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भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया


देश में पंजाब के हालात एक बार फिर सियासती दावपेंचों के मध्य फंसते चले जा रहे हैं। चुनावों में किये गये मुफ्तखोरी के वायदों को पूरा करने के लिए राज्य सरकार ने केन्द्र से सहायता मांगने का क्रम शुरू कर दिया है। दलगत जमीन को मजबूती देने के लिए कहे जाने वाले लुभावने शब्द, अब गले की हड्डी बन चुके हैं। दिल्ली माडल पर चुनाव जीतने की दम भरने वाली आम आदमी पार्टी के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री ने प्रदेश की समस्याओं को दूर करने के नाम पर अब केन्द्र के आगे कटोरा फैलाना शुरू कर दिया है। ऐसे में आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो चुका है। आम मतदाताओं ने मुफ्त में सुविधायें देने की दल घोषणाओं पर कभी कार्ययोजना के संदर्भ में जानकारी नहीं मांगी। कैसे दी जायेगी मुफ्त बिजली, पानी, राशन, शिक्षा और चिकित्सा आदि। इस सब के लिए पैसै कहां से आयेगा। व्यवस्था कैसे होगी। ईमानदार कर दाताओं पर क्या अतिरिक्त बोझ लादा जायेगा। कहीं रुपयों के पेड लगा है जो उसे हिलाने की क्षमता केवल और केवल दावा करने वाले दल में ही है। चुनावी माहौल में विपक्ष को मानसिक दिवालिया घोषित करने वाली पार्टियां स्वयं को सबसे ज्यादा बुध्दिजीवियों का संगठन निरूपित करने लगतीं हैं। चुनावी दौर में घोषणाओं के साथ भावी कार्ययोजना, उसके लिये जुटाए जाने वाली अतिरिक्त राशि की व्यवस्था तथा लाभ लेने वालों का सांख्यकीय विश्लेषण भी प्रस्तुत किया जाना चाहिए ताकि लोगों को यह भी तो पता चले कि विकास के नाम पर कहीं राज्य को कर्ज में डुबोने की चाल तो नहीं चली जा रही है। पडोसी देश श्रीलंका इसका जीवन्त उदाहरण हैं जहां का प्रत्येक नागरिक भारी भरकम विदेशी कर्ज में डूबा है। वहां भोजन के लाले पडे हैं। महंगाई की सुनामी लोगों को लील रही है। चीन जैसे देशों की गिध्द नजरें आग उगलने लगी हैं। वहीं राष्ट्र के परिपेक्ष में देखा जाये तो अधिकांश राज्य अपनी आय से अधिक की योजनायें बनाकर केन्द्र की ओर मुंह ताकने लगते हैं। मतदातों के मध्य केन्द्र की उपेक्षा का रोना रोने लगते हैं तो केन्द्र भी राज्यों की फिजूलखर्ची के आंकडे बताकर राज्यों के सत्ताधारी दलों की नीतियों को कोसने की क्रम शुरू कर देता है। पंजाब के परिपेक्ष में देखा जाये तो खालिस्तान के झंडे और नारों के साथ हिमाचल में प्रवेश करने वालों पर ज्यों ही वहां की सरकार ने शिकंजा कसा तो भिण्डरवाला के पक्ष में कसीदे पढे जाने लगे। दलगत बयानबाजी से माहौल को गर्माने का प्रयास ही नहीं किया गया बल्कि पंजाब सरकार ने हिमाचल के वाहनों पर भी प्रतिक्रियात्मक कार्यवाही करना शुरू कर दी। देश की विभाजनकारी ताकतों ने पहले लाल सलाम के साथ कांग्रेस में भितरघात कर दबदबा बनाया और अब आम आदमी पार्टी में उडान देने के नाम पर घुसपैठ शुरू कर दी। सशक्त विपक्ष के रूप में स्वयं को स्थापित करने की फिराक में लगी झाडू ने अब गुजरात में पांव पसारना शुरू कर दिये है। रैली, प्रदर्शन और सदस्यता अभियान की पगडण्डियों से सत्ता के राजमार्ग तक पहुंचने हेतु योजनावध्द कार्य प्रारम्भ हो चुका है। टुकडे-टुकडे गैंग के अनेक सिपाहसालार अब बामपंथी दलों और कांग्रेस के दामन से निकल कर आम आदमी पार्टी का झंडा थामने लगे हैं। दिल्ली के बाद पंजाब में सिंहासन पर आरूढ होते ही केजरीवाल की निजी सोच अब पार्टी की नीति बनकर सामने आने लगी है। मायावती की बहुजन समाज पार्टी, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, गांधी परिवार की कांग्रेस, जयन्त चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी, तेजस्वी यादव की राष्ट्रीय जनता दल, असादुदीन ओवैसी की आल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन पार्टी, उध्दव ठाकरे की शिव सेना की तर्ज पर ही अरविन्द केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी को भी नया रूप दे दिया है जहां सदस्यों की बहुमत वाली राय भी हाशिये पर ही होती है। यूं तो अभी से ही पंजाब में खालिस्तान समर्थकों की दबंगी दिखने लगी है परन्तु सीमावर्ती राज्यों के साथ हो रहे टकराव से विरोधाभाषी स्थितियां भी निर्मित होने लगीं है। केवल पंजाब ही नहीं उत्तर प्रदेश में भी मुफ्त में राशन देने की सीमा का विस्तार करके योगी ने अदूरदर्शी निर्णय की बानगी दे दी है। संविदाकर्मियों के नियमितीकरण से लेकर युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने की दिशा में मौन धारण करना, प्रदेश के हित में कदापि नहीं कहा जा सकता। केवल धार्मिक तुष्टीकरण के सहारे ज्यादा दूर तक नहीं चला जा सकता और न ही मोदी की विश्वव्यापी उभरती छवि को ही भुनाया जा सकता है। यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि मोदी ने देश के गौरव को संसार में एक बार फिर स्थापित किया है। विभिन्न देशों के विदेश मंत्रियों से लेकर अन्य प्रतिनिधि मण्डलों की निरंतर हो रही आमद ने देश के कद को अतिमहात्वपूर्ण बना दिया है। उदाहरण के तौर पर यूक्रेन के मुद्दे पर रूस का भारत को मध्यस्त के रूप में आमंत्रित करना, अमेरिका के व्दारा भारत की तटस्थ विदेश नीति को स्वीकार करना और पाकिस्तान के सेना प्रमुख व्दारा कश्मीर समस्या का बातचीत से हल खोजने हेतु पहल करना है। ऐसे में देश को पतन के गर्त में पहुंचाने के मंसूबे पालने वाले अपनी जयचन्द की भूमिका में सफल न होने पर निरंतर बौखला रहे हैं और तडफ रहे हैं विदेशों में बैठे उनके आका। बात चाहे खालिस्तान समर्थकों की हो या फिर इस्लामिक आतंकवाद की, नक्सनवाद की हो या फिर लाल सलाम की, हर जगह छद्म भेष में छुपे राशन खाने वाले जानवरों की धन कुबेर बनने की आकांक्षायें ही उन्हें राष्ट्रद्रोही बनने पर बाध्य करती हैं। सत्ता सुख से लेकर भौतिक सुविधाओं तक की मृगमारीचिका के पीछे भागने वाले अपनी आत्मा तक का सौदा करने से नहीं चूक रहे हैं। ऐसे में छद्म भेषधारी जयचन्दों को करना होगा चिन्हित तभी हो सकेगा बनावटी समस्याओं का उन्मूलन। लम्बे समय से परिवारवादी दलों की तानाशाही में कैद राष्ट्रवादी विचारधारा की पुनस्र्थापना आज आवश्यक हो गई है ताकि एक देश को फिर से विश्वगुरु के पद पर आसीत कराया जा सके। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकत होगी।



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