मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने भारत की राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने पर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी को शुभकामनाएं दी हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि श्रीमती मुर्मू जी, नारी अभ्युदय का स्वर्णिम प्रतीक हैं। मानवता का विकास, नए भारत का निर्माण एवं लोकतांत्रिक मूल्यों की पूर्णता नारी शक्ति के योगदान के बिना असंभव है।
द्रौपदी मुर्मू ने देश के 15वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ले ली हैं। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने उन्हें शपथ दिलाई। बता दें कि मुर्मू देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं, सर्वोच्च संवैधानिक पद संभालने वाली पहली आदिवासी महिला और स्वतंत्र भारत में पैदा होने वाली पहली राष्ट्रपति हैं।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति भवन से विदा हो गए हैं। विदाई के दौरान कोविंद को ट्राई सर्विस गार्ड ऑफ ऑनर प्रदान किया गया। श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने श्री रामनाथ कोविंद और सविता कोविंद से उनके आवास पर भेंट की। राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ट्राई सर्विस गार्ड ऑफ ऑनर का निरीक्षण किया। उन्हें 21 तोपों की सलामी भी दी गई।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने जीवन के विषय मे बताते हुए कहा कि मैंने ओडिशा के गांव से जीवन यात्रा शुरू की है। ये पद मेरी उपलब्धि नहीं, बल्कि देश के गरीबों की उपलब्धि है। लोकतंत्र की शक्ति से यहां पहुंची हूं। मैं गौरवान्वित महसूस कर रही हूं। मेरे लिए जनता का हित सर्वोपरि है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति भवन पहुंचे हैं। यहां उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि मैं चाहती हूं कि हमारी सभी बहनें व बेटियां अधिक से अधिक सशक्त हों तथा वे देश के हर क्षेत्र में अपना योगदान बढ़ाती रहें।
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि जगत कल्याण की भावना के साथ, मैं आप सब के विश्वास पर खरा उतरने के लिए पूरी निष्ठा व लगन से काम करने के लिए सदैव तत्पर रहूंगी।
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि मेरा जन्म तो उस जनजातीय परंपरा में हुआ है जिसने हजारों वर्षों से प्रकृति के साथ ताल-मेल बनाकर जीवन को आगे बढ़ाया है। मैंने जंगल और जलाशयों के महत्व को अपने जीवन में महसूस किया है। हम प्रकृति से जरूरी संसाधन लेते हैं और उतनी ही श्रद्धा से प्रकृति की सेवा भी करते हैं। मैंने अपने अब तक के जीवन में जन-सेवा में ही जीवन की सार्थकता को अनुभव किया है। जगन्नाथ क्षेत्र के एक प्रख्यात कवि भीम भोई जी की कविता की एक पंक्ति है। “मो जीवन पछे नर्के पड़ी थाउ, जगत उद्धार हेउ”। अर्थात, अपने जीवन के हित-अहित से बड़ा जगत कल्याण के लिए कार्य करना होता है।
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि मैं अपने देश के युवाओं से कहना चाहती हूं कि आप न केवल अपने भविष्य का निर्माण कर रहे हैं बल्कि भविष्य के भारत की नींव भी रख रहे हैं। देश के राष्ट्रपति के तौर पर मेरा हमेशा आपको पूरा सहयोग रहेगा।l
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, नेहरू जी, सरदार पटेल, बाबा साहेब आंबेडकर, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे अनगिनत स्वाधीनता सेनानियों ने हमें राष्ट्र के स्वाभिमान को सर्वोपरि रखने की शिक्षा दी थी। रानी लक्ष्मीबाई, रानी वेलु नचियार, रानी गाइदिन्ल्यू और रानी चेन्नम्मा जैसी अनेकों वीरांगनाओं ने राष्ट्ररक्षा और राष्ट्रनिर्माण में नारीशक्ति की भूमिका को नई ऊंचाई दी थी। राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि संविधान के आलोक में, मैं पूरी निष्ठा से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करूंगी। मेरे लिए भारत के लोकतांत्रिक-सांस्कृतिक आदर्श और सभी देशवासी हमेशा मेरी ऊर्जा के स्रोत रहेंगे।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस की पूर्व संध्या पर भारत की सेनाओं के शौर्य औरसंयम की सराहना की। उन्होंने देश की सेनाओं को तथा देश के समस्त नागरिकों को कारगिल विजय दिवस की अग्रिम शुभकामनाएं देती हूं।
एक टिप्पणी भेजें