अयोध्या का सी काशी मथुरा चित्रकूट उज्जैन नासिक के संतों से भारतीय संत परंपरा बढ़ाने की अपील
तथा गुरुदेव आचार्य रामानंद जी ,गुरु गोरखनाथ जी एवं अवधूत की बाबा कीनाराम के मार्ग समाज के सभी वर्ग को साथ लेकर चलने की अपील
आलेख भारतीय परंपराओं एवं साक्ष पर आधारित है किसी विद्वान को मतभेद हो तो
मुझ से कहीं भी भारत के अंदर कहीं भी शास्त्रार्थ कर सकता है
मैं सभी को इस विषय पर खुली बहस की दावत देता हूं
ऐसा कहना है मा उच्च न्यायालय इलाहाबाद लखनऊ पीठ एवं पूर्व अधिकारी केंद्रीय एवं राज्य सरकार
डॉ मुरलीधर शास्त्री की कलम का।
अयोध्या धाम /लखनऊ ;
27 जून 2025
यदि हमारे देश में बाबा गोरखनाथ बाबा रामानंद बाबा गुरु नानक देव एवं बाबा कीनाराम नहीं होते तो देश का स्वरूप अलग होता।
सभी महात्माओं के कालखंड के आधार पर उनका विश्लेषण जगत जगतगुरु शंकराचार्य एवं जगतगुरु रामानुजाचार्य सनातन धर्म के साथ-साथ ब्राह्मणवाद के प्रचारक एवं प्रतिपादक थे ।
यह विचारधारण आजाद भारत के लिए चुनौती बनी हुई है 21वीं सदी के भारत में शंकराचार्य जी एवं रामानुजाचार्य जी के पीठ संचालकों को विचार बदलने की आवश्यकता है और देश को धर्मशास्त्र को सामाजिक क्षेत्र में एवं संविधान को शासन के क्षेत्र में सर्वोच्च प्राथमिकता की आवश्यकता है अन्यथा यह देश बिखर जाएगा
हम जगतगुरु के कल्पना में बह जाएंगे हम अपने परिवार के भी गुरु नहीं बन पाएंगे समाज तो बहुत बड़ी चीज है और राष्ट्र तो बहुत बड़ी चीज है
देश के राजनीतिक दलों और महात्माओं तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चालक को भी
इसमें अपनी चुनौती पूर्ण भूमिका निभानी चाहिए
भारत में सभी जातियों को साथ लेकर चलने तथा अपने मठ एवं प्रवचन में स्थान देने का कार्य गुरु गोरखनाथ गुरु रामानंदाचार्य गुरु नानक देव जी एवं अवधूत भगवान कीनाराम किया
और किसी संत ने नहीं किया यदि यह महात्मा अपने कालखंड में सभी जाति को लेकर नहीं चले होते तो आज भारत पूर्ण रूप से धार्मिक पथ बदल गए होते किसी और धर्म को कबूल कर लिया होता
आप लोग एक केश्वरवाद एवं शिव शक्ति बाद और गुरु परंपरा के प्रबल समर्थन एवं प्रचारक थे
मुख्य रूप से बाबा गोरखनाथ बाबा रामानंदाचार्य जी गुरु नानक देव जी एवं अवधूत बाबा कीनाराम जी का विशेष योगदान था
आपने इस संयुक्त भारत में सनातन धर्म की परंपरा में बिना छुआछूत के अपने अपने सभी जाति के लोगों को शिष्य बनाया
तथा कठोर ब्राह्मणवाद का खंडन किया इसीलिए भारत बचा रहा जबकि जगतगुरु शंकराचार्य जी एवं जगतगुरु रामानुजाचार्य जी ने अपने शिष्यों में सत प्रतिशत ब्राह्मण को ही बनाया तथा अन्य समाज को इन्होंने अलग रखा पर सहयोग लेते रहे
इसका मैं क्रमवार ढंग से विवरण प्रस्तुत कर रहा हूं
सबसे पहले (जगतगुरु शंकराचार्य) जी का कालखंड 788 से 820 ई तक का रहा अपने अद्वैतवाद का सिद्धांत दिया तथा कहा कि सभी चीज नश्वर है ईश्वर सत्य है तथा देश के चारों कोनों में शंकर पीठ की स्थापना की आप स्वयं भी शंकर भगवान शंकर के अंश अवतार के महापुरुष थे पर आपके शिष्यों में सभी लोग ब्राह्मण वर्ग से ही आए जिसमें प्रमुख पदमा पा आचार्य सुरेशवाराचर्या हस्तमालाकाचार्ज एवं टोटका चार्ज प्रमुख रहे
अपने ब्राह्मण के अलावा सन्यास मार्ग पर अन्य किसी को स्थान नहीं दिया और नहीं किसी पीठ का प्रमुख बनाया पर सनातन धर्म की रक्षा का आधारशिला रखी इसके लिए नमन है
अगले चरण में (गुरु गोरखनाथ )जो पहली बार नेपाल के भाग में देखे गए थे उनके नाम पर वहां गोरख नाम का जिला भी है आपका कालखंड 845 से 955 ई तक रहा आपका पथ शक्ति एवं शिव पर आधारित था आप स्वयं भी शंकर के अवतार थे तथा नाथ संप्रदाय के संस्थापक थे (नाथ )काअर्थ होता है मालिक आप शंकर के एवं माता काली के अनन्य उपासक थे
आपकी समाधि गोरखपुर में है जहां पर धुनी आपके द्वारा जलाई गई थी वह जल रही है
और सत्य का प्रतीक है तथा सिद्ध पीठ है
आप ही के पीठ के वर्तमान उत्तराधिकारी महंत योगी श्री योगी आदित्यनाथ जी हैं जो लगभग 8 साल से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं तथा भारतीय जनता पार्टी के प्रभावशाली नेता एवं हिंदुत्व के प्रखर वक्ता है
आपके का कार्य क्षेत्र पश्चिमी भारत मध्य भारत उत्तर भारत रहा आपकी लगभग डेढ़ सौ से ज्यादा पीठ एवं मंदिर केंद्र स्थापित है जिसमें हिमाचल का ज्वाला देवी मंदिर प्रमुख हैजहां पर आपको सिद्धि प्राप्त हुई थी
अपने अपने पथ में सभी जाति के लोगों को जोड़ा और सभी जातियों के उत्थान के लिए काम किया इससे समाज में समरसता आई और विकास हुआ आपके शिष्यों में गाहिनी नाथ जालंधर नाथ भैरवनाथ भर्ती हरीनाथ कृष्ण पद नाथ आदि प्रमुख हुए
जो सभी समाज के वर्ग से आते थे
अगले चरण में महान वैश्णव संत (गुरुदेव रामानंद जी )हुए जिनका कालखंड 1299 से 1410 था अपने भेदभाव रहित होकर
सभी समाज के लोगों को शिष्य बनाया क्योंकि आपका कार्यकाल के समय मुस्लिम आक्रमण हो चुका था तथा देश में इस्लाम धर्म का राजाओं के माध्यम से एवं सूफी संतों के
माध्यम से प्रचार प्रसार हो रहा था अपने वैष्णैव के लिए जो किया वह शायद ही कोई किया है
आपके द्वादश शिष्य रहे जो सभी समाज एवं जातीय से आए जिसमें प्रमुख शिष्य महात्मा कबीर महात्मा रविदास आपके उत्तराधिकारी अनंत आनंद भवानंद पीपा क्षत्रिय राजा सेन नई धन्ना जाट नाभादास हर हरिआनंद सुखानंद एवं महिलाओं शिष्यों में मा सुरसुरी एवं मां पद्मावती प्रमुख रही है आपने इस देश को इस्लामी कारण होने से बचाया और सभी जाति एवं समाज के वर्ग के लोगों को शिष्य बनाया तथा सनातन धर्म का प्रचार किया शिष्य में जो देश के कोने कोने में वैष्णो धर्म का प्रचार किया
तथा आपके मानने वाले संत समुदाय में दिगंबर निर्मोही एवं निर्वाणी अखाड़े के प्रमुख होते हैं जिनका अयोध्या मथुरा चित्रकूट काशी और भारत के अनेक दक्षिण पश्चिम उत्तर दक्षिण के राज्यों में मठ स्थापित है तथा आप ही के पथ के पीठाधीश्वर श्री नृत्य गोपाल दास जी श्री राम जन्मभूमि न्यास के भी अध्यक्ष अध्यक्ष हैं तथा अयोध्या के प्रमुख संतों में श्री धर्मदास जी श्री प्रेम दास जी बलराम दास जय रामदास तथा इन संतों से भी अपील है की गुरुदेव रामानंद जी की परंपरा के अनुसार भारत के लोगों को लोगों को शिक्षित और दीक्षित करें
अगले चरण में महान संत एवं संत जगतगुरु रामानुजाचार्य जी का नाम लिया जाता है आपका कालखंड 1017 से प्रारंभ होकर 1137 तक रहा आप भगवान शेष नाग के अवतार हैं तथा श्रीरंगपट्टनम तमिलनाडु में आपका समाधि स्थल है आप सनातन धर्म एवं ब्राह्मणवाद के समर्थक रहे अन्य जातियों को अपने पथ से नहीं जोड़ा आपके मुख्य शिष्यों में प्रमुख श्री करेश श्री गोविंद भट्ट जी श्री ए पी मुदलियार जी प्रमुख रहे
आप लोगों ने भी आपके विचार और ब्राह्मणवाद का प्रचार किया जिससे छोटी जातियों को अन्य धर्म में जाने का मौका मिला
विशेष कर तमिलनाडु राज्य में देखा जा सकता है
समाज (सुधारक एवं सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव जी) का कालखंड आता है जो 1449 से लेकर 1539 तक का होता है अपने एककेश्वर बाद का प्रचार किया तथा गुरु शिष्य परंपरा को बढ़ाया एवं अपने भी भारत में भारत में सभी जाति के लोगों को लेकर संत परंपरा गुरु परंपरा की स्थापना की आपके प्रमुख शिष्यों में मर्दाना जो एक मुस्लिम था जिसका नाम रवाब था तथा दूसरा लहना जो गुरु आनंद देव जी के नाम में के विख्यात हुए तीसरा नाम बाला था चौथा नाम राम देव जो पश्चिम उत्तर भारत में अब के पाकिस्तान में भी व्यापक प्रचार प्रसार किया तथा सभी धर्म जाति के लोगों को अपने आप से जोड़ा जिससे भारत का इस्लामी कारण होने से बच गया
अगले महत्वपूर्ण भारत की अग्रदूत के रूप में (अवधूत बाबा कीनाराम) जी का स्थान आता है
आपका कालखंड (1601 से 17 71) तक) तक का होता है आप भारत के संतों में सबसे जीवन काल लगभग 170 साल वाले महात्माओं में प्रमुख हैं
अपने शिव और शक्ति की अवधूत मार्ग से आराधना करके समाज के सभी वर्गों को जोड़ा तथा धर्मांतरण होने से बचा लिया
आपका एक के शिष्यों में प्रमुख कल्लू राम जी शिवदास राम जी बिजाराम जी थे एवं अवधूतनी वन देवी की प्रमुख रहे जो समाज के विभिन्न वर्गों की और जातियों जातियों में अपने शिष्य परंपरा का विस्तार किया था तथा कहा जाता था कि (जो न करे राम को करें कीना राम )आपने इस भारत को शाहजहां एवं औरंगजेब के जीवन काल में इस्लामी कारण होने से बचाया तथा इसी जीवन काल में आडंबर के प्रचार करने के कारण तत्कालीन काशी नरेश को श्री चेत सिंह को को शाप दिया था शिवाला के किले में गंगा के किनारे की काशी की काशी नरेश की गादी पर काशी नरेश की तीन पीढ़ी तक कोई संतान नहीं होगी
पर तीन पीढ़ी तक कोई उत्तराधिकारी पैदा नहीं हुआ तथा काशी नरेश यह गदी पहले राजपूत वंश के गहरवार राजपूत की थी
बाद में गोद लेने से यह गति भूमिहार वंश के राजाओं के अधीन आ गई जो वर्तमान में चल रही है बाबा कीनाराम जी के बारे में कहा जाता है तथा अभिलेख में उपलब्ध है सम्राट शाहजहां ने आप सम्राट औरंगजेब ने उनके आश्रम को चलाने के लिए अनेक गांव की मालगुजारी वसूलने का आदेश दिया था इनके तपस्या का प्रभाव था कि जूनागढ़ का नवाब भी इनके दिव्यता के आगे झुक गया इनके बारे में कहा जाता है की
दत्त गोरख कि एक हीं माया
बीच में औघड़। किनाराम कहां
से आया ।
लेखक उत्तर प्रदेश सरकार भारत सरकार के पूर्व प्रथम श्रेणी के अधिकारी रहे हैं
अंतर्राष्ट्रीय इस्कॉन समिति के
पैटर्न है तथा श्री अयोध्या जी न्यास एवं प्रोफेसर राजू भैया न्यास के अध्यक्ष हैं
और माननीय उच्च न्यायालय लखनऊ की पीठ में अनुभवी अधिवक्ता डॉ मुरलीधर शास्त्री।