भविष्य की आहट
डा. रवीन्द्र अरजरिया
सरकारी अमले में राष्ट्र विरोधी मानसिकता की घुसपैठ
देश में साम्प्रदायिकता की आग लगाने वालों की नित नई चालें सामने आ रहीं है। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के महासचिव मोइन अहमद खान ने मोदी-योगी को लिखी चिट्ठी लिखकर यूनिफार्म सिविल कोड लागू करने की सरकारी मंशा पर अनेक सवालिया निशान लगा दिये हैं। उन्होंने मुसलमानों के विवाह, तलाक, धार्मिक कृत्यों और तरीकों को रेखांकित करते हुए इस तरह के प्रयोगों को गैर संवैधानिक करार दिया है। वर्तमान हालातों में इस तरह के संवादों को उठा कर देश में साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाडने के प्रयासों के रुप में परिभाषित किया जा रहा है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि यह सब सीमापर की एक निर्धारित कार्य योजना के तहत प्रायोजित है। शाहीन बाग में भारी मात्रा में मादक पदार्थों का बरामद होना, अवैध असलहों की खेप का पकडा जाना, बेनामी दौलत जप्त होना, बेहिसाब नगदी का खुलासा होना, महबूबा मुफ्ती का कश्मीर राग में पाकिस्तानी सुरों का शामिल होना जैसे अनगिनत उदाहरण हैं जो खल्मखुल्मा षडयंत्र और षडयंत्रकारियों की ओर इशारा करते हैं। ऐसे में भावनात्मक कार्ड खेलने वाले असदुद्दीन ओवैसी के तो अलविदा की नमाज के बाद उपद्रवियों के खिलाफ बुलडोजर की कार्रवाही पर आंसू तक छलका दिये। अकेले औवेसी ही जहर उगल रहे हैं, ऐसा भी नहीं है। मंदसौर में साध्वी ऋतंभरा व्दारा दिये गये जहरीले बयान भी किसी सांसद की गरिमा को तार-तार कर जाते हैं। जबकि दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने अलविदा की नमाज में देश के अमन-चैन की दुआ मांगी और कहा कि समाज में घृणा और सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाली घटनाओं पर लगाम लगना चाहिए। नफरत की आग में जलने के लिए देश को नहीं छोड सकते। देश के हिन्दू-मस्लिम दौनों समाज के लोग हिंसा नहीं चाहते। उन्होंने देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मिलने की इच्छा भी जाहिर की ताकि देश को सकारात्मक दिशा में विकास के पथ पर बढाया जा सके। शाही इमाम की लम्बी चुप्पी के बाद निकले उद्गारों ने देश के आवाम का दिल जीत लिया। औवैसी, महबूबा जैसे लोगों को उन्हीं के मध्य से जबाब मिल गया और ऋतम्भरा को आइना। दूसरी ओर सरकारी विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों के माध्यम से अक्सर शांति भंग करवाने का वातवरण तैयार किया जाता रहा है। अभी हाल ही में पुरातत्व विभाग के चन्द लोगों ने जिस तरह से ताजमहल में जगतगुरू का प्रवेश वर्जित किया, वह गम्भीर विषय है। पहले भी अनेक धर्म के लोग अपने अध्यात्मिक श्रंगार के साथ ताजमहल के दीदार कर चुके हैं, तब न तो पुरातत्व विभाग ने आपत्ति उठाई और न ही सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें रोका। फिर वर्तमान के संवेदनशील माहौल में किसके इशारे पर यह कार्य किया गया। यह गहन जांच का मुद्दा है। ठीक इसी तरह आगरा के ही मण्डल रेल प्रबंधक ने राजा की मंडी स्टेशन से मंदिर हटवाने या फिर स्टेशन बंद करने जैसी पैदाकर के अपनी व्यक्तिगत मानसिकता से लोगों की भावनाओं को आहत किया। मगर वहां के निवासियों ने एक साथ मिलकर इस मुद्दे की हवा निकाल दी। मुस्लिम समाज के संभ्रान्त लोगों ने मंदिर के पक्ष में साथ खडे होकर जिस तरह से रेलवे के अधिकारी की गैर कानूनी हरकत का विरोध किया, वह काबिले तारीफ है। कदापि उचित नहीं है सरकारी अमले में राष्ट्र विरोधी मानसिकता की घुसपैठ और ऐसे अधिकारियों का वरिष्ठों के संरक्षण में बच जाना। इन्हीं कृत्यों से आपसी भाईचारा बिगाडने वालों के मंसूबे बुलंद होते हैं। सरकारी आदेश का पालन कैसे करना चाहिए, इसे सीखने के लिए बंगाल पुलिस नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश पुलिस आदर्श के रूप में उभरी है, जिसने अयोध्या को साम्प्रदायिकता की आग में झौंकने वालों को बेनकाब ही नहीं किया बल्कि समय रहते दौनों मतावलम्बियों को समझा-बुझाकर चन्द लोगों के षडयंत्र का पर्दाफास भी किया। तत्परता की कमी से एक बडा दंगा भडक सकता था। ऐसा ही अलविदा की नमाज, सडक पर इबादत, सभी धार्मिक स्थलों के ध्वनि विस्तारक यंत्र आदि पर पुलिस ने सौहार्दपूर्ण बनाये रखते हुए नियंत्रितात्मक प्रयोग किये। जबकि बंगाल में बलात्कार और हत्या के मामले पर ममता बनर्जी का मुख्यमंत्री की गरिमा से बेहूदगी से भरा घटिया बयान और वहां की पुलिस के उत्पीडन का शिकार होते पीडित परिवार की कहानी किसी से छुपी नहीं है। बंगाल के विधानसभा चुनावों में तो हम स्वयं ही कवरेज करने गये थे जहां पर तृणमूल समर्थित मीडिया और अन्य में खुलकर विभेद किया जा रहा था। अनेक संवेदनशील इलाकों में सुरक्षा के नाम पर दिल्ली से आये अनेक मीडियाकर्मियों को न केवल जाने से रोका गया बल्कि अनेक प्रदेश मुख्यालयों से पहुंचे पत्रकारों के साथ तो बंगाल पुलिस ने जमकर बदसलूकियां भी की गई थीं। पुलिसिया कहर तो महाराष्ट्र में हनुमान चालीसा के पाठ वाले प्रकरण में सांसद और विधायक पर मुख्यमंत्री के इशारे पर भी जमकर टूटा। आम आदमी पार्टी के कब्जे में पहुंची पंजाब पुलिस का दुुरुपयोग तो दिल्ली के द इम्पीरियल में आयोजित प्रेस कान्फ्रेन्स के दौरान देखने को मिला जहां पार्टी प्रमुख अरविन्द केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने संयुक्त वार्ता हेतु मीडियाकर्मियों को आमंत्रित किया था। इस आयोजन में पहुंचे एक पत्रकार पर खाकी ने कहर बरपाया। प्रेस इन्फ्रार्मेशन ब्यूरो से मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार के परिचय पत्र को देखने के बाद भी पंजाब पुलिस ने उसे न केवल प्रवेश से रोका बल्कि उन पर अत्याचार करते हुए मर्यादा की सारी सीमायें लांघी। पंजाब में खालिस्तान स्थापना दिवस पर अलगाववादियों के प्रयासों को क्लीन चिट देकर उसका विरोध करने वालों पर कार्यवाही होना किसी तानाशाही का परचम फहराने जैसा ही है। वहीं बाला साहब ठाकरे के सिध्दान्तों पर चलने का ढोंग करने वाली पार्टी ने अपने पंजाबी नेता के राष्ट्रविरोधियों के खिलाफ खडे होने के प्रयास पर उसे ही पार्टी से बाहर कर दिया। यह है सिध्दान्तों के मुुखौटे के पीछे की असलियत। ऐसा ही हिमाचल में खालिस्तान समर्थकों की झंडा लगी गाडियों पर शिकंजा कसते ही बदले की भावना से पंजाब की मान सरकार ने हिमाचल में पंजीकृत गाडियों के प्रवेश पर ही रोक लगाकर अपनी मंशा जाहिर कर दी। यह सब सीमापार से साम, दाम, दण्ड, भेद की नीतियों पर चलकर राष्ट्रविरोधी ऐजेन्डे की व्यवहारिक परिणति के रूप में विवेचित हो रही है। जहां शाही इमाम के अभी के वक्तव्यों में रचनात्मक मानसिकता के दिगदर्शन होते हैं वहीं विध्वंसात्मक शब्दों के जहर बुझे तीर चलाने वाले अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। वर्तमान हालातों पर लगाम लगाने के लिए शाही इमाम जैसों को सरकारों के साथ मिलकर ठोस उपायों के लिए संगठित प्रयास करना होंगे तभी सुखद परिणाम सामने आ सकेंगे। फिलहाल इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।
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