भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया
'वसुधैव कुटुम्बकम' के आदर्श वाक्य को जीवन का मूलमंत्र मानने वाली सनातन परम्परा का एक प्राचीन स्तम्भ लगभग 500 वर्ष बाद पुन: अपनी गरिमा प्राप्त कर रहा है। त्रेता युग के जीवन्त कथानकों की प्रेरणायें सदैव से ही समरसता, सद्भावना और सहयोग की स्थापना हेतु प्रयासरत रही है। आक्रान्ताओं की क्रूरता ने सहृदयता को तार-तार ही नहीं किया बल्कि सनातन के प्रतीकों को
भी नष्ट कर दिया था। गुलामी की बेडियां कटने के बाद भी देश के काले अंग्रेजों ने वैमनस्यता
तम की कुटिल चालों के तहत संवैधानिक व्यवस्थायें लागू कर दी। परिणामस्वरूप अतीत की वैभवशाली स्मृतियां अपने पुनस्र्थापना के लिए जार-जार आंसू बहातीं रही। वास्तविक घटनाओं को काल्पनिक बताने वालों ने न्यायालयीन प्रक्रिया के तहत मामले को हमेशा ही उलझाने का काम किया किन्तु सनातन के पक्षधरों ने थोपे गये संविधान का सम्मान करते हुए 'सत्यमेव जयते' को ही अंगीकार किया। आखिरकार न्यायालय ने भी सत्य को स्वीकारा और त्रेताकालीन राम जन्मभूमि पर सदियों बाद मंदिर का निर्माण प्रारम्भ हुआ। विदेशी षडयंत्रकारियों के हाथों की कठपुतली बनकर देश की संस्कृति को विकृत करने वालों के मंसूबों पर पानी फिर गया। चारों ओर खुशी की बयार चलने लगी। सनातन की सुगन्ध से समूची धरा सुवासित होने लगी। षडयंत्रकारियों ने एक बार फिर अपने हथकण्डे आजमाने की कोशिश की। अपनों को ही अपने का खून बहाने के लिए तैयार किया गया। वेदों की मनमानी व्याख्याओं को आधार बनाकर श्री अयोध्या धाम में होने वाले दिव्य प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव में अवरोध उत्पन्न करने की कोशिशें की जाने लगीं। ऐसे लोगों ने गूढ ग्रन्थों को स्वयं के विश्लेषण से लेकर अप्रमाणित कृतियों तक का सहारा लिया परन्तु देश की आम आवाम नेे एक मत से प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव का शंखनाद कर दिया। महोत्सव पर छाये काले बादल छट गये किन्तु इस दौरान आयोजनकारी ट्रस्ट के कुछ पदाधिकारियों ने अपने मनमाने रवैये से अनेक वार विवाद की स्थिति पैदा करने की कोशिश की किन्तु इन कथित कृत्यों को निरंतर अदृष्टिगत करते हुए सनातन प्रेमी अपनी आस्था के आयामों की स्थापना पर अडिग रहे ताकि निर्विध्न रूप से महोत्सव सम्पन्न हो सके। ऐसे विध्नसंतोषी लोग लगभग प्रत्येक संस्थानों में रंगे सियार की कहावत को चरितार्थ करते हुए चाटुकारिता की दम पर प्रवेश पा जाते हैं और फिर अपने आकाओं के इशारों पर नाचने लगते हैं। देव और दैत्यों का प्रत्येक स्थान पर अस्तित्व होता है तो फिर महोत्सव की आयोजन समिति में भी यह दृश्य सजीव है, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। आमंत्रण देकर न आने का फरमान जारी करने वालों को आखिरकार श्रध्दालुओं की भावनाओं के आगे घुटने टेकने ही पडे, भले ही उन्होंने कल्याण सिंह प्रकरण में जीत हासिल कर ली थी। इसी तरह की अनेक व्यवस्थाओं में मनमानी का आलम देखने को मिलता रहा। अतिथियों की सूची तैयार करने से लेकर निमंत्रण पहुंचाने तक में तानाशाही देखने को मिली। वरिष्ठ को धता बताकर कनिष्क को आमंत्रित करने के अनेक उदाहरण प्रमाण के रूप में मौैजूद हैं। राष्ट्र के विकास में योगदान देने वाली अनेक संस्थाओं की उपेक्षा से लेकर प्रतिभाशाली लोगों के प्रवेश को प्रतिबंधित करने वाले कृत्य निश्चय ही आने वाले समय में आयोजकों के सामने आइना लेकर खडे होंगें। इन संभावाओं के लिए अभी से नाकेबंदी के बंदोबस्त किये जा रहे हैं। चांदी की चम्मचों से चटनी चटाने के लिए अलग से नुमाइन्दे तैनात कर दिये गये हैं। राष्ट्रीय गरिमा को ध्यान में रखते हुए मनमाने रवैये से आहत लोग फिलहाल शांति से सनातन के स्तम्भ की स्थापना का महोत्सव अपने अन्त:करण में ही माना रहे हैं ताकि श्रीराम के आदर्श और उनकी न्यायप्रियता पुन: स्थापित हो सके। लोगों को विश्वास है कि जिन भगवान राम ने आज्ञा के उलंघन पर अपने भाई लक्ष्मण तक को दण्डित किया था उनके राज्य में तानाशाही का बिगुल फूंकने वाले स्वत: ही नस्तनाबूत होंगें। फिलहाल तो समूचा विश्व सनातनी परम्परा, संस्कृति और सिध्दान्तों के आगे नतमस्तक है। दुनिया की समस्याओं के समाधान के लिए भारत की ओर देखते लोगों को रामराज्य की स्थापना का ललचाई नजरों से इंतजार है। देश-दुनिया का सशक्त समुदाय इस दौरान साक्षी की भूमिका में होगा, राष्ट्र के संवैधानिक मुखिया की गर्भगृह में उपस्थिति होगी और संचार माध्यमों से भगवां रंग में रंग जायेगा संसार का घर-आंगन। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।
Dr. Ravindra Arjariya
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