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  गुरु पूर्णिमा महत्त्व



          गुरू पूर्णिमा पर्व क्यों मनाया जाता है- 

यह पर्व मुख्यतः महर्षि वेदव्यास  जी के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। साथ ही उन आध्यात्मिक और शैक्षणिक संस्थानों के गुरुजनों को भी समर्पित  परम्परा है, जिनके  योगदान से,कुशल मार्गदर्शन से समाज का एक बहुत बडा वर्ग उत्प्रेरित होकर रचनात्मक,कार्य कुशलता और सकारात्मक सोच के साथ सफलता के चरम तक पहुंचा है। अथवा सफलता के शिखर को प्राप्त करता है।। यह पर्व हिन्दुओं सहित सिक्ख, जैन,बौद्ध धर्म के अनुयायी भी उत्साह पूर्वक मानते हैं।                                                                वेद व्यास कौन थे- व्यास जी महर्षि पराशर के पुत्र थे,जिन्होंने 1लाख वेद मंत्रों को 4 वेदों में विभाजित किया,18 पुराणों की रचना की और विविध शास्त्र और उपनिषदों का निर्माण किया अथवा लिखा है। वस्तुतः इन्हें आदि गुरु कहा जाता है अर्थात गुरु परम्परा का प्रारम्भ इन्हीं से ही हुआ।।                                          गुरु का शाब्दिक अर्थ क्या है-"गु"का अर्थ अंधकार या अज्ञान और "रु"का अर्थ है निरोधक अर्थातअज्ञान रूपी  अंधकार से जो,ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाये वही गुरु होता।    

            जीवन में गुरु का महत्व-सबसे प्रचलित ग्रंथ


 गीता,महाभारत,रामायण आदि से लेकर सभी धर्म ग्रंथों में गुरु का स्थान सर्वोच्च रहा है। इस संदर्भ में संत कबीरदास जी ने बड़े ही सारगर्भित शब्दों में गुरु की व्यख्या इस प्रकार व्यक्त की है "गुरु गोविन्द दोनों खड़े काके लागूं पाय,बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय ।अर्थात गुरु गोविन्द(भगवान) के समकक्ष  हैं,बड़े हैं।वैसे भगवान से बढ़कर तो सायद कोई हो नही सकता लेकिन कबीर दास जी का भाव यह है, कि यदि हमारे मनुष्य के जीवन में किसी सक्षम गुरु का मार्गदर्शन नहीं है, तो वह   जीवन में  असफल रह जाता है। मार्ग चाहे अध्यात्म का हो,या व्यवहारिक,एवं आधुनिक शिक्षा-दिक्षा का हो,व्यवहारिक शिक्षा जैसे-पठन-पाठन,उच्च शिक्षा,तकनीकी शिक्षा,संगीत,नाट्य,कला,अभिनय,क्रीड़ा/खेल आदि-आदि  क्षेत्रों में अध्ययनरत या जिज्ञासु शिष्य को गुरु के रूप में कुशल मार्गदर्शक की नितान्त आवश्कयता होती है। अर्थात गुरु ही वह 2शख्सियत है जो शिष्य को तरासने का काम करते हैं,और जिस शिष्य की गुरु के प्रति सच्ची निष्ठा और संबंधित काम के प्रति लग्न होती है वह नि सन्देह सफलता के शिखर तक पहुंच जाता है।       

             गुरुपूर्णिमा का संदेश

आदि गुरु वेदव्यास जी के जन्मदिन के उपलक्ष में आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला गुरु पूजा का पर्व  गुरु के प्रति श्रद्धा और समर्पण भाव की एक प्रकार से पुनरावृत्ति है।  इस दिन सभी  शिष्यों को अपने-अपने  गुरुजनों की पूजा,अर्चना कर उनके प्रति समर्पण भाव व्यक्त कर,गुरू का आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए। ऐसा करने से गुरु- शिष्य के सम्बंध प्रगाढ़ होते हैं, फलस्वरूप शिष्य गुरु कृपा प्राप्त कर सफलता के शिखर तक पहुंच जाता है।           गुरु पूजन कैसे करे-पूर्णिमा के दिन प्रातः स्नान आदि दैनिक क्रिया से निवृत होकर,या तो गुरु के निवास में जाकर गुरु की पूजा अर्चना करें अथवा किसी चौकी पर सफेद,पीला वस्त्र  बिछाकर गुरु की फ़ोटो को स्थापितकर,ध्यान,आवाहन,पूजन,माल्यार्पण,मिठाई, फल दक्षिणा आदि अर्पित करें।तत्पश्चात गुरु मंत्र का जप करें।।     

                       


    

   

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