देश में कार्यपालिका का अनियंत्रित व्यवहार नागरिकों के लिए आये दिन परेशानी का कारण बनता जा रहा है। कर्तव्य परायणता और दायित्वों का बोध करने वालों पर संगठित रूप से आक्रमण होने लगते हैं। सरकारी सेवकों ने सरकारी अफसरों की श्रेणी में स्वयं के निर्णय से पदोन्नति पा ली है जबकि सेवा नियुक्ति पत्र में शासकीय सेवक पद ही लिखा होता है जिसका अर्थ जन सेवक के रूप में भी निरूपित किया गया है।
इन संवैधानिक शब्दों ने पुस्तक से बाहर निकलते ही मौत को गले लगा लिया था, तभी तो कानूनी अनुशासन के समान अनुपालन के स्थान पर स्वच्छन्दता देखने को मिल रही है। सडक सुरक्षा अभियान के तहत केवल दोपहिया और चारपहिया निजी वाहनों को ही निशाना बनाया जाता है। दोपहिया वाहन चालकों से हैल्मेट कहां है, जूते कहां हैं, गाडी का पंजीयन प्रमाण पत्र कहां है, बीमा कहां है, ड्राइविंग लाइसेंस कहां है, पति पत्नी के साथ तीसरी सवारी के रूप में बच्चा क्यों बैठा है, साइड से क्यों नहीं चल रहे थे, मुडने के पहले इंडीगेटर या हाथ का इशारा क्यों नहीं किया जैसे अनगिनत सवालों के जबाब में सुविधा शुल्क न देने पर चालानी कार्यवाही की जा रही है। ऐसे ही निजी चारपहिया वाहन चालकों से सीट बैल्ट क्यों नहीं लगाया, आगे बैठे व्यक्ति का सीट बैल्ट कहां है, मुडने के पहले इन्डीगेटर क्यों नहीं जलाया,ष बच्चे को अतिरिक्त सवारी की तरह क्यों बैठाया, निर्धारित गति से ज्यादा तेज क्यों चला रहे थे, गलत जगह पाकिंग क्यों की, गाडी रोकने के पहले इशारा क्यों नहीं किया, प्राथमिक चिकित्सा का सामान कहां है जैसे अनेक सवाल किये जाते हैं। जबाब पर मानवीय याचना करने पर भेंट की मांग करने वाले गैर शासकीय लोग भी उत्तरदायी सरकारी अमले के साथ स्थल पर पहले से ही मौजूद रहते हैं जिसकी बात न मानने पर चालानी कार्यवाही, मनमाना जुर्माना आदि जबरन वसूला जाता है। दूसरी ओर उसी स्थान से ओवर लोड ट्रक शान्त क्षेत्र में भी प्रेशर हार्न बजाते हुए धडल्ले से निकल जाते हैं। कृषि कार्य हेतु पंजीकृत टैटरों में लगी ट्रालियों में व्यवसायिक सामग्री की ढुलाई सरेआम होती है। बसों में बिना वर्दी वाले ड्राइवर और कन्डेक्टर सेवायें देते देखे जा सकते हैं। आटो रिक्शा, ई-रिक्शा में क्षमता से कई गुना ज्यादा सवारियां पुलिस थानों के सामने ही भरी जाती हैं। निजी वाहनों में स्कूली बच्चों का अवैध परिवहन होता है। परमिटधारी मार्गों पर टूरिस्ट परमिट के बहाने समानान्तर लग्जरी बसों का खुलेआम संचालन हो रहा है।
नियमों के प्रतिकूल वातानुकूलित स्लीपर बसों सहित लग्जरी बसों में केवल एक ही दरवाजा होता है। इन बसों में क्षमता से कहीं अधिक सवारियां भरी जातीं हैं। माल वाहक वाहनों के स्थान पर इन बसों की छतों, चेचिस के पास बनाये गये गुप्त बसों, सीटों के नीचे तथा गैलरी में बिना टैक्स भुगतान का माल भरा होता है जो टैस चौकियों के सामने से प्रतिदिन खुलेआम निकल रहा है। तभी तो चाइना के उत्पाद बिना उत्पाद शुल्क, आयात शुल्क, स्थानीय शुल्क, जीएसटी आदि के गांव की टपरा दुकानों तक निरंतर पहुंच रहे हैं। शायद ही कभी टैटर चालकों, आटो चालकों, ई रिशा चालकों आदि के ड्राइविंग लाइसेंस और वाहनों के पंजियन संबंधी कागजातों आदि की कभी जांच हुई हो। जबकि यही वे वाहन है जो निरंतर दुर्घटनाओं के कारण बनकर लोगों की जिन्दगियों को तबाह करते हैं। यातायात और पुलिस विभाग के अलावा चिकित्सा विभाग में भारी मनमानियां देखने को मिलती है। इस विभाग में बडे-बडे भवनों का निर्माण बहुत तेजी से होता है। अत्याधुनिक मशीनों की खरीद भी तत्काल प्रभाव से कर ली जाती है। वाहनों का क्रय भी द्रुत गति से हो जाता है। इन भवनों में कार्यालय प्रारम्भ होने में सालों लग जाते हैं। मशीनों को आपरेट करने के लिए विभागीय अधिकारियों को प्रशिक्षण तत्काल दिलवा दिया जाता है परन्तु उन मशीनों के कवर खुलने में लम्बा समय व्यतीत हो जाता है।
खरीदे गये वाहनों के लिए चालकों की भर्ती तथा उनका निरंतर उपयोगितापूर्ण संचालन होने की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं होती है। मनमानियों का आलम केवल कुछ ही विभागों तक सीमित न होकर लगभग सभी विभागों में कम-ज्यादा अनियमिततायें देखने को सरेआम मिल रहीं है। सभी सरकारी कार्यालयों में सुरक्षा के नाम पर सीसीटीवी कैमरे लगवाये जाते हैं परन्तु कर्मचारियों-अधिकारियों के आने-जाने का समय सहित उनके व्यवहार आदि के डाटा का विश्लेषण करने के नियमित उपयोग के लिये शायद ही कभी किया जाता हो। इनका उपयोग यदाकदा नागरिकों व्दारा नियमत: काम करने की दुहाई पर सरकारी कार्य में बाधा डालने वाले आपराधिक प्रकरण दर्ज कराने के दौरान साक्ष्य के तौर पर जरूर किया जाता है ताकि हितग्राही उस विभाग के कर्मचारियों-अधिकारियों की मनमानियों पर प्रश्नचिन्ह अंकित न कर सकें। औद्योगिक क्षेत्रों में कुशल कारीगरों के लिए आवंटित भूखण्डों पर पूंजीपतियों के काबिज होने के अनगिनत प्रकरण आज भी धरातल पर स्वयं अपनी दास्तानें सुना रहे हैं। गरीबी रेखा के नीचे का कार्ड, आयुष्मान कार्ड, विधवा पेन्शन, वृध्दावस्था पेन्शन, गरीब आवास योजना आदि सरकारी कार्यक्रमों का लाभ लेने के लिए अपात्रों व्दारा पात्र बनकर प्रस्तुत होने का अनगिनत उदाहरण पूरे देश में बिखरे पडे हैं। सरकारी स्कूलों में बच्चों का वास्तविक पंजीकरण, उनकी उपस्थिति आदि की शतप्रतिशत जांच शायद ही कभी हुई हो। गांव के सक्षम परिवारों के बच्चे अंग्रेजी माध्यम के कान्वेन्ट स्कूलों में दखिला लेने के साथ-साथ सुविधाओं के लिए गांवों में भी पंजीकरण करवा लेते हैं। इस दोहरे पंजीकरण का निरीक्षण तकनीकी माध्यम से करने की जेहमत उत्तरदायी अधिकारियों को उठाने की फुर्सत ही नहीं होती। कभी जिले के बच्चों की कुल जनसंख्या से स्कूली बच्चों की संख्या का तुलनात्मक अध्ययन नहीं किया जाता है।
ऐसा करने पर फर्जीवाडा स्पष्ट दिखाई देने लगेगा। सरकारी स्कूलों की निरंतर बढ रही संख्या के साथ-साथ उससे कई गुना ज्यादा निजी संंस्थानों की तादात में बढोत्तरी हो रही है। निजी संस्थानों में चार अंकों की राशि का वेतन पाने वाले प्रतिभाशाली युवा अपनी जी तोड सेवायें देते हैं।
वहीं दूसरी ओर सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को पांच अंकों से प्रारम्भ होने वाले वेतन के साथ-साथ उसी अनुपात में अन्य लाभ भी दिये जाते हैं जबकि जब इन सरकारी स्कूलों के छात्रों की परीक्षात्मक उपलिधयां, प्रतियोगिताओं में सफलता के मापदण्ड और सेवाओं में प्रवेश पाने का प्रतिशत लगभग नगण्य ही रहता है।
इन छात्रों को गणवेश, मध्यान भोजन, पुस्तकें, साइकिलें, छात्रवृत्ति आदि का सरकारी सहयोग भी खुलकर दिया जाता है। अनियमितताओं की क्रम निरंतर बढता जा रहा है। ट्रकों का स्थान लग्जरी बसों, स्कूल बैन का स्थान निजी वाहनों, छोटे परिवहन वाले वाहनों का स्थान कृषि कार्य वाले टैटरों, सरकारी स्कूलों का स्थान निजी संस्थानों, सरकारी चिकित्सालयों का स्थान निजी अस्पतालों, परमिटधारी बसों के स्थान वातानुकूलित टूरिस्ट वाहनों ने ले लिया है।
इस तरह के अनगिनत कार्य निरंतर कानूनों के मुंह पर तमाचा जड रहे हैं और आम आदमी अघोषित गुलामी की त्रासदी से गुजरने को मजबूर है। किसी जागरूक नागरिक ने अनियमितताओं की ओर यदि इशारा भी कर दिया, तो सच मानिये इशारे से प्रभावित होने वाले कार्यपालिका के दबंग अधिकारी का प्रकोप उस नागरिक पर कहर बनकर टूट पडेगा।
अन्य विभागों के अधिकारी समान हितों के कारण एकता का नारा बुलंद करते हुए उस जागरूक को अभिमन्यु बनाने के लिए एक साथ जंग के मैदान में कूद पडेंगे ताकि किसी अन्य मानमानी करने वाले अधिकारी-कर्मचारी के विरुध्द कोई आवाज उठाने का साहस न कर सके। कहा जाता है कि देश में कार्यपालिका के अनेक विभागों ने स्वयं का राजतंत्र स्थापित कर लिया है।
उन पर सामूहिक और संगठित प्रहार की महती आवश्यकता है अन्यथा एकलौते प्रयासों को लालफीताशाही के व्दारा वीभत्स मृत्य दण्ड की सजा देते देर नहीं लगेगी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।
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