पैसे प्रति किमी. की बढ़ोतरी

• एसी श्रेणी में 2 पैसे प्रति किमी. की बढ़ोतरी

• रेलवे किराए को तर्कसंगत बनाकर इस वित्त वर्ष के बचे हुए महीनों में लगभग 600 करोड़ रुपये अर्जित करेगा। • यात्रियों को नॉन एसी कोच में 500 किमी. की यात्रा के लिए केवल 10 रुपये अधिक देने होंगे।


• रेलवे ने पिछले एक दशक में अपने नेटवर्क और परिचालन का बहुत विस्तार किया है। रेलवे अधिक परिचालन की आवश्यकताओं को पूरा करने और सुरक्षा को बेहतर बनाने के लिए अपने कर्मचारियों की संख्या बढ़ा रहा है।

• परिणामस्वरूप स्टाफ कॉस्ट कर्मचारियों पर होने वाला खर्चा बढ़कर 1,15,000 करोड़ रुपये हो गया है। पेंशन का खर्चा बढ़कर 60,000 करोड़ रुपये हो गया है। 2024-25 में परिचालन खर्च बढ़कर 2,63,000 करोड़ रुपये हो गया है।


• कर्मचारियों पर बढ़े हुए खर्च को पूरा करने के लिए रेलवे ज़्यादा कार्गो लोडिंग कर रहा है और यात्री किराए में मामूली बढ़ोतरी कर रहा है।

• सुरक्षा और बेहतर परिचालन के लिए इन प्रयासों के कारण, रेलवे सुरक्षा में काफी सुधार कर पाया है। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कार्गो ले जाने वाला रेलवे बन गया है।


• त्यौहारों के मौसम में 12,000 से अधिक ट्रेनों का हालिया सफल संचालन भी बेहतर परिचालन दक्षता का एक उदाहरण है।

• रेलवे अपने सामाजिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अधिक दक्षता और लागत को नियंत्रित करने के लिए निरंतर प्रयास करता रहेग

 देहरादून

उत्तम सिंह  मन्द्रवाल     :

सत्यवाणी ब्यूरो चीफ ऋषिकेश




 गढ़वाल हो या कुमाऊँ, उत्तराखंड के पहाड़ों में शादी अब सामाजिक परंपरा नहीं, बल्कि कठिन प्रतियोगी परीक्षा बनती जा रही है। पहले सरकारी नौकरी, फिर देहरादून में अपना मकान और अब सोशल मीडिया के दौर में प्रतीकात्मक रूप से एक नई शर्त जुड़ गई है धनुर्धारी पति। नतीजा यह है कि पहाड़ों में अविवाहित युवाओं का बंडल लगातार भारी होता जा रहा है और यह मुद्दा अब केवल चिंता का नहीं, बल्कि तंज और व्यंग्य का विषय भी बन चुका है।

लोक गायिका एवं शिक्षिका डॉ. पम्मी नवल द्वारा गाए गए पारंपरिक जागर की कुछ पंक्तियां इन दिनों सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हैं। द्रौपदी के स्वयंवर पर आधारित यह जागर मूल रूप से सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, लेकिन रील्स और शॉर्ट वीडियो की दुनिया ने इसे आज के वैवाहिक यथार्थ से जोड़कर पेश कर दिया है। युवतियां इस ऑडियो पर रील्स बनाकर “धनुर्धारी पति” की कल्पना कर रही हैं, जबकि पहाड़ के हजारों युवा इस वायरल तंज को अपनी हकीकत से जोड़कर देखने को मजबूर हैं।

विडंबना यह है कि जिन लोक परंपराओं और जागरों को कभी सामाजिक चेतना और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक माना जाता था, वही आज सोशल मीडिया के मंच पर पहाड़ी युवाओं की विफल वैवाहिक स्थिति पर कटाक्ष का माध्यम बनते जा रहे हैं। पांडव नृत्य जैसे आयोजनों में डीजे पर बजते जागर अब संस्कृति से ज्यादा कंटेंट बन चुके हैं।

असल तस्वीर इससे कहीं गंभीर है। रोजगार की कमी, पलायन, सीमित संसाधन और बढ़ती आर्थिक अपेक्षाओं ने पहाड़ी युवाओं को पहले ही हाशिये पर खड़ा कर दिया है। ऐसे में विवाह को लेकर लगातार बढ़ती शर्तें—नौकरी, मकान और सामाजिक हैसियत—युवाओं के मनोबल को तोड़ रही हैं। हजारों युवा शादी योग्य उम्र पार कर चुके हैं और पहाड़ों का सामाजिक संतुलन धीरे-धीरे बिगड़ता जा रहा है।

डॉ. पम्मी नवल का कहना है कि उन्होंने यह जागर दो वर्ष पहले सांस्कृतिक संरक्षण के उद्देश्य से गाया था, न कि किसी वर्ग पर तंज कसने के लिए। वह पहाड़ों में बढ़ती अविवाहित युवाओं की संख्या को चिंताजनक मानती हैं और युवाओं से अपनी संस्कृति व पहाड़ से जुड़े रहने की अपील करती हैं। उनका कहना है कि हमारी लोक परंपराएं हमारी विरासत हैं, जिन्हें मज़ाक नहीं, समझ और संवेदनशीलता की ज़रूरत है।

कुल मिलाकर, सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रही ‘धनुर्धारी पति’ की मांग केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि पहाड़ के युवाओं की उस चुप पीड़ा की तस्वीर है, जिसे समाज अक्सर हंसी में उड़ा देता है। यदि यही सोच बनी रही, तो पहाड़ों में अविवाहित युवाओं की यह बढ़ती संख्या आने वाले समय में एक गंभीर सामाजिक संकट बन सकती है—जिसकी जिम्मेदारी केवल युवाओं की नहीं, बल्कि पूरे समाज की होगी।

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