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         लोकसभा चुनावों में एनडीए को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ है। इस गठबंधन के सभी सहयोगी दलों ने मिलकर नरेन्द्र मोदी को संसदीय दल का नेता चुनकर प्रधानमंत्री पद का एक बार फिर दायित्व सौंपा है। देश में दूसरी बार कोई एक ही व्यक्ति तीसरे कार्यकाल में देश के प्रधानमंत्री पद पर स्थापित हुआ है। परिणामों के बाद से चल रहे मीडिया ट्राइल में मनमानी अटकलों का बाजार गर्म होता रहा है। कभी एनडीए के घटक दलों के अतीत को कुरेद कर संभावनायें व्यक्त की जातीं रहीं तो कभी जबरजस्ती के मुद्दे बनाकर दलगत मांगों की सूची प्रस्तुत की जाती रही। दूसरी ओर एनडीए में शामिल दलों के व्दारा नरेन्द्र मोदी को बिना शर्त समर्थन देने की घोषणाओं के बाद आईएनडीआईए गठबंधन से जुडे नेताओं के वक्तव्यों को आधार बनाकर भविष्यवाणियों की बाढ पैदा कर दी गई थी। अनेक स्वयंभू बुध्दजीवियों ने भी अपनी शिक्षा और ज्ञान के आधार पर मनमाने विश्लेषण करके बेगानी शादी में अब्दुल्ला बनने की कोशिश की। इसी दिशा में कलम की कसमें खाने वालों की अन्तहीन श्रंखला को सेटलाइट चैनल से लेकर सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म तक देखा जाने लगा। निर्धारित व्यक्तियों को स्कालर, विशेषज्ञ, प्रवक्ता, जानकार जैसे शब्दों के साथ अलग-अलग बहसों में बैठाया जाता रहा। राजनैतिक दलों की महात्वाकांक्षाओं को उभारने में कलम, कैमरा और शब्दों का खुलकर उपयोग हुआ। ब्रेकिंग, एक्सक्लूसिव, सबसे पहले जैसी प्रतिस्पर्धा में प्रमाणिकता की न्यूनता ही सरेआम देखने को मिली। स्वयं के शब्द दूसरे के मुंह में डालने के प्रयासों का भी बाहुल्य रहा। संभावनाओं की आड में नकारात्मकता के दांव चले जाते रहे। मांगों की फेरिश्त, मंत्रियों की सूची, सहयोगी दलों की अपेक्षायें, आगामी दिनों की कार्ययोजना जैसे अनेक कारकों को बिना प्रमाण के प्रस्तुत करने की प्रतियोगिता भी प्रारम्भ हो गई थी। परिणामों की घोषणा के बाद से मुख्य बिन्दुओं को निरंतर नजरंदाज किया जाता रहा। राजनैतिक क्षितिज पर मतदान से पहले दो सितारों ने अस्तित्व लिया था। एनडीए तथा आईएनडीआईए गठबंधनों में अनेक दलों ने विचारधारा की समानता के आधार पर भागीदारी दर्ज की थी। परिणामों की घोषणा का क्रम शुरू होते ही विश्लेषणों की आंधी चली और भाजपा बनाम आईएनडीआईए गठबंधन पर बहसों का दौर शुरू हो गया। जन्म के आधार पर बने कांग्रेसी नेता सहित उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तक ने भाजपा को कोसना शुरू कर दिया। नैतिकता के आधार पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से त्याग पत्र मांगा जाने लगा। आईएनडीआईए गठबंधन के साथ एनडीए की तुलना न करते हुए भाजपा आधारित संभावनाओं को रेखांकित किया जाने लगा। दबाव का वातावरण निर्मित करने वाले प्रयास तेज होते चले गये। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कानूनी ढाल के पीछे से प्रचार माध्यमों ने राष्ट्र की गरिमा पर जमकर प्रहार किये गये। देश की आन्तरिक स्थिति को असुरक्षा, अस्पष्टता और असामंजस्य के चश्मे से दिखाया जाने लगा। परिणामस्वरूप शेयर मार्केट में कीर्तिमानी गिरावट दर्ज होने हुई। राष्ट्र के भविष्य को अंधकारमय प्रस्तुत करने से अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भी उसी दिशा में टिप्पणियां होने लगीं। विभिन्न देशों के संचार माध्यमों ने नकारात्मक सोच प्रस्तुत की और फिर उन्हीं सोच की देश के अन्दर समीक्षा कथित कालिमा को गहराया जाने लगा। आम जनमानस आंदोलित हो उठा। कभी अयोध्या की हार पर, तो कभी मतों के प्रतिशत पर चर्चाओं का दौर चीख चिल्लाहट के साथ चलता रहा। इस बार के चुनाव में प्रचार के पंजीकृत संस्थानों के अलावा स्वतंत्र अभिभाषण का दलगत राजनीति में जमकर उपयोग हुआ। देश की सीमा के बाहर से भी लोकसभा के चुनावों को प्रभावित करने हेतु अनगिनत षडयंत्रकारी प्रयास हुए। सोशल मीडिया के विभिन्न विदेशी प्लेटफार्म का उपयोग करके परिणामकाल से लेकर वर्तमान समय तक मनमाने संदेश दिये जाते रहे। एनडीए की संयुक्त बैठक के शब्द सहित और शब्द रहित संदेशों को मनमाने अर्थो के साथ परोसा जाता रहा। संवेदनाओं की चरमसीमा पर स्थापित भावनात्मक अभिव्यक्तियों पर भी अभिनय, बनावटी, दिखावा जैसी परिभाषायें थोपी जाती रहीं। किन्हीं खास कारणों से विध्वंसकारी परिस्थितियों की वकालत की जाती रही। फूट डालने वाले सभी हथियारों को आजमाया जाता रहा। सरकार के गठन के स्वरूप से लेकर मंत्रियों के नाम सहित उनके विभागों तक का बटवारा भी संभावनाओं की ओट में किया गया। आमंत्रित अतिथियों की सूची पर बेलगाम टिप्पणियां की जातीं रहीं। लोगों को बरगलाने वाले सारे मसालों को एक ही कडाही में भूनने से उनका संतुलन ही समाप्त हो गया और आवाम ने भी उस अनर्गल प्रलाप पर क्रोधित न होकर उनके जमकर मजे लिये। कहीं टीआरपी की होड देखने को मिली तो कहीं अपने अप्रत्यक्ष प्रायोजकों को लाभ पहुंचाने की गरज से प्रयास किये गये। ऐसे में संयम की पराकाष्ठा पर विराजमान राष्ट्र ने शान्ति, सौम्यता और संतुलिन का परचम ही फहराया। यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि वर्तमान लोकसभा के चुनावों के परिणामों ने जातिगत जनगणना के लागू होने के पहले ही हो चुके मानसिक विभाजन को पूरी तरह प्रदर्शित कर दिया है जिसमें प्रत्याशियों का दबाववश किया गया चयन, दिग्गजों का जातिगत पक्षपात और स्वार्थ से पोषित भितरघातियों का कृत्य अपनी उपस्थिति की स्वयं ही गवाही दे रहा है। ऐसे में इस बार एनडीए अपने सिध्दान्तानुसार सबके साथ मिलकर ही सबका विकास करने की वास्तविकता को स्थापित करने के लिए प्रस्तुत है। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।


Dr. Ravindra Arjariya

Accredited Journalist

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dr.ravindra.arjariya@gmail.com



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