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 भविष्य की आहट :



सदैव की भांति राष्ट्रीय और देशभक्ति के मुद्दों को उठानेवाले लेखक, विचारक अरजरिया जी का दिल से धन्यवाद करते हुए मुझे माँ भारती और उनके सपूतों पर गर्व की अनुभूति हो रही है। प्रस्तुत लेख ,एक लेख नही है जागृति का शंखनाद है। माँ भारती और उनके संस्कारों को बचाने की मुहिम है।

संपादक

 


विश्व गुरु की गरिमा प्राप्त राष्ट्र को धूल धूसित करने के प्रयासों में विदेशी ताकतों के साथ देश में रह रहे भितरघातियों की एक बडी जमात साथ दे रही है। जिस देश के नालंदा, तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों ने वसुधैव कुटुम्बकम् की परिकल्पना के साथ संसार को सर्वे भवन्तु सुुखिन: की आशीष दी थी, उसी की राजधानी के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में राष्ट्र द्रोह की आग एक बार फिर से सुलगाई जा रही है। देश के टुकडे-टुकडे करने की मंशा वालों के साथ अनेक राजनैतिक दल, कथित समाज सेवियों की फौज और स्वयं भू बुध्दिजीविकी का तमगा लगाने वाले हर षडयंत्र में खडे हो जाते हैं। राष्ट्रवाद को सम्प्रदायवाद का नाम देकर देश भक्तों पर कुठाराघात करने का कुचक्र बामपंथियों की कलुषित मानसिकता से निरंतर चलाया जा रहा है जिसमें अनेक रंगे हुए सियारों की भीड भी शामिल है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पिछले सप्ताह जिस तरह का घटना क्रम देखने को मिला, उससे निकट भविष्य में किसी बडे काण्ड की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। शिक्षा के मंदिर से मां भारती की हत्या का चल रहा षडयंत्र करने वाले अब भाई से ही भाई का कत्ल करवाने का लक्ष्य साध रहे हैं। उन्होंने धन पिपासुओं को सूचीबध्द कर लिया है, विलासता के चाहत रखने वालों का चिन्हित कर लिया है और स्वार्थ के शीर्ष पर बैठे लोगों को बना लिया है अपना गुलाम। यह सब कुछ देश की स्वाधीनता के बाद से सोची-समझी दूरगामी योजना के तहत ही चल रहा है। जिस तरह से अंग्रेजों ने अपने देश में पढने वाले चन्द भारतवासियों को कठपुतली बनाकर आजादी देने के पहले हमारी धरती पर नियुक्त किया था, उसी तरह से नियुक्त कठपुतलियों ने अपने आकाओं के इशारे पर आगामी 100 वर्षों की घातक योजना के क्रियान्वयन हेतु विष बीजों को रोपित भी कर दिया था। वही बीज अब वृक्ष बनकर बडे हो चुके हैं। आम आवाम की लाशों पर शीशमहल खडा करने की चाहत रखने वालों ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर में स्थित इंटरनेशनल स्टडीज 01 तथा 02 के भवनों की दीवारों पर ब्राह्मणों तथा बनियों को देश छोडने की धमकी अंकित करके सौहार्द के वातावरण को वैमनुष्यता की दुर्गन्ध से प्रदूषित कर दिया है। लाल चेतावनी में एक संगठित ब्रिगेड के हमलावर होने की बात भी कही गई है। रक्तपात का डर भी दिखाया गया है। पीठ पर छुरा भौंपने की चीनी मानसिकता के साथ क्रूरता की चरमसीमा पर बैठे कट्टरपंथी सोच का समुच्चय तैयार किया जा रहा है। चीन की विस्तारवादी नीतियों को भारत में रोपित करके उसमें संकीर्ण सोच वाले कुछ धार्मिक राष्ट्रों की खाद डाली गई है। इस रोपावनी पर भितरघातियों की जमात निरंतर पानी डाल रही है। पर्दे के पीछे से लिखवाई गई जातिवादी लाल धमकी के जबाब में हिन्दू रक्षा दल ने खुलेआम कम्युनिस्ट को भारत छोडने की चेतावनी दी है। आश्चर्य होता है कि अतिसुरक्षित परिसर में खूनी धमकियां निरंतर लिखी जाती रहीं, सुरक्षाकर्मी डियूटी करते रहे, उत्तरदायी अधिकारी किन्हीं कारणों से अपनी नाक के नीचे फैलती दुर्गन्ध से अनजान बने रहे, शिक्षा देने वाले अपने अनुयायियों की गतिविधियों पर पर्दा डालते रहे, कुछ राजनैतिक दल खुलकर देश द्रोहियों के साथ खडे रहे, इन सहयोगी दलों के कद्दावर नेता कानून विद् बनकर जांच तथा न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करने रहे, संविधान में जानबूझ कर की गई कुछ लचीली व्यवस्थाओं का लाभ लेते रहे और कोसते रहे देश के मूल निवासियों की पारदर्शी प्रकृति को। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर शान्तिश्री ने घटना की निन्दा और जांच के आदेश जारी करके अपने कर्तव्यों की इति कर ली है। हर बार ऐसा ही होता रहा है। जांच करवाने की घोषणा हुई, दोषियों पर कडी कार्यवाही की बात कही गई, आरोपियों के पक्ष में सफेदपोशों की भीड खडी हो गई और देश को द्रोहियों की पहचान सहित उनके साथ हुई कार्यवाही की भनक तक नहीं लगी। अतीत में खुले आम हत्या करने वालों को भी साक्ष्य के अभाव में ससम्मान बरी होते देखा गया है। कानूनी के इसी लचीलेपन का लाभ लेने में माहिर लोग आज माहिल बनकर राष्ट्र को रक्तरंजित करने पर तुले हैं। पैसे को भगवान मानने वाली स्वार्थी मानसिकता को पहले बाह्य आक्रान्ताओं ने पहचाना, शासन किया। गोरों की व्यवसायिक कम्पनी ने चार हाथ आगे बढकर न केवल गुलामों को अति गुलाम बना लिया बल्कि देश की सम्पन्न सांस्कृतिक विरासत को तार-तर करके कथित सम्मान और सम्पन्नता की लालच भरी मीठी छुरी से मां भारती के टुकडे-टुकडे कर दिया। यह प्रहार अहिंसा, सौहार्द और शान्ति के अनुयायियों पर कुटिलों व्दारा हमेशा से ही किया जाता रहा है। दलाली के दलदल में आकण्ठ डूबे लोग एक बार फिर थाली में छेद और आश्रम में आग लगाने की कहावत को चरितार्थ करने में जुड गये हैं। ऐसे लोगों ने देश की राजधानी में कभी साम्प्रदायिक दंगे करवाये तो कभी छात्रों का सोच संघर्ष सडकों पर पहुंचाया। कभी किसान हित की ओट में आम आवाम के लिए समस्यायें पैदा की तो कभी महिलाओं की आड में धार्मिक उन्माद फैलाया। जातिवादी जहर से हिन्दुओं को अस्तित्वहीन करने वालों में गोरों के अनेक धार्मिक संस्थान, आक्रान्ताओं की जमात, लाल सलाम का ऐजेन्डा हाउस और चंदन की आड में चांदी कूटने वाली मानसिकता सीधी तौर पर शामिल दिख रही है। ऐसे में शिक्षा के मंदिर की दीवारों से मिटाना होगी रक्तपात का चेतावनी अन्यथा ज्ञान के नाम पर अज्ञान बांटने वाले अपने मंसूबों में सफल हो जायेंगे। इस बार बस इतनी ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।


डा. रवीन्द्र अरजरिया 

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