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 सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली,मां भगवती की कैसे करें आराधना-

शारदीय नवरात्र का प्रारम्भ :7 अक्टूबर 2021,घट स्थापना का समय अभिजीत मुहूर्त 11 बजकर 52 मिनट से 12 बजकर 39 मिनट तक। चतुर्थी तिथि का क्षय होने के कारण नवरात्रि की अवधि 8 दिन तक रहेगी।

Navratri Muhurat


जगत माता मां भगवती की उपासना का पर्व नवरात्रि‘हिन्दु धर्म का प्रमुख त्यौहार है,प्रमुख होने के साथ इस पर्व की सबसे बडी विशेषता यह भी है कि यह साल में चार बार मनाया जाता है। 

पौष मास में ,चैत्र मास में,आषाढ़ मास में और आश्विन मास में। लेकिन चैत्र मास और आश्विन मास के नवरात्रों का अधिक प्रचलन होने के कारण अधिकांश लोग इन्हीं महीनो में बढ़चढ कर देवी की उपासना करते हैं।  

नवरात्रि का पर्व जहां उपासना,मंत्र साधनना मंत्र सिद्धि आदि के लिए परम उपयोगी माना जाता है,वहीं शारीरिक आरोग्यता की प्राप्ति हेतु इन दिनों उपवास का भी बड़ा सैद्धान्तिक और वैज्ञानिक महत्व है। वस्तुतः नवरात्रि का पर्व मानव मात्र के लिए एक ऐसा अवसर है,जिसके माध्यम के वह वह मनोकामनाओं की पूर्ति के साथ-साथ शारीरिक आरोग्यता भी प्राप्त कर लेता है। 

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता

 नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।

नवरात्र का धार्मिक का महत्व , आध्यात्मिक महत्व, उपवास/व्रत के रखने फायदे, जौ/यव रोपण अथवा उगाने का  महत्व--

 नवरात्र आध्यात्मिक महत्व क्या है?नवरात्रि का। वैज्ञानिक आधार क्या है?नवरात्रि को नवरात्रि की क्यों कहा जाता है?नव दिन क्यों नही बोला जाता? नवरात्र में उपवास/व्रत के रखने फायदे क्या हैं?व्रत रखने का वैज्ञानिक आधार क्या है?नवरात्रि में अर्थात दुर्गा पूजा में जौ/यव रोपण अथवा उगाने का क्या महत्व है? आदि-आदि को विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं। 

नवरात्र का धार्मिक महत्व 

नवरात्रि हिन्दुओं का एक महापर्व या त्यौहार है,जो भारत के सभी प्रान्तांे में बडे़ उत्साह से मनाया जाता है,इसके अतिरिक्त जो हिन्दु धर्म के अनुयायी विदेश से बाहर हैं वे भी इस पर्व उतने ही उत्साह के साथ मनाते हैं,जितना के भारत में मनाया जाता है।

 इन नौ रातों में शक्ति स्वरूपा मां भगवती के तीन स्वरूपों महालक्ष्मी,महाकाली और महासरस्वती की पूजा और दुर्गा के नौ रूपों-1.शैल पुत्री 2.द्वितीय ब्रहम्चारिणी। 3चन्द्रघंटा 4.कूष्माण्डेति 5.स्कन्दमाता 6.कात्यायनी 7.कालरात्रि. 8.महागौरी 9.सिद्धिदात्रि।  

ऐसी मान्यता है,कि इस पर्व शारदीय नवरात्र का प्रारम्भ सबसे पहले भगवान श्रीराम ने समुद्र तट पर शुरू किया,और दसवंे दिन लंका की ओर प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की। 

आध्यात्मिक महत्व-

आध्यात्मिकता की जब चर्चा आती है,तो बहुत सारे लोगों को लगता है,कि ये हमारे लिए नही ये तो योगी,संन्यसी या योगी लोगों का विषय है। ये मानना नितान्त हमारी भूल है। अध्यात्म का मतलब संन्यास से या योग से ही हो ऐसा नही है। अध्यात्मा का सामान्य अर्थ होता है,स्वयं के बारे में जानना,अपने अस्तित्व के बारे में जानना। वेद,वेदान्त और उपनिषद की भाषा में कहें तो र्मै कौन हूं?कहां से आया हूं?और मुझे जाना कहां हैं? आदि की जिज्ञासा होना ही अध्यात्म है।  

लेकिन यदि हम नवरात्रि में होने वाली ‘नव दुर्गा’ की पूजा के सन्दर्भ में आध्यात्मिक विश्लेषण करते हैं,तो इसका आध्यात्मिक भाव बड़ा ही अद्भुत और सारयुक्त है। तो आइएंे इसे समझने का प्रयास करते हैं। शास्त्रीय भाषा अनुसार मानव शरीर को नौ द्वार वाला कहा गया है। ये नौ द्वार कौन-कौन हैं-दो कान,दो आंख,नाक के दो छिद्र,मुख,गुदा और जननेदिन्द्रय। इन नौर द्वारों में जीवनी शक्ति अथवा क्रिया शक्ति के रूप में रहने वाली शक्ति सदैव सुचारू रूप से क्रियशील बनी रहे,व हमारी ये सभी इन्द्रिय स्वस्थ और निरोगी बनी रहे इस भाव से नवरात्र पर्व में नौ देवियों की पूजा की जाती है। अथवा की जाने चाहिए। 

नवरात्र में मुख्य रूप से उपवास,सात्विक आहार और भगवती के नौ रूपों की उपासना का क्रम है। अर्थात उपवास से शारीरिक शुद्धि,सात्विक आहार से मन और इन्द्रियों की शुद्धिऔर उपासना से आत्म संतुष्टि होती है। फलस्वरूप मनुष्य का आचरण,व्यवहार,और विचारों में सकारात्मक परिवर्तन होने लगते हैं। येे अध्यात्म की उच्च पराकाष्ठा है,और इसकी षुरूआत होती है,उपवास से सात्विक आहार से और उपासना से। यदि आप गम्भीतरता विचार करेंगे तो नवरात्र में इन तीनों का समावेष स्वतः दृष्टिगोचर होने लगेगा। 

नवरात्रि का वैज्ञानिक आधार-

 नव रात्रि का शाब्दिक अर्थ ‘नव’ माने नौ और ‘रात्रि’ माने रातें़ बराबर नौ रातें या नवरात्रे। शस्त्रों में ऋषिमुनियोें ने रा़ित्र काल को विषेष प्रधानता दी है। यह भी बताया गया है कि ‘रात्रि शब्द सिद्धि का प्रतीक है’। परन्तु इसका मलतलब ये नही कि दिन रात्रि की अपेक्षाकृत गौंण हैं,दिन का अपना विशिष्ट महत्व तो है ही। लेकिन नवरात्र में रात्रि  को प्रधानता इसलिए दी गई है कि रात्रि का समय सिद्धि का प्रतीक है’ अर्थात रात्रिकाल का समय साधना या उपासना के लिए दिन की अपेक्षाकृत ज्यादा उचित होता है। 

अब ये प्रश्न आता है,कि रात्रि का समय उपासना या मंत्र साधना के लिए कैसे उपयुक्त माना जाय?तो आइऐं इसको  उदाहरण के साथ समझने का  प्रयास करते हैं-

1.रात्रि के समय अंधकार होने के कारण,सांसारिक अधिकांश गतिविधि रूक जाने के कारण वातावरण कोलाहल से मुक्त हो जाता है। 

दूसरा कारण मनुष्य स्वयं भी कहीं उलझनों जैसे नौकरी,व्यापार व व्यवहारिक आदि गतिविधयों से मुक्त हो जाता है। फलस्वरूप मानसिक रूप से वह जल्दी एकाग्र होकर साधना में ज्यादा समय तक स्थिर रह सकता है। 

वैज्ञानिक कारण-वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर यह साबित हुआ है,कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगो और रेडियों तरंगो को बाधित करती है,अर्थात उन्हें आगे नही बढ़ने देती। अर्थात सूर्य की किरणें जिस प्रकार आवाज की तरंगो को बाधित करती है। ठीक उसी प्रकार मंत्र ध्वनि को भी बाधित करती है। यही कारण है कि नवरात्रि के दौरान रात्रि के समय में उपासना,मंत्र जप आदि का विधान बताया गया है,ताकि साधक,भक्त को उपासना मंत्र जप का लाभ अधिक मिल सके।

नवरात्रि में व्रत रखने के फायदे-वैसे उपवास का सीधा सम्बन्ध या फायदा तो शरीर से ही है अथवा शरीर को ही फायदा  होता है,लेकिन नवरात्रि में नौ दिन तक उपवास और सात्विक आहार से शारीरिक आरोग्यता के साथ-साथ उपासक को धन,लक्ष्मी,पद,प्रतिष्ठा आदि की भी प्राप्ति होती है। क्योंकि मां भगवती को इन सबका कारका माना गया है। जैसे-या देवी सर्व भूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः। आदि-आदि।

व्रत रखने का वैज्ञानिक पक्ष-नवरात्र का प्रारम्भ ऋतु परिवर्तन के समय होता है। चाहे चैत्र वाले नवरात्रे हों या शरद ऋतु वाले। चैत्र मास में शीत ऋतु का प्रभाव कम होने लगता है,और ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ। जबकि आश्विन मास में ग्रीष्म ऋतु का समापन और शीत ऋतु का आगमन। वस्तुतः ऋतु परिवर्तन के समय समस्त सृष्टि में परिवर्तन स्पष्ट देखने में आता है। उसी प्रकार मानव शरीर में भी परिवर्तन स्वाभाविक है। 

फलस्वरूप स्वाभाविक तौर से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है। जिस कारण शरीर में रोगाणु और विषाणुओं का प्रवेश आसानी से होने लगता है। 

आर्युवेद के अनुसार उपवास से शरीरिक शुद्धि होती है। शरीर से विषैले तत्व बाहर निकल जाते हैं,और शरीर उर्जावान बना रहता है। और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाती है। 

इसके अतिरिक्त उपवास से पाचन सम्बन्धी समस्या भी दूर होती हेै,और शरीर की अतिरिक्त चर्बी भी कम होती है।

नवरात्रि में जौ का महत्व-

जौ को संस्कृत में‘यव’ कहते हैं। शास्त्रों में ऐसा वर्णन मिलता है,कि जौ सृष्टि की पहली फसल है। दूसरा कारण जब जौ वपन किया जाता है। तो वह एक विशेष प्रकार की हरी आभा के अंकुरित होता है। हरा कलर सुख,समृद्धि और खुशहाली प्रतीक भी माना जाता है।  

दुर्गा पूजा में जौ का तेजी से बढ़ना सुख समृद्धि का प्रतीक है। उसी प्रकार जौ का पूरी संख्या में उगना शुभ माना जाता है। 

पूजा विधि-वैसे तो सभी देवी देवताओं की पूजा विधि का विस्तार बहुत लम्बा चैड़ा है,जिसको  मंत्रों के ज्ञाता विद्वान लोगांे के द्वारा ही सम्पन्न कराया जा सकता है,लेकिन सामान्य विधि के माध्यम से भी आप मां भगवती को प्रसन्न कर  सकते हैं। इसके लिए आप सबसे पहले घर के मन्दिर की साफ सफाई करें। तत्पश्चात मां भगवती की फोटो या मूर्ति घ्घर के मन्दिर में या किसी चैकी के उपर स्थापित करें,साथ में कलश भी अवश्य स्थापित कर देें। क्योंकि दूर्गा पूजा में कलश का काफी महत्व है।

उसके बाद यथा श्रद्धा यथा जानकारी पहले गणेश जी का ध्यान,फिर मन्दिर में स्थापित सभी देवतओं का मानसिक ध्यान और फिर कलश को वस़्त्र,रोैली,चावल,फुल,फूलमाला आदि चढायें। फिर मां भगवती का ध्यान,ध्यान के बाद वस़्त्र,रौली,चावल,फल,फलमूाला आपिर्त करें,फिर नैवेद्य,फल आदि अर्पित कर पुनः ध्यान करें । उसके बाद सप्तश्लोकि पाठ,दुर्गा चालीसा,दुर्गा कवच पाठ,दुर्गा सप्तशती का पाठ या बीज मंत्र का जप कर सकतें है,जिसमें आपकी रूची या आस्था हो। और फिर  अन्त में आरती। ये सामान्य पूूजा और पाठ विधि है,मनोकाना सिद्धि के लिए पूर्ण है। क्योंकि भगवान या भगवती भक्त का भाव और समर्पण देखती है। अतः यदि आप उपरोक्त विधि से मां भगवती की उपासना करते हैं,तो मां भगवती अवश्य आपके मनोरथ पूर्ण करेगी। 

 

आचार्य पंकज पैन्युली 

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