Halloween party ideas 2015

 

आइए, इस हरेला पर्व पर हम हम केवल धरती को ही हरित न करें बल्कि मानवता को भी जीवंत करें*

स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश:

harela festival in parmarth niketan


 परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने उत्तराखंड की पौराणिक संस्कृति का लोकपर्व हरेला की देशवासियों को शुभकामनायें देेेते हुये कहा कि हरेला पर्व, हरियाली और नई फसल के आगमन का प्रतीक है। हरेला हमें प्रेरणा देता है कि हम लौटें, धरती माँ की गोद में, पेड़ों की छाँव में, मिट्टी की महक में।

यह पर्व उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत, पर्यावरणीय चेतना और प्रकृति प्रेम का अनुपम महोत्सव है। जो जीवन में हरियाली, समृद्धि और संतुलन का संदेश देता है। हरेला का अर्थ ही है ‘हरियाली’, और यह पर्व वर्षा ऋतु के आरंभ में, श्रावण मास की संक्रांति को मनाया जाता है। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में विशेष रूप से मनाए जाने वाला यह पर्व उत्तराखंड सहित पूरे भारत में भी पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहा हैं।

हरेला पर्व, मातृभूमि और धरती माता के प्रति सम्मान का पर्व है। यह प्रकृति के साथ हमारे रिश्ते को पुनर्स्थापित करने, धरती की उर्वरता को नमन करने और अपने पूर्वजों की परंपराओं को सम्मान देने का एक सुंदर अवसर है। इस पर्व के माध्यम से युवा पीढ़ी के लिये यह संदेश है कि हम सभी प्रकृति के अंश हैं और प्रकृति है तो ही हमारी संस्कृति व संतति हैं।

हरेला के दिन घरों में सात प्रकार के अन्नों के बीजों को बोते हैं, जो नौ दिनों में अंकुरित होते हैं। इनको हरेला कहा जाता है और इन अंकुरों को सिर पर रखकर आशीर्वाद लिया जाता है। यह परंपरा हमें हमारे कृषि संस्कारों, श्रम-संस्कारों और प्रकृति के साथ आत्मीय रिश्तों का संदेश देती है।

हरेला पर्व के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने शिक्षिकाओं और मातृशक्ति को पौधे भेंट कर पर्यावरण संरक्षण का सुंदर संदेश दिया। उन्होंने सभी को एक पौधा माँ के नाम और एक पौधा धरती माँ के नाम रोपित करने का संकल्प कराया। 

स्वामी जी ने कहा कि हरेला पर्व, पर्यावरण जागरूकता का आंदोलन है। यदि हर नागरिक एक-एक पौधा रोपे और उसका पालन-पोषण अपने बच्चों की तरह करे, तो धरती फिर से हरी-भरी हो सकती है। हमारी संस्कृति में प्रकृति को देवता माना गया है और हरेला पर्व इस भावना को और भी सशक्त करता है।

आज जब पृथ्वी पर वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण की समस्या विकराल रूप ले रही है, तब हरेला जैसे प्रकृति समर्पित पर्वों की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। हरेला पर्व हमें स्मरण कराता है कि प्रकृति केवल उपयोग की वस्तु नहीं है, वह हमारी माँ है। उसकी रक्षा करना हमारा धर्म है।

स्वामी जी ने कहा कि प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता जागृत कर हम आने वाले कल को सुरक्षित और हरा-भरा कर सकते हैं।

आइए, हम सब मिलकर हरेला को हरित जीवन और हरित भविष्य की ओर एक पवित्र पहल बनाएं। हरेला मनाएं, पौधे लगाएं, धरती को हरियाली से सजाएं।

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