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         वातावरणीय ठंडक में गर्मागर्म संदेश प्रसारित किये जा रहे हैं। विकास के मुद्दों से भटक कर निजी लाभके अवसर तलाशे जाने लगे हैं। दलगत विचारधारा पर निजी महात्वाकांक्षा हावी होती जा रही है। कहीं नागरिकों के रागात्मक पक्षों को प्रभावित करने के प्रयास हो रहे हैं तो कहीं राजनैतिक गठबंधनों की एकजुुटता में दरारें पैदा की जा रहीं हैं। सत्ता के गलियारे में प्रवेश पाने के लिए सिध्दान्तों को उल्टा-सीधा करने वाले दल अब नये पैतरे आजमाने में जुट गये हैं। इण्डिया गठबंधन के घटक दलों को हरियाणा, महाराष्ट्र के चुनावी परिणामों ने आत्म समीक्षा करने के लिए बाध्य कर दिया है। पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शुक्रवार को गठबंधन का नेतृत्व स्वीकारने हेतु भूमिका लिखना शुरू कर दी थी। उन्होंने स्पष्ट कहा कि वह बंगाल की मुख्यमंत्री के रूप में अपनी भूमिका जारी रखते हुए विपक्षी मोर्चे के नेतृत्व के साथ दोहरी जिम्मेदारी संभालने में सक्षम है, मैंने ही इण्डिया गठबंधन का गठन किया था। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि यदि अवसर दिया गया तो मैं इसका सुचारु रूप से संचालन करूंगी। यह वक्तव्य आते ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचन्द्र पवार) के मुखिया ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की मंशा का स्वागत करते हुए कहा कि ममता बनर्जी का रुख आक्रामक है। उन्होंने कई लोगों को खडा किया है। उन्हें ऐसा कहने का पूरा अधिकार है। ममता बनर्जी में इण्डिया गठबंधन का नेतृत्व करने की क्षमता है। समाजवादी पार्टी ने भी तृणमूल कांग्रेस की मुखिया की बात का समर्थन किया। पार्टी के नेता उदयवीर सिंह ने कहा कि वे एक वरिष्ठ नेता हैं, उनके पास बहुत अनुभव है और वे सक्षम हैं। हमारी पार्टी के उनके साथ संबंध अच्छे हैं और हमें उनके नेतृत्व पर भरोसा है। जबकि राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने अपने सुप्रीमो लालू यादव को गठबंधन का नेता बनाये जाने की वकालत की। श्री तिवारी ने कहा कि बीजेपी के खिलाफ विपक्षी गठबंधन के असली आर्किटेक्ट तो लालू प्रसाद यादव हैं, जिनकी पहल पर ही पटना में इण्डिया गठबंधन की पहली बैठक हुई थी। इन वक्तव्य श्रंखलाओं के मध्य कांग्रेस के इमरान मसूद ने कहा कि ममता जी एक बडी नेता के रूप में हैं परन्तु राहुल गांधी के अलावा देश में कोई नेतृत्व करने की स्थिति में नहीं है। वहीं कांग्रेस की सांसद वर्षा गायकवाड ने कहा कि उनके कहने से उनकी पार्टी चलती है, हम तो कांग्रेस के कहने पर चलते हैं। वास्तविकता तो यहा कि भाजपा का मुकाबला करने के लिए दो दर्जन से अधिक विपक्षी दलों ने इण्डिया गठबंधन तैयार किया था किन्तु हाल में सम्पन्न हुए चुनावों के परिणामों से लेकर नेताओं की अपनी महात्वाकांक्षाओं तक के समुच्चय ने इसमें दरार डालना शुरू कर दिया है। राजनैतिक गलियारे में ममता के बयान से पिघलते राजनैतिक लावे को ठंडा करने की गरज से एक दिन बाद ही तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुनाल घोष ने अपनी नेता के बयान को तोडमरोड कर पेश करने का आरोप लगाते हुए एक बार फिर मीडिया को कटघरे में खडा कर दिया। उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी का फोकस पूरी तरह से पश्चिम बंगाल के विकास और जनता के कल्याण पर है अगर इण्डिया गठबंधन उनसे नेतृत्व की मांग करता है, तो वह कोलकता से ही नेतृत्व करेंगी। उन्हें दिल्ली आने की कोई जरूरत नहीं है। वाक्य संदेशों के माध्यम से चल रहे इण्डिया गठबंधन के आन्तरिक युध्द में शिवसेना (उध्दव बालासाहेब ठाकरे) ने एक अलग ही मोर्चा खोल दिया। पार्टी के एमएलसी मिलिंद नार्वेकर ने विध्वंस होती बाबरी मस्जिद की फोटो के साथ शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे का वक्तव्य सोशल मीडिया के एक्स प्लेटफार्म पर पोस्ट किया जिसमें लिखा हुआ था कि मुझे उन लोगों पर गर्व है, जिन्होंने यह किया है। पोस्ट होते ही महाविकास अघाडी के साथ जुडी समाजवादी पार्टी के महाराष्ट्र प्रमुख तथा मानखुर्द शिवाजीनगर के विधायक अबू आजमी ने कहा कि शिवसेना (उध्दव बालासाहेब ठाकरे) की तरफ से बाबरी मस्जिद को गिराये जाने के लिए लोगों को बधाई देते हुए एक अखबार में विज्ञापन दिया गया था। इतना ही नहीं उध्दव ठाकरे के सहयोगी ने मस्जिद को ढहाये जाने की तारीफ करते हुए एक्स पर पोस्ट भी किया है, यही वजह है कि समजावादी पार्टी ने महाविकास अघाडी छोडने का फैसला किया है।  ज्ञातव्य हो कि महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी ने विधानसभा चुनावों में मानखुर्द शिवाजीनगर के अलावा मुस्लिम बाहुल्य इलाके भिवंडी सीट पर भी विजय प्राप्त की थी। वर्तमान में अनेक पार्टियों की अपनी नीतियां और रीतियां गिरगिट की तरह रंग बदल रहीं हैं। अवसर की तलाश में आदर्शों की धज्जियां उडाने वाले लोगों व्दारा निहित स्वार्थों की पूर्ति हेतु निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं। नेशनल कान्फ्रेंस के फारूख अब्दुल्ला ने तो बंगलादेश में हो रहे हिन्दुओं के उत्पीडन तक की जानकारी न होने की बात कहकर स्वयं की संवेदनशीलता पर ही प्रश्नचिन्ह अंकित कर दिया हैं। उन्होंने बंगलादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों पर टिप्पणी करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि मैंने नहीं सुना, मुझे पता नहीं है। आश्चर्य होता है कि देश-दुनिया में बंगालदेश के हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार की चर्चायें जोरों पर हैं तब देश में स्वयं को कद्दावर नेता मानने वाले फारुख अब्दुल्ला का गैर जिम्मेदाराना वक्तव्य सामने आया है। जो व्यक्ति आतंकियों को भटका हुआ मासूम करार देता हो वह हिन्दुओं के नरसंहार पर अनभिग्यता जाहिर करके मुखौल उडा रहा है। ऐसे में उसकी पार्टी के शासनकाल में जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को पक्षपात रहित व्यवस्था मिलने की संभावना क्षीण हो जाती है। कुल मिलाकर बयानवीरों के वक्तव्यों से उजागर होती मानसिकता को सुखद कदापि नहीं कहा जा सकता। सिध्दान्तों की अडिगता से कोसों दूर पहुंच चुके राजनैतिक दलों ने स्वार्थपूर्ति के परिणाम प्राप्त न होने पर नये स्वरूप को स्वीकारना शुरू कर दिया है जिसमें जातिवाद, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद और अहंकारवाद नामक पांचों तत्व मौजूद है। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।






Dr. Ravindra Arjariya

Accredited Journalist

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