देश में ट्रेन दुर्घटनाओं की बाढ सी आ गई है। इसे केवल यांत्रिक खराबी, मानवीय त्रुटि या संयोग मानकर नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
इस दिशा में गहराई से छानबीन करने, अतीत की घटनाओं को सिलसिलेवार जोडने और फिर परिणाम तक पहुंचने की आवश्यकता है। पाकिस्तान में रहने वाले भारत के वांछित आतंकी फरहतुल्लाह गोरी ने अपने स्लीपर सेल्स को विगत दिनों एक वीडियो संदेश भेजकर रेल की पटरियों के साथ छेडछाड करके दुर्घटनाओं को अंजाम देने का हुक्म दिया था। वीडियो संदेश में उसने स्पष्ट किया था कि भारत में सरकारी खुफिया एजेंसियां तथा ईडी जैसी संस्थायें हमारे लोगों को निशाना बना रहीं है। इसके प्रतियोत्तर में बम विस्फोट के लिए प्रेशर कुकर का इस्तेमाल किया जाये, आंतकी गतिविधियों को तेज किया जाये, बच्चों को भी जेहाद में उतारा जाये, भय का वातावरण पैदा किया जाये ताकि आंतरिक युध्द के लिए माहौल बन सके। रेलों को पटरियों से उतारकर दुर्घटनाग्रस्त किया जाये, सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुचाया जाये। ट्रेनों के माध्यम से चल रही सप्लाई चेन को डिस्टर्ब किया जाये। शासकीय जमीनों पर अतिक्रमण करके अपने लोगों को बसाया जाये। हिन्दू नेताओं की खिलाफियत की जाये। महात्वपूर्ण भूमि पर कब्जे करने हेतु दस्तावेज तैयार करवाकर प्रमाण जुटाये जायें। उल्लेखनीय है कि फरहतुल्लाह गोरी को यूएपीए के तहत लिस्टेड आतंकवादी घोषित किया जा चुका है। सन् 2002 में अक्षर धाम मंदिर पर हुए आतंकी हमले का मास्टर माइंड गोरी ने एक बार फिर से अपने पांव फैलाने शुरू कर दिये हैं। यूं तो देश के रेल नेटवर्क के चारों ओर लम्बे समय से सुनियोजित षडयंत्र के तहत कब्जे किये जा रहे हैं। महानगरों में रेलवे ट्रैक के किनारे, ओवर ब्रिज के नीचे, स्टेशनों के आसपास, खाली पडी रेलवे भूमि आदि पर झुग्गी-झोपडी, मलिन बस्ती, गरीब आबादी के नाम पर अनजान बाह्य लोगों व्दारा निरंतर बेजा कब्जे किये जाते रहे हैं। देश के उत्तरदायी विभागों के अनेक जिम्मेदार अधिकारियों व्दारा इन अवैध बस्तियों में विद्युत, पानी आदि की सुविधायें भी नियम-कानून को ताक में रखकर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर खुल्मखुल्ला दी जा रहीं हैं। वोट बैंक की राजनीति ने इन अनजान बाह्य लोगों में से अधिकांश को मतदान का अधिकार भी प्रदान करवा दिया गया है। यह अतिक्रमणकारी कहां से आये, क्यों आये, क्या करते हैं, इनके जीवकोपार्जन का साधन क्या है, जैसी जानकारियां लिये बगैर अवैध बस्तियों को वैध घोषित करने का सिलसिला भी समय-समय पर चलता रहा। वर्तमान में हालात यह है कि रेल नेटवर्क के चारों ओर असामाजिक तत्वों, आतंकवादियों, घुसपैठियों का शिकंजा कस चुका है। सामूहिक एकता के आधार पर किस भी संवैधानिक कार्यवाही के विरोध में भीड की शक्ल में उनका हिंसा से भरा आक्रामक रूप हमेशा ही देखने को मिलता है जिसे सफेदपोश नेताओं की एक बडी राष्ट्रविरोधी जमात का तत्काल संरक्षण भी मिल जाता है। राजनैतिक दलों से जुडे काले कोटधारियों की फौज अतिक्रमणकारी आरोपियों के पक्ष में खडी हो जाती है। संचार माध्यमों की तीव्रता का उपयोग करके सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफाम्र्स पर भडकाऊ पोस्ट्स का अम्बार लग जाता है और फिर गूंजने लगते हैं देश के कोने-कोने से धमकी भरे स्वर। अतीत गवाह है कि प्रत्येक दुर्घटना के बाद जांच बैठाई जाती है। उस छानबीन समिति में विशेषज्ञों की भागीदारी होती है मगर समिति की रिपोर्ट, दोषी व्यक्तियों की पहचान एवं उन्हें दिये जाने वाले दण्ड का ज्यादातर खुलासा नहीं होता। सब कुछ ठंडे बस्ते में चला जाता है जो बाद में रद्दी की टोकरी की शोभा बनता है। रेल दुर्घटनाओं को लेकर लम्ब समय तक चलने वाली समीक्षात्मक खबरों से लेकर बहस तक में वास्तविक बिन्दुओं को गम्भीरता से रेखांकित नहीं किया जाता जिससे आम आवाम को वास्तविकता की सूक्ष्मतम जानकारी नहीं हो पाती। दरअसल सीमापार से नियंत्रित होने वाले देश के मीरजाफरों की जमात अपने मजहब के नाम पर कुछ भी कर गुजरने को सहज ही तैयार हो जाती है। फरहतुल्लाह गोरी और उसका दामाद शाहिद फैजल ने केरल सहित दक्षिण भारत में खासा नेटवर्क फैला रखा है जिसके माध्यम से समूचे देश में स्लीपर सेल तैयार किये जा रहे हैं। धर्म का प्रचार करने के नाम पर निकले वाली ज्यादातर जमातें अब मदरसों, आस्थानों, मस्जिदों, मुसाफिरखानों, यतीमखानों आदि में स्थानीय लोगों को तकरीर के नाम पर इकट्ठा करके कट्टरता का पाठ पढातीं हैं और फिर उनमें से फिदायिनी को चयनित करती हैं जो भविष्य में मजहब के नाम पर आंतक का पर्याय बनते हैं। पश्चिम बंगाल के पुरबा मेदनीपुर जिले से गोरी के स्लीपर सेल अब्दुल मतीन ताहा और मुसाविर हुसैन शाजिब को एनआईए ने गिरफ्तार किया था। इन दौनों आतंकियों ने गोरी के दामाद शाहिद के आदेश पर ही रामेश्वर कैफे में ब्लास्ट किया था जिसमें 10 लोग गम्भीर रूप से घायल हुए थे। सलाखों के पीछे पहुंचाये गये दौनों आरोपी डबल एजेन्ट के रूप में कर्नाटक के शिवमोगा से आईएसआई तथा इस्लामिक स्टेट के लिए काम कर रहे थे। इसके अलावा नई दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश से गिरफ्तार किये गये तीन आतंकियों ने आईएसआई के सहयोग से गोरी की सक्रियता पर अनेक खुलासे किये थे। सन् 2002 के गुजरात हमले से लेकर सन् 2005 के हैदराबाद स्थित टास्क फोर्स आफिस में हुए आत्मघाती विस्फोट तक में गोरी का नाम प्रमुखता से आया था। हाल में हो रही रेल दुर्घटनाओं में साजिश की जांच का सार्वजनिक रूप से खुलासा न होने के कारण षडयंत्रकारियों के हौसले निरंतर बुलंद होते जा रहे हैं। कानपुर में साबरमती एक्सप्रेस हो या फिर फर्रुखाबाद की रेल दुर्घटना की साजिश, गोंडा में चंडीगढ डिब्रूगढ एक्सप्रेस का हादसा हो या फिर पुष्पक एक्सप्रेस की दुर्घटना, हावडा-मुम्बई एक्सप्रेस की बेपटरी होना हो या फिर रायबरेली भिडन्त। एक नहीं अनेक उदाहरण हैं जो अपनी गम्भीर प्रकृति के कारण दुर्घटनाओं को षडयंत्र की संभावना की दिशा में इंगित करते हैं परन्तु संवेदनशीलता को तिलांजलि देने वाले मीरजाफरों की राष्ट्रविरोधी हकरतें निरंतर देश में आन्तरिक युध्द हेतु वातावरण तैयार करने के लिए हो रहीं हैं। ऐसे में आम आवाम को अपने मध्य पनप रहे विष वृक्षों की जडों में खुद ही मट्ठा डालना पडेगा तभी देश के भितरघातियों के निजात मिल सकेगी।
Dr. Ravindra Arjariya
Accredited Journalist
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