धनौल्टी
देवेंद्र बेलवाल
जौनपुर का ऐतिहासिक व राजशाही मौण मेला अगला नदी में हर्ष उल्लास के साथ घूमधाम से मनाया गया।
जनपद टिहरी के प्रखंड जौनपुर के तहत अगलाड नदी के नियत स्थान मिंडे नामें तोक में टिहरी नरेश द्वारा स्वयं आकर इसी जगह पर मौण मेले की शुरुआत लगभग 157 वर्ष पहले जौनपुरी रितिवाज के साथ की थी। इस मौण में 114 गांव सहित उत्तरकाशी , देहरादून सहित कई हजारों की संख्या मौण मेला में शिरकत का मच्छी पकडते है ।
नदी में मच्छी पकडने को प्राकृतिक औषधि टिमरू के पौधे की छाल और बीज को निकाल कर सुखाया जाता है , और हल्की आंच में ब्रेन कर फिर घराट पन चक्की में पीस कर पाउडर तैयार कर इसे मौण कहते हैं । जैसे ही नदी में मौण डालने पर मच्छलीया घायल हो जाती । जिसरों कुंडियाला, फटियाड, जाल आदि स्थानीय यंत्रों के जरिय आसनी से मच्छी पकड में आती है।
नदी में मच्छी पकडने का सिल सिल्ला लगभग 4 से 5 किमी लंबी नदी में इस मच्छी पकडने का दौर चलता है। शाम रात्री को प्रत्येक गांव में इसे त्योहार के रूप में मनाया जाता है, जहां मध्य रात्रि तक जौनपुर लोक संस्कृति के तहत कार्यक्रमों की धूम रहती है।
कोराना काल के बाद मौण मेले में इस बार 11 गांव सिलवाड के ग्रामीणों द्वारा मौण निकालने व डालने की बारी ढोल नागडे के साथ नदी में हर्ष उल्लास के साथ डाला गया ।
मैणार्थी बचन सिंह रावत , महिपाल सिंह सरदार सिंह आदि
का कहना है गत दो वर्षो में कोराना काल में मौण नही मनाया गया इस बार मौण को लेकर लोगों में भारी उत्साह है। इतना पौराणिक मेले में मौण स्थल तक रास्ता पूरी तरह से क्षतिग्रस्त होन पर शासन प्रशासान के प्रति भारी आक्रोश भी है।
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