उच्च हिमालयी क्षेत्रों का अति दुर्लभ पेड भोजपत्र,कहाँ गया
रुद्रप्रयाग:
भूपेंद्र भंडारी
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उगने वाला हिन्दू धर्म से जुडा अति बेशकीमती पेड भेाज पत्र धीरे-धीरे समाप्ति की कगार पर है। तन्त्र साधना से लेकर हिन्दू धर्मग्रन्थों को लिखने मे महत्वपूण भूमिका रखने वाले भोज पत्र के जंगल जलवायु परिवर्तन की भेंट चढ़ते जा रहे हैं। अब यह दुलर्भ पेड महज गोगुख में भोजवासा व मदमहेश्वर के उपरी क्षेत्रों में सीमित मात्रा में दिखाई दे रहा है। पर्यावरण वैज्ञानिकों ने इसके संरक्षण की बात कही है अन्यथा यह पेड विलुप्त हो जायेगा।
भूपेंद्र भंडारी
उत्तरकाशी के भोजवासा व मदमहेश्वर मे पाया जाता है. हिन्दू धर्म में आस्था का प्रतीक है.,जो पांडुलिपियां लिखने में प्रयोग किया जाता था, बेद पुराण व कुण्डलियां भी लिखी जाते थी पत्र पर ,तन्त्र साधना में भी आता है काम ,भोजपत्र कहलाता है जिस पर जलवायु परिवर्तन का सीधा असर पड रहा है
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उगने वाला हिन्दू धर्म से जुडा अति बेशकीमती पेड भेाज पत्र धीरे-धीरे समाप्ति की कगार पर है। तन्त्र साधना से लेकर हिन्दू धर्मग्रन्थों को लिखने मे महत्वपूण भूमिका रखने वाले भोज पत्र के जंगल जलवायु परिवर्तन की भेंट चढ़ते जा रहे हैं। अब यह दुलर्भ पेड महज गोगुख में भोजवासा व मदमहेश्वर के उपरी क्षेत्रों में सीमित मात्रा में दिखाई दे रहा है। पर्यावरण वैज्ञानिकों ने इसके संरक्षण की बात कही है अन्यथा यह पेड विलुप्त हो जायेगा।
उच्च हिमालयी क्षेत्र के
पौधों की जानकारी रखने वाले अगस्त्यमुनि महाविद्यालय के प्राचार्य व
प्रसिद्व बनस्पति विज्ञानी प्रोपेसर जीएस रजवार का मानना है कि यह पेड अति
दुर्लब है और सिर्फ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पैदा होता है धीरे धीरे
इसके जंगल सिमटते जा रहे हैं जिसके पीछे बडा कारण जलवायु परिवर्तन का है।
अगर हालात यही रहे तो आने वाले दिनों में यह पेड महज कल्पनाओ में ही रहेगा।
पौराणिक काल में इसका महत्वपूर्ण उपयोग था इसकी छाल से पाणुलिपियां तैयार
की जाती थी और तन्त्र साधना के दौरान भी इसका महत्व था। विकास के नाम पर
जिसस तरह से प्रकृति का अवैज्ञानिक दोहन हो रहा है वह हिमालय के लिए एक बडा
खतरा है। जिसके चलते ट्ी लाइन घटती जा रही है और बुगियाल समाप्त होते जा
रहे हैं। औद्यौगिक विकास के चलते ग्लेश्यिर पीछे खिसकते जा रहे हैं और उच्च
हिमालयी क्ष्ेात्रों में होने वाली बनस्पति व पेड समाप्ति की कगार पर हैं।
पर्यावरणविदों का मानान है कि विकास तो हो मगर उच्च हिमालयी क्षेत्रों में
औद्योगिक विकास के वजाय इकोलाॅजी आधारित विकास हो जिसे परितन्त्र बचा रहे
अन्यथा आने वाले दिनों में गम्भीर परिणाम सामने होगंे और हिमालय पर बडा
संकट उत्पन्न होगा।